इस वर्ष औसत सीपीआई मुद्रास्फीति लक्ष्य से काफी नीचे रहेगी-RBI MPC Minutes

मौद्रिक नीति समिति की 4 से 6 अगस्त 2025 के दौरान हुई बैठक का कार्यवृत्त
[भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45ज़ेडएल के अंतर्गत]



भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45ज़ेडबी के अंतर्गत गठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की छप्पनवीं बैठक 4 से 6 अगस्त 2025 के दौरान आयोजित की गई थी।

2. बैठक की अध्यक्षता श्री संजय मल्होत्रा, गवर्नर ने की तथा सभी सदस्य – डॉ. नागेश कुमार, निदेशक एवं मुख्य कार्यपालक, इंस्टिट्यूट फॉर स्टडीज इन इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट, नई दिल्ली; श्री सौगत भट्टाचार्य, अर्थशास्त्री, मुंबई; प्रोफेसर राम सिंह, निदेशक, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, दिल्ली; डॉ. पूनम गुप्ता, मौद्रिक नीति की प्रभारी उप गवर्नर और डॉ. राजीव रंजन, कार्यपालक निदेशक (भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडबी (2) (सी) के अंतर्गत केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित रिज़र्व बैंक के अधिकारी) इसमें उपस्थित रहें।

3. भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45ज़ेडएल के अनुसार, रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति समिति की प्रत्येक बैठक के चौदहवें दिन इस बैठक की कार्यवाहियों का कार्यवृत्त प्रकाशित करेगा, जिसमें निम्नलिखित शामिल होगा:

ए) मौद्रिक नीति समिति की बैठक में अपनाया गया संकल्प;

बी) मौद्रिक नीति समिति के प्रत्येक सदस्य का वोट, जो उक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर उस सदस्य द्वारा दिया जाएगा; और

सी) उक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर धारा 45ज़ेडआई की उप-धारा (11) के अंतर्गत मौद्रिक नीति समिति के प्रत्येक सदस्य का वक्तव्य।

4. एमपीसी ने भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उपभोक्ता विश्वास, परिवारों की मुद्रास्फीति प्रत्याशा, कॉर्पोरेट क्षेत्र के कार्यनिष्पादन, ऋण की स्थिति, औद्योगिक, सेवाओं और अवसंरचना क्षेत्रों की संभावनाएं और पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के अनुमानों का आकलन करने के लिए किए गए सर्वेक्षणों की समीक्षा की। एमपीसी ने इन संभावनाओं के विभिन्न जोखिमों के इर्द-गिर्द स्टाफ के समष्टि आर्थिक अनुमानों और वैकल्पिक परिदृश्यों की विस्तृत रूप से समीक्षा भी की। उक्त के मद्देनज़र और मौद्रिक नीति के रुख पर व्यापक चर्चा करने के बाद एमपीसी ने संकल्प अपनाया जिसे नीचे प्रस्तुत किया गया है।

संकल्प

5. मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की 56वीं बैठक 4 से 6 अगस्त 2025 तक श्री संजय मल्होत्रा, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक ​​की अध्यक्षता में आयोजित की गई। एमपीसी के सदस्य डॉ. नागेश कुमार, श्री सौगत भट्टाचार्य, प्रो. राम सिंह, डॉ. पूनम गुप्ता और डॉ. राजीव रंजन बैठक में शामिल हुए।

6. वर्तमान और उभरती समष्टि-आर्थिक स्थिति के आकलन के पश्चात, एमपीसी ने मौद्रिक नीति रेपो दर को 5.50 प्रतिशत पर बनाए रखने का निर्णय लिया। इसके परिणामस्वरूप, चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 5.25 प्रतिशत पर यथावत् बनी रहेगी तथा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 5.75 प्रतिशत पर बनी रहेगी। यह निर्णय संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति के लिए +/- 2 प्रतिशत के दायरे में 4 प्रतिशत के मध्यम अवधि लक्ष्य को प्राप्त करने के उद्देश्य के अनुरूप है।

संवृद्धि और मुद्रास्फीति संभावना

7. वैश्विक परिवेश चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। यद्यपि, वित्तीय बाज़ार में अस्थिरता और भू-राजनीतिक अनिश्चितताएँ हाल के महीनों में अपने चरम से कुछ कम हुई हैं, लेकिन फिर भी व्यापार वार्ता संबंधी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। हालाँकि, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा वैश्विक संवृद्धि में ऊर्ध्वगामी संशोधन किया गया है, लेकिन अभी भी यह मंद है। अवस्फीति की गति धीमी हो रही है, फिर भी कुछ उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति में वृद्धि देखी जा रही है।

8. घरेलू संवृद्धि आघात-सह बना हुआ है और मोटे तौर पर हमारे आकलन के अनुरूप ही विकसित हो रहा है। ग्रामीण माँग से समर्थित निजी उपभोग और सरकारी पूंजीगत व्यय में तेज़ी से समर्थित स्थिर निवेश, आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दे रहे हैं। आपूर्ति पक्ष पर, स्थिर दक्षिण-पश्चिम मानसून खरीफ की बुवाई को बढ़ावा दे रहा है, जलाशयों के स्तर को फिर से भर रहा है और कृषि गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है। इसके अलावा, सेवा क्षेत्र और निर्माण गतिविधियाँ मज़बूत बनी हुई हैं। हालाँकि, औद्योगिक क्षेत्र में संवृद्धि धीमी और सभी क्षेत्रों में असमान रही, जिसकी वजह बिजली और खनन क्षेत्र रहे।

9. जहाँ तक संवृद्धि की संभावना का प्रश्न है, सामान्य से बेहतर दक्षिण-पश्चिम मानसून, न्यून मुद्रास्फीति, बढ़ता क्षमता उपयोग और अनुकूल वित्तीय परिस्थितियाँ घरेलू आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दे रही हैं। मज़बूत सरकारी पूंजीगत व्यय सहित सहायक मौद्रिक, विनियामक और राजकोषीय नीतियों से भी माँग में वृद्धि होनी चाहिए। आने वाले महीनों में निर्माण और व्यापार में निरंतर वृद्धि के कारण सेवा क्षेत्र में भी तेजी बनी रहने की उम्मीद है। हालाँकि, चल रही टैरिफ संबंधी घोषणाओं और व्यापार वार्ताओं के बीच, बाह्य माँग की संभावनाएँ अनिश्चित बनी हुई हैं। लंबे समय से चले आ रहे भू-राजनीतिक तनाव, वैश्विक अनिश्चितताओं और वैश्विक वित्तीय बाजारों में अस्थिरता से उत्पन्न प्रतिकूल परिस्थितियाँ संवृद्धि की संभावना के लिए जोखिम उत्पन्न करती हैं। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2025-26 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि का अनुमान 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा गया है, जोकि पहली तिमाही में 6.5 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 6.7 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6.6 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 6.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है। 2026-27 की पहली तिमाही के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि 6.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है (चार्ट 1)। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं।

