Results for "आर्थिक सर्वेक्षण 2018"
आर्थिक सर्वेक्षण 2018: समावेशी रोजगार-केन्द्रित उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सरकार के कदम
समावेशी रोजगार-केन्द्रित उद्योग को प्रोत्‍साहन एवं गतिशील अवसंरचना का निर्माण आर्थिक एवं सामाजिक विकास के अहम कारक: आर्थिक सर्वेक्षण

सरकार द्वारा की गई कई क्षेत्र विशिष्‍ट सुधार पहलों से समग्र कारोबारी माहौल में उल्‍लेखनीय सुधार आया
केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री श्री अरुण जेटली ने आज संसद के पटल पर आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 प्रस्‍तुत किया।
समावेशी रोजगार-केन्द्रित उद्योग को प्रोत्‍साहन एवं गतिशील अवसंरचना का निर्माण आर्थिक एवं सामाजिक विकास के अहम कारक हैं। सरकार इस दिशा में कई विशिष्‍ट कदम उठा रही है। केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री श्री अरुण जेटली ने आज संसद के पटल पर आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 प्रस्‍तुत करने के दौरान उक्‍त बाते कहीं। वस्‍तु एवं सेवा कर, दिवाला एवं दिवालियापन संहिता एवं व्‍यवसाय करने की सुगमता को बढ़ाने देने जैसे संरचनागत सुधारों के अतिरिक्‍त, सर्वेक्षण में रेखांकित किया गया है कि सरकार ने इस्‍पात, परिधान, चमड़ा एवं बिजली क्षेत्र से जुड़ी विशिष्‍ट चुनौतियों का समाधान करने के लिए इनमें से प्रत्‍येक क्षेत्र में क्षेत्र विशिष्‍ट सुधार आरंभ किए हैं। आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि पिछले तीन वर्षों के दौरान आरंभ किए गए विभिन्‍न सुधारों को मू‍डीज इंवेस्‍टर्स सर्विस जैसी अंतर्राष्‍ट्रीय रेटिंग द्वारा मान्‍यता दी गई है जबकि विश्‍व बैंक की 2018 की रिपोर्ट में व्‍यवसाय करने की सुगमता की रैकिंग में बढ़ोतरी की गई है।
आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में यह भी कहा गया है कि औद्योगिक उत्‍पादन सूचकांक (आईआईपी), जो कि 2011-12 के आधार वर्ष के साथ एक वॉल्‍यूम सूचकांक है, में 2017-18 में अप्रैल-नवंबर के दौरान औद्योगिक उत्‍पादन में 3.2 प्रतिशत की वृद्धि प्रदर्शित की गई है। आईआईपी ने 10.2 प्रतिशत की विनिर्माण वृद्धि के साथ 8.4 प्रतिशत की 25 महीने की उच्‍च वृद्धि दर दर्ज की।
आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में यह भी कहा गया है कि कोयला, कच्‍चा तेल, प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम, रिफाइनरी उत्‍पाद, उर्वरक, इस्‍पात, सीमेंट एवं बिजली जैसे आठ प्रमुख अवसंरचना समर्थक उद्योगों में 2017-18 के अप्रैल नवंबर के दौरान 3.9 प्रतिशत की संचयी वृद्धि दर्ज की गई। इस अवधि के दौरान कोयला, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्‍पाद, स्‍टील, सीमेंट एवं बिजली की उत्‍पादन वृद्धि सकारात्‍मक रही। इस्‍पात उत्‍पादन में उल्‍लेखनीय वृद्धि हुई जबकि कच्‍चे तेल एवं उर्वरक उत्‍पादन में इस अवधि के दौरान मामूली गिरावट दर्ज की गई।
आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में यह भी कहा गया है कि उद्योग को सामान्‍य शेष ऋण वृद्धि नवंबर 2017 में पहली बार सकारात्‍मक होकर 1 प्रतिशत रही जो कि अक्‍टूबर 2016 से नकारात्‍मक वृद्धि दर्ज कर रही थी। ऋण मंदी के बाद भारतीय कंपनियों द्वारा निधियों की मांग की पूर्ति कुछ हद तक कॉरपोरेट बांडों एवं कॉमर्शियल पेपर जैसे वैकल्पिक स्रोतों द्वारा की गई है।
बजट पूर्व आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में यह भी कहा गया है कि कुल विदेशी प्रत्‍यक्ष निवेश आवक में 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई अर्थात यह पिछले वर्ष के 55.56 बिलियन डॉलर की तुलना में 2016-17 के दौरान 60.08 बिलियन डॉलर हो गया। 2017-18 (अप्रैल-सितंबर) में कुल एफडीआई की आवक 33.75 बिलियन डॉलर की रही।
व्‍यवसाय करने की सरलता पर, आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में रेखांकित किया गया है कि विश्‍व बैंक की व्‍यवसाय करने की सरलता रिपोर्ट 2018 में भारत ने पहले की अपनी 130वीं रैकिंग के मुकाबले 30 स्‍थानों की ऊंची छलांग लगाई है। क्रेडिट रेटिंग कंपनी मूडीज इंवेस्‍टर्स सर्विस ने भी भारत की रैकिंग को बीएए3 के न्‍यूनतम निवेश ग्रेड से बढ़ाकर बीएए2 कर दिया है। यह सरकार द्वारा यह वस्‍तु एवं सेवा कर, दिवाला एवं दिवालियापन संहिता एवं बैंक पुन: पूंजीकरण के क्रियान्‍वयन समेत सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्‍न कदमों से संभव हो पाया है। औद्योगिक वृद्धि को बढ़ाने के कई कदमों में मेक इन इंडिया कार्यक्रम, स्‍टार्टअप इंडिया एवं बौद्धिक संपदा नीति शामिल है।
आर्थिक सर्वेक्षण ने क्षेत्रवार पहलों की सूची बनाई:
Ø इस्‍पात: चीन, दक्षिण कोरिया एवं यूक्रेन से सस्‍ते इस्‍पात आयातों की डंपिंग रोकने के लिए सरकार ने फरवरी 2016 में सीमा शुल्‍क कर ने बढ़ोतरी की और एंटी डंपिंग शुल्‍क लगाया, कई वस्‍तुओं पर न्‍यूनतम आयात मूल्‍य (एमआईपी) लगाया। सरकार ने मई 2017 में एक नई इस्‍पात नीति भी आरंभ की।
Ø एमएसएमई क्षेत्र: भारत में एमएसएमई क्षेत्र बड़े उद्योगों की तुलना में निम्‍न‍ पूंजी लागत पर बड़े स्‍तर पर रोजगार अवसर उपलब्‍ध कराने में तथा ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों के औद्योगीकरण में एक महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है। सरकार ने इस क्षेत्र के लिए कई योजनाएं और विशेष रूप से 2016-17 में सूक्ष्‍म औद्योगिक इकाइयों से संबंधित विकास एवं पुनर्वित कार्यकलापों के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना आरंभ की।
