RBI ने बैंकों में थोक जमाराशि (Bulk Deposits) की परिभाषा बदली, जानिये थोक जमाराशि का मतलब क्या होता है

देश के केंद्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक ने 5 जून से 7 जून तक चली मौद्रिक पॉलिसी कमिटी की बैठक के दौरान बैंकों में थोक जमाराशि की परिभाषा बदल दी है। जानिये नई परिभाषा- 



 विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वक्तव्य

यह वक्तव्य (i) विनियमन; तथा (ii) भुगतान प्रणाली और फिनटेक से संबंधित विभिन्न विकासात्मक और विनियामक नीतिगत उपाय निर्धारित करता है।

I. विनियमन

1. अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (आरआरबी को छोड़कर), लघु वित्त बैंकों और स्थानीय क्षेत्र बैंकों के लिए थोक जमाराशि की सीमा की समीक्षा

बैंकों के पास अपनी आवश्यकताओं और आस्ति-देयता प्रबंधन (एएलएम) पूर्वानुमानों के अनुसार थोक जमाराशियों पर विभेदक ब्याज दर प्रदान करने का विवेकाधिकार होता है। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) और लघु वित्त बैंकों (एसएफ़बी) के लिए वर्ष 2019 में थोक जमाराशि सीमा को ‘2 करोड़ और उससे अधिक की एकल रुपया मीयादी जमाराशि’ के रूप में बढ़ाया गया था। समीक्षा करने पर, एससीबी (आरआरबी को छोड़कर) और एसएफ़बी के लिए थोक जमाराशि की परिभाषा को ‘3 करोड़ और उससे अधिक की एकल रुपया मियादी जमाराशि’ के रूप में संशोधित करने का प्रस्ताव है। इसके अलावा, स्थानीय क्षेत्र बैंकों के लिए थोक जमाराशि सीमा को आरआरबी के मामले में लागू ‘1 करोड़ और उससे अधिक की एकल रुपया मियादी जमाराशि’ के रूप में परिभाषित करने का भी प्रस्ताव है। आवश्यक दिशानिर्देश शीघ्र ही जारी किए जाएंगे।

2. विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (फेमा), 1999 के अंतर्गत निर्यात और आयात विनियमों का युक्तिकरण

फेमा 1999 के अंतर्गत प्रगतिशील उदारीकरण को ध्यान में रखते हुए और प्राधिकृत व्यापारी बैंकों को अधिक परिचालनगत लचीलापन प्रदान करने के लिए, रिज़र्व बैंक ने वैश्विक स्तर पर सीमापारीय व्यापार लेनदेन की बदलती गतिशीलता के अनुरूप वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात और आयात पर मौजूदा दिशानिर्देशों को युक्तिसंगत बनाने का निर्णय लिया है। प्रस्तावित युक्तिकरण का उद्देश्य परिचालन प्रक्रियाओं को सरल बनाना है, जिससे सभी हितधारकों को व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा मिले। विनियमों और निदेश के मसौदों को जून 2024 के अंत तक बैंक की वेबसाइट पर जारी कर दिया जाएगा, ताकि उन्हें अंतिम रूप देने से पहले सभी हितधारकों से प्रतिक्रिया प्राप्त की जा सके।

II. भुगतान प्रणाली और फिनटेक

3. डिजिटल भुगतान आसूचना (इंटेलिजेंस) प्लेटफॉर्म की स्थापना

भारतीय रिज़र्व बैंक ने पिछले कतिपय वर्षों में डिजिटल भुगतान प्रणालियों में लोगों का विश्वास बनाए रखने के लिए डिजिटल भुगतान की सुरक्षा और संरक्षा के लिए कई उपाय किए हैं। इस विश्वास को बनाए रखने के लिए धोखाधड़ी की घटनाओं को कम करना होगा। धोखाधड़ी की कई घटनाएं अनजान पीड़ितों को भुगतान करने या क्रेडेंशियल साझा करने के लिए प्रभावित करके की जाती हैं। जबकि भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र (बैंक, एनपीसीआई, कार्ड नेटवर्क, भुगतान एग्रीगेटर और भुगतान ऐप) ग्राहकों को इस तरह की धोखाधड़ी से बचाने के लिए निरंतर आधार पर विभिन्न उपाय करते हैं, भुगतान प्रणालियों में नेटवर्क-स्तरीय आसूचना और वास्तविक समय डेटा साझा करने की आवश्यकता है।

अतएव, एक डिजिटल भुगतान आसूचना प्लेटफ़ॉर्म स्थापित करने का प्रस्ताव है जो भुगतान धोखाधड़ी के जोखिमों को कम करने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग करेगा। इस पहल को आगे बढ़ाने के लिए, भारतीय रिज़र्व बैंक ने डिजिटल भुगतान आसूचना प्लेटफ़ॉर्म हेतु एक डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा स्थापित करने के विभिन्न पहलुओं की जाँच करने के लिए एक समिति (अध्यक्ष: श्री ए.पी. होता, भूतपूर्व एमडी एवं सीईओ, एनपीसीआई) का गठन किया है। समिति द्वारा दो माह के भीतर अपनी सिफारिशें देने की आशा है।

4. ई-मैंडेट ढांचे के अंतर्गत स्व-पुनःपूर्ति (ऑटो-रिप्लेनिशमेंट) सुविधा के साथ फास्टैग, नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड (एनसीएमसी) आदि के लिए आवर्ती भुगतान को शामिल करना

