Results for "आर्थिक सर्वेक्षण 2018"
आर्थिक सर्वेक्षण 2018: देश में इंश्योरेंस की पहुंच थोड़ी बढ़ी है...
इंश्योरेंस आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा का एक अहम हथियार है। सरकार और इंश्योरेंस कंपनियां लगातार इंश्योरेंस को लेकर जागरूकता फैला रहीं हैं, लेकिन अभी भी देश की ज्यादातर आबादी इंश्योरेंस से महरूम है। महज कुछ प्रतिशत लोग ही इंश्योरेंस का फायदा उठा रहे हैं। हालांकि, आर्थिक सर्वेक्षण 2018 में सरकार ने माना है कि देश में हाल के दिनों में इंश्योरेंस की पहुंच बढ़ी है।

(साभार- timesofindia,indiatimes.com)
https://timesofindia.indiatimes.com/business/india-business/insurance-penetration-in-india-has-risen-to-3-49-economic-survey-says/articleshow/62696220.cms



Insurance penetration in India has risen to 3.49%, Economic Survey says

CHENNAI; The Economic Survey 2018, released on Monday, said insurance penetration -- the ratio of premium underwritten in a given year to the gross domestic product (GDP) -- in India increased to 3.49% in 2016-17 from 2.71% in 2001.
In comparison, some of the emerging economies in Asia such as Malaysia (4.77%), Thailand (5.42%) and China (4.77%) have a higher insurance penetration than India.

The country's life insurance penetration was 2.72% and general insurance penetration was 0.77%; this compares to a global insurance penetration of 3.47% for life and 2.81%.

"Insurance, being an integral part of the financial sector -- should be assessed on the basis of two parameters, viz., insurance penetration and insurance density, which is the ratio of premium underwritten in a given year to the total population," said the survey. "India's insurance density has increased to $59.7 from $11.5 in 2001 - with life insurance density of $46.5 and general insurance density of $13.2. This compares to global average insurance density of $353 for life and $285.3 for non-life," it said.

Rajanish Kant मंगलवार, 30 जनवरी 2018
आर्थिक सर्वेक्षण 2018: एनपीए समस्‍या के समाधान के लिए सरकार के प्रयास



