RBI ने छोटे मूल्य के डिजिटल भुगतान के लिए लेनदेन सीमा बढ़ाई

देश के केंद्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक ने तीन दिनों की मौद्रिक पॉलिसी बैठक में छोटे मूल्य के डिजिटल भुगतान के लिए लेनदेन सीमा बढ़ाने की घोषणा की है। बैठक में क्या क्या प्रस्ताव किया गया है, आप विस्तार से पढ़ सकते हैं- 

विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वक्तव्य

यह वक्तव्य (i) वित्तीय बाजारों; (ii) विनियमन और पर्यवेक्षण; (iii) भुगतान प्रणालियों; और (iv) फिनटेक से संबंधित विभिन्न विकासात्मक और विनियामक नीतिगत उपायों को निर्धारित करता है।

I. वित्तीय बाज़ार

1. वित्तीय बेंचमार्क प्रशासकों के लिए विनियामकीय ढांचे की समीक्षा

जून 2019 में, भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित वित्तीय बाज़ारों में बेंचमार्क प्रशासकों द्वारा 'महत्वपूर्ण बेंचमार्क' के प्रशासन पर एक विनियामक ढांचा जारी किया था, यथा यूएसडी/आईएनआर संदर्भ दर, ओवरनाइट माइबोर, और फाइनेंशियल बेंचमार्क इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (एफ़बीआईएल) द्वारा प्रशासित सरकारी प्रतिभूतियों का मूल्यांकन। उस समय से घरेलू वित्तीय बाज़ारों में हुए विकास और वैश्विक सर्वोत्तम प्रणालियों को ध्यान में रखते हुए, वित्तीय बेंचमार्क के विनियमों की समीक्षा की गई है और विदेशी मुद्रा, ब्याज दरें, मुद्रा बाज़ार और सरकारी प्रतिभूतियाँ यथा जमा प्रमाणपत्र (सीडी) दरों पर बेंचमार्क, रेपो दरें, और एफएक्स ऑप्शंस अस्थिरता मैट्रिक्स के साथ-साथ सरकारी प्रतिभूतियों पर अन्य बेंचमार्क से संबंधित सभी बेंचमार्क के प्रशासन को शामिल करने वाला एक व्यापक, जोखिम-आधारित ढांचा तैयार करने का निर्णय लिया गया है। संशोधित निदेश जो अलग से जारी किए जा रहे हैं, उनमें बेंचमार्क प्रशासकों के लिए विनियामक निर्देशों की परिकल्पना की गई है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ सुशासन और निरीक्षण व्यवस्था, हितों का टकराव, नियंत्रण और पारदर्शिता शामिल है। ये निदेश बेंचमार्क की सटीकता और सत्यनिष्ठा के बारे में अधिक आश्वासन प्रदान करेंगे।

II. विनियमन और पर्यवेक्षण

2. अवसंरचना उधार निधि- एनबीएफसी (आईडीएफ-एनबीएफसी) के लिए विनियामकीय ढांचे की समीक्षा

अवसंरचना उधार निधि को 2011 में एनबीएफसी की एक अलग श्रेणी के रूप में बनाया गया था। आईडीएफ को अवसंरचना क्षेत्र के वित्तपोषण में एक बड़ी भूमिका निभाने में सक्षम बनाने और एनबीएफसी की विभिन्न श्रेणियों पर लागू विनियमों के सामंजस्य के विनियामक उद्देश्य की ओर बढ़ने के लिए, भारत सरकार के परामर्श से आईडीएफ के लिए मौजूदा विनियामक ढांचे की समीक्षा की गई है। संशोधित ढांचे में: (i) आईडीएफ के लिए प्रायोजक की आवश्यकता को वापस लेने; (ii) आईडीएफ को प्रत्यक्ष ऋणदाताओं के रूप में टोल-ऑपरेट-ट्रांसफर (टीओटी) परियोजनाओं को वित्तपोषित करने की अनुमति देने; (iii) ईसीबी तक पहुंच; और (iv) पीपीपी परियोजनाओं के लिए त्रिपक्षीय करार को वैकल्पिक बनाने की परिकल्पना की गई है। विस्तृत दिशानिर्देश शीघ्र ही जारी किए जाएंगे।

3. उधार देने में जिम्मेदार आचरण: समान मासिक किस्त (ईएमआई) आधारित अस्थिर ब्याज वाले ऋणों की ब्याज दर पुनर्निर्धारण में अधिक पारदर्शिता

