NBFCs (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों) से किन कामों के लिए आप लोन नहीं ले सकते हैं, जानिये RBI के नियम



1. प्रस्तावना

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अध्याय III  के प्रावधानों के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की वित्तीय गतिविधियों को विनियमित करता आ रहा है। जनवरी 1997 में भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 में संशोधन कर दिए जाने के बाद, उक्त अधिनियम की धारा 45 झक और अगस्त 2019 में राष्ट्रीय आवास बैंक अधिनियम, 1987 में संशोधन, राष्ट्रीय आवास बैंक अधिनियम, 1987 की धारा 29 ए के अनुसार आवास वित्त कंपनियों सहित सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक में अपना पंजीकरण कराना अनिवार्य है।

1.1 शब्दावली

(क) ‘एनबीएफसीज़’ से तात्पर्य है भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां, जिसमें राष्ट्रीय आवास बैंक अधिनियम, 1987 की धारा 29 ए के तहत पंजीकृत हाउसिंग फाइनेंस कंपनी (एचएफसी) भी शामिल होगी।

(ख) ‘चालू निवेशों’ से तात्पर्य ऐसे निवेशों से है, जो उधारकर्ता के तुलनपत्र में ‘चालू परिसंपत्ति’ के रूप में वर्गीकृत हैं और जिन्हें एक वर्ष से कम अवधि के लिए रखा जाने वाला है।

(ग) ‘दीर्घावधि निवेशों’, से तात्पर्य ‘चालू परिसंपत्तियों’ के रूप में वर्गीकृत निवेशों को छोड़कर सभी प्रकार के निवेशों से है।

(घ) ‘बेज़मानती ऋणों’ से तात्पर्य ऐसे ऋणों से है जो किसी मूर्त परिसंपत्ति द्वारा रक्षित नहीं हैं।

1.2 पृष्ठभूमि

भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों के ऋण संबंधी मामलों को क्रमिक रूप से अविनियमित कर दिया है। ऋण वितरण के मामले में बैंकों को अधिक परिचालनगत स्वतंत्रता प्रदान करने की नीति के अनुरूप तथा रिज़र्व बैंक के पास गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के अनिवार्य पंजीकरण के परिप्रेक्ष्य में, बैंकों द्वारा गैर-बैंकिंग कंपनियों को वित्तपोषण करने से संबंधित अंधिकांश पहलुओं को भी अविनियमित किया जा चुका है। तथापि, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की कुछ विशिष्ट प्रकार की गतिविधियों के वित्तपोषण से संबद्ध संवेदनशीलता को देखते हुए ऐसी गतिविधियों के वित्तपोषण पर प्रतिबंध लागू रहेगा।

2. भारतीय रिज़र्व बैंक में पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को बैंक वित्त

2.1 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की निवल स्वाधिकृत निधि (एनओएफ) के साथ संबद्ध बैंक ऋण की अधिकतम सीमा ऐसी सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के संबंध में हटा ली गई है जो सांविधिक तौर पर रिज़र्व बैंक के पास पंजीकृत हैं तथा मुख्यतया आस्ति वित्तपोषण, ऋण और निवेश संबंधी कारोबार कर रही हैं। तदनुसार, बैंक रिज़र्व बैंक में पंजीकृत तथा इंफ्रास्ट्रक्चर वित्तपोषण, उपस्कर पट्टे पर देने, किराया-खरीद, ऋण, आढ़तिया और निवेश कार्य करनेवाली सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को आवश्यकता पर आधारित कार्यशील पूंजी की सुविधाएं तथा मीयादी ऋण प्रदान कर सकते हैं।

2.2 ‘सेकंड हैंड’ आस्तियों के वित्तपोषण में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा प्राप्त अनुभव को ध्यान में रखते हुए बैंक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा वित्तपोषित ‘सेकंड हैंड’ आस्तियों की जमानत पर भी उन्हें वित्त प्रदान कर सकते हैं।

2.3 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को विविध प्रकार की ऋण सुविधाएँ प्रदान करने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों और निवेश मानदंडों के भीतर बैंक अपने निदेशक बोर्ड के अनुमोदन से उचित ऋण नीति बना सकते हैं बशर्ते पैरा 4 और 6 में दर्शाये गये कार्यकलापों को उनके द्वारा वित्तपोषण नहीं किया जाता हो।

3. ऐसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को बैंक वित्त जिनके लिए पंजीकरण1 कराना आवश्यक नहीं है

25 अगस्त 2016 को "मास्टर निदेश - आरबीआई अधिनियम, 1934 के प्रावधानों से छूट" के संदर्भ में, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की कुछ श्रेणियों को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 (आरबीआई अधिनियम, 1934) के कुछ प्रावधानों से छूट दी गई है जिसमें रिजर्व बैंक के साथ पंजीकरण की आवश्यकता भी शामिल है। ऐसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए जिन्हें रिज़र्व बैंक में पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है, बैंक अपने ऋण संबंधी निर्णय सामान्य कारकों जैसे क्रेडिट के उद्देश्य, अंतर्निहित परिसंपत्तियों की प्रकृति और गुणवत्ता, उधारकर्ताओं की चुकौती क्षमता के साथ-साथ जोखिम धारणा आदि के आधार पर ले सकते हैं।

4. किन गतिविधियों के लिए बैंक ऋण नहीं दिया जा सकता

4.1 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की निम्नलिखित गतिविधियाँ बैंक ऋण के लिए पात्र नहीं हैं:

(i) एनबीएफसी द्वारा भुनाए गए/पुनर्भुनाए गए बिल, एनबीएफसी द्वारा भुनाए गए निम्नलिखित की बिक्री से उपजे बिलों की पुनर्भुनाई को छोड़ कर –

(क) वाणिज्यिक वाहन (हल्के वाणिज्यिक वाहनों सहित), तथा

(ख) निम्नलिखित शर्तों के अधीन दुपहिया और तिपहिया वाहन:

  • विनिर्माता द्वारा डीलर के नाम से ही बिल आहरित किया गया हो;
  • बिल से वास्तविक बिक्री संबंधी लेने देन की जानकारी मिलती हो, जैसे चेसिस / इंजन नंबर द्वारा उसकी जानकारी मिल सके; और
  • बिल की पुनर्भुनाई करने से पहले बैंकों को चाहिए कि वे बिलों की भुनाई करने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की विश्वसनीयता तथा उनके पिछले रिकार्ड के संबंध में स्वत: संतुष्ट हो लें।

(ii) गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा किसी कंपनी/संस्था के शेयरों, डिबेंचरों इत्यादि के रूप में वर्तमान और दीर्घावधि स्वरूप के किए गए निवेश। तथापि स्टॉक ब्रोकिंग कंपनियों को, उनके स्टॉक-इन-ट्रेड के रूप में रखे गए शेयरों और डिबेंचरों के आधार पर उनकी आवश्यकता के अनुसार ऋण उपलब्ध कराया जा सकता है।

(iii) गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा किसी कंपनी को/में गैर जमानती ऋण / अंतर-कंपनी जमाराशियां।

(iv) गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा अपनी सहायक कंपनियों, समूह कंपनियों/संस्थाओं को दिए गए सभी प्रकार के ऋण और अग्रिम।

(v) प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गमों (आईपीओ) में अभिदान तथा द्वितीयक बाज़ार से शेयरों की खरीद के लिए व्यक्तियों को ऋण देने के लिए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का वित्तपोषण।

4.2 पट्टे पर तथा उप-पट्टे पर दी गई आस्तियां

चूंकि उपस्कर पट्टे पर देनेवाली (इक्विपमेंट लीजिंग) कंपनियों को बैंक वित्तीय सहायता प्रदान कर सकते है, इसलिए बैंकों को चाहिए कि वे ऐसी कंपनियों के साथ तथा उपस्कर पट्टे पर देने का काम करने वाली अन्य गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के साथ विभागीय तौर पर पट्टा संबंधी करार न करें।

5. फैक्टरिंग कंपनियों को बैंक वित्त

5.1 तदनुसार उपर्युक्त पैराग्राफ 4.1 (i) और 4.1 (iii) में उल्लिखित प्रतिबंधों के बावजूद बैंक अब से निम्नलिखित मानदण्डों का पालन करने वाली फैक्टरिंग कंपनियों (एनबीएफसी-फैक्टर्स' और 'एनबीएफसी-आईसीसी जिनके पास फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम, 2011 के तहत पंजीकरण का प्रमाण पत्र है) के फैक्टरिंग कारोबार को समर्थन देने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर सकते है। बैंक वित्त के लिए पात्र होने के लिए, फैक्टरिंग कंपनियों द्वारा निम्नलिखित मानदंडों को पूरा किया जाना चाहिए -

(क) कंपनियां, फैक्टरिंग कंपनियों के रूप में पात्र हैं और अपना कारोबार फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम 2011 तथा इस संबंध में रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी अधिसूचनाओं में दिए गए प्रावधानों के अंतर्गत करती हैं।

(ख) फैक्टरिंग कंपनियों द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहायता दृष्टिबंधक द्वारा या अपने पक्ष में प्राप्य राशियों के असाइनमेंट द्वारा सुरक्षित की जाती हैं।

5.2 उपरोक्त के अलावा, बैंक वित्त के लिए पात्र होने के लिए एनबीएफसी-फैक्टरों को निम्नलिखित मानदंडों को भी पूरा करना चाहिए -

  1. वे अपनी आय का कम से कम 50 प्रतिशत अंश फैक्टरिंग क्रिया-कलापों से प्राप्त करती हैं।