Ø कपड़ा एवं परिधान : परिधान कंपनियों के सामने आने वाली कुछ बाधाओं को दूर करने के लिए केन्द्रिय मंत्रिमंडल ने जून 2016 में अपैरल क्षेत्र के लिए 6000 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की। सरकार ने दिसंबर 2017 में वर्ष 2017-2018 से 2019-2020 की अवधि के लिए 1300 करोड़ रुपये के साथ कपड़ा क्षेत्र में क्षमता निर्माण के लिए योजना (एससीबीटीएस) को मंजूरी दी।
Ø चमड़ा क्षेत्र : चमड़ा एवं फुटवियर क्षेत्र में रोजगार को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य से सरकार ने दिसंबर 2017 में 2017-18 से 2019-2020 के तीन वित्त वर्षों के लिए 2600 करोड़ रुपये के परिव्‍यय के साथ एक योजना आरंभ की है।
Ø रत्‍न एवं जवाहरात : रत्न एवं जवाहरात क्षेत्र का निर्यात 2014-15 के 0.7 प्रतिशत से बढ़कर 2016-17 में 12.8 प्रतिशत पहुंच गया है। आर्थिक सर्वेक्षण में दर्ज किया गया है कि वैश्विक अवसंरचना आउटलुक में अनुमान लगाया गया है कि आर्थिक विकास एवं सामुदायिक कल्‍याण में बेहतरी लाने के लिए अवसंरचना का विकास करने हेतु भारत द्वारा 2040 तक 4.5 ट्रिलियन डॉलर के बराबर निवेश की आवश्‍यकता है।
सर्वेक्षण के अनुसार सरकार भारत के दीर्घावधि विकास के लिए अवसंरचना विकास में अत्यधिक निवेश कर रही है। गुणवत्तापूर्ण परिवहन से संबंधित अवसंरचना क्षेत्र में भारत कई विकासशील अर्थव्यवस्थाओं से आगे है। नए राष्ट्रीय राजमार्गों (एनएच) का निर्माण और राज्य उच्च पथों (एसएच) को राजमार्गों में परिवर्तन करना सरकार का प्राथमिक एजेंडा है। सितम्बर, 2017 में राष्ट्रीय राजमार्गों/एक्सप्रेसवे की कुल लम्बाई 1,15,530 किलोमीटर थी, जो सड़कों की कुल लम्बाई का 2.06 प्रतिशत है। दूसरी तरफ राज्य उच्च पथों की कुल लम्बाई 2015-16 में 1,76,166 किलोमीटर थी। सरकार को विभिन्न राज्य सरकारों से 64,000 किलोमीटर के उच्च पथों को राष्ट्रीय राजमार्गों में परिवर्तित करने का प्रस्ताव प्राप्त हुआ। सड़क और परिवहन मंत्रालय ने 10,000 किलोमीटर की सड़कों को नए राष्ट्रीय राजमार्ग में परिवर्तित करने की घोषणा की है। बिहार, ओडिशा, छ्त्तीसगढ़, झारखंड, जम्मू कश्मीर, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश जैसे निम्न सकल राज्य घरेलू उत्पाद वाले अविकसित राज्यों में अन्य लोक निर्माण विभाग (ओपीडब्ल्यूडी) सड़क/जिला सड़क का घनत्व बहुत निम्न है। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार जिलों को जोड़ने वाली सड़कों सहित ओपीडब्ल्यूडी रोड को विकसित करने की आवश्यकता है ताकि आवागमन को बेहतर बनाया जा सके। इससे आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि होगी।
सर्वेक्षण के अनुसार विलंब से चल रही परियोजनाओं को तेज गति से पूरा करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इनमें भूमि अधिग्रहण और पर्यावरण मंजूरी शामिल है। नई महत्वाकांक्षी भारत माला परियोजना का लक्ष्य राजमार्ग विकास के लिए अधिकतम संसाधन आवंटन प्राप्त करना है।
