Results for "आर्थिक समीक्षा 2018 -19"
2018-19 में अर्थव्यवस्था की स्थिति – वृह्द दृष्टि

निवेश और खपत में वृद्धि के कारण 2019-20 में जीडीपी में 7 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान

सेवा निर्यात 2000-01 के 0.746 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2018-19 में 14.389 लाख करोड़ रुपये हो गया

जून 2019 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 422.2 बिलियन डॉलर का हुआ

सेवा, ऑटोमोबिल तथा रसायन में 2015-16 से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की आवक दर ऊंची हुई

बड़े तथा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को ऋण से वृद्धि हुई

अच्छी विनिर्माण तथा निर्माण गतिविधि के कारण 2018-19 में औद्योगिक वृद्धि में तेजी आई


सरकार ने वर्ष 2019-20 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान व्यक्त किया है। यह अनुमान निवेश तथा खपत में तेजी की संभावना के आधार पर व्यक्त किया गया है। केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में 2018-19 की आर्थिक समीक्षा प्रस्तुत की। आर्थिक समीक्षा में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि 2019-20 ने सरकार को विशाल राजनीतिक जनादेश दिया है, जो उच्च आर्थिक वृद्धि की संभावनाओं के लिए शुभ है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के विश्व आर्थिक परिदृश्य (डब्ल्यूईओ) की अप्रैल 2019 की रिपोर्ट में अनुमान व्यक्त किया गया है कि 2019 में भारत का सकल घरेलू उत्पाद 7.3 प्रतिशत की दर से वृद्धि करेगा। यह अनुमान वैश्विक उत्पादन तथा उभरते बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईएमडीई) में क्रमशः 0.3 तथा 0.1 प्रतिशत अंक में गिरावट की रिपोर्ट के बावजूद व्यक्त किया गया है।
भारत 2018-19 में विश्व की तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में बना हुआ है। ऐसा 2017-18 के 7.2 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि से 2018-19 में 6.8 प्रतिशत के मामूली परिवर्तन के बावजूद हुआ है। दूसरी ओर विश्व उत्पादन में 2017 के 3.8 प्रतिशत की तुलना में 2018 में 3.6 प्रतिशत की कमी आई है। अमरीका-चीन व्यापार तनाव, चीन की कठोर रणनीतियों तथा बड़ी अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीतियों के सामान्यीकरण के साथ-साथ वित्तीय कठोरता के बाद विश्व अर्थव्यवस्था तथा उभरते बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईएमडीई) में 2018 में मंदी आई है।
पिछले पांच वर्षों के दौरान (2014—15 के बाद) भारत की वास्तविक जीडीपी विकास दर उच्च रही है। इस दौरान औसत विकास दर 7.5 प्रतिशत रही। 2018-19 में भारतीय अर्थव्यवस्था 6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ी। इस प्रकार पिछले वर्ष की तुलना में विकास दर में थोड़ी गिरावट दर्ज की गई। गिरावट का कारण कृषि और संबंधित क्षेत्र, व्यापार, होटल, परिवहन, भंडारण, संचार, प्रसारण संबंधित सेवाएं तथा लोक प्रकाशक एवं रक्षा क्षेत्रों में निम्न विकास दर रही। 2018-19 के दौरान रबी फसलों के लिए जोत के कुल क्षेत्र में थोड़ी कमी आई जिसने कृषि उत्पादन को प्रभावित किया। खाद्यान्नों की कीमत में कमी ने भी किसानों को उत्पादन कम करने के लिए प्रेरित किया। 2018-19 के दौरान जीडीपी के निम्न विकास दर कारण सरकार द्वारा खपत में कमी, स्टॉक में बदलाव आदि हैं।
