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NABARD NAFIS survey: मोदी राज में ग्रामीण परिवारों की कमाई, बचत बढ़ी है या घटी है? खर्च, कर्ज, पेंशन कवरेज, बीमा कवरेज, वित्तीय साक्षरता पर क्या कहता है सर्वे

नाबार्ड के अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वे यानी एनएएफआईएस 2021-22 के मुताबिक ग्रामीण परिवारों का बकाया लोन वित्त वर्ष 2016-17 के 47.4 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2021-22 में 52 प्रतिशत हो गया है। 



सर्वे से यह भी पता चलता है कि केवल संस्थागत स्रोतों से लोन लेने वाले कृषि से जुड़े परिवारों के कर्ज का अनुपात 2016-17 के 60.5 प्रतिशत से बढ़कर 2021-22 में 75.5 प्रतिशत हो गया है।


वहीं इस अवधि के दौरान परिवारों की औसत आमदनी 57.5 प्रतिशत बढ़ी है। सर्वे से पता चलता  है कि ग्रामीण परिवारों की औसत मासिक आमदनी 2016-17 के 8,059 रुपये से बढ़कर 2021-22 में 12,698 रुपये हो गई है। सर्वे में कहा गया है, इसका मतलब यह है कि नॉमिनल चक्रवृद्धि सालाना वृद्धि दर (सीएजीआर) 9.5 प्रतिशत है, जो इस अवधि के दौरान (वित्त वर्ष के आधार पर) औसत सालाना नॉमिनल जीडीपी वृद्धि 9 प्रतिशत से अधिक है।

सभी परिवारों यानी गांव में रहने वाले खेती पर निर्भर रहने वाले और खेती पर निर्भर नहीं रहने वालों पर एक साथ विचार करने पर, औसत मासिक आय 12,698 रुपये थी, जिसमें कृषि परिवारों की कमाई थोड़ी अधिक यानी 13,661 रुपये थी, जबकि गैर-कृषि  परिवारों के लिए यह 11,438 रुपये थी। सरकारी या निजी क्षेत्र में वेतन सभी परिवारों के लिए सबसे बड़ा आय स्रोत था, जो उनकी कुल आय का लगभग 37% था।

 कृषि परिवारों के लिए, खेती मुख्य आय स्रोत थी, जो उनकी मासिक कमाई का लगभग एक-तिहाई हिस्सा बनाती थी, इसके बाद सरकारी या निजी सेवाएं एक-चौथाई हिस्सा, मजदूरी श्रम (16%), और अन्य उद्यम (15%) का योगदान देती थीं। गैर-कृषि वाले लोगों में, यह सरकारी / निजी सेवा थी जिसने कुल घरेलू आय में 57% का योगदान दिया, इसके  बाद मजदूरी थी जो कुल आय का लगभग 26% थी।

एनएसओ के 77वें सिचुएशनल असेसमेंट सर्वे यानी एसएएस के मुताबिक कृषि से जुड़े परिवारों की औसत मासिक आमदनी 2012-13 के 6,426 रुपये से बढ़कर 2018-19 में 10,218 रुपये हो गई, जो 59 प्रतिशत बढ़ी है।

बहरहाल एनएएफआईएस और एसएएस की प्रक्रिया अलग अलग है, इसलिए दोनों की तुलना नहीं की जा सकती है। एनएएफआईएस 2022-22 ने एक बार फिर दिखाया है  कि ग्रामीण परिवारों की औसत मासिक आमदनी में खेती का हिस्सा कम हो रहा है। यह दो अवधियों के दौरान 35 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत हो गया है, जबकि मजदूरी और वेतन बढ़ा है।

ग्रामीण लोगों का औसत मासिक व्यय भी इन 5 वर्षों के दौरान 2016-17 के 6,646 रुपये से बढ़कर 2021-22 में 11,262 रुपये हो गया है। 

कृषि परिवारों ने गैर-कृषि परिवारों के 10,675 रुपये की तुलना में 11,710 रुपये का अपेक्षाकृत अधिक खर्च किया है। गोवा और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में, मासिक घरेलू व्यय 17,000 रुपये से अधिक था। कुल मिलाकर, कृषि परिवारों ने गैर-कृषि परिवारों की तुलना में उच्च आय और व्यय दोनों स्तरों का प्रदर्शन किया।

