भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति पर रिपोर्ट - 2021-22
भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 36 (2) के अनुपालन में एक सांविधिक प्रकाशन, भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति रिपोर्ट – 2021-22 जारी किया। यह रिपोर्ट 2021-22 और 2022-23 की अब तक की अवधि के दौरान सहकारी बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं सहित बैंकिंग क्षेत्र के कार्यनिष्पादन को प्रस्तुत करती है।
रिपोर्ट के मुख्य अंश नीचे दिए गए हैं:
अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) के समेकित तुलन पत्र ने ऋण संवृद्धि के कारण सात वर्ष के अंतराल के बाद 2021-22 में दो अंकों की संवृद्धि दर्ज की जिससे 2022-23 की पहली छमाही में यह दस वर्ष के उच्च स्तर पर पहुंच गई।
एससीबी का जोखिम भारित आस्तियों की तुलना में पूंजी अनुपात (सीआरएआर) मार्च 2021 के अंत में 16.3 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2022 के अंत में 16.8 प्रतिशत हो गया, साथ ही सभी बैंक 11.5 प्रतिशत की नियामक न्यूनतम पूंजी आवश्यकता और 8 प्रतिशत की इक्विटी टियर-1 (सीईटी-1) अनुपात की आवश्यकता को पूरा कर रहे हैं।
एससीबी का सकल गैर-निष्पादित आस्ति (जीएनपीए) अनुपात 2017-18 में अपने चरम से मार्च 2022 के अंत तक 5.8 प्रतिशत तक पहुंचने के लिए क्रमिक रूप से घट रहा है, जो कम गिरावट के साथ-साथ बकाया जीएनपीए में कमी के कारण है।
आय में तेजी और व्यय में संकुचन ने 2021-22 में एससीबी की लाभप्रदता को बढ़ाया, जिसे इक्विटी पर प्रतिलाभ और आस्तियों पर प्रतिलाभ के संदर्भ में मापा गया।
शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) के वित्तीय निष्पादन ने 2021-22 में सुधार दिखाया, जो संवर्धित पूंजी बफर, जीएनपीए अनुपात में गिरावट और बेहतर लाभप्रदता संकेतकों से अभिलक्षित रहा।
एनबीएफसी क्षेत्र ने 2021-22 के दौरान पर्याप्त चलनिधि बफ़र्स, पर्याप्त प्रावधानीकरण और एक मजबूत पूंजी की स्थिति बनाए रखी, साथ ही आस्तियों की गुणवत्ता में सुधार हुआ।
(साभार- www.rbi.org.in)
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