चालू खाता घाटा (सीएडी) 2017-18 के दौरान जीडीपी का 1.9 प्रतिशत से बढ़कर अप्रैल-दिसंबर, 2018 में 2.6 प्रतिशत हो गया। घाटे में बढ़ोत्तरी का कारण अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों के कारण हुआ व्यापार घाटा है। व्यापार घाटा 2017-18 के 162.1 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2018-19 में 184 बिलियन डॉलर हो गया। सेवा क्षेत्र के निर्यात और आयात में गिरावट दर्ज की गई। सेवा क्षेत्र का निर्यात और आयात 2018-19 क्रमशः 5.5 प्रतिशत और 6.5 प्रतिशत रहा जबकि 2017-18 के दौरान यह क्रमशः 18.8 और 22.6 प्रतिशत था।
2018-19 रुपये का अमेरिकी डॉलर की तुलना में 7.8 प्रतिशतयेन की तुलना में 7.7 प्रतिशत और यूरो और पौंड स्टर्लिंग की तुलना में 6.8 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ। 2018-19 के दौरान भारतीय रुपये ने अमेरिकी डॉलर की तुलना में अवमूल्यन रुख के साथ व्यापार किया और मार्च 2019 के अंत में 69.2 रुपये के स्तर पर सुधरने से पहले अक्टूबर, 2018 में 74.4 रुपये प्रति डॉलर के स्तर को भी छुआ था। सामान्य अर्थों में मूल्यांकन प्रभावों सहित विदेशी मुद्रा भंडार मार्च -2018 की तुलना में मार्च 2019 के अंत में 11.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर घटा। वर्ष के दौरान आरबीआई हस्तक्षेप के कारण अक्टूबर, 2018 तक गिरता रहा। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 14 जून, 2019 के अनुसार 422.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आरामदायक स्तर पर बना हुआ है।
वर्ष 2018-19 में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आवक 14.2 प्रतिशत बढ़ा। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करने वाले शीर्ष क्षेत्रों में सेवा, ऑटोमोबिल तथा रसायन प्रमुख हैं। कमोबेश 2015-16 से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आवक ऊंची दर से बढ़ी है। यह वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेशकों के विश्वास में सुधार दर्शाती है।
भारतीय बैंक बैलेंस शीट की समस्या से जूझ रहे हैं जिसका असर कॉरपोर्ट्स और बैंकों पर देखा जा सकता है। गैर निष्पादित परिसंप्तियों(एनपीए) की वजह से बैंकों पर दबाव है और इसकी वजह से सरकारी बैंक अधिक दबाव में हैं।
आर्थिक विकास के उपभोग हमेशा ही मजबूत और प्रमुख कारक रहा है। जीडीपी में निजी उपभोग का स्तर उच्च बना हुआ है। आवश्य से लग्जरीवस्तु से सेवा तक  उपभोग के पैटर्न में बदलाव आया है।
2011-12 से निवेश दर और फिक्सड निवेश दर में कमी के बाद 2017-18 में इसमें कुछ सुधार देखने को मिला है।  फिक्सड निवेश 2016-17 के 8.3 फीसदी से बढ़कर 2017-18 में 9.3 प्रतिशत और 2018-19 में यह बढ़कर 10.0 प्रतिशत तक पहुंच गया. 2016-17 तक फिक्सड निवेश मुख्य तौर पर घरेलू क्षेत्र द्वारा घटा है जबकि सार्वजनिक क्षेत्र और निजी कॉरपोरेट क्षेत्र का निवेश लगभग एक समान रहा।    