सर्वे से यह भी पता चलता है कि 2016-17 और 2021-22 के बीच ग्रामीण भारत में भूमिधारिता का आकार 1.08 हेक्टेयर से घटकर 0.74 हेक्टेयर रह गया है। इसमें यह भी कहा गया है कि खपत बॉस्केट में ग्रामीण परिवारों में खाद्य की खपत 2016-17 के 51 प्रतिशत से घटकर 2021-22 में 47 प्रतिशत रह गई है।

वित्तीय बचत में वृद्धि: परिवारों की वार्षिक औसत वित्तीय बचत  2016-17 में 9,104 रुपये से बढ़कर 2021-22 में 13,209 रुपये हो गई।  कुल मिलाकर, 2016-17 में 50.6% की तुलना में 2021-22 में 66% परिवारों ने पैसे बचाने की सूचना दी। बचत के मामले में कृषि परिवारों ने गैर-कृषि परिवारों  से बेहतर प्रदर्शन किया, संदर्भ अवधि के दौरान 71% कृषि परिवारों ने बचत की  सूचना दी, जबकि गैर-कृषि परिवारों के लिए यह 58% थी। 11 राज्यों में, 70% या  उससे अधिक परिवारों ने पैसे बचाए, जिसमें उत्तराखंड (93%), उत्तर प्रदेश (84%) और झारखंड (83%) सबसे आगे हैं। इसके विपरीत, गोवा (29%), केरल (35%), मिजोरम (35%), गुजरात (37%), महाराष्ट्र (40%) और त्रिपुरा (46%) जैसे राज्यों में आधे से भी कम परिवारों ने बचत की सूचना दी।

बीमा कवरेज बढ़ा: ऐसे परिवारों का प्रतिशत, जिनके कम से कम एक सदस्य को किसी भी प्रकार के बीमा द्वारा कवर किया गया है, 2016-17 में 25.5% से बढ़कर  2021-22 में 80.3% हो गया। इसका मतलब है कि हर पाँच में से चार परिवारों में  कम से कम एक बीमित सदस्य था। कृषि परिवारों ने अपने गैर-कृषि समकक्षों की तुलना में लगभग 13 प्रतिशत अंकों के अंतर से बेहतर प्रदर्शन किया। विभिन्न प्रकार के बीमा में, वाहन बीमा सबसे अधिक प्रचलित था, जिसमें 55% परिवार कवर किए गए थे।

 जीवन बीमा कवरेज 24% परिवारों तक बढ़ा, जिसमें कृषि परिवारों ने गैर-कृषि परिवारों (20%) की तुलना में थोड़ा अधिक प्रवेश (26%) दिखाया।

पेंशन कवरेज बढ़ा : पेंशन वित्तीय सहायता प्रदान करके और दूसरों पर निर्भरता कम करके प्राप्तकर्ताओं के जीवन की गुणवत्ता को महत्वपूर्ण रूप  से बढ़ाती है, जिससे उनका आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास बढ़ता है। कम से कम एक सदस्य को किसी भी प्रकार की पेंशन (जैसे वृद्धावस्था, परिवार, सेवानिवृत्ति या विकलांगता) प्राप्त करने वाले परिवारों का प्रतिशत 2016-17 में 18.9% से बढ़कर 2021-22 में 23.5% हो गया। कुल मिलाकर, 60 वर्ष से अधिक आयु के कम से कम एक सदस्य वाले 54% परिवारों ने इसे प्राप्त करने की सूचना दी, जो समाज के बुजुर्ग सदस्यों का समर्थन करने में पेंशन के महत्व को उजागर करता है।

वित्तीय साक्षरता: अच्छी वित्तीय साक्षरता प्रदर्शित करने वाले उत्तरदाताओं का प्रतिशत 17 प्रतिशत अंक बढ़ा, जो 2016-17 में 33.9% से  बढ़कर 2021-22 में 51.3% हो गया। अच्छे वित्तीय व्यवहार का प्रदर्शन करने वाले व्यक्तियों का अनुपात - जैसे कि प्रभावी ढंग से धन का प्रबंधन करना,  सूचित वित्तीय निर्णय लेना, खर्चों पर नज़र रखना और समय पर बिलों का भुगतान करना - भी इसी अवधि के दौरान 56.4% से बढ़कर 72.8% हो गया।

वित्तीय ज्ञान के आधार पर मूल्यांकन किए जाने पर, ग्रामीण क्षेत्रों के 58% और अर्ध-शहरी क्षेत्रों के 66% उत्तरदाताओं ने सभी प्रश्नों के सही उत्तर दिए।