रेलवे के संबंध में सर्वेक्षण कहता है कि 2017-18 (सितम्बर 2017 तक) के दौरान भारतीय रेल ने 558.10 मिलियन टन माल ढुलाई की, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 531.23 मिलियन टन थी, जो 5.06 प्रतिशत की वृद्धि दिखाता है। रेलवे अवसंचरना विकास पर विशेष ध्यान देने के अंतर्गत बड़ी लाइन निर्माण तथा रेल मार्गों के विद्युतीकरण में तेजी लाई गई है। भारत सरकार की वित्तीय सहायता से वर्तमान में 425 किलोमीटर लंबी मेट्रो रेल प्रणाली संचालन में है और देश के विभिन्न शहरों में 684 किलोमीटर की मेट्रो रेल लाइन निर्माण के विभिन्न चरणों में है। (दिसम्बर, 2017) 2017-18 में (31 दिसम्बर, 2017) प्रमुख बंदरगाहों पर कुल 499.41 मिलियन टन की कार्गो ढुलाई की गई, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 481.87 मिलियन टन थी। सागरमाला योजना के तहत 2.17 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 289 परियोजनाएं निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं।
सर्वेक्षण के अनुसार दूर संचार क्षेत्र में भारत नेट और डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रम भारत को एक डिजिटल अर्थव्यवस्था में परिवर्तित कर देंगे। सितम्बर, 2017 के अंत तक कुल मोबाइल कनेक्शन की संख्या 1207.04 मिलियन थी। इनमें से 501.99 मिलियन ग्रामीण क्षेत्रों में तथा 705.05 मिलियन शहरी क्षेत्रों में थे।
विमानन क्षेत्र के बारे में आर्थिक सर्वेक्षण कहता है कि 2017-18 में घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या 57.5 मिलियन थी। इसमें पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 16 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। सरकार हवाई सेवाओं को उदार बनाने, हवाई अड्डों को विकसित करने और उड़ान जैसी योजना के माध्यम से क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ाने का प्रयास कर रही है।
ऊर्जा क्षेत्र की उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए सर्वेक्षण कहता है कि भारत की ऊर्जा क्षमता 3,30,860.6 मेगावाट हो गई है। (नवम्बर, 2017) 15,183 गांवों के विद्युतीकरण का काम पूरा हो गया है। सितम्बर, 2017 में एक नई योजना सौभाग्य (प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना) का शुभारम्भ किया गया। इस योजना के लिए 16,320 करोड़ रुपये की धनराशि निर्धारित की गई है।
सर्वेक्षण के अनुसार 160 बिलियन ड़ॉलर का लॉजिस्टिक उद्योग 7.8 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ोत्तरी कर रहा है। यह क्षेत्र 22 मिलियन से ज्यादा लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है। सम्पूर्ण लॉजिस्टिक प्रदर्शन के आधार पर भारत जो 2014 में 54वें पायदान पर था, वह 2016 में 35वें पायदान पर आ गया है (विश्व बैंक 2016 लॉजिस्टिक प्रदर्शन सूचकांक)।
(Source: pib.nic.in)