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि सेवा क्षेत्र के बाद उद्योग क्षेत्र में 2011-12 में सबसे अधिक निवेश किया गया था। वहीं कृषि क्षेत्र में सेवा क्षेत्र के आधा ही निवेश हो पाया था। 2017-18 में सेवा क्षेत्र में निवेश दर सबसे अधिक रहा था। इस साल भी कृषि क्षेत्र में सेवा क्षेत्र के आधा निवेश रहा था। इसी तरह घरेलू क्षेत्र में गिरावट के साथ बचत दर में भी कमी दर्ज की गई। वर्ष 2011-12 में बचत दर में गिरावट 23.6 प्रतिशत थी जबकि 2017-18 में यह कमी 17.2 प्रतिशत थी।
वर्ष 2018-19 में रुपये और अमेरिकी डॉलर के संदर्भ में आय़ात और निर्यात का ट्रेंड अलग देखा गया। जहां अमेरिकी डॉलर में आयात और निर्यात दोनों में कमी आई वहीं रुपये में वृद्धि दर्ज की गई। वर्ष 2018-19 में डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में कमी आने की वजह से यह गिरावट दर्ज की गई।
सकल संवर्धित मूल्य की आर्थिक गतिविधियों में कमी दर्ज की गई और 2018-19 में विकास दर 6.6प्रतिशत दर्ज की गई जो कि 2017-18 के मुकाबले कम है। वर्ष 2018-19 में अप्रत्यक्ष कर में विकास 8.8प्रतिशत रहा जोकि 2017-18 के मुकाबले आर्थिक गतिविधियों में कमी की वजह से कम है।
अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र सबसे गतिशील रहा और आर्थिक विकास दर में मुख्य भूमिका निभाई है और सकल संवर्धित मूल्य में उसकी बड़ी भागीदारी रही। सेवा क्षेत्र का निर्यात कुल योगदान 2000-01 के 0.746 लाख रुपये से बढ़कर 2018-19 में 14.389 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया। यानी कुल निर्यात में इसकी भागीदारी 26.8 प्रतिशत से बढ़कर 38.4 प्रतिशत हो गया।
कृषि के क्षेत्र में दो वर्ष अच्‍छी विकास दर हासिल करने के बाद वर्ष 2018-19 में कृषि और सहायक क्षेत्र की वास्‍तविक विकास दर कम होकर 2.9 प्रतिशत हो गई। कृषि और किसान कल्‍याण मंत्रालय द्वारा जारी तीसरे अग्रिम अनुमानों के अनुसार वर्ष 2018-19 के दौरान खद्यान्‍नों का कुल उत्‍पादन 2017-18 (अंतिम अनुमान) 283.4 मिलियन टन होने का अनुमान लगाया गया था। 2018-19 में खाद्य वस्‍तुओं की कीमतों में महत्‍वपूर्ण गिरावट देखने को मिलीजैसा कि 2018-19 में शून्‍य प्रतिशत उपभोक्‍ता खाद्य मूल्‍य मुद्रास्‍फीति का संकेत दिया गया था, जिसमें वर्ष में पांच महीने के लिए मूल्‍य संकुचन देखने को मिला।
2018-19 के दौरान उद्योग में वृद्धि की दर में विनिर्माण और निर्माण गतिविधि में सुधार के बल पर तेजी आईजिनकी वजह से दो उप क्षेत्रों, ‘खनन और उत्खनन’ तथा बिजलीगैसजलापूर्ति और अन्य उपयोगिता सेवाओं’ में वृद्धि हुई। वर्ष 2018-19 में विनिर्माण कुल जीवीए 16.4 प्रतिशत के लिए उत्तरदायी रहाजो कृषि एवं सम्बद्ध’ क्षेत्र से मामूली अधिक है।
वर्ष 2018-19 में विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि दर में तेजी आई हालांकि वित्तीय वर्ष के अंत में इसकी गति में कुछ कमी आई और साल की चौथी तिमाही में इसकी वृद्धि दर 3.1 प्रतिशत रहीजोकि पहलीदूसरी और तीसरी तिमाही में क्रमशः 12.1 प्रतिशत 6.9 प्रतिशत और 6.4 प्रतिशत रही। वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में एनबीएफसी की ओर से कम ऋण दिए जाने के कारण ऑटो सेक्टर में बिक्री में वृद्धि हुई।