(i) आवर्ती लेनदेन के लिए ई-मैंडेट के प्रसंस्करण के लिए 10 जनवरी 2020 को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किया गया ढांचा, वर्तमान में दैनिक, साप्ताहिक, मासिक आदि जैसी निश्चित आवधिकता के साथ आवर्ती भुगतानों को सक्षम बनाता है। अब फास्टैग, नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड (एनसीएमसी) आदि में शेष राशि की पुनःपूर्ति जैसे भुगतानों जो ई-मैन्डेट ढांचे में आवर्ती प्रकृति के हैं, लेकिन उनकी कोई निश्चित आवधिकता नहीं है, को भी शामिल करने का प्रस्ताव है। इस तरह के भुगतान आवश्यकतानुसार और जब भी आवश्यक हो, किए जाते हैं और इसलिए, उनकी पुनःपूर्ति समय विशिष्ट या राशि विशिष्ट नहीं होती है। ई-मैंडेट ढांचे के अंतर्गत, इस तरह के भुगतानों के लिए एक स्व-पुनःपूर्ति सुविधा शुरू करने का प्रस्ताव है। यह स्व-पुनःपूर्ति तब शुरू होगी जब फास्टैग या एनसीएमसी में शेष राशि ग्राहक द्वारा निर्धारित सीमा से कम हो जाएगी।

(ii) मौजूदा ई-मैंडेट ढांचे में, ग्राहक के खाते से वास्तविक डेबिट से कम से कम 24 घंटे पहले प्री-डेबिट अधिसूचना की आवश्यकता होती है। ई-मैंडेट ढांचे के अंतर्गत फास्टैग, एनसीएमसी आदि में शेष राशि की स्व-पुनःपूर्ति के लिए ग्राहक के खाते से किए गए भुगतानों के लिए इस आवश्यकता से छूट देने का प्रस्ताव है।

उपरोक्त प्रस्तावों के संबंध में आवश्यक दिशा-निर्देश शीघ्र ही जारी किए जाएंगे।

5. यूपीआई लाइट वॉलेट के स्व-पुनःपूर्ति (ऑटो-रिप्लेनिशमेंट) की शुरुआत - ई-मैंडेट ढांचे के अंतर्गत समावेशन

यूपीआई लाइट सुविधा वर्तमान में ग्राहक को अपने यूपीआई लाइट वॉलेट में 2000/- तक लोड करने और वॉलेट से 500/- तक का भुगतान करने की अनुमति देती है। ग्राहकों को यूपीआई लाइट का निर्बाध उपयोग करने में सक्षम बनाने के लिए, और विभिन्न हितधारकों से प्राप्त प्रतिक्रिया के आधार पर, ग्राहक द्वारा यूपीआई लाइट वॉलेट को, शेष राशि के ग्राहक द्वारा निर्धारित सीमा से कम होने पर, लोड करने के लिए स्व-पुनःपूर्ति सुविधा शुरू करके यूपीआई लाइट को ई-मैंडेट ढांचे के दायरे में लाने का प्रस्ताव है। चूंकि इसमें निधि ग्राहक के पास ही रहती है (निधि उसके खाते से वॉलेट में चली जाती है), अतएव अतिरिक्त प्रमाणीकरण या पूर्व-डेबिट अधिसूचना की आवश्यकता को समाप्त किए जाने का प्रस्ताव है। उपरोक्त प्रस्ताव से संबंधित दिशानिर्देश शीघ्र ही जारी किए जाएंगे।

6. रिज़र्व बैंक हैकाथॉन HaRBInger 2024 - परिवर्तन के लिए नवाचार

भारतीय रिज़र्व बैंक समावेशी पहुंच और धोखाधड़ी को कम करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए वित्तीय प्रणाली में विश्वास, सुरक्षा, संरक्षा और समावेशिता सुनिश्चित करने की दिशा में निरंतर काम कर रहा है। प्रौद्योगिकी ने वित्तीय धोखाधड़ी की पहचान करने और उसे रोकने के साथ-साथ वित्तीय सेवाओं की पहुंच को व्यापक बनाने की प्रभावी संभावनाओं का पता लगाया है, जिससे वित्तीय उत्पादों और सेवाओं तक समान पहुंच सुनिश्चित हुई है।

बैंक अपने वार्षिक हैकाथॉन के माध्यम से पहचाने गए संकेंद्रित क्षेत्रों में नवाचार को प्रोत्साहित करता रहा है। हमारे वैश्विक हैकाथॉन के तीसरे संस्करण, "HaRBInger 2024 - परिवर्तन के लिए नवाचार" की शुरुआत दो व्यापक विषयों अर्थात 'शून्य वित्तीय धोखाधड़ी' और 'दिव्यांग अनुकूल होना' के साथ की जाएगी। वित्तीय धोखाधड़ी का पता लगाने, रोकने और उसके विरुद्ध कार्रवाई करने के साथ-साथ शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए समावेशिता को प्राथमिकता देने पर ध्यान केंद्रित करने के साथ डिजिटल लेनदेन की सुरक्षा और संरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से समाधान, HaRBInger 2024 के हिस्से के रूप में आमंत्रित किए जाएंगे। इस संबंध में आगे की जानकारी शीघ्र ही जारी की जाएगी।

(साभार- www.rbi.org.in)

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