10. सीपीआई हेडलाइन मुद्रास्फीति लगातार आठवें महीने घटकर जून 2025 में 77 महीनों के निचले स्तर 2.1 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) पर आ गई। यह मुख्य रूप से कृषि गतिविधियों में सुधार और विभिन्न आपूर्ति-पक्ष उपायों के कारण खाद्य मुद्रास्फीति में तीव्र गिरावट के कारण हुई। फरवरी 2019 के बाद से खाद्य मुद्रास्फीति पहली बार जून में (-) 0.2 प्रतिशत पर नकारात्मक रही। उच्च-आवृत्ति मूल्य संकेतक इस वर्ष जुलाई तक भी खाद्य कीमतों में गिरावट की गति जारी रहने का संकेत देते हैं। मूल मुद्रास्फीति, जो फरवरी-मई के दौरान 4.1-4.2 प्रतिशत के सीमित दायरे में रही, जून में बढ़कर 4.4 प्रतिशत हो गई, जिसका एक कारण स्वर्ण की कीमतों में लगातार वृद्धि भी है।

11. 2025-26 के लिए मुद्रास्फीति की संभावना जून में अपेक्षा से अधिक सौम्य हो गया है। दक्षिण-पश्चिम मानसून की स्थिर प्रगति, खरीफ की बेहतर बुवाई, पर्याप्त जलाशय स्तर और खाद्यान्नों के पर्याप्त बफर स्टॉक के साथ बड़े अनुकूल आधार प्रभावों ने इस नरमी में योगदान दिया है। हालाँकि, प्रतिकूल आधार प्रभावों और नीतिगत कार्रवाइयों से उत्पन्न मांग पक्ष के कारकों के प्रभाव में आने के कारण, सीपीआई मुद्रास्फीति का 2025-26 की चौथी तिमाही और उसके बाद 4 प्रतिशत से ऊपर जाने की संभावना है। इनपुट कीमतों पर किसी भी बड़े नकारात्मक आघातों को छोड़कर, मूल मुद्रास्फीति का वर्ष के दौरान 4 प्रतिशत से थोड़ा ऊपर रहने की संभावना है। मौसम संबंधी आघात, मुद्रास्फीति की संभावना के लिए जोखिम उत्पन्न करते हैं। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2025-26 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति अब 3.1 प्रतिशत अनुमानित है, जोकि दूसरी तिमाही में 2.1 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 3.1 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 4.4 प्रतिशत रहने की संभावना है। 2026-27 की पहली तिमाही के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति 4.9 प्रतिशत अनुमानित है (चार्ट 2)। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं।

Chart 1 and Chart 2

मौद्रिक नीति संबंधी निर्णयों का औचित्य

12. एमपीसी ने कहा कि निकट भविष्य में मुद्रास्फीति की संभावना पहले के अनुमान से कहीं अधिक सौम्य हो गई है, और इस वर्ष औसत सीपीआई मुद्रास्फीति लक्ष्य से काफी नीचे रहने की आशा है। यह मुख्य रूप से कम खाद्य मुद्रास्फीति के कारण है, जो जून में अपस्फीतिकारी क्षेत्र में प्रवेश कर गई थी। हालाँकि, 2025-26 की चौथी तिमाही से सीपीआई मुद्रास्फीति का 4 प्रतिशत के लक्ष्य से ऊपर जाने की संभावना है। इसके अलावा, मूल मुद्रास्फीति दिसंबर-जनवरी 2024-25 के दौरान दर्ज किए गए 3.6 प्रतिशत के हालिया निम्नतम स्तर से लगातार बढ़ रही है और इस वर्ष पहली तिमाही में औसतन 4.3 प्रतिशत रही। कीमती धातुओं को छोड़कर मूल मुद्रास्फीति में भी वृद्धि देखी गई है और यह पहली तिमाही में औसतन 3.4 प्रतिशत रही।

13. आगामी त्यौहारी सीजन में कुछ तेजी आने की आशा के साथ संवृद्धि दर अच्छी बनी हुई है और यह 2025-26 के लिए 6.5 प्रतिशत के हमारे आकलन के अनुरूप विकसित हो रही है।

14. इस प्रकार, हेडलाइन मुद्रास्फीति पहले के अनुमान से काफी कम है, जिसका मुख्य कारण खाद्य पदार्थों, विशेषकर सब्जियों की कीमतों में अस्थिरता है। दूसरी ओर, मूल मुद्रास्फीति, अनुमान के अनुसार, 4 प्रतिशत के आसपास स्थिर बनी हुई है। इस वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही से मुद्रास्फीति में वृद्धि का अनुमान है। हालाँकि पहले के अनुमानों के अनुरूप संवृद्धि दर मजबूत है और लेकिन यह हमारी आकांक्षाओं से कम है। प्रशुल्क (टैरिफ़) संबंधी अनिश्चितताएँ अभी भी उभर रही हैं। मौद्रिक नीति का संचरण अभी भी जारी है। फरवरी 2025 से दरों में होने वाली 100 बीपीएस की कटौती का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव अभी भी स्पष्ट नहीं है।

15. अतः, कुल मिलाकर, वर्तमान समष्टि आर्थिक स्थितियां, संभावना और अनिश्चितताएं 5.5 प्रतिशत की नीतिगत रेपो दर को जारी रखने तथा अग्रिम दर कटौती का ऋण बाजारों और व्यापक अर्थव्यवस्था में आगे संचरण हेतु प्रतीक्षा की मांग करती हैं। तदनुसार, एमपीसी ने सर्वसम्मति से रेपो दर को यथावत् रखने के लिए वोट किया। एमपीसी ने उचित मौद्रिक नीति मार्ग निर्धारित करने के लिए प्राप्त आंकड़ों और उभरती घरेलू संवृद्धि-मुद्रास्फीति गतिकी पर कड़ी निगरानी रखने का संकल्प लिया। तदनुसार, सभी सदस्यों ने तटस्थ रुख बनाए रखने का निर्णय लिया।

16. एमपीसी की बैठक का कार्यवृत्त 20 अगस्त 2025 को प्रकाशित किया जाएगा।

17. एमपीसी की अगली बैठक 29 सितंबर से 1 अक्तूबर 2025 तक निर्धारित है।

नीतिगत रेपो दर को 5.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने के संकल्प पर वोटिंग

सदस्यवोट
डॉ. नागेश कुमारहाँ
श्री सौगत भट्टाचार्यहाँ
प्रो. राम सिंहहाँ
डॉ. राजीव रंजनहाँ
डॉ. पूनम गुप्ताहाँ
श्री संजय मल्होत्राहाँ

डॉ. नागेश कुमार का वक्तव्य

18. एमपीसी ने अगस्त में अपनी बैठक, आर्थिक संवृद्धि की धारणीयता के लिए निरंतर चुनौतियां, विशेष रूप से विनिर्माण क्षेत्र में, जो व्यापार नीति अनिश्चितताओं और कमजोर निजी निवेश के कारण उत्पन्न हुई, जबकि मुद्रास्फीति का दबाव और कम हो गया, की पृष्ठभूमि में आयोजित की।