निर्माण क्षेत्र में वृद्धि दर अनुमान सीमेंट के उत्पादन और तैयार इस्पात की खपत में वृद्धि का इस्तेमाल कर लगाया जाता है। सीमेंट के उत्पादन और तैयार इस्पात की खपत में 2018-19 में क्रमशः 13.3 प्रतिशत और 7.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुईजो उनकी 2017-18 की वृद्धि दर से अधिक है और  2018-19 में निर्माण क्षेत्र में उच्च वृद्धि को प्रतिबिंबित करती है।
वित्तीयरियल स्टेट और व्यवसायिक सेवा’ क्षेत्र में 2018-19 में 7.4 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुईजो वर्ष 2017-18 में हुई 6.2 प्रतिशत की वृद्धि से अधिक है। यह क्षेत्र अर्थव्यवस्था की समग्र जीवीए के 20 प्रतिशत से अधिक है।


(साभार: pib.nic.in)

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Rajanish Kant गुरुवार, 4 जुलाई 2019
आर्थिक समीक्षा 2018 -19 की मुख्य बातें
केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2018-19 पेश की। आर्थिक समीक्षा की 2018-19 की मुख्य बातें इस प्रकार हैं-
बड़ा परिवर्तन – निजी निवेश प्रगति, रोजगार, निर्यात और मांग का मुख्य वाहक है।
  • समीक्षा में बताया गया है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान अमीरों को मिलने वाले लाभ के मार्ग गरीबों के लिये भी खोले गये हैं। प्रगति और वृहद अर्थव्यवस्था की स्थिरता का लाभ आखिरी पंक्ति के व्यक्ति तक पहुंचा।
  • 2024-25 तक पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लिए आठ प्रतिशत की सतत वास्तविक जीडीपी विकास दर की जरूरत है।
  • बचत, निवेश और निर्यात को सतत विकास के लिए आवश्यक अनुकूल जनसाख्यिकी चरण द्वारा उत्प्रेरित और समर्थित ‘महत्वपूर्ण चक्र’
  • निजी निवेश – मांग, क्षमता, श्रम उत्पादकता, नई प्रौद्योगिकी, रचनात्मक खंडन और नौकरी सृजन का मुख्य वाहक।
  • समीक्षा अर्थव्यवस्था को नैतिक या अनैतिक चक्र के रूप में देखते हुए परम्परागत एंगलो-सेक्सोन विचारधारा से अलग करते हुए कभी भी समतुल्य न होना।
स्वयं स्थापित नैतिक चक्र के लिए प्रमुख बातें-   
  • डाटा को सार्वजनिक वस्तु के रूप प्रस्तुत करना।
  • कानूनी सुधारों पर जोर देना।
  • नीति सामंजस्य सुनिश्चित करना
  • व्यवहारिय अर्थव्यवस्था की सिद्धांतों का उपयोग करते हुए व्यवहार बदलाव को प्रोत्साहित करना।
  • अधिक रोजगार सृजन और अधिक लाभकारी बनाने के लिए एमएसएमई को वित्तपोषित करना।
  • पूंजी लागत घटाना
  • निवेश के लिये व्यापार में लाभ जोखिम को तर्क संगत बनाना।
रोबोट नहीं, वास्तविक लोगों के लिए नीतिः झिडके गये लोगों की व्यवहारिय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करना
  • शास्त्रीय अर्थशास्त्र की अव्यवहारिक रोबोट से अलग वास्तविक जन के निर्णय
  • व्यवहारिक अर्थशास्त्र के लिए झिड़के गये लोगों को व्यवहारिय अर्थशास्त्र ज्ञान उपलब्ध कराता है।
  • व्यवारिय अर्थशास्त्र के प्रमुख सिद्धांत
  • लाभकारी सामाजिक मानदंडो पर जोर देना।