Rajanish Kant सोमवार, 29 जनवरी 2018
आर्थिक सर्वेक्षण 2018:औसत मुद्रास्फीति दर पिछले छह सालों में सबसे कम रही
वर्ष 2017-18 के दौरान औसत मुद्रास्फीति दर पिछले छह सालों में सबसे कम रही

            केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री श्री अरुण जेटली ने आज संसद के पटल पर आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 प्रस्‍तुत किया। उन्होंने बताया कि 2017-18 के दौरान देश में मुद्रास्फीति की दर मध्यम रही। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित महंगाई दर 3.3 फीसदी रही, जो कि पिछले छह वर्षों में सबसे कम है।

आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक हाउसिंग, ईंधन और लाइट को छोड़कर सभी बड़े कमोडिटी क्षेत्रों में मुद्रास्फीति दर में यह कमी दर्ज की गई। नवबंर 2016 से अक्टूबर 2017 यानी पूरे 12 महीने के दौरान मुख्य मुद्रास्फीति दर 4 फीसदी से नीचे दर्ज की गई। जबकि चालू वित्त वर्ष अप्रैल-दिसंबर के दौरान उपभोक्ता मूल्य सूचकांक औसतन करीब एक फीसदी रहा।


सर्वेक्षण के मुताबिक पिछले चार सालों में अर्थव्यवस्था में क्रमिक बदलाव देखा गया, जिसमें एक अवधि के दौरान मुद्रास्फीति काफी ऊपर चढ़ने या काफी नीचे गिरने के बजाय स्थिर बनी रही। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के जरिये मापी जाने वाली प्रमुख मुद्रास्फीति दर पिछले चार सालों में नियंत्रित ही रही है। जाहिर है कि चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीने में मुद्रास्फीति दर में जो गिरावट देखी गई वह खाद्य पदार्थों में रही। इसकी दर (-) 2.1 से 1.5 प्रतिशत रही।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि यह कृषि के क्षेत्र में बेहतर उत्पादन के चलते ही मुमकिन हो पाया है। सरकार ने मूल्यों को लेकर लगातार निगरानी बनाए रखी है।
                                                                                                                  

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार हालांकि हाल के महीनों में खाद्य पदार्थों के मूल्यों में चढ़ाव देखा गया उसकी वजह सब्जी और फलों के दामों में वृद्धि रही है। 2016-17 में ग्रामीण इलाकों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के मुख्य घटक खाद्य पदार्थ रहे हैं जबकि शहरी क्षेत्रों में हाउसिंग सेक्टर ने मुद्रास्फीति में मुख्य भूमिका अदा की है। 2016-17 के दौरान यदि हम राज्यवार मुद्रास्फीति की दर देखेंगे तो पाएंगे कि ज्यादातर राज्यों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में बड़ी गिरावट का ही दौर जारी रहा। चालू वित्त के दौरान 17 राज्यों में मुद्रास्फीति की दर 4 प्रतिशत से कम रही। सरकार की तरफ से कई स्तरों पर किए गए प्रयासों के चलते मुद्रास्फीति दर में यही कमी देखी गई।

(Source: pib.nic.in)

Rajanish Kant
आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 संसद में पेश, वास्‍तविक GDP वृ‍द्ध‍ि दर 2017-18 में 6.75% होने का अनुमान
वित्‍त मंत्री ने संसद के पटल पर आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 प्रस्‍तुत किया

वास्‍तविक जीडीपी वृ‍द्ध‍ि दर 2017-18 में 6.75 प्रतिशत होने का अनुमान

आर्थिक सर्वेक्षण में आगामी वित्‍त

            केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री श्री अरुण जेटली ने आज संसद के पटल पर आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 प्रस्‍तुत किया। 
पिछले वर्ष के दौरान किए गए अनेक प्रमुख सुधारों से इस वित्‍त वर्ष में जीडीपी बढ़कर 6.75 प्रतिशत और 2018-19 में 7.0 से 7.5 प्रतिशत होगीजिसके कारण भारत विश्‍व की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख  अर्थव्‍यवस्‍था  के रूप में पुन:स्‍थापित होगी। इसका उल्‍लेख आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में किया गया है जिसे माननीय वित्‍त और कारपोरेट मामले मंत्रीश्री अरुण जेटली ने आज संसद में प्रस्‍तुत किया था। सर्वेक्षण में यह उल्‍लेख किया गया है कि 2017-18 में किए गए सुधारों को 2018-19 में और अधिक सुदृ‍ढ़ किया जा सकता है।