आर्थिक सर्वेक्षण में एनपीए समस्‍या के समाधान हेतु आईबीसी तंत्र का सक्रिय रूप से उपयोग
केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री श्री अरुण जेटली ने आज संसद के पटल पर आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 प्रस्‍तुत किया। सर्वेक्षण में मौद्रिक प्रबंधन और वित्‍तीय मध्‍यस्‍थता की समीक्षा की गई है। इसके मुख्‍य बिन्‍दु इस प्रकार है :-
• वर्ष 2017-18 (जनवरी तक) के दौरान अगस्तम में मात्र एक पॉलिसी दर में कटौती के साथ मौद्रिक नीति स्थिर बनी रही। वर्ष 2017-18 के दौरान, मौद्रिक नीति का संचालन संशोधित सांविधिक प्रारूप के अंतर्गत किया गया, और यह 5 अगस्त , 2016 से प्रभाव में आया।
• अगस्त, 2017 में वर्ष 2017-18 के लिए तृतीय द्विमासिक मौद्रिक नीति विवरण में मौद्रक नीति समिति ने नीति रेपो रेट को 25 बेसिस प्वाइंट से 6.0 प्रतिशत तक कम करने का निर्णय लिया। इससे अक्टूकबर और हाल ही में दिसंबर में हुई बैठक में दरों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
• पुन: मौद्रिकरण प्रक्रिया के अनुरूप, 17 नवंबर, 2017 से एक अनुकूल प्रभाव के अंतर्गत प्रचलन में मुद्रा और एमओ दोनों में ही पिछले वर्ष के वृद्धि मूल्यों की तुलना में तीव्रता के साथ सकारात्मरक और उच्चतम वृद्धि हुई।
• नवंबर 2016 की शुरूआत में विमुद्रीकरण के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने पारंपरिक और गैरपारंपरिक दोनों साधनों का मिश्रित उपयोग करते हुए अपने तरलता अवशोषण संचालन में वृद्धि की।
• तरलता की स्थितियां प्रगतिशील पुन: मुद्रीकरण के साथ धीरे-धीरे सामान्यं होते हुए अधिशेष अवस्थाद में बनी रहीं। भारित औसत कॉल दर हाल के महीनों में नीति की घट-बढ़ सीमा के मध्य‍ में पहुंच गई।
• बैंकिंग क्षेत्र के प्रदर्शन खासतौर पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में वर्तमान वित्ती़य वर्ष मंक निष्पांदन निरंतर हल्काश बना रहा। अनुसूचित वाणिज्कि बैंकों का सकल अनर्जक अग्रिम (जीएनपीए) अनुपात मार्च और सितंबर 2017 के बीच 9.6 प्रतिशत से बढ़कर 10.2 प्रतिशत पर पहुंच गया।
• नवंबर 2017 में गैर खाद्य क्रेडिट (एनएफसी) में पिछले वर्ष नवंबर 2016 के 4.75 प्रतिशत की तुलना में वर्ष-दर-वर्ष 8.85 प्रतिशत वृद्धि हुई। सेवाओं और निजी ऋण (पीएल) खंड को बैंक क्रेडिट उधार, समग्र एनएफसी वृद्धि में निरंतर बड़े भागीदार बने रहे।
• एनबीएफसी क्षेत्र में 30 सितंबर 2017 को बैंक आस्तियों का 17 प्रतिशत और बैंक जमा राशियों का 0.26 प्रतिशत जमा था। एनबीएफसी क्षेत्र के समेकित तुलन पत्र के आकार में 5 प्रतिशत वृद्धि हुई (मार्च 2017 की तुलना में सितंबर 2017) और यह 20.7 लाख करोड़ के स्तवर पर जा पहुंची जबकि मार्च 2016 और मार्च 2017 के बीच 14.2 प्रतिशत वृद्धि हुई।
• वर्ष 2017-18 (अप्रैल से नवंबर) में पिछले वित्तम वर्ष के तदनुरूप अवधि की तुलना में प्राथमिक बाजार खंड में संसाधन जुटाए जाने में लगातार वृद्धि देखी गई।
• 10 वर्षीय सरकारी प्रतिभूति पर यील्डत में सितंबर 2017 से ही वृद्धि दर्ज की जा रही है। 11 जनवरी 2018 को सरकारी प्रतिभूति पर यील्डं 7.26 प्रतिशत रही।
• वर्ष 2017-18 में नवीन दिवालियापन की प्रक्रिया के लिए एक पारिस्थितिकी व्य्वस्था। बनी। बैंकिंग क्षेत्र में एनपीए की समस्यावओं के समाधान के लिए आईबीसी तंत्र का सक्रिय रूप से उपयोग किया जा रहा है। नवीन नियम की प्रभावशालिता के पीछे एक प्रमुख तत्व न्याायपालिका के द्वारा न्यायिक निर्णय दिया जाना है। यह नियम विभिन्न प्रक्रियाओं के लिए कड़ी समय-सीमाओं को निर्धारित करता है। इस प्रक्रिया में भविष्य में होने वाली अनिश्चिताओं को कम करने के लिए एक सुदृढ़ नियम बनाया गया है।


• इस वित्तीय वर्ष में शेयर बाजारों ने भी रिकार्ड उच्चतम स्तयरों को छुआ।
(Source: pib.nic.in)