  • डिफोल्ट विकल्प को बदलना
  • बार-बार मजबूती
सामाजिक परिवर्तन के लिए अपेक्षापूर्ण एजेंडे के सृजन के लिए व्यवहारिय अर्थशास्त्र से प्राप्त ज्ञान का उपयोग
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ से बदलाव (बेटी आपकी धनलक्ष्मी और विजयलक्ष्मी)
  • स्वच्छ भारत से सुन्दर भारत
  • एलपीजी सब्सिडी के लिए गिव इट अप से थिंक अबाउट द सब्सिडी
  • कर वंचना से कर अनुपालन
बौनों को बृहद आकार बनाने के लिए पोषणः एमएसएमई प्रगति के लिए नीतियों को नये सिरे से तैयार करना-
  • समीक्षा में एमएसएमई को अधिक लाभ अर्जित करने, रोजगार जुटाने और उत्पादकता बढ़ाने के लिए विकास योग बनाने पर ध्यान दिया गया है।
  • दस साल पुरानी होने के बावजूद सौ कामगारों से कम कार्य बल वाली बौनी यानी छोटी फर्मो की संख्या विनिर्माण में लगी सभी संगठित फर्मों में पचास प्रतिशत से अधिक है।
  • छोटी फर्मो का रोजगार में केवल 14 प्रतिशत और उत्पादकता में आठ प्रतिशत योगदान है।
  • सौ से अधिक कर्मचारियों वाली बड़ी फर्मो का संख्या के हिसाब से हिस्सेदारी 15 प्रतिशत होने के बावजूद रोजगार में 75 प्रतिशत और उत्पादकता में 90 प्रतिशत योगदान है।
एमएसएमई को बंधक मुक्त करना और उन्हें निम्नलिखित तरीकों से समर्थ बनाना।
  • सभी आकार आधारित प्रोत्साहन के लिए आवश्यक तालमेल के साथ दस  वर्षों से कम समय के लिए समापन क्लोज।
  • जैसा कि राजस्थान में हुआ है अधिक रोजगार सृजन के लिये इन इकाईयों के लिए श्रम कानून प्रतिबंधों को विनियमित करना।
  • अधिक रोजगार सृजन क्षेत्रों में युवा फर्मो के लिए सीधे क्रेडिट प्रवाह हेतु। प्राथमिकता क्षेत्र ऋण दिशा-निर्देशों को पुन तैयार करना।
  • समीक्षा में होटल, खानपान, परिवहन, रीयल इस्टेट, मनोरंजन तथा रोजगार सृजन के लिए अधिक ध्यान देते हुए पर्यटन जैसे सेवा क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है।

ऑफ द पीपुल, बाई द पीपुल, फॉर द पीपुल’ डाटा
  • समाज की अधिकतम डाटा को एकत्र करने में समाज की डाटा खपत पहले दी गई प्रौद्योगिकी अग्रिमता से कई अधिक है।
  • क्योंकि डाटा जनता द्वारा सामाजिक हित में सृजित किया जाता है इसलिए डाटा को डाटा निजीता के कानूनी ढांचे के तहत एक सार्वजनिक भलाई के रूप में सृजित किया जाए।
  • सरकार को विशेष रूप से गरीबों, सामाजिक क्षेत्रों में सार्वजनिक भलाई के रूप में डाटा का सृजन करने में हस्तक्षेप करना चाहिए।
  • सरकार के पास पहले से ही रखे अलग डाटासेट को एक जगह मिलाने से बहुत प्रकार के लाभ होंगे।
मत्स्यन्याय समाप्त करनाः निचली अदालतों की क्षमता को कैसे बढ़ाया जाए
  • समझौता लागू करने और निपटान समाधान डेरी से भारत में व्यापार को सरल बनाने और उच्च जीडीपी प्रगति में एक सबसे बड़ी बाधा है।
  • लगभग 87.5 प्रतिशत मामले जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में लंबित हैं।
  • शत-प्रतिशत निपटान दर निचली अदालतों में 2279 तथा उच्च न्यायालयों में 93 खाली पदों को भरने से ही प्राप्त की जा सकती हैं।
  • उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में विशेष ध्यान दिये जाने की जरूरत है।
