नकदी के लेन-देन के उपयोग में गिरावट आ रही है: RBI- समसामयिक पत्र

 


भारतीय रिज़र्व बैंक - समसामयिक पत्र – खंड 43, संख्या 2, 2022

आज, भारतीय रिज़र्व बैंक अपने समसामयिक पत्रों का खंड 43, संख्या 2, 2022 जारी किया, जो उसके स्टाफ-सदस्यों के योगदान द्वारा तैयार की गई एक शोध पत्रिका है। इस अंक में तीन लेख और दो पुस्तक समीक्षाएं हैं।

लेख:

1. भारत में नकद बनाम डिजिटल भुगतान लेनदेन: मुद्रा मांग विरोधाभास (पैराडॉक्स) को समझना

नकदी और डिजिटल भुगतान के बीच कथित प्रतिस्थापन को देखते हुए, दोनों में एक साथ वृद्धि प्रतिकूल लगती है, जो मुद्रा मांग विरोधाभास को उत्पन्न करती है। यह लेख भारतीय संदर्भ में इस विरोधाभास को समझने और नकदी मांग के महत्वपूर्ण चालकों को अनुभवजन्य रूप से समझने का प्रयास करता है। लेख की मुख्य बातें इस प्रकार हैं:

  1. नकदी के लेन-देन के उपयोग में गिरावट आ रही है और यह भुगतान के डिजिटल तरीकों द्वारा प्रतिस्थापित किया जा रहा है, भले ही नकदी की मूल्य संचय भूमिका बरकरार है।

  2. वैश्विक साक्ष्यों के अनुरूप, महामारी के कारण भारत में मुद्रा की मांग में अस्थायी वृद्धि हुई, जो मुख्य रूप से एहतियाती और मूल्य संचय उद्देश्यों से प्रेरित थी।

  3. ऑटोरेग्रेसिव डिस्ट्रीब्यूटेड लैग (एआरडीएल) मॉडल का उपयोग करके मुद्रा मांग फलन का अनुभवजन्य अनुमान, आय, नकदी रखने की अवसर लागत यथा ब्याज दरों और अनिश्चितता का सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण प्रभाव दिखाता है। जबकि डिजिटल भुगतान को मुद्रा की मांग के साथ विपरीत रूप से जुड़ा हुआ पाया गया है, नकदी के अन्य निर्धारक प्रभाव डालते हैं, जो विरोधाभास को समझने में मदद करते हैं।

2. भारत में मुद्रास्फीति का पूर्वानुमान: क्या मशीन लर्निंग तकनीक उपयोगी हैं?

लेखक मुद्रास्फीति और उसके निर्धारकों के बीच गैर-रेखीय संबंधों को समझने के लिए पर्यवेक्षित मशीन लर्निंग (एमएल) तकनीकों का उपयोग करते हैं, और उनके पूर्वानुमान कार्य-निष्पादन की तुलना, एक तिमाही और चार तिमाहियों की पूर्वानुमानित अवधि के लिए पूर्व-कोविड और कोविड के बाद दोनों अवधियों के लिए लोकप्रिय पारंपरिक रैखिक मॉडल, यथा ऑटोरेग्रेसिव टाइम-सीरीज़ मॉडल, लीनियर रिग्रेशन और फिलिप्स कर्व से करते हैं।

अनुभवजन्य अनुमान, मुद्रास्फीति की भविष्यवाणी के लिए पारंपरिक तकनीकों की तुलना में एमएल-आधारित तकनीकों का उपयोग करने में कार्य-निष्पादन लाभ का सुझाव देते हैं। महामारी के बाद की अवधि के दौरान पूर्वानुमान कार्य-निष्पादन लाभ काफी अधिक पाया गया है।

3. एक नया यूनिट रूट परीक्षण मानदंड

अनुभवजन्य साहित्य में कई मानक यूनिट रूट परीक्षण शामिल हैं। तथापि, छोटे नमूनों के लिए इन परीक्षणों का प्रभाव शक्ति अक्सर कम होता है। यह लेख किसी भी शून्य-माध्य समय शृंखला में यूनिट रूट की उपस्थिति का परीक्षण करने के लिए एक नया मानदंड प्रस्तावित करता है जिसमें कोई नियतात्मक प्रवृत्ति और कोई संरचनात्मक विराम नहीं है। परीक्षण को यूनिट रूट के शून्य के अंतर्गत डेटा के संभाव्यता वितरण फलन पीडीएफ) और विकल्प के अंतर्गत डेटा के पीडीएफ के अनुपात के आधार पर विकसित किया गया है। चूँकि परीक्षण सांख्यिकी का वितरण गैर-मानक है, मोंटे कार्लो सिमुलेशन तकनीक का उपयोग, परीक्षण सांख्यिकी के अनुभवजन्य वितरण को निर्धारित करने के लिए किया गया है, इसके बाद एक परिमित नमूने के लिए परीक्षण मानदंडों के प्रभाव की तुलना की जाती है।

नए यूनिट-रूट परीक्षण सांख्यिकी के कार्य-निष्पादन की तुलना अनुभवजन्य रूप से आठ मौजूदा लोकप्रिय यूनीवेरिएट यूनिट-रूट परीक्षणों से की गई है। नया परीक्षण 50 से कम के नमूना आकार के लिए अधिक प्रभावशाली पाया गया है, और उच्चतर नमूना आकार के लिए, इसका प्रभाव मौजूदा परीक्षणों के समान है।

पुस्तक समीक्षाएं:

भारतीय रिज़र्व बैंक समसामयिक पत्रों के इस अंक में दो पुस्तक समीक्षाएं भी शामिल हैं:

  1. नंदिनी जयकुमार ने एडवर्ड चांसलर द्वारा लिखित पुस्तक "दी प्राइस ऑफ टाइम: दी रियल स्टोरी ऑफ इंटरेस्ट" की समीक्षा की। यह पुस्तक 17वीं शताब्दी से लेकर हाल के समय तक विभिन्न आर्थिक संकटों के दौरान ब्याज दरों के ऐतिहासिक विकास और सुलभ मौद्रिक नीति द्वारा निभाई गई भूमिका का पता लगाती है। पुस्तक का तर्क है कि यद्यपि आर्थिक मंदी के बाद कम ब्याज दरें वांछनीय लग सकती हैं, केंद्रीय बैंकों को संसाधनों के आवंटन और धन के वितरण के लिए उनके संभावित प्रतिकूल प्रभावों से सावधान रहने की जरूरत है।

  2. तिस्ता तिवारी ने विलियम डी. नॉर्डहॉस द्वारा लिखित पुस्तक "दी स्पिरिट ऑफ ग्रीन: दी इकोनॉमिक्स ऑफ कोलिजन्स एंड कॉन्टैगियंस इन ए क्राउडेड वर्ल्ड" की समीक्षा की। यह पुस्तक हरित समाज बनाने के लिए एक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है और धारणीय विकास सुनिश्चित करते हुए पर्यावरणीय क्षति से निपटने के लिए विश्वसनीय समाधान प्रदान करती है। यह पुस्तक दो चरम स्थितियों- एक मजबूत हरित (दूर-बाएं) बायोसेंट्रिक दृष्टिकोण और एक मक ब्राउन (दूर-दाएं) दृष्टिकोण जो लाभ को सामाजिक कल्याण से ऊपर रखता है, के बीच विचारों के एक अति व्यापक विविधता के केंद्र में हरित की भावना को रखती है। यह बाजार तंत्र और सरकारी मध्यक्षेप के संयोजन से एक संतुलित दृष्टिकोण का समर्थन करती है।

(साभार- www.rbi.org.in)

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