19. मुद्रास्फीति की संभावना लगातार अनुकूल बनी हुई है। सीपीआई हेडलाइन जून 2025 में और अधिक कम होकर 2.1 प्रतिशत पर आ गई है, जो जनवरी 2019 के बाद से सबसे निचला स्तर है, इसका कारण खाद्य कीमतों में गिरावट है, जो वर्ष-दर-वर्ष आधार पर -0.2% पर नकारात्मक क्षेत्र में चली गईं। मुद्रास्फीति की प्रत्याशाएँ स्थिर बनी हुई हैं क्योंकि आरबीआई के घरेलू सर्वेक्षण मुद्रास्फीति की प्रत्याशा में निरंतर कमी की पुष्टि करते हैं। इसलिए, 2025 के लिए हेडलाइन सीपीआई के अनुमानों को जून नीति के समय के 3.7% से 60 आधार अंकों की कमी के साथ वर्तमान में 3.1% पर अधोगामी संशोधित कर दिया गया है।

20. आर्थिक संवृद्धि की संभावना चुनौतीपूर्ण बना हुई है। लाभ और लाभ मार्जिन में अच्छी वृद्धि, और क्षमता उपयोग दरों के ऊर्ध्वगामी बढ़ने और 75% के स्तर (मौसमी रूप से समायोजित क्षमता उपयोग सहित) से ऊपर रहने के बावजूद, जिसे विशेष रूप से विनिर्माण क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण सीमा माना जाता है, बिक्री वृद्धि धीमी रही है, और निजी निवेश में तेज़ी के संकेत नहीं दिख रहे हैं। कम ब्याज दरों के बावजूद, ऋण उठाव भी अपेक्षित तरीके से नहीं हुआ है। शहरी माँग अभी भी धीमी बनी हुई है, तथापि ग्रामीण माँग में अच्छी वृद्धि देखी जा रही है, जिसका कारण बढ़ती ग्रामीण मज़दूरी, मज़बूत कृषि संवृद्धि और अच्छे मानसून की संभावनाएँ हैं।

21. व्यापार नीति की अनिश्चितताओं से निजी निवेश के रुख पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। यूके-भारत एफ़टीए पर हस्ताक्षर एक महत्वपूर्ण सकारात्मक घटनाक्रम है, लेकिन अमेरिका द्वारा भारत पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा से आर्थिक संभावना को लेकर चिंताएँ उत्पन्न कर रही है। प्रारंभिक अनुमानों से पता चलता है कि ये टैरिफ चालू वर्ष में संवृद्धि दर को 20 से 30 आधार अंकों तक प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन इस तथ्य को देखते हुए कि अमेरिका भारत की श्रम-प्रधान वस्तुओं जैसे कपड़ा और परिधान, चमड़े के सामान, रत्न और आभूषण, झींगा और अन्य खाद्य उत्पादों के निर्यात का एक प्रमुख बाजार है, नौकरियां जाने का खतरा और भी गंभीर है। हम केवल यही आशा कर सकते हैं कि रूसी तेल खरीद पर लगाए गए दंडात्मक टैरिफ वापस ले लिए जाएँगे और चल रही द्विपक्षीय व्यापार वार्ताएँ अंततः भारतीय निर्यात पर अमेरिकी टैरिफ को अधिक प्रबंधनीय स्तर पर लाने में सफल होंगी तथा मोटे तौर पर आसियान देशों और बांग्लादेश जैसे एशियाई समकक्षों के, यदि बेहतर नहीं तो, अनुरूप होंगी और यह व्यवधान अल्पकालिक होगा। तथापि, अनिश्चितता निवेश के माहौल को प्रभावित कर रही है। आगे चलकर, वस्तुओं के लिए बाज़ारों का विविधीकरण महत्वपूर्ण होगा। इस संदर्भ में, भारत-ईयू एफ़टीए पर बातचीत में तेज़ी लाने तथा जापान और कोरिया गणराज्य के साथ एफ़टीए या व्यापक आर्थिक साझेदारी करारों की समीक्षा करने की आवश्यकता है ताकि उन्हें और अधिक प्रभावी बनाया जा सके, विशेषकर श्रम-प्रधान वस्तुओं के निर्यात के लिए। आयात पर निर्भरता कम करके तैयार उपभोक्ता वस्तुओं के लिए घरेलू बाज़ार का पूरी तरह से दोहन करना भी मददगार होगा। विश्व स्तर पर जाने-माने भारतीय ब्रांडों और आपूर्ति शृंखलाओं के निर्माण तथा विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (ओडीआई) के माध्यम से और विदेशी खुदरा शृंखलाओं के अधिग्रहण से उपभोक्ता वस्तुओं के निर्यात में घरेलू मूल्यवर्धन को बढ़ाना भी महत्वपूर्ण होगा।

22. आर्थिक संवृद्धि को सहारा प्रदान करने की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए, फरवरी 2025 की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के बाद से रेपो दर में तीन बार कटौती की गई है, जिससे कुल 100 आधार अंकों की कमी आई है। रेपो दर में कटौती का संचारण उधार और जमा दरों में देरी से होता है। तथापि, जून 2025 की नीति में 50 आधार अंकों की भारी कटौती से यह संचारण और तेज हो गया। अब तक कुल मिलाकर, नए ऋणों और जमाओं के लिए उधार दरों में 71 आधार अंकों की कमी आ चुकी है, और जमा दरों में 87 आधार अंकों की कमी आ चुकी है। इस संचारण के असर में देरी को देखते हुए, आने वाले महीनों में उधार दरों में और नरमी आ सकती है, विशेषकर यह देखते हुए कि चलनिधि अभी भी अधिशेष में बनी हुई है।

23. जबकि निजी निवेश और शहरी मांग को प्रोत्साहित करने का मामला अभी भी बना हुआ है, और मुद्रास्फीति की अनुकूल संभावना नीतिगत गुंजाइश प्रदान करती है, फिर भी हम एमपीसी की अक्तूबर की बैठक में नीतिगत कार्रवाइयों पर विचार करने से पहले मौजूदा कार्रवाइयों के क्रियान्वयन और व्यापार नीति की अनिश्चितताओं के परिणामों पर नज़र रखने के लिए प्रतीक्षा करना चाहेंगे। इसलिए, मैं इस समय रेपो दर को अपरिवर्तित रखने के पक्ष में वोट करता हूँ। मुझे यह भी लगता है कि इस चुनौतीपूर्ण और जटिल आर्थिक परिवेश में अपने विकल्प खुले रखने के लिए हम तटस्थ रुख अपनाना जारी रख सकते हैं।