  • निचली अदालतों में 25 प्रतिशत उच्च न्यायालयों में चार प्रतिशत और उच्च न्यायालय में 18 प्रतिशत उत्पादकता सुधार से बैकलॉग समाप्त किया जा सकता है।
नीति की अनिश्चितता किस प्रकार निवेश को प्रभावित करती है-
  • पिछले एक दशक में भारत में आर्थिक नीति अनिश्चितता में महत्वपूर्ण कमी आई है। यह कमी तब भी आई है जब विशेष रूप से अमेरिका जैसे प्रमुख देशों में आर्थिक नीति अनिश्चितता बढ़ी थी।
  • पिछले पांच तिमाहियों के लिये भारत में अनिश्चितता ने निवेश बढ़ोतरी पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
  • कम आर्थिक नीति अनिश्चितता निवेश के माहौल को बढ़ावा दे सकती है।
  • समीक्षा में निम्नलिखित तरीकों से आर्थिक नीति अनिश्चितता कम करने का प्रस्ताव किया गया है।
  • अग्रिम मार्ग दर्शन के साथ वास्तविक नीति की मजबूती
  • सरकारी विभागों में प्रक्रियाओं का गुणवत्ता आश्वासन प्रमाणीकरण
2040 में भारत की जनसंख्‍या का स्‍वरूप : 21वीं सदी के लिए जन कल्‍याण के प्रावधान का नियोजन 
· अगले दो दशकों में जनसंख्‍या की वृद्धि दर में तेजी से कमी आने की संभावनाएं है। अधिकांश भारत जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाएगा,  जबकि 2030 तक कुछ राज्‍यों में ज्‍यादा तादाद बुजुर्गों की होगी।
· 2021 तक राष्‍ट्रीय कुल गर्भधारण दरप्रतिस्‍थापन दर से कम रहने की संभावना है।
· 2021-31 के दौरान कामकाजी आयु वाली आबादी में मोटे तौर पर 9.7 मिलियन प्रति वर्ष और 2031-41 के दौरान 4.2 मिलियन प्रति वर्ष वृद्धि होगी।
· अगले दो दशकों में प्रारंभिक स्‍कूल में जाने वाले बच्‍चों (5 से 14 साल आयु वर्ग) में काफी कमी आएगी।
· राज्‍यों को नये विद्यालयों का निर्माण करने के स्‍थान पर स्‍कूलों का एकीकरण/विलय करके उन्‍हें व्‍यवहार्य बनाने की आवश्‍यकता है।
· नीति निर्माताओं को स्‍वास्‍थ्‍यहुए सेवाओं में निवेश करते हुए और चरणबद्ध रूप से सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि करते हुए वृद्धावस्‍था के लिए तैयार रहने की जरूरत है।
स्‍वस्‍थ भारत के जरिये स्‍वच्‍छ भारत से सुंदर भारत : स्‍वच्‍छ भारत मिशन का विश्‍लेषण
· स्‍वच्‍छ भारत मिशन (एसबीएम) के जरिये लाये गये उल्‍लेखनीय स्‍वास्‍थ्‍य लाभ।
· 93.1 प्रतिशत परिवारों की शौचालयों तक पहुंच।
· जिन लोगों की शौचालयों तक पहुंच हैउनमें से 96.6 प्रतिशत ग्रामीण भारत में उनका उपयोग कर रहे है।
· 30 राज्‍यों और केन्‍द्र शासित प्रदेशों में 100 प्रतिशत व्‍यक्तिगत घरेलू शौचालय (आईएचएचएल) की कवरेज।
· परिवारों के लिए घरेलू शौचालय से वित्‍तीय बचतवित्‍तीय लागत से औसतन 1.7 गुना और गरीब परिवारों के लिए 2.4 गुना बढ़ गई है।
· दीर्घकालिक सतत सुधारों के लिए पर्यावरणीय और जल प्रबंधन संबंधी मामलों को एसबीएम में शामिल किये जाने की जरूरत है।
किफायती विश्‍वसनीय और सतत ऊर्जा के माध्‍यम से समावेशी वृद्धि सक्षम बनाना
· भारत को 2010 के मूल्‍यों पर अपने वास्‍तविक प्रति व्‍यक्ति जीडीपी में 5,000 डॉलर तक की वृद्धि करने और उच्‍च मध्‍य आय वर्ग में दाखिल होने के लिए अपनी प्रति व्‍यक्ति ऊर्जा खपत में 2.5 गुना वृद्धि किये जाने की जरूरत है।