सर्वेक्षण इस बात को रेखांकित करता है कि 1 जुलाई 2017 को शुरू किए गए युगांतकारी वस्‍तु एवं सेवा कर (जीएसटी) सुधार के कारणन्‍यू इंडियन बैंकरप्सी कोड के तहत आर्थिक दबाव झेल रही प्रमुख कंपनियों को समाधान के लिए भेजकर,लंबे वक्‍त से चली आ रही ट्विन बैलेंसशीट (टीबीएस) का समाधान करसार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम बैंकों के सुदृढ़ीकरण हेतु एक प्रमुख पुन:पूंजीकरण पैकेज को लागू करएफबीआई का और अधिक उदारीकरण कर तथा ग्‍लोबल रिकवरी से निर्यात को बढ़ाकर वर्ष की दूसरी छमाही में अर्थव्‍यवस्‍था में तेजी आने लगी और इस वर्ष जीडीपी 6.75 प्रतिशत दर्ज की जा सकती है। सर्वेक्षण में यह दशार्या गया है कि तिमाही अनुमानों के अनुसारऔद्योगिक क्षेत्र की अगुवाई में 2017-18 के दूसरी तिमाही में जीडीपी विकास दर में गिरावट की प्रवृत्ति में वापसी सुधार आने लगा। स्‍थाई प्राथमिक  मूल्‍यों पर ग्रॉस वैल्‍यू एडेड (जीवीए) में 2016-17 में 6.6 प्रतिशत की तुलना में 2017-18 में 6.1 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने की उम्‍मीद है। इसी प्रकार से, 2017-18 में कृषिउद्योग और सेवा क्षेत्रों में क्रमश: 2.1 प्रतिशत, 4.4 प्रतिशत और 8.3 प्रतिशत दर की वृद्धि होने की उम्‍मीद है। सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि दो वर्षों तक नकारात्‍मक स्‍तर पर रहने के बावजूद, 2016-17 के दौरान निर्यातों में वृद्धि सकारात्‍मक स्‍तर पर आ गई थी और 2017-18 में इसमें तेजी से वृद्धि की उम्‍मीद जताई गई थी। तथापिआयातों में कुछ प्रत्‍याशित वृद्धि के बावजूदवस्‍तु और सेवाओं के शुद्ध निर्यातों में 2017-18 में गिरावट आने की संभावना है। इसी प्रकार सेशानदार आर्थिक वृद्धि के बावजूद, जीडीपी के अनुपात के रूप में बचत और निवेश में सामान्‍य रूप से गिरावट आई। निवेश दर में बड़ी गिरावट 2013-14 में आईहालांकि 2015-16 में भी गिरावट आई थी। इसके अंतर्गत हाउसहोल्‍ड क्षेत्र में गिरावट आईजबकि निजी कारपोरेट क्षेत्र में वृद्धि हुई थी।




       सर्वेक्षण में यह वर्णन किया गया है कि भारत को विश्‍व में सबसे अच्‍छा निष्‍पादन करने वाली अर्थव्‍यवस्‍थाओं में से एक माना जा सकता हैक्‍यों‍कि पिछले तीन वर्षों के दौरान औसत विकास दर वैश्विक विकास दर की तुलना में लगभग 4 प्रतिशत अधिक है और उभरते बाजार एवं विकासशील अर्थव्‍यवस्‍थाओं की तुलना में लगभग 3 प्रतिशत अधिक है। सर्वेक्षण यह दर्शाता है कि 2014-15 से 2017-18 की अवधि के लिए जीडीपी विकास दर औसतन 7.3 प्रतिशत रही है, जो कि विश्‍व की प्रमुख अर्थव्‍यवस्‍थाओं की तुलना में सर्वाधिक है। इस विकास दर को कम महंगाई दर,बेहतर करंट अकाउंट बैलेंस तथा जीडीपी अनुपात की तुलना में वित्‍तीय घाटे में उल्‍लेखनीय गिरावट के चलते हासिल किया गया है जो कि एक उल्‍लेखनीय वृद्धि है। हालांकि कुछ देशों में बढ़ते संरक्षणवाद की प्रवृत्तियों के बारे में चिंता जताई गई थी, लेकिन यह देखा जाना है कि स्थिति किस प्रकार रहती है। आने वाले वर्ष में कुछ कारको, जैसे कि अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में कच्‍चे तेल की कीमतों में वृद्धि होने की संभावना के कारण जीडीपी विकास दर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। तथापि 2018 में विश्‍व विकास दर में मामूली सुधार आने की संभावना के साथ जीएसटी में बढ़ते स्‍थायित्‍व, निवेश स्‍तरों में संभावित रिकवरी तथा अन्‍य बातों के साथ चालू ढांचागत सुधारों से उच्‍च वि‍कास दर प्राप्‍त किए जाने की संभावना है। समग्र रूप सेदेश की अर्थव्‍यवस्‍था के निष्‍पादन में 2018-19 में सुधार आना चाहिए।