श्री सौगत भट्टाचार्य का वक्तव्य

24. एमपीसी, आरबीआई द्वारा संचारण को सुदृढ़ करने और उधार देने की शर्तों को आसान बनाने के कई उपायों के साथ, फरवरी 2025 से मौद्रिक नीति में नरमी के लिए सक्रिय रही है। 5 महीनों के अंतराल में नीतिगत रेपो दर में 100 आधार अंकों की कटौती की गई है। जून 2025 की एमपीसी बैठक के बाद से औसत प्रणालीगत चलनिधि 3.0 लाख करोड़ रुपये के अधिशेष में रही है, और सितंबर से सीआरआर में 100 आधार अंकों की कटौती के पूर्व-निर्धारित मार्गदर्शन से चलनिधि अधिशेष में रहने की आशा है। आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि वित्तीय स्थितियाँ आसान बनी हुई हैं।

25. इस समय, हमें एक कदम पीछे हटकर, दरों के निर्णयों और अन्य नीतिगत कार्रवाइयों के प्रभावों का आकलन करने की आवश्यकता है। यह सुनने में भले ही अटपटा लगे, लेकिन इस बात पर फिर से ज़ोर देना ज़रूरी है कि मौद्रिक नीति को कई, अक्सर परस्पर विरोधी, उद्देश्यों को संबोधित करना होगा और समझौताकारी तालमेलों को अनुकूलित करना होगा।

26. मेरे विचार से, इन समझौताकारी तालमेलों में सबसे महत्वपूर्ण, ऋण और जमा दरों के बीच संतुलन है। जून 2025 से लेकर अब तक की अवधि में नीतिगत नरमी का प्रभाव ऋण ब्याज दरों, विशेष रूप से नए ऋणों पर, में काफी हद तक देखा गया है। मैं दोहराना चाहूँगा कि मौद्रिक नीति में नरमी का एक प्रमुख उद्देश्य निवेश के इरादे और निर्णयों को समर्थन देने के लिए उधार की लागत को कम करना होता है। इससे संभवतः ऋण की माँग में वृद्धि हो सकती है। कुछ हद तक, ऐसा हुआ भी है। सूक्ष्म और लघु उद्यमों को बैंक ऋण प्रवाह (27 जून तक) काफी हद तक स्थिर रहा है। व्यापक रूप से, घरेलू और विदेशी दोनों माध्यमों से वाणिज्यिक क्षेत्र में निधियों का समग्र प्रवाह भी मज़बूत रहा है।

27. तथापि, इसी अवधि के दौरान, नई जमाराशियों पर ब्याज दरों में नए ऋणों की तुलना में अधिक तेज़ी से गिरावट आई है। प्रथम दृष्टया, यह मुख्य रूप से बड़े चलनिधि अधिशेष के कारण थोक जमा दरों में कटौती के कारण हुआ होगा। अंतर्निहित जमा मिश्रण को ध्यान में रखते हुए भी, जमा दरों में यह गिरावट, घरेलू परिवारों की बचत में वृद्धि के संबंध में थोड़ी चिंता का विषय है, क्योंकि मेरा अनुमान है कि कम से कम निकट भविष्य में भारत में विदेशी बचत (पूंजी) का प्रवाह सीमित रहेगा।

28. ऋण संबंधी आंकड़ों के आधार पर, उच्च आवृत्ति संकेतकों पर आधारित घरेलू आर्थिक गतिविधियाँ, समग्र माँग के कुछ संकेतकों में नरमी के बावजूद, काफी हद तक आघात सह बनी हुई हैं। आरबीआई सर्वेक्षण के परिणाम निरंतर उपभोक्ता विश्वास का संकेत देते हैं। वित्त वर्ष 26 की अगली कुछ तिमाहियों के लिए मुद्रास्फीति के पूर्वानुमान मामूली हैं, लेकिन उसके बाद बढ़ने का अनुमान है। इसके अलावा, हाल के मुद्रास्फीति आंकड़ों में नरमी के स्रोत, सूचकांक के एक केंद्रित उपसमूह से उत्पन्न होते हैं, जो एक अंतर्निहित जोखिम है। यह दूसरा समझौताकारी तालमेल है।

29. व्यापक समष्टि आर्थिक परिवेश के संदर्भ में, वैश्विक व्यापार और आर्थिक गतिविधियों को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है, यद्यपि अमेरिकी टैरिफ का उभरता दायरा और पैमाना कुछ हद तक स्पष्ट होता जा रहा है। इसके बावजूद, वैश्विक आपूर्ति शृंखला अव्यवस्थाओं को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। भारत-विशिष्ट अमेरिकी टैरिफ पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी और अज्ञात अतिरिक्त दंडात्मक टैरिफ के आधार पर, भारत-अमेरिका व्यापार के लिए संभावना, विशेष रूप से, अनिश्चित हो गई है। इस प्रकार भू-कार्यनीतिक विचारों ने अनिश्चितता की एक और परत जोड़ दी है। अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते के परिणाम और समय-सीमा स्पष्ट नहीं हैं। यदि ये टैरिफ जारी रहते हैं, तो वित्त वर्ष 2026 में और संभवतः उसके बाद भी भारत की संवृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है। इन सभी ने भारत के बाह्य संतुलन, चालू और पूंजीगत खातों, दोनों की संभावना को अस्पष्ट कर दिया है। घरेलू आर्थिक गतिकी और अपतटीय अनिश्चितता के बीच संतुलन तीसरा समझौताकारी तालमेल है।

30. वर्तमान और बढ़ती अनिश्चितता के इस स्तर को देखते हुए, कोई भी भावी मार्गदर्शन देना मुश्किल है। नीतिगत निर्णय आने वाले आँकड़ों पर आधारित होते रहेंगे और बैठक-दर-बैठक आधार पर लिए जाएँगे। वर्तमान व्यापार गतिकी के जारी रहने के साथ-साथ, भारत में आर्थिक गतिविधियों से संबंधित हाल के दिनों के आँकड़े, विशेष रूप से वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही की जीडीपी और भुगतान संतुलन भी प्रतिक्षित हैं।

31. इसलिए, समष्टि-वित्तीय परिवेश की अस्थिरता और वर्तमान में उपलब्ध सूचनाओं की अस्पष्टता को देखते हुए, मेरा मानना ​​है कि रेपो दर और रुख, दोनों पर मौद्रिक नीति निर्णयों में विराम उचित है। इसलिए, मैं इस एमपीसी बैठक में यथास्थिति बनाए रखने के पक्ष में वोट करता हूँ।

प्रो. राम सिंह का वक्तव्य

32. मैं अगस्त 2025 की बैठक के बारे में एक संक्षिप्त वक्तव्य दूँगा, क्योंकि वर्तमान संवृद्धि-मुद्रास्फीति गतिकी और संभावनाओं का मेरा आकलन एमपीसी वक्तव्य में वर्णित आंकड़ों से काफी मिलता-जुलता है। मैं एमपीसी वक्तव्य में प्रस्तुत आंकड़ों के दोहराव से बचूँगा।