· 0.8 मानव विकास सूचकांक अंक प्राप्‍त करने के लिए भारत को प्रति व्‍यक्ति ऊर्जा खपत में चार गुना वृद्धि किये जाने की जरूरत है।
· पवन ऊर्जा के क्षेत्र में अब भारत चौथेसौर ऊर्जा के क्षेत्र में पांचवें और नवीकरणीय ऊर्जा संस्‍थापित क्षमता के क्षेत्र में पांचवें स्‍थान पर है।
· भारत में ऊर्जा दक्षता कार्यक्रमों की बदौलत 50,000 करोड़ रुपये की बचत हुई और कार्बन डाई ऑक्‍साइड के उत्‍सर्जन में 108.28 मिलियन टन की कमी हुई।
· देश में कुल विद्युत उत्‍पादन में नवीकरणीय विद्युत का अंश (पनबिजली के  25 मेगावाट से अधिक को छोड़कर) 2014-15 के 6 प्रतिशत से बढ़कर 2018-19 में 10 प्रतिशत हो गया।
· 60 प्रतिशत अंश के साथ तापीय विद्युत अभी भी प्रमुख भूमिका निभाती है।
· भारत में इलेक्‍ट्रिक कारों की बाजार हिस्‍सेदारी मात्र 0.06 प्रतिशत है, जबकि चीन में यह 2 प्रतिशत और नॉर्वे में 39 प्रतिशत है।
· इलेक्ट्रिक वाहनों की बाजार हिस्‍सेदारी बढ़ाने के लिए तेजी से बैटरी चार्ज करने की सुविधाओं में वृद्धि किये जाने की जरूरत है।
कल्‍याणकारी योजनाओं के लिए प्रौद्योगिकी का कारगर इस्‍तेमाल – मनरेगा योजना का मामला
· समीक्षा में कहा गया है कि प्रौद्योगिकी के इस्‍तेमाल के जरिये मनरेगा योजना को सुचारू बनाये जाने से उसकी दक्षता में वृद्धि हुई है।
· मनरेगा योजना में एनईएफएमएस और डीबीटी को लागू किये जाने से भुगतान में होने वाले विलंब में काफी कमी आई है।
· मनरेगा योजना के अंतर्गत विशेषकर संकटग्रस्‍त जिलों में कार्य की मांग और आपूर्ति बढ़ी है।
· आर्थिक संकट के दौरान मनरेगा योजना के अंतर्गत समाज के असहाय वर्ग अर्थात् महिलाएं, अजा और अजजा कार्य बल में वृद्धि हुई है।
समावेशी वृद्धि के लिए भारत में न्‍यूनतम वेतन प्रणाली पुनर्निर्धारण
· समीक्षा में कामगारों की रक्षा और गरीबी के उन्‍मूलन के लिए बेहतर तरीके से निर्मित न्‍यूनतम वेतन प्रणाली की पेशकश की है।
· भारत की मौजूदा न्‍यूनतम वेतन प्रणाली में सभी राज्‍यों में विभिन्‍न अनुसूचित रोजगार श्रेणियों के लिए 1,915 न्‍यूनतम वेतन हैं।
· भारत में प्रत्‍येक तीन में से एक दिहाड़ी मजदूर न्‍यूनतम वेतन कानून के द्वारा सुरक्षित नहीं है।
· समीक्षा न्‍यूनतम वेतन को तर्कसंगत बनाये जाने का समर्थन करती हैजैसा कि वेतन संबंधी संहिता विधेयक के अंतर्गत प्रस्‍तावित किया गया है।
· समीक्षा द्वारा सभी रोजगारों/कामगारों के लिए न्‍यूनतम वेतन का प्रस्‍ताव किया गया है।
· केन्‍द्र सरकार द्वारा पांच भौगोलिक क्षेत्रों में पृथक ‘नेशनल फ्लोर मिनिमम वेज’ अधिसूचित किया जाना चाहिए।
· राज्‍यों द्वारा न्‍यूनतम वेतन फ्लोर वेज’  से कम स्‍तरों पर निर्धारित नहीं होना चाहिए।
· न्‍यूनतम वेतन या तो कौशलों के आधार पर या भौगोलिक क्षेत्र अथवा दोनों आधारों पर अधिसूचित किये जा सकते हैं।
· समीक्षा प्रौद्योगिकी का इस्‍तेमाल करते हुए न्‍यूनतम वेतन प्रणाली को सरल और कार्यान्‍वयन योग्‍य बनाने का प्रस्‍ताव करती है।
· समीक्षा में न्‍यूनतम वेतन के बारे में नियमित अधिसूचनाओं के लिए श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के अंतर्गत नेशनल लेवल डैशबोर्ड’ का प्रस्‍ताव किया गया है।