  2. खरीदी हुई/वित्त प्रदान की हुई प्राप्य राशियाँ चाहे ‘रिकोर्स के साथ’ या ‘रिकोर्स के बिना’ आधार पर हों, एनबीएफसी-फैक्टरों की परिसंपत्तियों का कम से कम 50% भाग हैं।

  3. उक्त उल्लिखित परिसंपत्तियों/आय में एनबीएफसी-फैक्टरों द्वारा दी जा रही बिल भुनाने की किसी सुविधा से संबंधित आस्तियाँ/आय शामिल नहीं होंगी।

6. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को बैंक वित्त दिए जाने पर अन्य प्रतिबंध

6.1 पूरक ऋण /अंतरिम वित्त

बैंकों को चाहिए कि वे सभी श्रेणियों की गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को किसी तरह का पूरक ऋण, या कैपिटल/डिबेंचर निर्गमों के आधार पर अंतरिम वित्त और /या पूंजी, जमाराशियों इत्यादि के रूप में बाजार से दीर्घावधिक निधि की उगाही के लम्बित रहने के आधार पर तात्कालिक स्वरूप का कोई ऋण मंजूर न करें। बैंकों को चाहिए कि वे इन अनुदेशों का कड़ाई से पालन करें तथा यह सुनिश्चित करें कि इन अनुदेशों का जाने-अनजाने घुमा फिराकर कुछ अन्य अर्थ लगाकर निर्बंध परक्राम्य नोट, अस्थायी ब्याज दर वाले बांड इत्यादि के भिन्न नाम से तथा अल्पावधि ऋण के रूप में कोई ऐसा ऋण मंजूर न किया जाए जिसकी चुकौती बाहरी/अन्य स्रोतों से जुटाई जाने वाली निधि से की जानी प्रस्तावित/की जाने वाली हो, न कि आस्तियों के उपयोग से होने वाले अधिशेष से।

6.2 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को शेयरों की संपार्श्विक जमानत पर अग्रिम

किसी भी प्रयोजन के लिए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी उधारकर्ताओं को प्रदत्त जमानती ऋणों के लिए शेयरों तथा डिबेंचरों की संपार्श्विक जमानत के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

6.3 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के पास निधियाँ रखने के लिए गारंटियों पर प्रतिबंध

बैंकों को चाहिए कि वे अंतर-कंपनी जमाराशियों/ऋणों के संबंध में गारंटी न दें जिससे गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों/फर्मों द्वारा अन्य गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों/फर्मों से स्वीकृत जमाराशियों/ऋणों की वापसी की गारंटी दी जाती हो। यह प्रतिबंध सभी प्रकार की जमाराशियों/ऋणों पर उनके स्रोत पर विचार किये बिना, न्यासों तथा दूसरी संस्थाओं से गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा प्राप्त जमाराशियों/ऋणों को शामिल करते हुए, लागू है। गारंटियां इसलिए नहीं जारी की जानी चाहिए, ताकि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के पास जमाराशियां रखने के लिए वे अप्रत्यक्ष रूप से सहायक न हों।

हालांकि, बैंकों को एनबीएफसी-एनडी-एसआई और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (एचएफसी) द्वारा जारी बांडों को 09 नवंबर 2021 के गारंटी और सह-स्वीकृति पर मास्टर परिपत्र के पैरा 2.4, जो कि समय-समय पर अद्यतन किया जाता है, निहित दिशानिर्देशों के अनुसार आंशिक ऋण वृद्धि (पीसीई) प्रदान करने की अनुमति है।

7. एनबीएफसी को बैंकों के एक्सपोजर के लिए विवेकपूर्ण उच्चतम सीमा

7.1 एक्सपोजर की गणना की परिभाषा और विधि 03 जून 2019 के वृहत् एक्सपोज़र ढांचा पर परिपत्र और समय-समय पर किए गए संशोधनों में निर्धारित होगी।

7.2 एकल एनबीएफसी (स्वर्ण ऋण कंपनियों को छोड़कर) में बैंकों का एक्सपोजर उनके पात्र पूंजी आधार (टियर I पूंजी) के 20 प्रतिशत तक सीमित होगा। हालांकि, जोखिम की धारणा के आधार पर, बैंकों द्वारा एनबीएफसी की कुछ श्रेणियों के संबंध में अधिक कठोर एक्सपोजर सीमाओं पर विचार किया जा सकता है। जुड़े हुए एनबीएफसी के समूह या समूह में एनबीएफसी वाले जुड़े प्रतिपक्षकारों के समूह के लिए बैंकों का एक्सपोजर उनकी टियर I पूंजी के 25 प्रतिशत तक सीमित होगा, जैसा कि दिनांक 12 सितंबर 2019 वृहत् एक्सपोज़र ढांचा पर परिपत्र के साथ पठित 03 जून 2019 के वृहत् एक्सपोज़र ढांचा पर परिपत्र में विस्तृत है।

7.3 किसी एकल एनबीएफसी को बैंक का एक्सपोजर जो मुख्य रूप से सोने के आभूषणों के संपार्श्विक (अर्थात उनकी वित्तीय आस्ति का 50 प्रतिशत या उससे अधिक शामिल ऋण) के एवज में उधार देने से जुडा है, बैंक की पूंजीगत निधि (टियर I एवं टियर II पूंजी)के 7.5 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। तथापि, यह जोखिम सीमा 5 प्रतिशत तक बढ़ सकती है, अर्थात बैंकों की पूंजीगत निधियों के 12.5 प्रतिशत तक, यदि अतिरिक्त जोखिम ऐसी एनबीएफसी द्वारा बुनियादी ढांचा क्षेत्र को उधार दी गई निधियों के कारण है, जैसा कि 18 मई 2012 के परिपत्र मुख्य रूप से सोने की जमानत पर उधार देने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए बैंक वित्त में वर्णित है।

7.4 बैंक सभी एनबीएफसी को एक साथ मिलाकर अपने कुल एक्सपोजर के लिए आंतरिक सीमा तय करने पर भी विचार कर सकते हैं।

7.5 बैंकों को अपनी कुल वित्तीय आस्तियों के 50 प्रतिशत या उससे अधिक की सीमा तक स्वर्ण ऋण रखने वाली सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में उनके कुल एक्सपोजर पर एक आंतरिक उप-सीमा होनी चाहिए। यह उप-सीमा बैंकों द्वारा सभी एनबीएफसी में उनके कुल एक्सपोजर के लिए निर्धारित आंतरिक सीमा, जैसा कि ऊपर पैरा 7.4 में निर्धारित है, के भीतर होनी चाहिए

7.6 एक्सपोजर सीलिंग की गणना के उद्देश्य से प्रकाशित तुलन पत्र की तारीख के बाद पात्र पूंजी निधियों के प्रवाह को भी ध्यान में रखा जा सकता है। पूंजी की वृद्धि के पूरा होने पर बैंकों को एक बाहरी लेखा परीक्षक का प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा और पूंजीगत निधियों में वृद्धि की गणना करने से पहले इसे भारतीय रिजर्व बैंक (पर्यवेक्षण विभाग) को जमा किया जाना चाहिए।

7.7. बैंकों को 11 फरवरी 2014 के अंतर-समूह लेनदेन और एक्सपोजर के प्रबंधन पर दिशानिर्देशों के अनुसार अंतर-समूह सीमाओं का पालन करना होगा।

8. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा जारी प्रतिभूतियों/लिखतों में बैंकों द्वारा किए जाने वाले निवेशों पर प्रतिबंध

8.1 बैंकों को शून्य कूपन बांडों (जेडसीबी) में तब तक निवेश नहीं करना चाहिए जब तक निर्गमकर्ता गैर- बैंकिंग वित्तीय कंपनी सभी उपचित ब्याजों के लिए एक निक्षेप निधि न रखे तथा उस निधि को तरल निवेश/प्रतिभूतियों (सरकारी बांडों) में निविष्ट न रखे।

8.2 बैंकों को गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा जारी एक वर्ष तक की मूल परिपक्वता अवधि वाले अपरिवर्तनीय डिबेंचरों (एनसीडी) में निवेश करने की अनुमति दी गई है। तथापि, ऐसे लिखतों में निवेश करते समय बैंकों को विद्यमान विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए, यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि अपरिवर्तनीय डिबेंचर जारी करने वाले ने प्रकटीकरण दस्तावेज के अंतर्गत अपरिवर्तनीय डिबेंचर जारी करने का प्रयोजन प्रकट किया है और ऐसे प्रयोजन पूर्ववर्ती पैराग्राफों में दिए गए अनुदेशों के अनुसार बैंक वित्त के लिए पात्र हैं।