मुद्रास्फीति

33. सीपीआई हेडलाइन मुद्रास्फीति पिछली दो तिमाहियों से लगातार अधोगामी पथ पर है, जो जून में लगभग सहन बैंड के निचले स्तर को छू गई। सीपीआई मुद्रास्फीति में अप्रत्याशित गिरावट मुख्य रूप से खाद्य मुद्रास्फीति में तीव्र गिरावट के कारण हुई है, जिसने जून 2025 में (-) 0.2 प्रतिशत पर अपना पहला नकारात्मक प्रिंट दर्ज किया, जो फरवरी 2019 के बाद सबसे कम है। खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट व्यापक आधार पर है। उच्च आवृत्ति संकेतक आने वाले महीनों में भी खाद्य कीमतों में गिरावट की गति जारी रहने का संकेत देते हैं। ईंधन मुद्रास्फीति भी पिछले कुछ महीनों में कम होकर जून में 2.6 प्रतिशत पर पहुँच गई है। इसके विपरीत, मूल मुद्रास्फीति इस कैलेंडर वर्ष के फरवरी-मई के दौरान 4.1 - 4.2 प्रतिशत से बढ़कर जून में 4.4 प्रतिशत हो गई है। स्वर्ण और कीमती धातुओं की कीमतों में वृद्धि मूल मुद्रास्फीति में वृद्धि का एक महत्वपूर्ण कारण है।

34. वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए औसत सीपीआई मुद्रास्फीति के संदर्भ में मुद्रास्फीति की संभावना, मुख्यतः अप्रत्याशित रूप से न्यूनतर खाद्य मुद्रास्फीति के कारण, बहुत ही सौम्य हो गई है। आरबीआई ने अपने सीपीआई मुद्रास्फीति पूर्वानुमान को घटाकर 3.1% कर दिया है। तथापि, आने वाली तिमाहियों के दौरान औसत मूल मुद्रास्फीति लक्ष्य सीमा से ऊपर रहने की संभावना है।

जीडीपी संवृद्धि

35. कुल मिलाकर, कुछ उच्च-आवृत्ति वाले संकेतकों से मिल रहे मिले-जुले संकेतों के बीच जीडीपी संवृद्धि अब तक स्थिर बनी हुई है। ट्रैक्टर और दोपहिया वाहनों की बिक्री सहित ग्रामीण खपत 2025-26 की पहली तिमाही में मजबूत बनी रही, जबकि एफएमसीजी, यात्री वाहनों की बिक्री और हवाई यात्रियों की संख्या में वृद्धि सहित शहरी खपत के संकेतक मंद रहे।

36. आगे चलकर, कई कारकों: बॉण्ड बाजारों और गैर-बैंकिंग माध्यमों से निजी क्षेत्र में धन प्रवाह में वृद्धि, एक बेहद स्वस्थ कॉर्पोरेट तुलन-पत्र, विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों के लिए उच्च पीएमआई स्तर, और बढ़ता क्षमता उपयोग, से राहत मिलने की उम्मीद है। सामान्य से बेहतर मानसून, न्यून मुद्रास्फीति, सहायक मौद्रिक, विनियामक और राजकोषीय नीतियों के साथ-साथ त्योहारों के मौसम की शुरुआत के कारण मांग में वृद्धि से संवृद्धि को समर्थन मिलने की संभावना है। निर्माण, व्यापार और सेवा क्षेत्रों की एक विस्तृत शृंखला में सतत संवृद्धि दर आने वाले महीनों में भी तेज बनी रहने की उम्मीद है, जिससे संवृद्धि को समर्थन मिलेगा।

37. 6.5% की संवृद्धि दर प्राप्ति से जुड़े कुछ तनाव के संकेत भी हैं। निजी पूंजीगत व्यय संबंधी संवृद्धि उम्मीद से कम बनी हुई है, हालाँकि इस संबंध में हालिया संकेत उत्साहजनक हैं। कुल मिलाकर, स्थिर निवेश को मुख्य रूप से सरकारी पूंजीगत व्यय का समर्थन प्राप्त है। औद्योगिक क्षेत्र की संवृद्धि सभी क्षेत्रों में धीमी और असमान रही। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में भी नरमी देखी गई है। निवल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी निचले स्तर पर बना हुआ है।

38. इसके अलावा, लगातार बदलती टैरिफ संबंधी घोषणाओं और लंबी चलती हुई व्यापार वार्ताओं के बीच निर्यात के स्तर पर संभावनाएँ बेहद अनिश्चित हैं। अस्थिर भू-राजनीतिक परिदृश्य, बढ़ती वैश्विक अनिश्चितताओं और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में अस्थिरता से उत्पन्न प्रतिकूल परिस्थितियाँ, घरेलू संवृद्धि की संभावनाओं के लिए गंभीर जोखिम उत्पन्न करती हैं। अमेरिकी टैरिफ पहले ही भारतीय निर्यातकों को नुकसान में डाल चुके हैं। अमेरिकी बाजार पर निर्भर क्षेत्रों, जैसे हीरा एवं आभूषण, कपड़ा एवं परिधान, तथा मत्स्य पालन में एमएसएमई की संवृद्धि और रोजगार में संकट के संकेत दिखाई दे रहे हैं।

39. सामान्य परिस्थितियों में, सौम्य मुद्रास्फीति संभावनाओं को देखते हुए, संवृद्धि-समर्थक ब्याज दरों में कटौती की गुंजाइश बनती है। हालाँकि, मुद्रास्फीति और संवृद्धि, दोनों स्तर पर असामान्य रूप से उच्च अनिश्चितता के कारण अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है। प्रतिकूल आधार प्रभावों के कारण, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति का 2025-26 की चौथी तिमाही में 4 प्रतिशत को पार कर जाने और बाद की तिमाहियों में लक्ष्य से ऊपर रहने का अनुमान है। इसके अलावा, मौद्रिक और राजकोषीय नीति के क्रियान्वयन से मांग में वृद्धि का प्रभाव अभी सामने आना बाकी है। कुछ वस्तुओं की कीमतों को लेकर अनिश्चितता और वैश्विक वित्तीय बाजारों में अस्थिरता के अनिश्चित प्रभावों के कारण आयातित मुद्रास्फीति का जोखिम बना हुआ है।

40. दूसरी ओर, घरेलू खाद्य आपूर्ति शृंखला में सुधार, खरीफ की अच्छी बुवाई और सामान्य से अधिक जल भंडार आने वाली तिमाहियों में खाद्य मुद्रास्फीति के लिए शुभ संकेत हैं। संशोधित सीपीआई सूचकांक (खाद्य पदार्थों के लिए कम भारांक के साथ) पर आधारित मुद्रास्फीति शृंखला में अपेक्षित संशोधन मुद्रास्फीति के जोखिमों को और बढ़ा देता है। भविष्य में, आधार प्रभाव (कीमती धातुओं की उच्च कीमतें) भी मूल मुद्रास्फीति को कम कर सकता है।