नाबार्ड ने 2021-22 के लिए अपने दूसरे अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण (NAFIS) के निष्कर्ष प्रकाशित किए हैं, जो 1 लाख ग्रामीण परिवारों के सर्वेक्षण के आधार पर प्राथमिक डेटा प्रदान करता है, जिसमें कोविड के बाद की अवधि  में विभिन्न आर्थिक और वित्तीय संकेतक शामिल हैं।आर्थिक विकास के लिए वित्तीय समावेशन की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानते हुए, नाबार्ड ने कृषि वर्ष (जुलाई-जून) 2016-17 के लिए पहला सर्वेक्षण किया, जिसके परिणाम अगस्त 2018 में जारी किए गए। तब से, अर्थव्यवस्था ने कई चुनौतियों का सामना किया है, और कृषि का समर्थन करने और ग्रामीण सामाजिक-आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने के लिए नीतियां लागू की गई हैं। NAFIS 2021-22 के परिणाम इस बात पर प्रकाश डालने में मदद कर सकते हैं कि 2016-17 के बाद से ग्रामीण आर्थिक और वित्तीय विकास संकेतक कैसे विकसित हुए हैं। सर्वेक्षण में सभी 28 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर और लद्दाख शामिल थे।

 (साभार- पीआईबी, बिजनेस स्टैंडर्ड, नाबार्ड) 

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Rajanish Kant शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024
पहली सैलरी मिल गई, तो क्या सिर्फ खर्च की ही योजना बनाएंगे, कई दूसरे जरूरी काम भी हैं...
पहली नौकरी लगी है, तो क्या सारी सैलरी आप खर्च देंगे या फिर बचत, निवेश भी करेंगे  

भला, पहली नौकरी मिल जाए, तो किसे खुशी नहीं होती है। महीने भर काम करने के बाद लीजिए, अब सैलरी भी आ गई। तो, सैलरी के बारे में क्या सोचा आपने। हाथ खोलकर खर्च करेंगे, पार्टी करेंगे, जमकर खरीदारी करेंगे, दोस्तों के साथ कहीं पिकनिक पर जाएंगे...क्यों...यही ना। जी हां, हममें से ज्यादातर लोगों के मन में पहली सैलरी मिलने के बाद शायद इसी तरह के विचार चलते रहते हैं, लेकिन हम भूल जाते हैं कि हमें आने वाले कल के लिए कुछ बचत भी करनी है, उन पैसों का कहीं ना कहीं अच्छे निवेश साधनों में निवेश भी करना है, आपातकालीन और रिटायरमेंट फंड भी बनाना है। 

अगर हम अपनी पहली सैलरी के मिलते ही जिस तरह से खर्च के बारे में सोच लेते हैं उसी तरह अगर बचत, निवेश, इंश्योरेंस, रिटायरमेंट फंड बगैरह के बारे में भी सोच लें, तो कितना अच्छा रहेगा। यानी कल के लिए भी हम आज से ही सोचना शुरू कर दें। तो, चलिए बताते हैं इसके लिए क्या-क्या करना जरूरी है...

1) सबसे पहला काम अपनी सैलरी का कुछ हिस्सा किसी अच्छी रिटायरमेंट या पेंशन स्कीम में लगाएं। जैसे अगर आपकी कंपनी आपकी सैलरी में से कुछ पैसे काटकर ईपीएफ (Employee Provident Fund-कर्मचारी भविष्य निधि, अक्सर पीएफ के  नाम से पुकारा जाता है) में निवेश करती है तब तो ठीक है। अगर आपकी कंपनी में इसकी व्यवस्था नहीं है, तो पीपीएफ (Public Provident Fund-सार्वजनिक भविष्य निधि ) में जरूर निवेश करें। शुरू में सैलरी कम हो तो सैलरी का 3-4% हिस्सा इसमें निवेश कर दें। जैसे-जैसे सैलरी बढ़ती जाए, पीपीएफ में अपना हिस्सा बढ़ाते जाएं। मसलन, पहले साल अगर कुल सैलरी का 3-4% निवेश किया तो उसके अगले साल उसे बढ़ाकर सैलरी का 5-6% कर सकते हैं। जानकारों के मुताबिक, ज्यादा से ज्यादा कुल सैलरी का 10 % हिस्सा ईपीएफ या पीपीएफ में निवेशित होना चाहिए। ये फंड आपके  रिटायरमेंट के बाद काम आएंगे। 