Rajanish Kant सोमवार, 29 जनवरी 2018
आर्थिक सर्वेक्षण 2018: नोटबंदी से वित्तीय बचत बढ़ाने में मदद मिली
विमुद्रीकरण से वित्तीय बचत की हिस्सेदारी बढ़ाने में मदद मिली है : आर्थिक सर्वेक्षण
केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री श्री अरुण जेटली ने आज संसद के पटल पर आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 प्रस्‍तुत किया।
आर्थिक सर्वेक्षण में निवेश एवं बचत के परिदृश्‍य की मुख्‍य बातों का उल्‍लेख किया गया है, जो निम्‍नलिखित है :
- जीडीपी और घरेलू बचत का अनुपात वर्ष 2003 के 29.2 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2007 में 38.3 प्रतिशत के सर्वोच्‍च स्‍तर पर पहुंच गया। हालांकि, इसके बाद यह अनुपात वर्ष 2016 में घटकर 29 प्रतिशत के स्‍तर पर आ गया।
- वर्ष 2007 और वर्ष 2016 की अवधि में संचयी कमी बचत की तुलना में निवेश की दृष्टि से हल्‍की रही है, लेकिन निवेश घटकर निचले स्त्र पर आ गया है।
वर्ष 2015-16 तक के लिए उपलब्ध निवेश और बचत के विस्तृवत विवरण (ब्रेक-अप) से पता चला है कि वर्ष 2007-08 और वर्ष 2015-16 की अवधि में कुल निवेश में दर्ज की गई 6.3 प्रतिशत की कमी में 5 प्रतिशत हिस्से दारी निजी निवेश की रही है।
वर्ष 1997 के बाद एशियाई देशों में ही सबसे अधिक बार आर्थिक सुस्तीध आई है। वर्तमान में (वर्ष 2008 के बाद) इन देशों की अर्थव्य वस्थािओं में बचत में सुस्ती3 का दौर देखा जा रहा है। भारत में निवेश में सुस्तीय की शुरुआत वर्ष 2012 में हुई थी, जो बाद में और तेज हो गई तथा यह दौर नवीनतम अवधि अर्थात वर्ष 2016 तक कायम रहा।
चूंकि बचत में सुस्तीव की तुलना में निवेश में सुस्ती या कमी विकास की दृष्टि से ज्यांदा हानिकारक होती है, इसलिए अल्पाकवधि में नीतिगत प्राथमिकताओं के तहत निवेश में नई जान फूंकने पर ध्याहन केन्द्रित किया गया है। इसके तहत काले धन को बाहर निकालने के प्रयासों के साथ-साथ सोने को वित्तीतय बचत में तब्दीाल करने को प्रोत्सा्हित कर बचत राशि जुटाई जा रही है। कुल घरेलू बचत में वित्तीवय बचत, जो बाजार प्रपत्रों में बढ़ती रुचि से स्प ष्टर होती है, की हिस्से दारी पहले से ही बढ़ रही है, जिसमें विमुद्रीकरण से काफी मदद मिली है।
निवेश और बचत में सुस्ती या कमी के रुख के अध्यतयन से जुड़े देशव्याफपी अनुभव से पता चला है कि निवेश में कमी से विकास पर असर पड़ा है, जबकि बचत के मामले में ऐसा नहीं देखा गया है। नीतिगत निष्कपर्ष यही है कि निवेश में नई जान फूंकने को तत्काल प्राथमिकता दी जाए, ताकि विकास पर और ज्यादा दीर्घकालिक असर न पड़े। इसके लिए सरकार ने फंसे कर्जों की समस्या को सुलझाने और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण पर अपना ध्याेन केन्द्रित किया है।
(Source: pib.nic.in)