41. इन सभी कारकों ने मुद्रास्फीति के पूर्वानुमान के विचलन को बढ़ा दिया है। वैश्विक संवृद्धि और मुद्रास्फीति संबंधी धारणाएँ दिन-प्रतिदिन बदल रही हैं। वैश्विक संवृद्धि अभी तक स्थिर बनी हुई है। निर्यात को अग्रिम भुगतान किया गया है, जिससे निर्यातकों को टैरिफ लागत का एक बड़ा हिस्सा वहन करना पड़ रहा है। इसका अर्थ है कि टैरिफ विवादों का पूरा प्रभाव अमेरिकी अर्थव्यवस्था और शेष विश्व पर अभी तक पूरी तरह से नहीं पड़ा है। वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में, वैश्विक संवृद्धि और मुद्रास्फीति अनुमानित स्तरों से बहुत भिन्न हो सकती है।

42. दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच टैरिफ़ विवाद भारतीय अर्थव्यवस्था पर मुद्रास्फीति और अपस्फीति दोनों का दबाव एक साथ बढ़ाएगा। इसके समग्र प्रभाव का आकलन करना कठिन है। संवृद्धि को लेकर अनिश्चितता के उच्च स्तर और खाद्य मुद्रास्फीति की अस्थिर प्रकृति को देखते हुए, ब्याज दरों में कटौती में सावधानी बरतना ज़रूरी है। आने वाले महीनों में अमेरिकी फेड और अन्य केंद्रीय बैंकों द्वारा लिए जाने वाले ब्याज दरों से संबंधित निर्णय भी आरबीआई द्वारा आगे की ब्याज दरों में कटौती की व्यवहार्यता और उसकी मात्रा पर असर डालेंगे।

43. अप्रत्याशित घटनाओं से निपटने के लिए, नीतिगत विकल्पों को बनाए रखना बेहद ज़रूरी है, विशेषकर उन नीतिगत साधनों की संख्या और उनके प्रभाव के संदर्भ में जिनका इस्तेमाल किया जा सकता है। केवल प्राप्त आँकड़े ही मौजूदा वैश्विक आर्थिक व्यवस्था के तहत आवश्यक सटीकता के साथ मुद्रास्फीति का आकलन करने में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा, एमपीसी को 100 आधार अंकों की दर कटौती के प्रभाव-अंतरण पर नज़र रखने की ज़रूरत है, ताकि मुद्रास्फीति और संवृद्धि पर इसके प्रभावों का पता लगाया जा सके। हमें भारतीय निर्यात पर टैरिफ के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावों के क्षेत्रीय प्रभावों पर निगरानी करने की ज़रूरत है।

44. उपर्युक्त बहुआयामी और उच्च-क्रम वाले अनिश्चितता को देखते हुए, मैं चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत नीतिगत रेपो दर को 5.50 प्रतिशत पर स्थिर रखने के लिए वोट करता हूँ।

45. इसी कारण से, मैं मौद्रिक नीति रुख को ‘तटस्थ’ बनाए रखने का समर्थन करता हूं।

डॉ. राजीव रंजन का वक्तव्य

46. अगस्त की एमपीसी बैठक एमपीसी सदस्य के रूप में मेरी 21वीं बैठक थी। मौद्रिक नीति के भविष्य के रुख पर निर्णय लेने के लिहाज से यह सबसे कठिन बैठकों में से एक थी। भले ही, मैंने जून 2025 की बैठक के कार्यवृत्त में कहा था, "...नीतिगत दरों में 50 आधार अंकों की कटौती पहले ही कर देने के बाद, हमारे पास नीतिगत दरों में और अधिक कटौती की गुंजाइश कम होगी", लेकिन मुझे लगा कि इस अगस्त की बैठक में दोनों पक्षों की ओर से तर्क समान रूप से मज़बूत और संतुलित थे कि क्या नीतिगत रेपो दर में 25 आधार अंकों की कटौती की जाए या न की जाए। सबसे पहले मैं नीतिगत दर में 25 आधार अंकों की कटौती के पक्ष में तर्कों का सारांश प्रस्तुत करता हूँ।

47. हमने वर्तमान नीति में मुद्रास्फीति के अनुमान को 60 आधार अंक घटाकर 3.1 प्रतिशत कर दिया है क्योंकि 2025-26 के शेष समय के लिए मुद्रास्फीति का पूर्वानुमान सौम्य हो गया है, जिसे अनुकूल आधार प्रभावों, दक्षिण-पश्चिम मानसून की अच्छी प्रगति, खरीफ की अच्छी बुवाई और पर्याप्त खाद्यान्न भंडार का समर्थन प्राप्त है। 2025-26 के अनुमानों में उल्लेखनीय कमी, निकट भविष्य में मुद्रास्फीति के 4 प्रतिशत के लक्ष्य से काफी नीचे रहने और त्योहारों के मौसम के निकट आने के साथ आर्थिक गतिविधियों के लिए चक्रीय नीतिगत समर्थन में वृद्धि के साथ, यह कहना उचित होगा कि संवृद्धि को बढ़ावा देने के लिए, विशेष रूप से अनिश्चित वैश्विक परिवेश में, नीतिगत ढील देने की गुंजाइश फिर से खुल गई है।

48. दूसरी ओर, नीतिगत दर और रुख के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने के तर्क निम्नलिखित कारणों से और भी मज़बूत प्रतीत हुए। पहला, हालिया मौद्रिक सहजता चक्र ने फरवरी 2025 के बाद से, पहले ही 100 आधार अंकों की अग्रिम कटौती कर दी है। इसका प्रभाव अभी भी प्रणाली में दिखाई दे रहा है, और ऋण बाजारों तक इसका संचारण जारी है। इसलिए, वर्तमान समय में आगे नीतिगत प्रोत्साहन देने से पहले संचारण की सीमा देखने के लिए प्रतीक्षा और निगरानी का दृष्टिकोण अपनाना ही समझदारी है। पहले की गई सीआरआर कटौती का प्रभाव भी सितंबर 2025 से शुरू होगा।

49. दूसरा, प्रतिकूल वैश्विक माँग स्थितियों के बावजूद, 2025-26 के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था की संवृद्धि संबंधी संभावना पिछली नीति में व्यक्त अनुमानों के अनुरूप ही विकसित हो रही है। मानसून का मौसम बेहतर रहा है और खरीफ की बुवाई अच्छी रही है। गैर-वित्तीय कॉर्पोरेट क्षेत्र का निष्पादन अच्छा बना हुआ है। प्रमुख उच्च-आवृत्ति मात्रा-आधारित गतिविधि संकेतक दर्शाते हैं कि आर्थिक गतिविधि स्थिर बनी हुई है। इस प्रकार, संवृद्धि हमारे पूर्व अनुमानों के अनुरूप है, मज़बूत है, लेकिन फिर भी आकांक्षाओं से कम है।