2)दूसरा काम कीजिए कि अपनी आमदनी और अपने खर्चों पर नजर रखें यानी कैश प्लो पर ध्यान रखें। आपका फाइनेंशियल सफर तभी सुहाना होगा,जब आपकी आमदनी ज्यादा और आपके खर्च कम होंगे। मतलब हर हाल में आपके हाथ में पैसे ज्यादा होने चाहिए। आमदनी और खर्च पर नजर रखने का सबसे बढ़िया उपाय है कि आप अपने घर का बजट बनाएं। अपनी आमदनी और अपने खर्च को एक डायरी पर नोट करें। इससे आपको अपने कैश प्लो का अंदाज रहेगा। फाइनेंशियल प्लानिंग भी साथ-साथ लिखते चलें। याद रखें अगर खर्च आमदनी से ज्यादा है तो या तो खर्च में कटौती करें या फिर ज्यादा कमाई के लिए कोई दूसरा काम करें। 

वैसे बाजार में कई एप्स भी मौजूद हैं जो आपके खर्चों पर नजर रखने काम कर सकते हैं। अगर आप ज्यादा खर्च करने लगेंगे तो ये एप्स आपको आगाह करेंगे। इस तरह से आप अपने खर्च को काबू में रख सकते हैं। कुछ एप हैं-AndroMoney, Monefy, Money Lover, Mvelopes, Money View,Officetime,Good Budget,Wally, Mint, HomeBudgetआदि


3) कर्ज कम करें: हो सकता है पढ़ाई करते समय आपने स्टूडेंट लोन या विद्यार्थी ऋण लिया हो, या फिर आपके ऊपर क्रेडिट कार्ड का कर्ज या फिर मेडिकल बिल का बकाया हो, इनको भी खत्म करने या कम करने के लिए प्लान तैयार करें। जानकार एक बार में ही कर्ज या बकाया चुकाने की सलाह नहीं देते हैं। इसके बदले उन बकायों या कर्ज की प्राथमिकता तय कर उसे धीरे-धीरे खत्म करने की बात कहते हैं। प्राथमिकता तय करने के लिए जानकार दो उपायों का सुझाव  देते हैं....पहला, ज्यादा ब्याज दर वाले  कर्ज या बकाए को पहले स्थान पर रखते हुए उनकी लिस्ट बनाना  (मतलब सबसे ज्यादा ब्याज दर वाला सबसे ऊपर,उससे कम वाला उसके नीचे और उससे भी कम ब्याज वाला उससे नीचे) और दूसरा सबसे कम लोन या बकाए को सबसे पहले रखकर लिस्ट बनाएं (मतलब,  सबसे पहले सबसे कम कर्ज या बकाए को रखें उसके बाद उससे कम वाले बकाए या कर्ज को रखें और फिर उससे भी कम वाले कर्ज या बकाए को रखें) कर्ज या बकाया चुकाएं।  इसमें से जो तरीका आपको बेहतर लगे उसे अमल में लाएं। 

4)अब भविष्य की खरीदारी के लिए बचत करने का लक्ष्य तय करें:  आप अपने पैसे आज ही खर्च कर डालेंगे, तो कल की जरूरत कैसे पूरी होगी। इसलिए आने वाले दिनों के लिए भी फाइनेंशियल प्लान आज ही तैयार कर लें और उसके लिए निवेश करना शुरू कर दीजिए। जैसे, घर खरीदने के लिए डाउन  पेमेंट का इंतजाम करना, अपनी शादी करना, कार खरीदना, विदेश घूमने जाना बगैरह-बगैरह। अपने फाइनेंशियल प्लान तीन अवधि छोटी, मध्यम और दीर्ध अवधि में बांटकर तैयार कर सकते हैं। 