Rajanish Kant
आर्थिक सर्वेक्षण 2018: कृषि उत्‍पादकता वृद्धि को बनाये रखने के लिए कृषि अनुसंधान एवं विकास की जरूरत
कृषि उत्‍पादकता वृद्धि को बनाये रखने के लिए कृषि अनुसंधान एवं विकास की आवश्‍यकता : आर्थिक सर्वेक्षण
केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री श्री अरुण जेटली ने आज संसद के पटल पर आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 प्रस्‍तुत किया।
कृषि अनुसंधान एवं विकास नवोन्‍मेषण का मुख्‍य स्रोत है जिसकी आवश्‍यकता दीर्घकालिक स्थिति में कृषि उत्‍पादकता विकास को बनाये रखने के लिए पड़ती है। केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री श्री अरुण जेटली ने आज संसद के पटल पर आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 प्रस्‍तुत करने के दौरान उक्‍त बातें कहीं। सर्वेक्षण में कहा गया है कि कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग/ भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का वास्‍तविक व्‍यय 2017-18 के दौरान बढ़कर 6800 करोड़ (बजट अनुमान) तक पहुंच गया। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार 2016 के दौरान देश में विभिन्‍न कृषि पर्या क्षेत्रों में खेती के लिए अनाज की 155 उच्‍च पैदावार की किस्‍में/ नस्‍लें जारी की गईं।
अनाज, दलहन, तिलहन, वाणिज्यिक और चारा फसलों के लिए नई किस्‍में/ संकर नस्‍लें विकसित की गई हैं जो कि बढ़ी हुई गुणवत्ता के साथ विभिन्‍न जैविक और गैर जैविक दवाबों को सहन कर सकती है।
अनाज: वर्ष 2017 के दौरान देश के विभिन्‍न कृषि पर्यावरणों में खेती के लिए 117 उच्‍च पैदावार किस्‍में/ संकर किस्‍में जारी की गई जिनमें शामिल हैं- चावल की 65 किस्‍में, गेंहू की 14, मक्‍का की 24, रागी की 5, बाजरा की 3, ज्‍वार, जई, कंगनी, कोदो मिलेट, लिटिल मिलेट और प्रोसो मिलेट की एक-एक किस्‍म।
तिलहन: विभिन्‍न कृषि पर्यावरण क्षेत्रों के संबंध में 28 उच्‍च पैदावार वाली तिलहन की किस्‍में जारी की गई हैं जिनमें 8 सफेद सरसों की, 7 सोयाबीन की, 4 मूंगफली और अलसी की, 3 सूरजमुखी की, 2 अरंडी की और नाइजर की।
दलहन: विभिन्‍न कृषि पर्यावरण क्षेत्रों के संबंध में दहलन की 32 उच्‍च पैदावार की किस्‍में जारी की गई। लोबिया की 10, दाल की 6, मूंग की 3, अरहर, चना और फील्‍ड पी की 2-2, उड़द, राजमा और फावाबीन की एक-एक।
वाणिज्यिक फसलें: - विभिन्‍न कृषि पर्यावरण क्षेत्रों के संबंध में वाणिज्यिक फसलों की 24 उच्‍च पैदावार की किस्‍में जारी की गई जिसमें शामिल हैं – कपास की 13, गन्‍ने की 8, जूट की 3।
चारा फसलें: विभिन्‍न कृषि पर्यावरण क्षेत्रों के संबंध में खेती के लिए चारे की 8 उच्‍च पैदावार की किस्‍में/संकर किस्‍में जारी की गई जिनमें शामिल हैं- जई की 3, बाजरा, नेपियर संकर, चारा ज्‍वार, ग्रेन अमारन्‍यस, चारा चना और मारवल ग्रास की 1-1 किस्‍म
(Source: pib.nic.in)