परिशिष्ट

मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची

संख्यापरिपत्र सं.दिनांकविषय
1.बैंपविवि.सं.एफएससी.बीसी.71/सी.469/91-9222.01.1992कतिपय क्षेत्रों को ऋण पर प्रतिबंध
2.औनिऋवि.सं.14/08.12.01/94-9528.09.1994गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को उधार
3.औनिऋवि. सं. 42/08.12.01/94-9521.04.1995गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को उधार
4.बैंपविवि.सं.एफएससी.बीसी.101/24.01.001/95-9620.09.1995उपस्कर पट्टा, किराया खरीद और आढ़तिया आदि गतिविधियाँ
5.औनिऋवि.सं.17/03.27.026/96-9706.12.1996विद्यमान आस्तियों की खरीद/पट्टे पर लेने के लिए बैंक वित्तपोषण
6.औनिऋवि.सं.15/08.12.01/97-9804.11.1997बैंकों द्वारा ऋण देने से संबंधित दिशानिर्देश- कार्यशील पूंजी का मूल्यांकन
7.बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी 90/13. 07.05 /98-9928.08.1998शेयरों और डिबेंचरों पर बैंक वित्त
8.बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी 107/13.07.05 /98-9911.11.1998बैंकों द्वारा बिलों की पुनर्भुनाई
9.औनिऋवि.सं.29/08.12.01/98-9925.05.1999गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को उधार
10.बैंपविवि. सं. डीआइआर.बीसी 173/13.07.05/99-200012.05.2000बैंको द्वारा बिलों की पुनर्भुनाई
11.बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी 51/21.04.137/2000-200110.11.2000ईक्विटी के लिए बैंक वित्त और शेयरों में निवेश
12.आरबीआई /273/2004-05 बैंपविवि. आइईसीएस.बीसी.सं.57/08.12.01 (एन)/ 2004-0519.11.2004वर्ष 2004-05 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा- एनबीएफसी को बैंक वित्त
13.आरबीआई/2004-05/68 बैंपविवि.सं. डीआइआर. बीसी.18/13.03.00/2004-0523.07.2004मास्टर परिपत्र - गारंटी और सह स्वीकृतियां
14.आरबीआई/2006-07/205 बैंपविवि.सं.एफएसडी.बीसी.46/24.01.028/2006-0712.12.2006प्रणालीगत दृष्टि से महत्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ का वित्तीय विनियमन और बैंकों का उनके साथ संबंध - अंतिम दिशानिर्देश
15.आरबीआई/2007-08/235 बैंपविवि.बीपी.बीसी.सं.60/08.12.01/2007-0812.02.2008आढ़तिया कंपनियों को बैंक वित्त
16.आरबीआई/2009-10/317 बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.74/21.04.172/2009-1012.02.2010इनफ्रास्ट्रक्चर वित्तपोषण कम्पनियों के रूप में वर्गीकृत एनबीएफसी को बैंक एक्सपोजर के सम्बन्ध में जोखिम भार और एक्सपोजर मानदंड
17.आरबीआई/2010-11/219 बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.44/21.04.141/2010-1129.09.2010जीरो कूपन बांडों में निवेश के लिए विवेकपूर्ण मानदंड
18.आरबीआई/2010-11/349 बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.72/21.04.141/2010-1131.12.2010गैर-एसएलआर प्रतिभूतियों में निवेश- एक वर्ष तक की परिपक्वता के अपरिवर्तनीय डिबेंचर
19.आरबीआई/2011-12/568 बैंपविवि.सं.बीपी. बीसी.106/21.04.172/2011-1218.05.2012मुख्य रूप से सोने की जमानत पर उधार देने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए बैंक वित्त
20.आरबीआई/2012-13/199 बैंपविवि.सं.बीपी. बीसी.40/21.04.172/2012-1311.09.2012फैक्टरिंग कंपनियों को बैंक वित्त
21.आरबीआई/2013-14/487 बैंपविवि.सं.बीपी. बीसी.96/21.06.102/2013-1411.02.2014अंतर समूह लेनदेन और एक्सपोजर के प्रबंधन पर दिशानिर्देश
22.आरबीआई/2015-16/247 बैंविवि.सं.बीपी. बीसी.55/21.04.172/2015-1626.11.2015फैक्टरिंग कंपनियों को बैंक वित्त
23.आरबीआई/2018-19/196 बैंविवि.सं.बीपी. बीसी.43/21.01.003/2018-19/19603.06.2019वृहत् एक्सपोज़र ढांचा
24.आरबीआई/2019-20/60 बैंविवि.सं.बीपी. बीसी.18/21.01.003/2019-2012.09.2019वृहत् एक्सपोज़र ढांचा
25.अधिसूचना सं.विवि.विसंअ.080/मुमप्र (जेपीएस) – 202214.01.2022फेक्टर का पंजीकरण (रिज़र्व बैंक) विनियम, 2022

1 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को वित्तपोषण करते समय, जिन्हें आरबीआई के साथ पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है, बैंकों को इस संबंध में कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों/अधिसूचनाओं का भी संदर्भ लेना चाहिए।

 (साभार: www.rbi.org.in)

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Rajanish Kant शनिवार, 8 अप्रैल 2023
क्या अनधिकृत कॉलोनी में घर बनाने के लिए होम लोन मिल सकता है, क्या कहता है RBI का नियम


 

आवास वि‍त्त पर मास्टर परि‍पत्र

क. उद्देश्य

आवास वि‍त्त पर भारतीय रि‍ज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी कि‍ए गए नि‍यमों/वि‍नि‍यमों तथा स्पष्टीकरणों को समेकि‍त करना।

ख. वर्गीकरण

बैंककारी वि‍नि‍यमन अधि‍नि‍यम, 1949 की धारा 21 तथा 35 क द्वारा प्रदत्त शक्ति‍यों का प्रयोग करते हुए रि‍ज़र्व बैंक द्वारा जारी कि‍या गया सांवि‍धि‍क नि‍देश।

ग. समेकि‍त कि‍ए गए पूर्व अनुदेश

इस मास्टर परि‍पत्र में परि‍शि‍ष्ट में सूचीबद्ध परि‍पत्रों में नि‍हि‍त सभी अनुदेशों तथा जारी सभी स्पष्टीकरणों को समेकि‍त तथा अद्यतन कि‍या गया है।

घ. प्रयोज्यता का दायरा

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर सभी अनुसूचि‍त वाणि‍ज्य बैंकों पर लागू।

1. प्रस्तावना

पूरे देश की लंबाई और चौड़ाई में फैली अपनी शाखाओं के विशाल नेटवर्क के साथ बैंक वित्तीय प्रणाली में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थिति में हैं तथा आवासीय क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

2. विभिन्न विनियमावलियां

अपनी स्वयं की नीतियां बनाते समय बैंकों को रिज़र्व बैंक के निम्नलिखित दिशानिर्देशों को ध्यान में रखना होगा तथा यह सुनिश्चित करना होगा कि बैंक ऋण का उपयोग उत्पादन और निर्माण संबंधी गतिविधियों के लिए किया जाता है, न कि स्थावर संपदा में सट्टेबाजी के लिए।

(क) भूमि का अधिग्रहण

केवल प्लॉट खरीदने के लिए बैंक का वित्त प्रदान किया जाता है, बशर्ते कि उधारकर्ता से यह घोषणापत्र प्राप्त किया जाए कि वह बैंक वित्त की सहायता से या उसके बिना, ऐसी अवधि के भीतर उक्त प्लॉट पर मकान का निर्माण करने का इरादा रखता है, जो बैंकों द्वारा सवयं निर्धारित की जाएगी।

(ख) भवन निर्माण/ तैयार मकान

(i) बैंक व्यक्ति‍यों को प्रति‍ परि‍वार मकान खरीदने/बनाने के लि‍ए ऋण दे सकते हैं, तथा परि‍वारों के क्षति‍ग्रस्त मकानों की मरम्मत के लि‍ए भी ऋण प्रदान कर सकते हैं।

(ii) किसी व्यक्ति के पास जिस कस्बे/गांव में वह रहता है, वहां पहले से ही एक मकान है, तो भी बैंक उसे स्वयं के उपयोग के प्रयोजन से उसी या अन्य कस्बे/गांव में मकान खरीदने के लिए वित्त दे सकता है।

(iii) बैंक ऐसे उधारकर्ता को मकान खरीदने के लिए वित्त दे सकता है, जो अपनी मुख्यालय से बाहर तैनाती अथवा नियोक्ता द्वारा आवास उपलब्ध कराए जाने के कारण उसे किराए पर देने का प्रस्ताव करता है।

(iv) बैंक ऐसे व्यक्ति को वित्त दे सकता है, जो उस पुराने मकान को खरीदना चाहता है, जिसमें वह फिलहाल किराएदार के रूप में रह रहा है।

(v) झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्र की परि‍स्थि‍ति‍यों को सुधारने के लि‍ए कि‍ए गए नि‍र्माण के लि‍ए दि‍या गया वि‍त्त जि‍सके लि‍ए झुग्गी-झोपड़ि‍यों में रहनेवालों को सरकार की गारंटी पर प्रत्यक्ष ऋण दि‍या जाएगा अथवा राज्य सरकारों के माध्यम से अप्रत्यक्ष ऋण दि‍या जाएगा।

(vi) बैंक स्लम क्लि‍यरंस बोर्डों तथा अन्य सरकारी एजेंसि‍यों द्वारा कार्यान्वि‍त की जानेवाली झोपड़ी क्षेत्र सुधार योजनाओं के लि‍ए ऋण उपलब्ध करा सकते हैं।

(vii) बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे अनधि‍कृत नि‍र्माण के संबंध में माननीय दि‍ल्ली उच्च न्यायालय की टिप्पणियों के प्रकाश में नि‍म्नलि‍खि‍त शर्तों का भी पालन करें:

(क) जि‍न मामलों में आवेदक के पास भूखंड/भूमि‍ है और वह मकान बनवाने के लि‍ए ऋण सुवि‍धा हेतु बैंकों/ वि‍त्तीय संस्थाओं के पास आता है तो बैंकों /वि‍त्तीय संस्थाओं को गृह कर्ज मंजूर करने के पहले, ऋण सुवि‍धा के लि‍ए आवेदन करनेवाले व्यक्ति‍ के नाम सक्षम प्राधि‍कारी द्वारा मंजूर योजना की एक प्रति‍ प्राप्त करनी होगी।

