बुनियादी ढांचा क्षेत्र की 358 परियोजनाओं की लागत 3.37 लाख करोड़ रुपये बढ़ी


बुनियादी ढांचा क्षेत्र की 358 परियोजनाओं की लागत देरी और दूसरे अन्य कारणों से 3.37 लाख करोड़ रुपये बढ़ गयी। ये सभी परियोजनाएं डेढ़ सौ करोड़ या उससे अधिक राशि की है। एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है।

सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय 150 करोड़ रुपये और उससे अधिक की परियोजनाओं की निगरानी करता है।

मंत्रालय की जुलाई 2018 की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल 1,361 परियोजनाओं के क्रियान्वयन की कुल वास्तविक लागत 16,78,634.82 करोड़ रुपये थी। जबकि अब इन परियोजनाओं की लागत बढ़कर 20,16,360.99 करोड़ रुपये बैठने की उम्मीद है। इस तरह से इन परियोजनाओं की लागत कुल मिलाकर 3,37,726.17 करोड़ रुपये बढ़ गई है, जो कि वास्तविक मूल्य का 20.12 प्रतिशत है।

समीक्षाधीन 1,361 परियोजनाओं में से 358 परियोजनाओं की लागत राशि बढ़ी है जबकि 296 परियोजनाओं को समय पर पूरा नहीं किया जा सका है। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि जुलाई, 2018 तक इन परियोजनाओं पर कुल 7,68,186.93 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं, जो इनकी अनुमानित लागत का 38.10 प्रतिशत बैठता है। हालांकि, देरी वाली परियोजनाओं की संख्या घटकर 226 रह गई है। यह आकलन इन परियोजनाओं को पूरा करने की ताजा समयसीमा के हिसाब से किया गया है।

बुनियादी ढांचा क्षेत्र की 660 परियोजनाओं के चालू होने के वर्ष के बारे में नहीं बताया गया है। देरी वाली 296 परियोजनाओं में से 77 (26 प्रतिशत) में एक माह से 12 माह का विलंब हुआ है। 51 परियोजनाएं (17 प्रतिशत) 13 से 24 महीने, 83 परियोजनाएं (28 प्रतिशत) 25 से 60 महीने और 85 परियोजनाओं (29 प्रतिशत) में 61 महीने और उससे ज्यादा का विलंब चल रहा है। 

देरी के लिये जो वजह गिनाई गईं हैं उनमें भूमि अधिग्रहण में देरी, वन विभाग की अनुमति नहीं मिलना और उपकरणों की आपूर्ति में देरी प्रमुख है। इसके अलावा कोष की कमी, नक्सलवाद की समस्या, अदालती मामले और कानून-व्यवस्था की वजह से भी देरी हुई।


(सौ. भाषा)
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