Rajanish Kant
आर्थिक सर्वेक्षण 2018: ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए सरकार के प्रयास
आर्थिक गतिविधि-ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए सरकार और न्यायिक व्यवस्था के बीच हुए समन्वित प्रयास
केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री श्री अरुण जेटली ने आज संसद के पटल पर आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 प्रस्‍तुत किया। आर्थिक सर्वेक्षण, व्यवसाय को आसान बनाने के लिए अपीलीय और न्याय क्षेत्रों में लंबित, विलंबित और अनिर्णीत मामलों के निपटान की जरूरत पर जोर देता है। इन स्थितियों से विवाद समाधान और संविदाओं के क्रियान्वयन में बाधा उत्पन्न आती है, निवेश में कमी आती है, परियोजनाओं का क्रियान्वयन बाधित होता है, कर उगाही में अवरोध उत्पन्न होता है और अदालतों में मामलों पर खर्च बढ़ता है। सर्वेक्षण देश में आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा देने के लिए सरकार और न्याय क्षेत्र के समन्वित प्रयासों का सुझाव देता है।
आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, भारत विश्व बैंक की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (ईओडीबी), 2018 में पहली बार 30 स्थान उछलकर चोटी के 100 देशों में शामिल हो गया है। इस रैंकिंग से सरकार द्वारा व्यापक संसूचकों के संदर्भ में किए जा रहे सुधारात्मक उपायों का पता चलता है। भारत कराधान और शोधन अक्षमता से संबंधित संसूचकों में क्रमशः 53 और 33 स्थान ऊपर आया है, जो कराधान के क्षेत्र में किए गए प्रशासनिक सुधारों और शोधन अक्षमता एवं दिवालियापन संहिता (आईबीसी), 2016 को पारित किए जाने के कारण हुआ है। इसने अल्पांश निवेशकों के हितों को सुरक्षा प्रदान करने और रोजगार शुरू करने की इच्छा रखने वाले व्यक्तियों को ऋण उपलब्ध कराने की दिशा में भी निरंतर प्रयास किए गए हैं तथा सरकार द्वारा बिजली उपलब्ध कराने के क्षेत्र में किए गए सुधारों के कारण ईओडीबी, 2018 में बिजली पाने से संबंधित रैंकिंग में भारत 70 स्थान ऊपर आया है। हालांकि सर्वेक्षण के मुताबिक, संविदाओं को अमलीजामा पहनाने से संबंधित संसूचकों के मामले में भारत लगातार पिछड़ रहा है और हाल में जारी रिपोर्ट में भारत इस मामले में 174 से मामूली सुधरकर 164वें स्थान पर पहुंच गया है।
सर्वेक्षण में इस बात पर जोर दिया गया है कि आर्थिक वृद्धि और विकास में कारगर, दक्ष और संविदा को त्वरित लागू करने के महत्व की अनदेखी नहीं की जा सकती है। सर्वेक्षण के मुताबिक एक पारदर्शी और कुछ हद तक कानूनी एवं कार्यकारी व्यवस्था, जो दक्ष न्यायिक प्रणाली द्वारा समर्थित हो और नागरिकों के संपत्ति अधिकारों की उपयुक्त रूप में सुरक्षा करती हो, संविदाओं की पवित्रता को बनाए रखती हो तथा संविदा शामिल पक्षकारों के अधिकारों तथा उत्तरदायित्वों को लागू करती हो, व्यवसाय एवं व्यवसाय की पूर्वापेक्षा है।
सरकार ने संविदा प्रवर्तन व्यवस्था में सुधार लाने के लिए अनेक उपाय किए हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
-अप्रयुक्त हो चुके 1,000 से अधिक कानूनों को समाप्त कर दिया गया।
-मध्यस्थम तथा संराधन अधिनियम, 2015 में संशोधन किया गया।
-उच्च न्यायालय का वाणिज्यिक न्यायालय, वाणिज्यिक प्रभाग तथा वाणिज्यिक अपील प्रभाग अधिनियम, 2015 पारित किया गया।
-लोक अदालत कार्यक्रम का विस्तार किया गया।
-न्यायपालिका ने महत्वपूर्ण नेशनल जुडिशियल डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) का विस्तार किया है और प्रत्येक उच्च न्यायालय का डिजिटलीकरण सुनिश्चित करने के नजदीक है।