(ख) ऐसी ऋण सुवि‍धा के लि‍ए आवेदन करनेवाले व्यक्ति‍ से एक शपथपत्र-व-वचनपत्र प्राप्त करना होगा कि‍ वह मंजूर योजना का उल्लंघन नहीं करेगा, नि‍र्माण कार्य पूर्णत: मंजूर योजना के मुताबि‍क होगा और ऐसा नि‍ष्पादन करने वाले की ही यह जि‍म्मेदारी होगी कि‍ नि‍र्माण-कार्य पूरा हो जाने के 3 महीने के भीतर वह पूर्णता प्रमाणपत्र प्राप्त करें। ऐसा न कर पाने पर ब्याज़, लागत और अन्य प्रचलि‍त बैंक प्रभारों सहि‍त सारा ऋण वापस मांगने का अधि‍कार बैंक को होगा।

(ग) बैंक द्वारा नि‍युक्त कि‍सी वास्तुवि‍द को भी भवन नि‍र्माण के वि‍भि‍न्न स्तरों पर यह प्रमाणि‍त करना होगा कि‍ भवन का नि‍र्माण पूरी तरह मंजूर योजना के मुताबि‍क है तथा उसे एक वि‍शि‍ष्ट समय पर यह भी प्रमाणि‍त करना होगा कि‍ सक्षम प्राधि‍कारी द्वारा जारी कि‍या जानेवाला भवन संबंधी पूर्णता प्रमाणपत्र प्राप्त कि‍या गया है।

(घ) जि‍न मामलों में आवेदक तैयार मकान/फ्लैट खरीदने के लि‍ए ऋण सुवि‍धा हेतु बैंकों /वि‍त्तीय संस्थाओं के पास आता है, तो उसके लि‍ए एक शपथपत्र-व-वचनपत्र के ज़रि‍ए यह घोषि‍त करना अनि‍वार्य होना चाहि‍ए कि‍ तैयार संपत्ति‍ मंजूर योजना और/या भवन उप-वि‍धि‍यों के मुताबि‍क बनाई गई है और जहां तक संभव हो सके उसे पूर्णता प्रमाणपत्र भी मि‍ल चुका है।

(ङ) ऋण के वि‍तरण के पहले, बैंक द्वारा नि‍युक्त कि‍सी वास्तुवि‍द को भी यह प्रमाणि‍त करना होगा कि‍ तैयार संपत्ति‍ पूरी तरह मंजूर योजना के मुताबि‍क और/या भवन उप-वि‍धि‍यों के मुताबि‍क है।

(च) जो संपत्ति‍ अनधि‍कृत कॉलोनि‍यों की श्रेणी में आती है उनके मामले में तब तक ऋण नहीं दि‍या जाना चाहि‍ए जब तक वे वि‍नि‍यमि‍त नहीं की जातीं और वि‍कास तथा अन्य प्रभार अदा नहीं कि‍ए जाते।

(छ) आवासीय इस्तेमाल के लि‍ए बनी परंतु आवेदक जि‍सका उपयोग वाणि‍ज्य प्रयोजन के लि‍ए करना चाहता है और ऋण के लि‍ए आवेदन करते समय वैसा घोषि‍त करता है तो ऐसी संपत्ति‍यों के मामले में भी ऋण नहीं दि‍या जाना चाहि‍ए।

(viii) पूरक वित्त

(क) बैंक अपने द्वारा पहले से ही वि‍त्तपोषि‍त मकान /फ्लैट में परि‍वर्तन / परि‍वर्द्धन / मरम्मत का काम करने के लि‍ए, समग्र अधि‍कतम सीमा के भीतर अति‍रि‍क्त वि‍त्त प्रदान कि‍ए जाने संबंधी अनुरोध पर वि‍चार कर सकते हैं।

(ख) जि‍न व्यक्ति‍यों ने आवास के नि‍र्माण / अधिग्रहण हेतु अन्य स्रोतों से धन की व्यवस्था की है और वे पूरक वि‍त्त चाहते हैं, उनके मामले में, अन्य ऋणदाताओं के पक्ष में पहले से ही गि‍रवी रखी हुई संपत्ति‍ पर समरूप या द्वि‍तीय बंधक प्रभार प्राप्त करके और / या अपने वि‍चार से कि‍सी अन्य उपयुक्त प्रति‍भूति‍ / जमानत के आधार पर बैंक पूरक वि‍त्त प्रदान कर सकते हैं।

(ग) बैंक निम्नलिखित को वित्त प्रदान करने पर विचार कर सकते हैं:

i. मकानों की मरम्मत करने के लि‍ए गठि‍त नि‍कायों, तथा

ii. भवन/आवास/फ्लैट चाहे वे उनके मालि‍कों के कब्जे में हो अथवा कि‍राएदारों के, मालि‍कों को उनकी मरम्मत/अति‍रि‍क्त नि‍र्माण के लि‍ए आवश्यकता आधारि‍त अपेक्षाओं को पूर्ण करने के लि‍ए अनुमानि‍त लागत (जि‍सके लि‍ए जहां आवश्यक हो वहां कि‍सी अभि‍यंता/ आर्कि‍टेक्ट से अपेक्षि‍त प्रमाणपत्र प्राप्त कि‍या जाए) के संबंध में अपने आपको संतुष्ट करने तथा उचि‍त समझी गई ऐसी जमानत प्राप्त करने के बाद दि‍या गया वि‍त्त।

(ix) तथापि, निम्नलिखित को बैंक वित्त न दिया जाए:

(क) केवल सरकारी /अर्ध-सरकारी कार्यालयों के लि‍ए बनाए जाने वाले भवनों के नि‍र्माण के लि‍ए बैंक को वि‍त्त प्रदान नहीं करना चाहि‍ए जि‍नमें नगरपालि‍का तथा पंचायत कार्यालय शामि‍ल हैं। तथापि, बैंक ऐसे कार्यों के लि‍ए ऋण प्रदान कर सकते हैं जि‍नके लि‍ए नाबार्ड जैसी संस्थाओं द्वारा पुनर्वि‍त्त दि‍या जाएगा।

(ख) बैंक कंपनी नि‍काय (अर्थात् ऐसे सार्वजनि‍क क्षेत्र के उपक्रम जो कि‍ कंपनी अधि‍नि‍यम के अंतर्गत पंजीकृत नहीं हैं अथवा जो संबंधि‍त कानून के अंतर्गत स्थापि‍त नि‍गम नहीं है) न होने वाली सार्वजनि‍क क्षेत्र की संस्थाओं द्वारा प्रारंभ की गई परि‍योजनाओं का वि‍त्तपोषण नहीं करेंगे। उपर्युक्त परि‍भाषि‍त कंपनी नि‍कायों द्वारा प्रारंभ की गई परि‍योजनाओं के संबंध में भी बैंकों को अपने आप को इस बात से संतुष्ट करना होगा कि‍ परि‍योजना वाणि‍ज्यि‍क आधार पर चलाई जा रही है और बैंक वि‍त्त परि‍योजना के लि‍ए परि‍कल्पि‍त बजटीय संसाधनों के बदले में अथवा उन्हें प्रति‍स्थापि‍त करने के लि‍ए नहीं है। तथापि, यह ऋण बजटीय संसाधनों का अनुपूरक हो सकता है यदि‍ परि‍योजना की रूपरेखा में ही ऐसा प्रावधान कि‍या गया हो। अत:, कि‍सी आवास परि‍योजना के मामले में जहां परि‍योजना वाणि‍ज्यि‍क आधार पर चलाई जाती है और समाज के कमज़ोर वर्गों के लाभ के लि‍ए अथवा अन्यथा, उस परि‍योजना का प्रवर्तन करने में सरकार रुचि‍ रखती है और उपलब्ध कराई गई आर्थि‍क सहायता तथा / अथवा परि‍योजना प्रारंभ करने वाली संस्थाओं की पूंजी में अंशदान करके परि‍योजना की लागत का एक हि‍स्सा सरकार पूरा करती है तो बैंक वि‍त्त, परि‍योजना की कुल लागत में से सरकार से प्राप्य आर्थि‍क सहायता/पूंजीगत अंशदान की राशि‍ तथा सरकार द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले कोई भी अन्य प्रस्तावि‍त संसाधनों को घटाकर प्राप्त राशि‍ तक सीमित होना चाहि‍ए।

(ग) बैंकों ने राज्य पुलि‍स आवास नि‍गम जैसे सरकार द्वारा स्थापि‍त नि‍गमों को कर्मचारि‍यों को आंबटि‍त करने के लि‍ए रि‍हाइशी क्वार्टर्स नि‍र्माण करने के लि‍ए पूर्व में मीयादी ऋण मंजूर कि‍ए थे। ऐसे ऋणों की चुकौती बजटीय वि‍नि‍योजनों द्वारा करने की परि‍कल्पना की गई थी। चूंकि‍ इन परि‍योजनाओं को वाणि‍ज्यि‍क आधार पर चलाई जा रही परि‍योजनाएं नहीं समझा जा सकता है, अत: ऐसी परि‍योजनाओं को ऋण प्रदान करना बैंकों के लि‍ए उचि‍त नहीं होगा।