    सर्वेक्षण में यह उजागर किया गया है कि उभरते मैक्रो इकोनॉमिक चिंताओं के संबंध में आने वाले वर्ष में  नीतिगत निगरानी आवश्‍यक होगीविशेष रूप से जब अंतरराष्‍ट्रीय तेल की कीमतें ऊंचे स्‍तरों पर बनी रहती हैं या उच्‍च स्‍तरों पर स्‍टॉक मूल्‍यों में तेजी से गिरावट आती है, जिसके कारण पूंजी प्रभाव में एक अचानक सुस्‍ती आ सकती है। परिणामस्‍वरूप, आगामी वर्ष के लिए एजेंडा परिपूर्ण है : जीएसटी में स्‍थायित्‍व लानाटीबीएस कार्यों को पूरा करनाएयर इंडिया का निजीकरण तथा मैक्रो इकोनॉमिक स्थिरता के खतरों का सामाधान करना। टीबीएस कार्योंजो कि लंबे समय से चली आ रही एग्जिट’ समस्‍या से निजात पाने के लिए उल्‍लेखनीय हैमें घाटा झेल रहे बैंकों के समाधान के लिए और निजी क्षेत्र की बढ़ती प्रतिभागिता के लिए आवश्‍यक सुधारों की आवश्‍यकता है। जीएसटी परिषद ने अन्‍य अनेक नीति सुधारों का अनुसारण करने हेतु कोऑपरेटिव फैडरेलिज्‍म का एक मॉडल टेक्‍नोलॉजी’ प्रदान किया है। मध्‍यावधि में नीति में तीन क्षेत्रों पर इसे ध्‍यान दिया जाएगा: रोजगारयुवाओं और बढ़ते कार्यबलविशेष रूप से महिलाओं के लिए अच्‍छी नौकरियां ढूढंनाशिक्षा : एक शिक्षित एवं स्‍वस्‍थ कार्यबल का सृजनकृषि : अनुकूलन का सुदृढ़ीकरण करते हुए फार्म उत्‍पादकता को बढ़ाना। सबसे अधिक महत्‍वपूर्ण यह है कि भारत को वास्‍तविक रूप से दो स्‍थाई मुद्दों- निजी निवेश और निर्यात के आधार पर त्‍वरित आर्थिक विकास के लिए जलवायु में सुधार लाने पर निरंतर प्रयास करना चाहिए।

डीएसएम/आरएम/वीएलके/एएम/जेके/वीके/जीबीपंत/एनआर/आरआरएस/एमपी/एसकेजे/पीके/जेडी/एसएस/आरके/वीके/एसएस/डीएस/वाईबी/डी/सी-/1
(Source: pib.nic.in)

बजट बेसिक्स जानिए beyourmoneymanager पर
((Budget Basics:Part-1:Meaning Of Budget
बजट बेसिक्स:भाग-1: बजट के मायने
((Budget Basics:Part-2:Making Of Budget
बजट बेसिक्स:भाग-2: कैसे बनता है बजट
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((बजट बेसिक्स: भाग-4: बजट से जुड़े शब्द
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बजट बेसिक्स: भाग-5: बजट दस्तावेज

(('बिना प्रोफेशनल ट्रेनिंग के शेयर बाजार जरूर जुआ है'
((शेयर बाजार: जब तक सीखेंगे नहीं, तबतक पैसे बनेंगे नहीं! 
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Rajanish Kant
आर्थिक सर्वेक्षण 2018 सोमवार को संसद में पेश होगा, संसद के बजट सत्र की शुरुआत भी सोमवार से
आर्थिक सर्वेक्षण 2018 सोमवार को संसद में पेश किया जाएगा। मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने ट्वीट के जरिये इसकी जानकारी दी। वित्त मंत्री अरुण जेटली 29 जनवरी यानी सोमवार से शुरू हो रहे संसद के बजट सत्र के पहले दिन आर्थिक सर्वेक्षण को दोपहर बाद सदन पटन पर रखेंगे। 