सर्वेक्षण संकलित किए गए नए आंकड़ों के आधार पर निष्कर्षों को सामने रखने की कोशिश करता है, जो सरल और निरपेक्ष हैं:
-उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों, आर्थिक ट्रिब्यूनलों और कर विभाग में आर्थिक अभियोजन से संबंधित मामलों के निपटान में देरी और उनके लंबित होने के मामले बड़ी संख्या में हैं और इनमें लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। इस क्रम में परियोजनाओं के अटकने, कानूनी लागत में बढ़ोत्तरी, कर राजस्व के लिए जूझने और निवेश में कमी के रूप में अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है।
-मामलों के निपटान में देरी और उनके लंबित होने की वजह न्याय व्यवस्था पर काम का ज्यादा बोझ होना है, जिसके परिणाम स्वरूप क्षेत्राधिकार में विस्तार एवं न्यायालयों द्वारा हिदायत देने और स्थगन आदेश देने जैसे मामले होते हैं। कर से संबंधित अभियोजनों में अपील के प्रत्येक चरण में लगातार विफल होने के बावजूद सरकार द्वारा मुकदमेबाजी पर अड़े रहने से ऐसी स्थिति पैदा होती है।
-न्यायालयों और सरकार द्वारा मिलकर काम किया जाए तो स्थिति में पर्याप्त सुधार हो सकता है।
आर्थिक सर्वेक्षण सुझाव देता है कि सरकार राज्यों को प्रोत्साहन आधारित प्रदर्शन के रूप में निचली अदालतों में लंबितता में कमी की दिशा में प्रयासों और प्रगति पर विचार कर सकती है। फाइलिंग, सेवा और अन्य डिलिवरी संबंधित समस्याओं पर व्यय को प्राथमिकता दी जा सकती है, जिनकी वजह से सबसे ज्यादा विलंब होता है। हालांकि समीक्षा में आगाह किया गया है कि मौजूदा क्षमता का पूरा इस्तेमाल किए बिना अतिरिक्त क्षमता का निर्माण प्रभावी नहीं हो सकता है।
सर्वेक्षण के मुताबिक, अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी बाधा बन चुकी इस समस्या को दूर करने के लिए व्यापक सुधार और क्रमगत सुधारों के वास्ते सरकार और अदालतों को मिलकर काम करने की जरूरत है। इसमें कुछ कदम सुझाए गए हैं, जो इस प्रकार हैं:
-निचली अदालतों की न्यायिक क्षमता में विस्तार और उच्च न्यायालयों व उच्चतम न्यायालय पर मौजूदा बोझ में कमी।
-इसकी सफलता की कम दर को देखते हुए कर विभाग अपीलों की संख्या को सीमित करके स्व-नियंत्रण की दिशा में काम कर सकता है।
-न्यायिक व्यवस्था विशेषकर आधुनिकीकरण और डिजिटलीकरण पर सरकारी व्यय में खासी वृद्धि करना।
-उच्चतम न्यायालय की सफलता के आधार पर ज्यादा विषय केन्द्रित और चरण केन्द्रित पीठ तैयार करना, जिससे अदालतों के लिए लंबित और विलंबितता से लड़ने में आंतरिक विशेषज्ञता विकसित करना संभव होता है।
-अदालतें स्थगित मामलों को प्राथमिकता देने और सख्त समयसीमा लागू करने पर विचार कर सकती है, जिसके भीतर अस्थायी आदेश वाले मामलों पर फैसला दिया जा सकता है। इनमें विशेष रूप से सरकारी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से जुड़े मामले शामिल होंगे।
-कोर्ट केस मैनेजमेंट और कोर्ट ऑटोमेशन सिस्टम में सुधार।
सर्वेक्षण में इस बात का उल्लेख किया गया कि जीएसटी के साथ हुए हालिया अनुभव ने यह दर्शाया है कि केंद्र और राज्यों के बीच लंबवत सहयोग-सहयोगात्मक संघवाद से व्यापक आर्थिक नीतिगत बदलाव हुए हैं। सर्वेक्षण के मुताबिक संभवतया उसकी क्षैतिज भिन्नता, जिसे सहयोगात्मक पृथक्ककरण कहा जा सकता है, जो एक न्यायपालिका और दूसरी ओर कार्यकारी/विधायका के मध्य संबंधों पर लागू हो सकता है।
(Source: pib.nic.in)