(ग) आवासीय मध्यवर्ती एजेन्सि‍यों को ऋण देना

(i) भूमि‍ के अधि‍ग्रहण के लि‍ए वि‍त्त प्रदान करना

(क) देश में मकानों का स्टॉक बढ़ाने के लि‍ए भूमि‍ और आवासीय स्थलों की उपलब्धता में वृद्धि‍ करने की आवश्यकता को दृष्टि‍गत रखते हुए बैंक भूमि‍ अधि‍ग्रहण तथा भूमि‍ को मकानों के लि‍ए वि‍कसि‍त करने हेतु सरकारी एजेंसि‍यों को वि‍त्त प्रदान कर सकते हैं, बशर्ते यह संपूर्ण परि‍योजना का अंग है जि‍समें मूलभूत सुवि‍धाओं जैसे जलप्रणाली, ड्रेनेज, सड़क, बि‍जली की व्यवस्था इत्यादि, का वि‍कास शामि‍ल है। ऐसा ऋण मीयादी ऋण के रूप में दि‍या जा सकता है। परि‍योजना यथाशीघ्र पूरी की जानी चाहि‍ए तथा हर हालत में इसमें तीन साल से अधि‍क का समय नहीं लगना चाहि‍ए ताकि‍ इष्टतम परि‍णामों के लि‍ए बैंक की नि‍धि‍ की तेजी से रि‍साइकि‍लिंग सुनि‍श्चि‍त की जा सके। यदि‍ परि‍योजना के अंतर्गत भवनों का नि‍र्माण भी शामि‍ल है तो उसके लि‍ए वैयक्ति‍क लाभार्थियों को उन्हीं शर्तों पर वि‍त्त प्रदान कि‍या जाना चाहि‍ए जि‍न शर्तों पर प्रत्यक्ष वि‍त्त प्रदान कि‍या गया है।

(ख) बैंकों के पास संपत्ति‍यों के मूल्यांकन तथा बैंकों के एक्सपोजरों के लि‍ए स्वीकार कि‍ए गए संपार्श्वि‍क के मूल्यांकन के लि‍ए एक बोर्ड अनुमोदि‍त नीति‍ होनी चाहि‍ए और वह मूल्यांकन व्यावसायि‍क अर्हता प्राप्त स्वतंत्र मूल्यांकनकर्ता द्वारा कि‍या जाना चाहि‍ए।

(ग) संपार्श्वि‍क के रूप में ली गई भूमि‍ तथा भूमि‍ के अधि‍ग्रहण के लि‍ए वि‍त्त प्रदान करते समय भूमि‍ के मूल्यांकन के लि‍ए बैंक नि‍म्नानुसार कार्रवाई करें:

(i) बैंक भूमि‍ अधि‍ग्रहण तथा भूमि‍ को वि‍कसि‍त करने हेतु गैर-सरकारी भवन नि‍र्माताओं को तो नहीं, परंतु सरकारी एजेंसि‍यों को वि‍त्त प्रदान कर सकते हैं बशर्ते भूमि‍ अधि‍ग्रहण और भूमि‍ वि‍कास संपूर्ण परि‍योजना का अंग हो जि‍समें मूलभूत सुवि‍धाओं जैसे जलप्रणाली, ड्रेनेज, सड़क, बि‍जली की व्यवस्था इत्यादि, का वि‍कास शामि‍ल है। ऐसे सीमि‍त मामलों में जहां भूमि‍ अधि‍ग्रहण के लि‍ए वि‍त्त प्रदान कि‍या जा सकता है वहां अधि‍ग्रहण की लागत (वर्तमान मूल्य) में वि‍कास की लागत को मि‍लाकर पाई जाने वाली राशि‍ तक वि‍त्तपोषण को सीमि‍त रखना चाहि‍ए। ऐसी भूमि‍ का मुख्य जमानत के रूप में मूल्यांकन वर्तमान बाजार मूल्य तक सीमि‍त रखना चाहि‍ए।

(ii) जहां कहीं भूमि‍ को संपार्श्वि‍क के रूप में स्वीकार कि‍या गया है वहां ऐसी भूमि‍ का मूल्यांकन केवल वर्तमान बाजार मूल्य पर ही कि‍या जाए।

(ii) आवास वित्त संस्थाओं को ऋण देना

बैंक आवास-वि‍त्त संस्थाओं को दिनांक 03 अप्रैल 2023 को जारी मास्टर परिपत्र – गैर बैंकिंग कंपनियों (एनबीएफ़सी) को बैंक वित्त में उल्लिखित प्रावधानों सहित उनके (दीर्घावधि‍) ऋण-इक्वि‍टी अनुपात, पि‍छले रि‍कार्ड, वसूली संबंधी कार्यनि‍ष्पादन और लागू विनियामक दिशानिर्देशों सहित अन्य संगत तथ्यों को दृष्टि‍गत रखते हुए मीयादी ऋण मंजूर कर सकते हैं।

(iii) आवास बोर्डों और अन्य एजेन्सि‍यों को ऋण दि‍या जाना

बैंक राज्य-स्तरीय आवास बोर्डों और अन्य सरकारी एजेन्सि‍यों को मीयादी ऋण दे सकते हैं। लेकि‍न आवास-वि‍त्त प्रणाली की स्वस्थ परंपरा वि‍कसि‍त करने के लि‍ए, ऐसा करते समय बैंकों को चाहि‍ए कि‍ वे लाभग्राहि‍यों से की गई वसूली के मामले में इन एजेन्सि‍यों के केवल पि‍छले कार्यनि‍ष्पादन पर ही नजर न रखें, बल्कि‍ यह शर्त भी लगा दें कि‍ बोर्ड लाभग्राहि‍यों से तत्परतापूर्वक और नि‍यमि‍त रूप से ऋणों की कि‍स्तों की वसूली करेंगे।

(iv) नि‍जी बि‍ल्डरों को मीयादी ऋण

(क) आवास के क्षेत्र में नि‍र्माण संबंधी सेवाएँ प्रदान करने वालों के रूप में प्रोफेशनल बि‍ल्डरों द्वारा अदा की गयी भूमि‍का को दृष्टि‍गत रखते हुए, वह भी वि‍शेषत: उन मामलों में जहाँ राज्य आवास बोर्डों एवं अन्य सरकारी एजेंसि‍यों द्वारा भूमि‍ अधि‍ग्रहीत और वि‍कसि‍त की जाती है, वाणि‍ज्यि‍क बैंक नि‍जी बि‍ल्डरों को प्रत्येक खास परि‍योजना के लि‍ए वाणि‍ज्यि‍क शर्तों पर ऋण उपलब्ध करा सकते हैं।

(ख) तथापि, बैंकों को निजी बिल्डरों को भूमि- अधिग्रहण के लिए निधि-आधारित या गैर निधि-आधारित सुविधाएं देने की अनुमति नहीं है, चाहे वह आवासीय परियोजना के एक भाग के रूप में ही क्यों न हो।

(ग) बैंकों द्वारा नि‍जी बि‍ल्डरों को दि‍ए जाने वाले ऋणों की अवधि‍ के मामले में कोई भी नि‍र्णय बैंक अपने वाणि‍ज्यि‍क वि‍वेक के आधार पर स्वयं लें लेकि‍न ऐसा करते समय वे सामान्य सावधानि‍याँ बरतें और ऋण देने से पहले उपयुक्त प्रति‍भूति‍/जमानत भी प्राप्त कर लें।

(घ) ऐसे ऋण उन प्रति‍ष्ठि‍त बि‍ल्डरों को दि‍ए जाने चाहि‍ए जो नि‍र्माण-व्यवसाय से जुड़ी अर्हता रखने वाले व्यक्ति‍यों को नि‍योजि‍त करते हैं। बारीकी से नजर रखते हुए यह भी सुनि‍श्चि‍त कि‍या जाना चाहि‍ए कि‍ ऐसे ऋण के कि‍सी भी भाग का उपयोग जमीन की सट्टेबाजी के लि‍ए नहीं कि‍या जा रहा है।

(ङ) यह सुनि‍श्चि‍त करने के लि‍ए भी सावधानी बरती जानी चाहि‍ए कि‍ अंति‍म लाभग्राहि‍यों से लि‍ए जाने वाले मूल्य में सट्टेबाजी का कोई भी तत्व मौजूद न हो, अर्थात् लि‍या जाने वाला मूल्य भूमि‍ के दस्तावेजी मूल्य, नि‍र्माण की वास्तवि‍क लागत और उपयुक्त लाभ-मार्जि‍न पर आधारि‍त होना चाहि‍ए।

(v) आवासीय मध्यवर्ती एजेन्सि‍यों को ऋण दि‍ए जाने से संबंधि‍त शर्तें

(क) आवास क्षेत्र को संसाधनों की उपलब्धता में वृद्धि‍ करने के लि‍ए, आवासीय मध्यवर्ती एजेन्सि‍यों द्वारा मंजूर कि‍ए गए / मंजूर कि‍ए जाने वाले प्रत्यक्ष ऋणों के बदले बैंक इन एजेन्सि‍यों को मीयादी ऋण मंजूर कर सकते हैं, इन एजेन्सि‍यों द्वारा प्रति‍ उधारकर्ता को दि‍ए गए ऋण का आकार चाहे कुछ भी हो।

(ख) आवासीय मध्यवर्ती एजेन्सि‍यों द्वारा अनि‍वासी भारतीयों को मंजूर कि‍ए गए / मंजूर कि‍ए जाने वाले प्रत्यक्ष ऋणों के बदले भी बैंक इन एजेन्सि‍यों को मीयादी ऋण मंजूर कर सकते हैं। लेकि‍न चूँकि‍ भारतीय रि‍ज़र्व बैंक ने सभी आवासीय मध्यवर्ती एजेन्सि‍यों को अनि‍वासी भारतीयों को आवास-वि‍त्त उपलब्ध कराने के प्रयोजनार्थ प्राधि‍कृत नहीं कि‍या है, इसलि‍ए बैंकों को यह सुनि‍श्चि‍त करना चाहि‍ए कि‍ वे जि‍न आवासीय मध्यवर्ती एजेन्सि‍यों को वि‍त्त उपलब्ध करा रहे हैं, वे अनि‍वासी भारतीयों को आवास-ऋण मंजूर करने के लि‍ए भारतीय रि‍ज़र्व बैंक द्वारा प्राधि‍कृत हैं।