50. तीसरा, हेडलाइन मुद्रास्फीति में गिरावट मुख्यतः इसके अस्थिर घटक, अर्थात्, खाद्य कीमतों में तीव्र सुधार (करेक्शन) के कारण हुई है। मूल मुद्रास्फीति लगभग 4 प्रतिशत बनी हुई है, जिसमें मांग में सुधार से ऊर्ध्वगामी जोखिम की संभावना है। प्रतिकूल मौसम संबंधी आघात मौजूदा आशावादी खाद्य मूल्य परिदृश्य को बिगाड़ सकते हैं। आधारभूत मुद्रास्फीति अनुमानों से संकेत मिलता है कि हेडलाइन मुद्रास्फीति 2025-26 की चौथी तिमाही तक 4 प्रतिशत के लक्ष्य को पार कर जाएगी और 2026-27 की पहली तिमाही तक बढ़कर 4.9 प्रतिशत हो जाएगी। इन जोखिमों को देखते हुए, मौद्रिक नीति के लिए यह एक मज़बूत तर्क है कि नीतिगत ढील देने से पहले मुद्रास्फीति में निरंतर नरमी के बारे में अधिक निश्चित संकेत की प्रतीक्षा की जाए।

51. चौथा, वैश्विक स्तर पर, देश बीच-बीच में ब्याज दरों को रोकने या उसमें कटौती करने के मामले में सावधानी बरत रहे हैं। पिछली तीन लगातार नीतियों में हमने तेज़ी से ढील दी है।

52. कुल मिलाकर, सार्वजनिक पूंजीगत व्यय, सुदृढ़ ग्रामीण माँग और स्थिर सेवा गतिविधियों के सहारे, संवृद्धि दर आघात सह बनी हुई है, हालाँकि उद्योग जगत में कुछ असमानताएँ दिखाई दे रही हैं। मुद्रास्फीति पहले के अनुमान से काफ़ी कम है, लेकिन गिरावट कुछ अस्थिर घटकों में केंद्रित है और संभावना ये संकेत देते हैं कि भविष्य में मुद्रास्फीति लक्ष्य से ऊपर बढ़ने का अनुमान है। अगले कुछ महीनों में, हमें यह स्पष्ट हो सकता है कि टैरिफ़ और समष्टि-अर्थव्यवस्था पर उनका प्रभाव कैसे विकसित होता है। विवेकपूर्ण कदम यही होगा कि हाल ही में नीतिगत ढील को अर्थव्यवस्था में पूरी तरह से प्रसारित होने और वास्तविक आर्थिक गतिविधियों पर इसके प्रभावों का आकलन करने के लिए समय दिया जाए। मौजूदा समय में दरों में अतिरिक्त कटौती से वैश्विक या घरेलू जोखिमों के वास्तविक होने पर हमारी नीतिगत गुंजाइश भी कम हो सकती है। इन तर्कों पर विचार करने के बाद, मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि जोखिमों के संतुलन पर इस बैठक में कोई कार्रवाई अपेक्षित नहीं है, और तदनुसार मैं नीतिगत रेपो दर को 5.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने के पक्ष में वोट करता हूँ।

53. मेरा यह भी मानना ​​है कि नीति का तटस्थ रुख बरकरार रखा जाना चाहिए, क्योंकि इससे संवृद्धि-मुद्रास्फीति की बदलती गतिकी पर प्रतिक्रिया करने के लिए पर्याप्त अवसर मिलता है। नीति को आँकड़ों पर निर्भर, दूरदर्शी और सक्रिय होना होगा, जिसका लक्ष्य संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करना हो। ऐसा दृष्टिकोण, संवृद्धि के लिए अधोगामी जोखिम उत्पन्न होने और मुद्रास्फीति के अनुमानित स्तर पर बने रहने की स्थिति में, कार्रवाई करने की गुंजाइश प्रदान करता है।

डॉ. पूनम गुप्ता का वक्तव्य

54. इस बैठक में मैं यथास्थिति बनाए रखने अर्थात नीतिगत रेपो दर को 5.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने के पक्ष में वोट करता हूं। मेरा वोट निम्नलिखित तीन कारकों पर आधारित है।

55. सर्वप्रथम, विकासशील संवृद्धि -मुद्रास्फीति गतिशीलता ने मेरे वोट पर असर डाला है। मई और जून के अपने चरम से पीछे हटने के बावजूद, वित्तीय बाजार में अस्थिरता और भू-राजनीतिक अनिश्चितताएं उच्च स्तर पर बनी हुई हैं; तथा भारत के लिए कुछ व्यापार अनिश्चितताएं और भी बढ़ गई हैं। इन चुनौतियों के बावजूद, भारतीय अर्थव्यवस्था समग्र रूप से आघात सह बनी हुई है। अनुकूल मानसून, कम मुद्रास्फीति, सरकारी बुनियादी ढांचे पर खर्च और नीतिगत ढील से सुगम वित्तीय स्थिति, घरेलू आर्थिक गतिविधि के लिए सहायक बनी हुई है।

56. पिछली नीति के बाद से, मुद्रास्फीति का परिणाम आश्चर्यजनक रूप से अनुकूल रहा है तथा सीपीआई हेडलाइन मुद्रास्फीति जून में घटकर 2.1 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) रह गई है। कोई यह तर्क दे सकता है कि मुद्रास्फीति की सौम्य संभावना, संवृद्धि की गति को तेज करने के लिए नीतिगत ढील जारी रखने की गुंजाइश देता है। हालांकि, यह नरमी सामान्य नहीं है, बल्कि मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों में अपस्फीति (-0.2 प्रतिशत वर्ष-दर-वर्ष) के कारण है, विशेष रूप से सब्जियों और दालों की कीमतों में तेज गिरावट के कारण। इसके अलावा, सीपीआई मुद्रास्फीति 2025-26 की चौथी तिमाही से 4 प्रतिशत से अधिक होने की संभावना है, क्योंकि प्रतिकूल आधार प्रभाव प्रभावी हो जाएगा और मध्यम मूल्य गति के साथ भी 2026-27 की पहली तिमाही में 5 प्रतिशत के करीब पहुंच जाएगा। इसके अतिरिक्त, इनपुट कीमतों पर किसी बड़े नकारात्मक प्रभाव को छोड़कर, निकट से मध्यम अवधि में मूल मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत से ऊपर रहने की संभावना है।

57. दूसरा, इस नीतिगत कार्रवाई को समग्रता में तथा पिछली कार्रवाइयों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। फरवरी 2025 से अब तक 100 बीपीएस की संचयी दर कटौती हुई है, जिसमें जून नीति में 50 बीपीएस की अग्रिम दर कटौती शामिल है। इसके साथ ही, आरबीआई ने इस अवधि के दौरान अन्य साधनों का भी उपयोग किया है, जिनमें आसान चलनिधि स्थिति, विनियामकीय सहजता, तथा पारदर्शी एवं लगातार संचार और अग्रिम मार्गदर्शन शामिल हैं। इन सभी कार्यों का प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। संचयी दर कटौती का प्रसारण प्रभावशाली रूप से तीव्र रहा है, लेकिन यह अभी भी जारी है, और आने वाले महीनों में इसमें तेजी आने की संभावना है, जिसे सितंबर 2025 से लागू होने वाली सीआरआर कटौती से सुगम बनाया जा सकेगा।