Rajanish Kant
आर्थिक सर्वेक्षण 2018:GST युग के पहले 8 महीने में अप्रत्यक्ष करदाताओं की संख्या 50% बढ़ी
जीएसटी युग के पहले आठ महीने में अप्रत्यक्ष करदाताओं की संख्या में 50 प्रतिशत की वृद्धि--- सकल कर संग्रण सही दिशा में
राजस्व तेजी, व्यय गुणवत्ता, केन्द्र द्वारा राज्यों को दिये जाने वाले कर तथा घाटे जैसे अधिकांश वित्तीय संकेतकों में बेहतर सुधार से आए सुदृढ़ संतुलन के आधार पर सरकार ने राज्यों के साथ भागीदारी में जीएसटी युग का जुलाई 2017 से शुभारम्भ किया। जीएसटी को व्यापक तैयारी, आकलन तथा बहु-स्तरीय परामर्श के पश्चात लागू किया गया था  तथापि इस व्यापक  बदलाव की सावधानीपूर्वक व्यवस्था करने की आवश्यकता है। सर्वेक्षण के अनुसार सरकार पिछले महीने जीएसटी कर संग्रहण के पर्याप्त हिस्से के अगले वर्ष में अंतरित किए जाने की संभावना सहित बदलाव तथा चुनौतियों का दिशानिर्देशन कर रही है।
महालेखा नियंत्रक (सीजीए) से उपलब्ध नवम्बर, 2017 तक के केंद्रीय सरकार के वित्तीय आंकड़ों से पता चलता है कि चालू वर्ष 2017-18 के पहले आठ महीनों के दौरान सकल कर संग्रहण पर्याप्तः सही दिशा में है तथा गैर-कर राजस्व में धीमी गति के लिए काफी हद तक विनिवेश प्रतिपूर्ति में बेहतर प्रगति हुई है। केन्द्र की प्रत्यक्ष कर वसूली में वृद्धि पिछले वर्ष के अनुरूप रही है और 13.7 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ इसके लक्ष्य पर खरा उतरने की उम्मीद है जबकि अप्रत्यक्ष करों में अप्रैल-नवम्बर, 2017 के दौरान 18.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
इस वर्ष के दौरान प्रत्यक्ष करों में अंतिम प्राप्ति केन्द्र तथा राज्यों के बीच जीएसटी लेखों के अंतिम समाशोधन पर निर्भर करेगी तथा सम्भावना है कि केवल 11 महीनों के कर (आयातों पर आईजीएसटी को छोड़कर) जारी किए जाएंगे। अप्रैल-नवम्बर, 2017 के दौरान करों में राज्यों के हिस्से में 25.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो 12.6 प्रतिशत की शुद्ध कर राजस्व (केन्द्र को) की वृद्धि  तथा 16.5 प्रतिशत के सकल कर राजस्व से काफी ज्यादा है।
सूचना कोष के रूप में सामान तथा सेवा कर (जीएसटी) से भारतीय अर्थव्यवस्था को समझने की तीव्र परिवर्तन तथा अंतरदृष्टि का आभास मिलता है। सूचना के विश्लेषण से निम्नलिखित उपलब्धियों का पता चलता है। अप्रत्यक्ष करदाताओं की संख्या में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, स्वैच्छिक पंजीकरण में, विशेषतः लघु उद्यमियों द्वारा, जो बड़े उद्यमियों से खरीद करते हैं तथा इन्पुट कर क्रेडिट की सुविधा का लाभ उठाने के इच्छुक हैं, काफी वृद्धि हुई है। राज्यों के बीच जीएसटी वसूली का वितरण उनकी अर्थव्यवस्थाओं के आकार, बड़े उत्पादक राज्यों के इस  भय की निवृत्ति से अत्यधिक जुड़ा है कि नई पद्धति अपनाने से उनकी कर वसूली कम आँकी जाएगी। राज्यों के अन्तर्राष्ट्रीय निर्यात आंकड़ों (भारत के इतिहास में पहली बार) से पता चलता है कि निर्यात निष्पादन तथा राज्यों के जीवन स्तर के बीच गहरा सम्बन्ध है। भारतीय निर्यात इस दृष्टिकोण से असामान्य है कि अन्य तुलनात्मक देशों की अपेक्षा बड़ी फर्मों की निर्यातों में भागीदारी बहुत कम है। भारत का आन्तरिक व्यापार जीडीपी का लगभग 60 प्रतिशत है, जो पिछले वर्ष के सर्वेक्षण में अनुमान से कही अधिक है तथा अन्य बड़े देशों से काफी हद तक बेहतर है। भारत का औपचारिक क्षेत्र, विशेषतः औपचारिक गैर-फार्म पे-रोल इस समय जैसा समझा जाता है उससे कही अधिक है। सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था के दृष्टिकोण से औपचारिक गैर-कृषि कार्यबल  के 31 प्रतिशत के लगभग औपचारिक क्षेत्र पे-रोल का अनुमान है जबकि जीएसटी तंत्र के हिस्से के रूप में औपचारिकता की दृष्टि से औपचारिक क्षेत्र पे-रोल का 53 प्रतिशत हिस्सा बनता है।
बजट क्रम तथा प्रक्रियाओं के एक महीना पूर्व शुरू किए जाने, खर्च करने वाली एजेंसियों को अग्रिम योजना बनाने तथा वित्त वर्ष में इसका कार्यान्वयन शीघ्र शुरू करने का पर्याप्त अवसर मिलेगा जिससे केन्द्रीय खर्च में तेजी आएगी।
सुदृढ़ सार्वजनिक वित्तीय प्रबन्ध पिछले तीन वर्षों में भारत की वृहद आर्थिक स्थिरता का एक आधार स्तम्भ है। इसके अनुसरण में पिछले तीन वर्षों में वित्तीय घाटा, राजस्व घाटा एवं प्राथमिक घाटे में भी कमी आई है
(Source: pib.nic.in)