(ग) बैंक मास्टर निदेश – भारतीय रिज़र्व बैंक (अग्रिमों पर ब्याज़ दर) निदेश, 2016, समय-समय पर यथासंशोधित, में निर्धारित प्रावधानों के अनुसार ब्याज दर लगाएंगे।

(vi) वाणिज्यिक स्थावर संपदा (सीआरई) एक्सपोजर पर दिशानिर्देशों का पालन करना

आवासीय मध्यवर्ती संस्थाओं को ऋण प्रदान करना 09 सितंबर 2009 को वाणिज्यिक स्थावर सम्पदा (सीआरई) एक्सपोजर के रूप में वर्गीकरण संबंधी दिशा-निर्देश पर जारी परिपत्र बैंपवि‍वि‍.बीपी.बीसी.सं.42/08.12.015/2009-10 और आवासीय क्षेत्र सीआरई और प्रावधानीकरण को तर्कसंगत बनाना, जोखिम भरिता एवं एलटीवी अनुपात के अंतर्गत नया उप-क्षेत्र सीआरई (निवासीय आवास) पर 21 जून 2013 को जारी परिपत्र बैंपवि‍वि‍.बीपी.बीसी.सं.104/08.12.015/2012-13 के अधीन होगा।

3. ऋण की मात्रा

(क) आवास वित्त के रूप में प्रदान किए जाने वाले ऋण की मात्रा तय करते समय बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऋणों के लिए एलटीवी अनुपात और जोखिम भरिता निम्नलिखित के अनुसार है:

ऋण की श्रेणीएलटीवी अनुपात (%)जोखिम भरिता (%)
(a) वैयक्तिक आवास ऋण  
30 लाख रुपए तक< 8035
> 80 तथा < 9050
30 लाख रुपयों से अधिक तथा 75 लाख रुपयों तक< 8035
75 लाख रुपयों से अधिक< 7550
   
(b) सीआरई-आरएचलागू नहीं75

16 अक्तूबर 2020 को अथवा उसके पश्चात तथा 31 मार्च 2023 तक की अवधि के दौरान स्वीकृत वैयक्तिक आवास ऋणों के लिए प्रतिचक्रीय उपाय के रूप में जोखिम भारिता वैयक्तिक आवास ऋण – जोखिम भारिता को युक्तिसंगत बनाना विषय पर दिनांक 16 अक्तूबर 2020 को जारी परिपत्र के अनुसार लगाया जाएगा। जोखिम भारिता निम्नानुसार है-

एलटीवी अनुपात (%)जोखिम भरिता (%)
≤ 8035
> 80 तथा ≤ 9050

(ख) ऋण मंजूर करते समय आवासीय संपत्ति का मूल्य तय करने के लिए अपनाई गई प्रणालियों में एकरूपता लाने की दृष्टि से बैंकों को चाहिए कि उनके द्वारा वित्तपोषित आवासीय संपत्ति की लागत में स्टॉम्प ड्यूटी, पंजीकरण और अन्य प्रलेखीकरण प्रभारों को शामिल नहीं करें, ताकि एलटीवी मानदंडों की प्रभावशीलता कम न हो।

(ग) तथापि, ऐसे मामलों में जहां आवास/ रिहायशी इकाई की लागत 10 लाख रूपए से अधिक नहीं है, बैंक एलटीवी अनुपात की गणना के प्रयोजन के लिए आवास/रिहायशी इकाई की लागत में स्टैम्प ड्यूटी, पंजीकरण और अन्य प्रलेखीकरण प्रभारों को शामि‍ल कर सकते हैं।

4. नवोन्‍मेषी आवास ऋण उत्पाद – आवासीय ऋणों का प्रारम्भिक स्तर पर एकमुश्त संवितरण

(क) यह पाया गया है कि कुछ बैंकों ने डेवेलपर्स/भवन निर्माताओं के साथ मिलकर कतिपय नवोन्‍मेषी आवास ऋण योजनाएं शुरू की हैं, जैसे कि मंजूर किए गए वैयक्तिक आवासीय ऋणों के संवितरण को आवासीय परियोजना के निर्माण के विभिन्‍न चरणों से जोड़े बिना पहले से ही भवन निर्माताओं को संवितरित कर देना, निर्माण काल/विनिर्दिष्‍ट अवधि के दौरान वैयक्तिक उधारकर्ता द्वारा लिए गए आवास ऋण पर भवन निर्माताओं द्वारा ब्‍याज/ईएमआई की सर्विस किया जाना, आदि। इसके अंतर्गत बैंक, भवन निर्माता और आवासीय इकाई के क्रेता के मध्‍य त्रिपक्षी करारों पर हस्‍ताक्षर करना भी शामिल हो सकता है। ये ऋण उत्‍पाद 80:20, 75:25 योजना जैसे विविधि नामों से लोकप्रिय हैं।

(ख) इन ऋण उत्‍पादों के कारण बैंक और उनके आवास ऋण उधारकर्ताओं के अतिरिक्‍त जोखिम के प्रति एक्‍सपोज होने की संभावना बनती है, उदाहरण के लिए वैयक्तिक उधारकर्ताओं/भवन निर्माताओं के बीच विवाद की स्थिति में, सहमत अवधि के दौरान उधारकर्ता की ओर से भवन निर्माता/डेवलपर द्वारा ब्‍याज/मासिक किस्‍त की चुकौती में डिफाल्‍ट/विलंब की स्थिति में, परियोजना के समय से पूरा न होने की स्थिति में, इत्‍यादि। इसके साथ ही, बैंकों को भवन निर्माताओं/डेवलपर्स द्वारा वैयक्तिक उधारकर्ताओं की ओर से किए गए किसी प्रकार के विलंबित भुगतान के परिणामस्‍वरूप साख सूचना कंपनियों द्वारा इन उधारकर्ताओं की क्रेडिट रेटिंग/स्‍कोरिंग नीचे गिर सकती है क्‍योंकि ऋणों की चुकौती से संबंधित सूचना नियमित आधार पर साख सूचना कंपनियों (सीआईसी) को प्रेषित की जाती है। ऐसे मामलों में, जहां वैयक्तिक उधारकर्ताओं की ओर से बैंक द्वारा भवन निर्माताओं/डेवलपर्स को निर्माण के चरणों से संबद्ध किए बिना पहले ही एकमुश्‍त बैंक ऋण प्रदान कर दिए जाते हैं, बैंक निधियों के दुरुपयोग से संबद्ध विषमतापूर्ण उच्‍चतर जोखिम के एक्‍सपोजर का शिकार हो सकते हैं।

(ग) बैंकों को सूचित किया जाता है कि व्यक्तिगत तौर पर मंजूर किए गए आवास ऋणों के संवितरण को पूरी तरह से आवासीय परियोजनाओं/आवास के निर्माण के साथ जोड़ा जाना चाहिए तथा अपूर्ण/निर्माणाधीन/हरित क्षेत्र आवासीय परियोजनाओं के मामलों में पहले ही संवितरण नहीं किया जाना चाहिए।

(घ) तथापि, सरकारी/सांविधिक प्राधिकरणों द्वारा प्रायोजित परियोजनाओं के मामले में ऋण का संवितरण ऐसे प्राधिकरणों द्वारा निर्धारित भुगतान चरणों के अनुसार कर सकते हैं, ऐसे मामलों में भी जहां आवास के क्रेताओं से मांगा गया भुगतान निर्माण के चरणों से जुड़ा हुआ न हो, बशर्ते ऐसे प्राधिकरणों की कोई परियोजना विगत में अधूरी रह जाने का कोई इतिहास न रहा हो।

(ङ) इस पर जोर दिया जाता है कि किसी प्रकार का उत्‍पाद शुरू करते समय बैंक को ग्राहक की उपयुक्‍तता तथा मामलों के औचित्‍य को ध्‍यान में रखना चाहिए तथा यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उधारकर्ताओं/ग्राहकों को ऐसी परियोजनाओं के अंतर्गत जोखिमों एवं देयताओं से पूर्ण रूप से अवगत कराया गया है।

5. ब्याज दर

बैंकों को मास्टर निदेश – भारतीय रिज़र्व बैंक (अग्रिमों पर ब्याज़ दर) निदेश, 2016, समय-समय पर यथासंशोधित, में निर्धारित प्रावधानों के अनुसार उनके द्वारा दिए गए आवास वित्त पर ब्याज लगाना चाहिए।

6. सांविधिक/विनियामक प्राधिकारियों का अनुमोदन

स्थावर संपदा के संबंध में ऋण प्रस्तावों का मूल्यांकन करते समय बैंकों को यह सुनि‍श्चि‍त करना चाहि‍ए कि‍ संबंधि‍त उधारकर्ता ने, जहां कहीं आवश्यक हो, सरकार/ स्थानीय निकाय /अन्य सांवि‍धि‍क प्राधि‍कारि‍यों से परि‍योजना के लि‍ए पूर्व अनुमति‍ प्राप्त कर ली है। इसके कारण ऋण अनुमोदन की प्रक्रिया में रुकावट न हों, इसके लिए संबंधि‍त प्रस्तावों को सामान्य रूप से मंजूर कि‍या जा सकता है, हालांकि उधारकर्ता द्वारा सरकारी प्राधि‍कारि‍यों से आवश्यक अनुमति‍ प्राप्त कर लेने के बाद ही वि‍तरण कि‍या जाना चाहि‍ए।