58. तीसरा, संचारण पूरा होने की प्रतीक्षा करते समय, निधि की लागत या उपलब्धता (बैंक ऋण और निधि के अन्य स्रोत) को वर्तमान समय में संवृद्धि के लिए कोई भौतिक बाधा नहीं माना जाता है। बल्कि, बढ़ती वैश्विक अनिश्चितताएं और संरचनात्मक कारक, नए निवेश और उपभोग संबंधी निर्णयों के लिए अधिक बाधक प्रतीत होते हैं।

59. संवृद्धि-मुद्रास्फीति की संभावना, पिछली कार्रवाईयों, घरेलू अर्थव्यवस्था की स्थिति और वैश्विक गतिशीलता को ध्यान में रखते हुए, मुझे इस समय नीतिगत दर में और कटौती की कोई गुंजाइश या औचित्य नजर नहीं आता। मैं एक तटस्थ रुख का भी प्रस्ताव करती हूं ताकि भविष्य की कार्रवाईयां आंकड़ों पर निर्भर हो सकें, अर्थात संवृद्धि और मुद्रास्फीति की सापेक्ष गतिशीलता से निर्धारित हो सकें, साथ ही अन्य संबंधित देशों की नीतिगत कार्रवाईयों के प्रभाव को भी आत्मसात किया जा सके।

श्री संजय मल्होत्रा का वक्तव्य

60. व्यापार और टैरिफ वार्ताओं तथा भू-राजनीतिक तनावों के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था लगातार अनिश्चितता के दौर से गुजर रही है। हालांकि, टैरिफ की प्रत्याशा में निर्यात को अग्रिम रूप से बढ़ाने, वित्तीय स्थितियों में सहजता और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) में राजकोषीय विस्तार के कारण 2025 के लिए वैश्विक संवृद्धि संभावना में मामूली सुधार हुआ है। हालाँकि, अवस्फीति की गति धीमी हो गई है और अधिकांश उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति अभी भी लक्ष्य से ऊपर बनी हुई है।

61. घरेलू संवृद्धि काफी हद तक हमारी जून नीति में निर्धारित आकलन के अनुरूप विकसित हुई है। वर्तमान अनिश्चित वातावरण को देखते हुए, जिसमें कमी के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं, 6.5 प्रतिशत की अनुमानित संवृद्धि दर आघात सह बनी हुई है। हालाँकि, यह निश्चित रूप से हमारी क्षमता से कम है। उच्च- आवृत्ति संकेतक, ग्रामीण आर्थिक गतिविधि और उपभोग में तेज़ी की ओर इशारा करते हैं, जबकि शहरी खर्च अभी भी सुस्त बना हुआ है। वित्तीय वर्ष के शेष भाग के दौरान, संवृद्धि को अनुकूल आपूर्ति-पक्ष कारकों के साथ-साथ सहायक नीतिगत वातावरण से भी समर्थन मिलने की संभावना है। मानसून की प्रगति अच्छी रही है, बुवाई संतोषजनक रही है, तथा जलाशयों का स्तर आरामदायक है, जो कृषि उत्पादन और ग्रामीण मांग के लिए शुभ संकेत हैं। त्योहारों के मौसम में, विशेषकर मुद्रास्फीति के नरम रहने के दौरान, शहरी मांग में तेजी आने की संभावना है। सेवा क्षेत्र की गतिविधियां भी मजबूत बनी रहने की संभावना है, जैसा कि सर्वेक्षणों के पूर्वानुमानात्मक आकलन से स्पष्ट है। टैरिफ और भू-राजनीतिक अनिश्चितता से प्रेरित बाह्य मांग में अनिश्चितता, संवृद्धि पर प्रमुख बाधा बनी हुई है, क्योंकि यह निजी निवेश के इरादों में भी बाधा डालती है, जिसमें अभी तक सुधार के स्पष्ट संकेत नहीं दिख रहे हैं।

62. मुद्रास्फीति में गिरावट का सिलसिला जारी रहा, जून में हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति 2.1 प्रतिशत रही - जो 77 महीने का न्यूनतम स्तर है। मुद्रास्फीति में गिरावट मुख्य रूप से खाद्य घटक के कारण हुई, जिसमें जून में वर्ष-दर-वर्ष -0.2 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। खाद्य मुद्रास्फीति में नरमी की सीमा, जून की एमपीसी बैठक के दौरान की गई अपेक्षा से अधिक रही, क्योंकि आपूर्ति पक्ष की स्थितियां काफी अनुकूल रहीं। स्वर्ण की ऊंची कीमतों के कारण मूल (खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई) मुद्रास्फीति में मामूली वृद्धि दर्ज की गई और यह जून में 4.4 प्रतिशत पर पहुंच गई। खाद्य घटक द्वारा संचालित हेडलाइन मुद्रास्फीति, निकट भविष्य में काफी कम संख्या दर्ज करने की संभावना है। 2025-26 के दौरान सीपीआई मुद्रास्फीति के लिए आधारभूत पूर्वानुमान को संशोधित कर 3.1 प्रतिशत किया जा रहा है।

63. कुल मिलाकर, हमारी अर्थव्यवस्था मजबूती, स्थिरता और अवसर की तस्वीर प्रस्तुत करती है। भारत की मजबूत बुनियादी बातें, संवृद्धि को बढ़ावा देने वाली नीतियां और दूरदर्शी आर्थिक कार्यनीति स्पष्ट रूप से उसे मजबूत स्थिति में रखती हैं। यद्यपि संवृद्धि दर स्थिर बनी हुई है, तथापि, खाद्य कीमतों में अधिक कमी के कारण मुद्रास्फीति के परिणाम अपेक्षाकृत अधिक अनुकूल रहे हैं। यद्यपि निकट भविष्य में मुद्रास्फीति के लक्ष्य से नीचे रहने की संभावना है, तथा मासिक आंकड़ों के 2 प्रतिशत के निम्न सहनशीलता बैंड को पार करने की भी संभावना है, तथापि तीसरी तिमाही से हेडलाइन मुद्रास्फीति में वृद्धि होने का अनुमान है। टैरिफ की अनिश्चितताएं अभी भी विकसित हो रही हैं। फरवरी 2025 से नीतिगत दर में संचयी 100 आधार अंकों की कटौती का मौद्रिक नीति संचरण, हालांकि विभिन्न उपायों के कारण तेजी से हुआ है, फिर भी अभी भी जारी है। सीआरआर में कटौती, जो संभवतः अगले महीने से लागू होगी, से मौद्रिक संचरण में और अधिक सुविधा होगी तथा आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन मिलेगा।

64. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए, विशेषकर बाह्य मोर्चे पर अनिश्चितता की वर्तमान स्थिति को देखते हुए, मौद्रिक नीति पर सतर्क रहने की आवश्यकता है। इसलिए, मैं नीतिगत रेपो दर को 5.50 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने के लिए वोट करता हूं। मैं तटस्थ रुख बनाए रखने का भी समर्थन करता हूं क्योंकि इससे मौद्रिक नीति को उभरते घरेलू और वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप प्रतिक्रिया करने के लिए आवश्यक लचीलापन मिलेगा।

(साभार- www.rbi.org.in)

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