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा की गई पर्यवेक्षी समीक्षा और जनता के सदस्यों के फीडबैक और संदर्भों से उधारकर्ताओं को उचित सहमति और संचार के बिना उधारदाताओं द्वारा अस्थिर ब्याज वाले ऋणों की अवधि को अनुचित रूप से बढ़ाने के कई उदाहरण सामने आए हैं। इस मुद्दे को हल करने के लिए, उधारकर्ताओं के सामने आने वाली समस्याओं के समाधान के लिए सभी आरई द्वारा लागू किए जाने वाले एक उचित आचरण ढांचे को स्थापित करने का प्रस्ताव है। इस ढांचे में ऋणदाताओं द्वारा अवधि और/या ईएमआई के पुनर्निर्धारण के लिए उधारकर्ताओं के साथ स्पष्ट रूप से संवाद करने, नियत दर वाले ऋणों पर स्विच करने या ऋणों को पहले बंद करने का विकल्प प्रदान करने, इन विकल्पों के प्रयोग से संबंधित विभिन्न शुल्कों का पारदर्शी खुलासा करने और उधारकर्ताओं को महत्वपूर्ण जानकारी देने हेतु पर्याप्त संचार की परिकल्पना की गई है। इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश शीघ्र ही जारी किए जाएंगे।

4. पर्यवेक्षी डेटा प्रस्तुत करने के लिए निर्देशों का समेकन और सामंजस्य

भारतीय रिज़र्व बैंक ने समय-समय पर अपनी पर्यवेक्षित संस्थाओं (एसई) अर्थात एससीबी, एनबीएफसी, यूसीबी, एआईएफआई आदि को पर्यवेक्षी विवरणियां प्रस्तुत करने के लिए कई दिशानिर्देश और निर्देश जारी किए हैं। इन निर्देशों के अनुपालन में प्रौद्योगिकी प्लेटफार्मों, विवरणियां प्रस्तुत करने के तरीकों और विवरणियां प्रस्तुत करने की समय-सीमा में बदलाव के कारण एसई को कतिपय मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

लागू पर्यवेक्षी विवरणियों को प्रस्तुत करने संबंधी निर्देशों को समेकित और सुसंगत बनाने, अधिक स्पष्टता प्रदान करने और अनुपालन बोझ को कम करने के लिए, आंकड़े प्रस्तुत करने संबंधी सभी मौजूदा निर्देशों को एक ही मास्टर निदेश में समेकित करने का प्रस्ताव है जो सभी एसई के लिए संदर्भ का एक एकल बिंदु होगा।

III. भुगतान प्रणालियां

5. यूपीआई में संवादात्मक भुगतान

यूपीआई ने अपने उपयोग में आसानी, सुरक्षा और संरक्षा तथा वास्तविक समय सुविधा के साथ, भारत में डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र को बदल दिया है। समय के साथ कई नई सुविधाओं के जुड़ने से यूपीआई को अर्थव्यवस्था की विविध भुगतान आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद मिली है। जैसे-जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तेजी से डिजिटल अर्थव्यवस्था में एकीकृत हो रहा है, संवादात्मक निर्देशों की यूपीआई प्रणाली के उपयोग में आसानी और इसके परिणामस्वरूप पहुंच को बढ़ाने में काफी संभावनाएं हैं। अतः, यूपीआई पर एक नवोन्मेषी भुगतान मोड अर्थात "संवादात्मक भुगतान" शुरू करने का प्रस्ताव है, जो उपयोगकर्ताओं को एआई-संचालित प्रणाली के साथ संवाद के माध्यम से सुरक्षित और संरक्षित वातावरण में लेनदेन शुरू करने और पूरा करने में सक्षम करेगा। यह चैनल स्मार्टफोन और फीचर फोन-आधारित यूपीआई चैनल दोनों में उपलब्ध कराया जाएगा, जिससे देश में डिजिटल पहुंच को बढ़ाने में मदद मिलेगी। शुरुआत में यह सुविधा हिंदी और अंग्रेजी में उपलब्ध होगी और बाद में इसे और अधिक भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराया जाएगा। एनपीसीआई को शीघ्र ही निर्देश जारी किए जाएंगे।

6. यूपीआई में ऑफलाइन भुगतान

यूपीआई पर छोटे मूल्य के लेनदेन की गति बढ़ाने के लिए, बैंकों के लिए प्रसंस्करण संसाधनों को अनुकूलित करने के लिए सितंबर 2022 में "यूपीआई-लाइट" नामक एक ऑन-डिवाइस वॉलेट की शुरुआत की गई थी, जिससे लेनदेन विफलताओं को कम किया जा सके। उत्पाद को लोकप्रियता मिली है और वर्तमान में प्रति माह दस मिलियन से अधिक लेनदेन का प्रसंस्करण कर रहा है। यूपीआई-लाइट के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए, नियर फील्ड कम्युनिकेशन (एनएफसी) तकनीक का उपयोग करके ऑफ़लाइन लेनदेन की सुविधा प्रदान करने का प्रस्ताव है। यह सुविधा न केवल उन स्थितियों में खुदरा डिजिटल भुगतान को सक्षम करेगी जहां इंटरनेट/ दूरसंचार कनेक्टिविटी कमजोर है या उपलब्ध नहीं है, बल्कि यह न्यूनतम लेनदेन विफलता के साथ गति भी सुनिश्चित करेगी। एनपीसीआई को शीघ्र ही निर्देश जारी किए जाएंगे।