7. प्रकटीकरण की अपेक्षा

माननीय उच्च न्यायालय, बम्बई द्वारा की गई टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए वि‍नि‍र्दि‍ष्ट आवास /वि‍कास परि‍योजनाओं को वि‍त्त मंजूर करते समय बैंक शर्तों के एक हि‍स्से के रूप में नि‍म्नलि‍खि‍त को शामि‍ल करें:

(क) भवन नि‍र्माता /वि‍कासकर्ता/कंपनी अपनी पुस्ति‍काओं /ब्रोशरों आदि‍ में उस बैंक (बैंकों) का नाम प्रकट करें जि‍सको संपत्ति‍ बंधक रखी गई हो।

(ख) भवन नि‍र्माता /वि‍कासकर्ता/कंपनी कि‍सी वि‍शेष योजना के वि‍ज्ञापन को समाचार पत्रों/ पत्रि‍काओं आदि‍ में प्रकाशित करते समय बंधक से संबंधि‍त सूचनाओं को वि‍ज्ञापन में शामि‍ल करें।

(ग) भवन नि‍र्माता /वि‍कासकर्ता /कंपनी अपनी पुस्ति‍काओं /ब्रोशरों में यह दर्शाएं कि‍ वे फ्लैटों / संपत्ति‍ की बि‍क्री के लि‍ए यदि‍ आवश्यक हो तो बंधकग्राही बैंक से अनापत्ति‍ प्रमाणपत्र (एनओसी)/अनुमति‍ प्रदान करेंगे।

(घ) बैंकों को यह भी सूचि‍त कि‍या जाता है कि‍ वे उपर्युक्त शर्तों का अनुपालन सुनि‍श्चि‍त करें और भवन नि‍र्माता/ वि‍कासकर्ता /कंपनी द्वारा उपर्युक्त अपेक्षाओं के पूरा कि‍ए जाने के बाद ही उन्हें नि‍धि‍ जारी करें।

(ङ) उपर्युक्त प्रावधान आवश्यक परिवर्तनों सहित वाणिज्यिक स्थावर संपदा पर भी लागू होंगे।

8. स्थावर संपदा के लिए एक्सपोजर

बैंकों को उचित रूप से सूचित किया गया है कि वे स्थावर संपदा ऋणों की कुल राशि पर अधिकतम सीमा, ऐसे ऋणों की एकल/समूह एक्सपोजर सीमा, मार्जिन, प्रतिभूति, चुकौती कार्यक्रम तथा पूरक वित्त की उपलब्धता के संबंध में विस्तृत विवेकपूर्ण मानदंड बनाएं तथा यह नीति बैंक के निदेशक मंडल द्वारा अनुमोदित होनी चाहिए। बैंक की नीती तैयार करते समय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी दिशानिर्देशों को ध्यान में रखना चाहिए।

9. प्राथमि‍कता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत आवास ऋण

प्राथमि‍कता-प्राप्त क्षेत्र को उधारों संबंधी लक्ष्य, जिनमें रिपोर्टिंग अपेक्षाएं भी शामिल हैं, के प्रयोजन से आवास ऋण प्रदान करना "प्राथमि‍कता-प्राप्त क्षेत्र उधार" पर समय-समय पर यथा-संशोधित अनुदेशों के अधीन होगा।

10. इन्फ्रास्ट्रक्चर और किफायती दरों पर आवास का वित्‍तपोषण- बैंकों द्वारा दीर्घावधि बांड जारी करना

"बैंकों द्वारा दीर्घावधि बांड जारी करना- इन्फ्रास्ट्रक्चर और किफायती दरों पर आवास का वित्‍तपोषण" पर 15 जुलाई 2014 के बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.25/08.12.014/2014-15 और संबंधित विषय1 पर जारी परिपत्रों में उल्लिखित शर्तों के अधीन बैंक किफायती मकानों के लिए ऋण देने हेतु संसाधन जुटाने के लिए दीर्घावधि बांड जारी कर सकते हैं, जिनकी न्‍यूनतम परिपक्‍वता अवधि सात वर्ष होगी।

11 अतिरिक्त दिशानिर्देश

यह सूचि‍त कि‍या जाता है कि‍ बैंक, वि‍शेषकर प्राकृति‍क आपदाओं से भवनों की सुरक्षा के महत्व को ध्यान में रखते हुए भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा बनाई गई राष्टीय भवन नि‍र्माण संहि‍ता (एनबीसी) का कड़ाई से पालन करें। बैंक इस पहलू को अपनी ऋण नीति‍यों में शामि‍ल करने पर वि‍चार कर सकते हैं। बैंकों को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधि‍करण (एनडीएमए) के दि‍शानि‍र्देशों को भी अपनाना चाहि‍ए और अपनी ऋण नीति‍यों, प्रक्रि‍याओं और प्रलेखन के अंग के रूप में उन्हें उपयुक्त रीति‍ से शामि‍ल करना चाहि‍ए।


परिशिष्ट

आवास वि‍त्त पर मास्टर परि‍पत्र में समेकि‍त परि‍पत्रों की सूची

क्रम सं.परिपत्र सं.तारीखविषय
1विवि.सीआरई.आरईसी.13/08.12.015/2022-2308.04.22वैयक्तिक आवास ऋण - जोखिम भार को तर्कसंगत बनाना
2विवि.सं.बीपी.बीसी.24/08.12.015/2020-2116.10.20वैयक्तिक आवास ऋण: जोखिम भार को तर्कसंगत बनाना
3विवि.सं.बीपी.बीसी.41/08.12.014/2019-2017.03.20बैंकों द्वारा दीर्घावधि बॉन्ड जारी करना- इंफ्रास्ट्रक्चर और किफ़ायती आवास के लिए वित्तपोषण
4बैंविवि.बीपी.बीसी.सं.72/08.12.015/2016-1707.06.17वैयक्तिक आवास ऋण: जोखिम- भार और ऋण से मूल्य अनुपात (एलटीवी) को तर्कसंगत बनाना
5बैंविवि.बीपी.बीसी.सं.44/08.12.015/2015-1608.10.15वैयक्तिक आवास ऋण: जोखिम- भार और ऋण से मूल्य अनुपात (एलटीवी) को तर्कसंगत बनाना
6बैंविवि.बीपी.बीसी.सं.98/08.12.014/2014-1501.06.15किफायती आवास और बुनियादी संरचना के वित्तपोषण के लिए बैंकों द्वारा दीर्घावधि बाण्ड जारी किया जाना- पारस्परिक धारिता
7बैंविवि.बीपी.बीसी.सं.50/08.12.014/2014-1527.11.14किफायती आवास और बुनियादी संरचना के वित्तपोषण के लिए बैंकों द्वारा दीर्घावधि बाण्ड जारी किया जाना- पारस्परिक धारिता
8बैंविवि.बीपी.बीसी.सं.74/08.12.015/2014-1505.03.2015आवास ऋण – अनुदेशों की समीक्षा
9बैंविवि.बीपी.बीसी.सं.50/08.12.014/2014-1527.11.2014बैंकों द्वारा दीर्घावधि बांड जारी करना - इन्फ्रास्ट्रक्चर और किफायती दरों पर आवास का वित्‍तपोषण
10बैंपविवि.बीपी.बीसी.सं.25/08.12.014/2014-1515.07.2014बैंकों द्वारा दीर्घावधि बांड जारी करना - इन्फ्रास्ट्रक्चर और किफायती दरों पर आवास का वित्‍तपोषण
11बैंपविवि.बीपी.बीसी.सं.51/08.12.015/2013-1403.09.2013नवोन्‍मेषी आवास ऋण उत्‍पाद - आवास ऋणों का पहले से ही संवितरण
12बैंपविवि.बीपी.बीसी.सं.104/08.12.015/2012-1321.06.2013आवास क्षेत्र : सीआरई के अंतर्गत नया उप-क्षेत्र सीआरई (रिहाइशी आवास)
और प्रावधान, जोखिम भार तथा एलटीवी अनुपातों को युक्तिसंगत बनाना
13बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.78/08.12.001/2011-1203.02.12वाणिज्य बैंकों द्वारा दिये गये आवास ऋण - मूल्य के प्रति ऋण (एलटीवी) अनुपात
14बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.45/08.12.015/2011-1203.11.11वाणिज्यिक स्थावर संपदा (सीआरई) पर दिशानिर्देश
15बैंपवि‍वि.डीआइआर.बीसी.सं.93/08.12.14/2010-1112.05.11भवनों और इनफ्रास्ट्रक्चर का आपदारोधी नि‍र्माण सुनि‍श्चि‍त करने के लि‍ए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संबंधी दि‍शानि‍र्देश
16बैंपवि‍वि.सं.बीपी.बीसी.69/08.12.001/2010-1123.12.10वाणि‍ज्य बैंकों द्वारा आवास ऋण - एलटीवी अनुपात, जोखि‍म भार और प्रावधानीकरण
17बैंपवि‍वि.सं.डीआइआर (एचएसजी) बीसी.31/08.12.001/2009-1027.8.2009आवास परि‍योजनाओं के लि‍ए वि‍त्त - बैंक को संपत्ति‍ बंधक रखने से संबंधि‍त सूचना पुस्ति‍काओं/ब्रोशर/वि‍ज्ञापनों मेंप्रकट करने की अपेक्षा को शर्तों में शामि‍ल करना
18बैंपवि‍वि.डीआइआर.बीसी.43/21.01.002/2006-0717.11.06आवास ऋण - दि‍ल्ली उच्च न्यायालय के आदेश-कल्याण संस्था वेल्फेअर ऑर्गनाइज़ेशन द्वारा भारत के संघ तथा अन्यों के खि‍लाफ दायर याचि‍का- नि‍देशों का कार्यान्वयन
19बैंपवि‍वि.बीपी.बीसी.1711/08.12.14/2005-0612.06.06ऋणदात्री संस्थाओं के लि‍ए आवश्यक राष्ट्रीय भवन नि‍र्माण संहि‍ता (एनबीसी) वि‍नि‍र्देशों का पालन
20बैंपवि‍वि.बीपी.बीसी.65/08.12.01/2005-0601.03.06स्थावर संपदा क्षेत्र में बैंकों का एक्सपोजर
21बैंपवि‍वि.बीपी.बीसी.61/21.01.002/2004-0523.12.04वर्ष 2004-05 के लि‍ए वार्षि‍क नीति‍ वक्तव्य की मध्यावधि‍ समीक्षा - आवास ऋण तथा उपभोक्ता ऋण पर जोखि‍म भार
22बैंपवि‍वि.(आइईसीएस) सं.4/03.27.25/2004-0503.07.04उधारकर्ता को खरीदी गयी ज़मीन पर जि‍स अवधि‍ के भीतर आवास नि‍र्माण करना है वह अवधि‍ नि‍र्धारि‍त करने के लि‍ए बैंकों को प्रदान की गयी स्वतंत्रता
23औनि‍ऋवि.सं.14/01.01.43/2004-0530.06.04औद्योगि‍क नि‍र्यात ऋण वि‍भाग के कार्यों का अन्य वि‍भागों के साथ वि‍लयन
24बैंपवि‍वि.सं.बीपी.बीसी.106/21.01.002/2001-0224.05.02आवास वि‍त्त तथा बंधक समर्थि‍त प्रति‍भूति‍यों पर जोखि‍म भार
25औनि‍ऋवि.सं.22/03.27.25/2001-0216.05.02वर्ष 2002-2003 के लिए आवास वि‍त्त का आवंटन
26औनि‍ऋवि.सं.(आवि) 12/03.27.25/98-9915.01.99पुराना मकान खरीदने के लि‍ए प्रत्यक्ष वि‍त्त से संबंधि‍त शर्तें
27औनि‍ऋवि.सं.(आवि) 40/03.27.25/97-9816.04.98प्रत्यक्ष आवास ऋण से संबंधि‍त शर्तें - मानदंडों की समीक्षा
28औनि‍ऋवि.सं.27/03.27.25/97-9822.12.97बैंकों को वार्षिक आवास वित्त आवंटन की योजना – प्रत्यक्ष आवास वित्त – संशोधन
29औनि‍ऋवि.सं.सीएमडी.8/03.27.25/95-9627.09.95सरकार द्वारा बजटीय सहायता उपलब्ध करायी जा रही परि‍योजनाओं के लि‍ए मीयादी ऋण की मंजूरी का नि‍षेध
30बैंपवि‍वि.सं.बीसी.211/21.01.001/9328.12.93कतिपय क्षेत्रों में ऋण पर प्रतिबंध – स्थावर संपदा ऋण
31बैंपवि‍वि.सं.बीएल.बीसी.132/सी.168(एम)-9111.06.91वि‍शेषीकृत आवास वि‍त्त शाखाएं खोलना
32औनि‍ऋवि.सं.सीएडी.IV 223/(एचएफ-पी)-88-8902.11.88आवास वित्त - आवास वि‍त्त संस्थाओं के संबंध में गठि‍त अध्ययन दल की सि‍फारि‍शों के आधार पर संशोधन
33बैंपवि‍वि.सं.सीएएस.बीसी.70/सी.446 (एचएफ पी)-8105.06.81आवास वित्त - संशोधि‍त दि‍शानि‍र्देश (सामान्य)
34बैंपवि‍वि.सं.सीएएस.बीसी.71/सी.446 (एचएफ -पी)-7931.05.79आवास वि‍त्त - आवास योजना के लि‍ए वि‍त्त प्रदान करने में बैंकिंग प्रणाली की भूमि‍का की जांच करने के लि‍ए गठि‍त कार्यदल की सि‍फारि‍शें