सत्र की शुरुआत राष्ट्रपति के अभिभाषण से होगी और इसके बाद जेटली आर्थिक सर्वेक्षण पेश करेंगे। आम तौर पर अब तक पहले दिन राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद सदन में कोई कामकाज नहीं होता था, लेकिन इस बार आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जायेगा। मुख्य आर्थिक सलाहकार आर्थिक सर्वेक्षण तैयार करते हैं। 

अरविंद सुब्रमण्यम का ट्वीट- 


It’s THAT time of the year. Coming Monday, January 29 afternoon, this year’s Economic Survey of India to be tabled in parliament by Finance Minister . Follow . Survey-dedicated webpage to be announced soon. Happy reading!

आपको बता दूं कि इस कार्यकाल में मोदी सरकार का यह आखिरी पूर्ण बजट है। 2019 में लोकसभा का चुनाव होगा। एक फरवरी को आम बजट पेश किया जाएगा। 

> आम आदमी के लिए आर्थिक सर्वेक्षण का मतलब-




किसी बजट से ठीक पहले संसद में वित्त मंत्री देश की आर्थिक दशा की तस्वीर पेश करते हैं। इसे इकनॉमिक सर्वे या आर्थिक सर्वेक्षण कहते हैं। इसमें पिछले 12 महीने के दौरान देश में विकास का क्या रुझान रहा है, देश के किस सेक्टर में कितना निवेश हुआ, कृषि समेत अन्य उद्योगों का कितना विकास हुआ, योजनाओं को किस तरह अमल में लाया गया, इन सबके बारे में विस्तार से जानकारी दी जाती है। 

इसे संसद के दोनों सदनों में पेश किया जाता है। इस सर्वे से जहां पिछले साल की आर्थिक प्रगति का लेखा-जोखा मिलता है। साथ ही नए वित्तीय वर्ष में आर्थिक विकास की राह क्या होगी, इस बारे में भी अंदाजा लग जाता है।

सर्वे में अगले वित्तीय वर्ष में आर्थिक विकास का अनुमान पेश किया जाता है और यह भी बताया जाता है कि इस अनुमान के पीछे बड़ी वजहें क्या हैं? यानी, अगर अनुमान में यह कहा जा रहा है कि अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ेगी तो इसकी वजहें भी बताई जाएंगी।

मुख्य आर्थिक सलाहकारों ने नीतिगत बदलावों की सिफारिशें की हैं। कई बार तो बड़े पैमाने पर बदलाव के सुझाव दिए गए। इस साल भी यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) लागू करने जैसी बड़ी योजना को लागू करने की सिफारिश की संभावना है।

सरकार आर्थिक सर्वे में की गई सिफारिशें मानने के लिए बाध्य नहीं होती है। हां, सरकार इसे नीति निर्देशक के रूप में जरूर महत्व देती है। अतीत में आर्थिक सर्वे में कई नीतियों में इस तरह के बदलाव की सिफारिश कर चुकी है जो मौजूदा सरकार की सोच से मिलती-जुलती नहीं थी। आर्थिक सर्वे से बजट का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। कई मौकों पर आर्थिक सर्वे में की गई सिफारिशें बजट प्रस्तावों में शामिल नहीं की गईं।


बीते वित्तीय वर्ष में देश की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की समीक्षा के बाद वित्त मंत्रालय यह वार्षिक दस्तावेज बनाता है। इसे मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) अपनी टीम के साथ मिलकर तैयार करते हैं। इस बार अरविंद सुब्रमण्यन और उनकी टीम ने आर्थिक सर्वे तैयार किया है।
(साभार- https://www.webkhabar.com)

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Rajanish Kant रविवार, 28 जनवरी 2018