5)आपातकालीन फंड (Emergency Fund)बनाइए: जिंदगी में सबकुछ हमारी योजना के मुताबिक नहीं होता है। कई बार अचानक दूसरा काम पड़ जाता है और उसके लिए अतिरिक्त पैसों की जरूरत पड़ती है। मसलन, कोई हादसा होना, कोई गंभीर बीमारी होना बगैरह। ऐसे कामों के लिए आपातकालीन फंड बनाना जरूरी है। ध्यान रहे इस फंड को आपात स्थिति में इस्तेमाल करना चाहिए। 
6) जरूरत के मुताबिक इंश्योरेंस पॉलिसी लें:  अपनी सैलरी में से कुछ पैसे इंश्योरेंस के लिए भी बचाकर रखें। इसमें लाइफ इंश्योरेंस के साथ-साथ मेडिकल इंश्योरेंस भी जरूरी है। इंसान की जिंदगी में एक तरफ अनिश्चतता बढ़ गई है तो दूसरी ओर इलाज करवाना लगातार महंगा होता जा रहा है। 
7) अपने फाइनेंशियल प्लान, बचत, निवेश की समय-समय पर समीक्षा करें। आपने जो रिटायरमेंट फंड बनाया है, आपातकालीन फंड बनाया है, भविष्य के लिए फाइनेंशियल प्लान तैयार किया है, उसकी समय-समय पर समीक्षा करें। अगर उसमें कोई फेर-बदल करने की जरूरत आप महसूस कर रहे हैं तो फेर-बदल करना अच्छा रहेगा। 
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Rajanish Kant मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017
जब आपके बच्चे को बर्थडे गिफ्ट में मिले पैसे, तो ये काम जरूर करें
अपने बच्चे को उनके बर्थडे गिफ्ट के जरिये पैसों के बारे में जागरूक बनाएं


हर बच्चों के लिए उनका बर्थडे गिफ्ट प्यारा होता है। चाहे वो सामान के रूप में, पैसों के रूप में या फिर आशीर्वाद के रूप में मिले। बच्चों को बर्थडे गिफ्ट के तौर लोग शौक से इनमें से ही कुछ देते हैं। सामान का इस्तेमाल हो जाएगा। वैसे पैसों का भी इस्तेमाल हो जाएगा, लेकिन बर्थडे गिफ्ट के तौर  पर मिले पैसों का इस्तेमाल आप अपने बच्चे को पैसों के बारे में जागरूकता बनाने के लिए कर सकते हैं, तो बेहतर रहेगा। लेकिन, सवाल है कैसे। बहुत आसान है। 

एक बार जब बच्चे का बर्थडे सिलिब्रेशन खत्म हो जाए, तब ये काम शुरू करना चाहिए। एक परिवार को तौर पर अपने बच्चे के साथ बैठ जाएं और उसे समझाएं कि बर्थडे गिफ्ट में मिले पैसों का वो कैसे इस्तेमाल कर सकता है। पैसों को लेकर बच्चों को जागरूकता बनाने के लिए यह एक अविश्वसनीय मौका है, जिसे माता-पिता को गंवाना नहीं चाहिए। 

बर्थडे सिलिब्रेशन खत्म हुआ और अपने बर्थडे चिल्ड्रेन के साथ परिवार के तौर पर बैठ जाइए। जब गिफ्ट में मिले सामानों की लिस्ट बनाते हैं तो ये भी गिन लीजिए कि गिफ्ट के तौर पर कितने पैसे आए हैं। पैसों का इस्तेमाल कई तरह के कामों में किया जा सकता है। मसलन, ये पैसे खर्च किए जा सकते  हैं, ये पैसे दान में दिए जा सकते हैं या फिर जरूरतमंदों में बांटे जा सकते हैं, इन पैसों की बचत की जा सकती है और इनमें से कुछ का निवेश भी किया जा सकता है। 

इस तरह से गिफ्ट में मिले पैसों को चार भागों- खर्च, दान, बचत और निवेश में बांट दीजिए। फिर किस भाग के लिए कितना आवंटन करना है, इसे प्रतिशत के हिसाब से आप खुद ही तय करके अपने बच्चों को बताइए। ये चारों भाग के लिए 25 %-25% बराबर भी हो सकता है या फिर खर्च के लिए कम पैसे बाकी तीनों के लिए ज्यादा पैसों का आवंटन किया जा सकता है। एक बात ध्यान रखिये अगर अपने बच्चों को अभी से ही कम खर्च करने की आदत डालेंगे, तो बेहतर होगा। मसलन, कुल पैसों में से खर्च के लिए 10%, दान  के लिए 20, बचत के लिए 30 और निवेश क लिए 40% पैसों का आवंटन कर सकते हैं। ये आप अपनी सुविधा अनुसार कर सकते हैं। 

इस तरह से बच्चों के बर्थडे सिलिब्रेशन को आप और आनंदायक और थोड़ा ज्ञानवर्द्धक भी बना सकते हैं। अपने बच्चे को वित्तीय साक्षरता का गुरुमंत्र देकर।   

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Rajanish Kant सोमवार, 23 जनवरी 2017