1 27 नवंबर 2014 को जारी बैंविवि.बीपी.बीसी.सं.50/08.12.014/2014-1501 जून 2015 को जारी बैविवि.बीपी.बीसी.सं.98/08.12.014/2014-15 तथा 17 मार्च 2020 को जारी परिपत्र विवि.सं.बीपी.बीसी.41/08.12.014/2019-20


(साभार: www.rbi.org.in)

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RBI का नई दिल्ली के रामगढ़िया कोऑपरेटिव बैंक के ग्राहकों को झटका


बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 56 के साथ पठित धारा 35 ए के अंतर्गत निदेश –
रामगढ़िया को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, नई दिल्ली – अवधि बढ़ाना

भारतीय रिज़र्व बैंक के दिनांक 7 जुलाई 2022 के निदेश DEL.DOS.EXG_SSM No. S515/12-10-013/2022-23 के माध्‍यम से रामगढ़िया को-ऑपरेटीव बैंक लिमिटेड, नई दिल्ली को 8 जुलाई 2022 को कारोबार की समाप्ति से 8 जनवरी 2023 तक छह महीनों के लिए निदेशाधीन रखा गया था, जिसकी वैधता अवधि दिनांक 6 जनवरी 2023 के निदेश DOR.MON.D-54/12.28.115/2022-23 द्वारा 8 अप्रैल 2023 तक बढ़ाई गई थी।

2. बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 56 के साथ पठित धारा 35 ए की उप धारा (1) के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक एतद्द्वारा निदेश देता है कि उपर्युक्त निदेश दिनांक 6 अप्रैल 2023 के निदेश DOR.MON/D-03/12.28.115/2023-24 के अनुसार बैंक पर दिनांक 8 जुलाई 2023 तक लागू रहेंगे तथा ये निदेश समीक्षाधीन रहेंगे।

3. इन निदेशों की वैधता को बढ़ाने का यह अर्थ न लगाया जाए कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंकिंग लाइसेंस को रद्द कर दिया गया है। बैंक अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार होने तक प्रतिबंधों के साथ बैंकिंग कारोबार करना जारी रखेगा।

(साभार: www.rbi.org.in)

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RBI ने महिंद्रा एंड महिंद्रा फाइनेंशियल सर्विसेज पर भारी भरकम जुर्माना लगाया, जानें क्यों और कितना


भारतीय रिज़र्व बैंक ने महिंद्रा एंड महिंद्रा फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड, मुंबई पर मौद्रिक दंड लगाया

भारतीय रिज़र्व बैंक ने दिनांक 5 अप्रैल 2023 के आदेश द्वारा, महिंद्रा एंड महिंद्रा फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड, मुंबई (कंपनी) पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी - प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण जमा स्वीकार न करने वाली कंपनी और जमा स्वीकार करने वाली कंपनी (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2016' के अननुपालन के लिए ₹6.77 (छः करोड़ सतहत्तर लाख रुपये मात्र) का मौद्रिक दंड लगाया है। यह दंड, भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 58बी की उप-धारा (5) के खंड (एए) के साथ पठित धारा 58जी की उप-धारा (1) के खंड (बी) के प्रावधानों के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए लगाया गया है।

यह कार्रवाई, विनियामक अनुपालन में कमियों पर आधारित है और इसका उद्देश्य उक्‍त कंपनी द्वारा अपने ग्राहकों के साथ किए गए किसी भी लेनदेन या करार की वैधता पर सवाल करना नहीं है।

पृष्ठभूमि

31 मार्च 2019 और 31 मार्च 2020 तक की कंपनी की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा कंपनी का सांविधिक निरीक्षण किया गया। जोखिम मूल्यांकन रिपोर्ट, निरीक्षण रिपोर्ट और उससे संबंधित सभी पत्राचार की जांच से, अन्य बातों के साथ-साथ, ऋण स्वीकृत करते समय उधारकर्ताओं को ऋण पर लगाए जाने वाले ब्याज की वार्षिक दर के प्रकटीकरण से संबंधित उचित प्रणालियों पर भारतीय रिजर्व बैंक के निदेशों के कंपनी द्वारा अननुपालन और वित्तीय वर्ष 2018-19, 2019-20 और 2020-21 के दौरान ऋण की स्वीकृति के समय उधारकर्ताओं को सूचित किए गए ब्याज दर से अधिक ब्याज दर प्रभारित करते समय अपने उधारकर्ताओं को ऋण की नियमों एवं शर्तों में बदलाव की सूचना देने में विफलता का पता चला। उक्त के आधार पर, कंपनी को एक नोटिस जारी किया गया जिसमें उससे यह पूछा गया कि वह कारण बताएं कि भारतीय रिज़र्व बैंक के निदेशों, जैसा कि उसमें कहा गया है, के अनुपालन में विफलता के लिए उस पर दंड क्यों न लगाया जाए।

नोटिस पर कंपनी के उत्तर, व्यक्तिगत सुनवाई के दौरान की गई मौखिक प्रस्तुतियों पर विचार करने और उसके द्वारा किए गए अतिरिक्त प्रस्तुतियों की जांच के बाद, भारतीय रिज़र्व बैंक इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि भारतीय रिज़र्व बैंक के उपरोक्त निदेशों के अननुपालन का आरोप सिद्ध हुआ है और निदेशों के अननुपालन की सीमा तक मौद्रिक दंड लगाया जाना आवश्यक है।

(साभार: www.rbi.org.in)

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