Rajanish Kant
आर्थिक सर्वेक्षण 2018: महंगाई पर काबू करने के लिए सरकार के कदम
मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के उपाय
केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री श्री अरुण जेटली ने आज संसद के पटल पर आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 प्रस्‍तुत किया। इसके मुताबिक, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना केंद्र सरकार की प्राथमिकता रही है। सरकार ने इसके लिए कई कदम उठाए हैं, जो निम्नलिखित हैं:
-जमाखोरी और कालाबाजारी के खिलाफ कार्रवाई करने, आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 और कम आपूर्ति वाली वस्तुओं की कालाबाजारी निवारण एवं आवश्यक वस्तु अनुरूप अधिनियम, 1980 को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए जरूरत पड़ने पर समय-समय पर राज्य सरकारों को परामर्शिकाएं जारी की जा रही हैं।
-कीमत और उपलब्धता की स्थिति के आकलन के लिए नियमित तौर पर उच्च स्तरीय समीक्षा बैठकें की जा रही हैं। ये बैठकें सचिवों की समिति, अंतर मंत्रालय समिति, कीमत स्थिरीकरण निधि प्रबंधक समिति और अन्य विभागीय स्तर पर की जाती हैं।
-उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए खाद्य पदार्थों के अधिकतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा की गई। इसका उद्देश्य खाद्य पदार्थों उपलब्धता बढ़ाना भी है, जिससे कीमतों को कम रखने में मदद मिलेगी।
-दालों, प्याज आदि कृषि वस्तुओं की कीमतों में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने के लिए कीमत स्थिरीकरण निधि (पीएसएफ) योजना लागू की जा रही है।
-खुदरा कीमतों को बढ़ने से रोकने के प्रयासों के तहत सरकार ने दालों के सुरक्षित भंडार (बफर स्टॉक) को 1.5 लाख मी. टन से बढ़ाकर 20 लाख मी. टन करने का अनुमोदन किया। इस क्रम में 20 लाख टन तक दालों का सुरक्षित भंडार तैयार किया गया।
-राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से वितरित करने, मध्याह्न भोजन योजना आदि के लिए सुरक्षित भंडार से दालें दी जा रही हैं। इसके अलावा सेना और केन्द्रीय अर्द्ध सैन्य बलों की दाल की जरूरत को पूरा करने के लिए भी सुरक्षित भंडार से दालों का उपयोग किया जा रहा है।
-सरकार ने अप्रैल, 2018 तक चीनी के स्टॉकिस्टों/डीलरों पर स्टॉक होल्डिंग की सीमा तय कर दी है।
-सरकार ने उपलब्धता को बढ़ावा देने और कीमतों को कम बनाए रखने के लिए चीनी के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाया।
-शून्य सीमा शुल्क पर 5 लाख टन कच्ची चीनी के आयात को अनुमति दी गई। इसके बाद 25 प्रतिशत शुल्क पर 3 लाख टन अतिरिक्त आयात की अनुमति प्रदान की गई।
-साख पत्र पर सभी प्रकार के प्याज के निर्यात की अनुमति दी जाएगी, जो 31 दिसंबर, 2017 तक 850 डॉलर प्रति मी. टन न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) से संबद्ध होगा।


-राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों को प्याज पर भंडारण सीमा लगाने की सलाह दी गई है। राज्यों से अपनी प्याज की जरूरत की सूचना देने का अनुरोध किया गया, जिससे उपलब्धता बढ़ाने और कीमतों में कमी लाने के लिए आवश्यक आयात की दिशा में कदम उठाए जा सकें।
(Source: pib.nic.in)

Rajanish Kant