7. छोटे मूल्य के डिजिटल भुगतान के लिए लेनदेन सीमा बढ़ाना

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड (एनसीएमसी) और यूपीआई लाइट सहित ऑफ़लाइन मोड में छोटे मूल्य के डिजिटल भुगतान के लिए प्रति लेनदेन 200 की सीमा और प्रति भुगतान लिखत 2000 की समग्र सीमा निर्धारित की गई है। छोटे मूल्य के लेनदेन के लिए द्वि-कारक प्रमाणीकरण की आवश्यकता को हटाकर, ये चैनल रोजमर्रा के छोटे मूल्य के भुगतान, पारगमन भुगतान आदि के लिए भुगतान के तेज़, विश्वसनीय और संपर्क रहित तरीके को सक्षम करते हैं। तब से, इन सीमाओं को बढ़ाने की मांग की जा रही है। भुगतान के इस तरीके को व्यापक रूप से अपनाने हेतु प्रोत्साहित करने और अधिक उपयोग के मामलों को इस मोड में लाने के लिए, अब प्रति लेनदेन सीमा को बढ़ाकर 500 करने का प्रस्ताव है। तथापि, द्वि-कारक प्रमाणीकरण में छूट से जुड़े जोखिमों को रोकने के लिए समग्र सीमा 2000 पर बरकरार रखी गई है। इस संबंध में शीघ्र ही निर्देश जारी किये जायेंगे।

IV. फिनटेक

8. घर्षण रहित ऋण के लिए सार्वजनिक तकनीकी मंच

डिजिटलीकरण में तेजी से प्रगति के साथ, भारत ने डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे की अवधारणा को अपनाया है जो फिनटेक कंपनियों और स्टार्ट-अप को भुगतान, ऋण और अन्य वित्तीय गतिविधियों हेतु नवोन्मेषी समाधान बनाने और प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करता है। डिजिटल ऋण वितरण के लिए, साख मूल्यांकन हेतु आवश्यक डेटा केंद्र और राज्य सरकारों, खाता एग्रीगेटरों, बैंकों, साख सूचना कंपनियों, डिजिटल पहचान प्राधिकरणों आदि जैसी विभिन्न संस्थाओं के पास उपलब्ध है। तथापि, ये अलग-अलग प्रणालियों में हैं, जिससे समय पर और घर्षण रहित नियम-आधारित ऋण वितरण में बाधा उत्पन्न होती है।

इस स्थिति से निपटने के लिए, सितंबर 2022 में 1.60 लाख से कम के किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) ऋणों के डिजिटलीकरण के लिए एक प्रायोगिक परियोजना शुरू की गई थी। प्रायोगिक परियोजना में कागज रहित और परेशानी मुक्त तरीके से ऋण देने की प्रक्रिया के एंड-टू-एंड डिजिटलीकरण का परीक्षण किया गया। केसीसी प्रायोगिक परियोजना वर्तमान में मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, यूपी, महाराष्ट्र के चुनिंदा जिलों में चल रही है और प्रारंभिक परिणाम उत्साहजनक हैं। प्रायोगिक परियोजना बिना किसी कागजी कार्रवाई के सहायता प्राप्त या स्व-सेवा मोड में घर-घर ऋण वितरण को भी सक्षम बनाता है। गुजरात में अमूल के साथ दूध बेचने के आंकड़ों के आधार पर डेयरी ऋण के लिए एक समान प्रायोगिक परियोजना चलाई जा रही है।

उपरोक्त प्रायोगिकों से मिली सीख के आधार पर और सभी प्रकार के डिजिटल ऋणों के दायरे का विस्तार करते हुए, रिज़र्व बैंक इनोवेशन हब (आरबीआईएच) द्वारा एक डिजिटल पब्लिक टेक प्लेटफॉर्म विकसित किया जा रहा है। यह प्लेटफ़ॉर्म ऋणदाताओं को आवश्यक डिजिटल जानकारी के निर्बाध प्रवाह की सुविधा प्रदान करके घर्षण रहित ऋण वितरण में सक्षम बनाएगा। एंड-टू-एंड डिजिटल प्लेटफॉर्म में एक ओपन आर्किटेक्चर, ओपन एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (एपीआई) और मानक होंगे, जिससे वित्तीय क्षेत्र के सभी सहभागी 'प्लग एंड प्ले' मॉडल में निर्बाध रूप से जुड़ सकते हैं।

इस प्लेटफ़ॉर्म को सूचना प्रदाताओं तक पहुंच और उपयोग के मामलों दोनों के संदर्भ में एक सुविचारित रूप में एक प्रायोगिक परियोजना के रूप में शुरू करने का प्रस्ताव है। यह लागत में कमी, त्वरित संवितरण और मापनीयता के मामले में ऋण देने की प्रक्रिया में दक्षता लाएगा।

 




(साभार- www.rbi.org.in)

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