· टोल फ्री नम्‍बर वैधानिक न्‍यूनतम वेतन का भुगतान न होने पर पर शिकायत दर्ज कराने के लिए।
· ज्‍यादा लचीले और सतत आर्थिक विकास के लिए एक समावेशी व्‍यवस्‍था के रूप में प्रभावी न्‍यूनतम वेतन नीति।
2018-19 में अर्थव्‍यवस्‍था की स्थिति : एक व्‍यापक दृष्टि
· 2018-19 में भारत अब भी तेजी से बढ़ती हुई प्रमुख अर्थव्‍यवस्‍था है।
· जीडीपी की वृद्धि दर वर्ष 2017-18 में 7.2 प्रतिशत की जगह वर्ष 2018-19 में 6.8 प्रतिशत हुई।
· 2018-19 में मुद्रास्‍फीति की दर 3.4 प्रतिशत तक सीमित रही।
· सकल अग्रिम के प्रतिशत के रूप में फंसे हुए कर्ज दिसम्‍बर, 2018 के अंत में घटकर 10.1 प्रतिशत रह गयेजोकि मार्च 2018 में 11.5 प्रतिशत थे।
· 2017-18 के बाद से निवेश की वृद्धि में सुधार हो रहा है :
  1. स्थिर निवेश में वृद्धि दर 2016-17 में 8.3 प्रतिशत से बढ़कर अगले साल 9.3 प्रतिशत और उससे अगले साल 2018-19 में 10.0 प्रतिशत हो गई।
· चालू खाता घाटा जीडीपी के 2.1 प्रतिशत पर समायोजित करने योग्‍य है।
· केन्‍द्र सरकार का राजकोषीय घाटा 2017-18 में जीडीपी के 3.5 प्रतिशत से घटकर 2018-19 में 3.4 प्रतिशत रह गया।
निजी निवेश में वृद्धि और खपत में तेजी से 2019-20 में वृद्धि दर में बढ़ोतरी होने की संभावना है।
राजकोषीय घटनाक्रम
  • जीडीपी के 3.4 प्रतिशत के राजकोषीय घाटे और 44.5 प्रतिशत (अनंतिम) के ऋण-जीडीपी अनुपात के साथ वित्त वर्ष 2018-19 का समापन
  • जीडीपी के प्रतिशत के अनुसार, वर्ष 2017-18 के मुकाबले वित्त वर्ष 2018-19 के अनंतिम अनुमान में केन्द्र सरकार के कुल परिव्‍यय में 0.3 प्रतिशत की कमी:
    • राजस्‍व व्‍यय में 0.4 प्रतिशत की कमी और पूंजीगत व्‍यय में 0.1 प्रतिशत की वृद्धि
  •  वर्ष 2017-18 के संशोधित अनुमान में राज्‍यों के स्‍वयं के कर और गैर-कर राजस्‍व में उल्‍लेखनीय वृद्धि और वर्ष 2018-19 के बजट अनुमान में इसके इसी स्‍तर पर बरकरार रहने की परिकल्‍पना की गई है।
  • सामान्‍य सरकार (केन्‍द्र और राज्‍य) राजकोषीय सुदृढ़ीकरण और राजकोषीय अनुशासन की राह पर।
संशोधित राजकोषीय सुदृढ़ीकरण मार्ग के तहत वित्त वर्ष 2020-21 तक जीडीपी के 3 प्रतिशत के राजकोषीय घाटे और वर्ष 2024-25 तक जीडीपी के 40 प्रतिशत केन्‍द्र सरकार ऋण को प्राप्‍त करने की परिकल्‍पना की गई है।
मुद्रा प्रबंधन और वित्तीय मध्यस्थता  
  • एनपीए अनुपात में कमी आने से बैंकिंग प्रणाली बेहतर हुई।
  • दिवाला और दिवालियापन संहिता से बड़ी मात्रा में फंसे कर्जों का समाधान हुआ और व्यापार संस्कृति बेहतर हुई।
  • 31 मार्च, 2019 तक सीआईआरपी के तहत 1,73,359 करोड़ रुपये के दावे वाले 94 मामलों का समाधान हुआ।
  • 28 फरवरी, 2019 तक 2.84 लाख करोड़ रुपये के 6079 मामले वापस ले लिये गए।
  • आरबीआई की रिपोर्ट की अनुसार फंसे कर्ज वाले खातों से बैंकों ने 50,000 करोड़ रुपये प्राप्त किए।
  • अतिरिक्त 50,000 करोड़ रुपयों को गैर-मानक से मानक परिसंपत्तियों में अपग्रेड किया गया।
  •  बैंचमार्क नीति दर पहले 50 बीपीएस बढ़ाई गई और फिर पिछले वर्ष बाद में 75 बीपीएस घटा दी गई।
  • सितंबर, 2018 से तरलता स्थिति कमजोर रही और सरकारी बॉन्डों पर इसका असर दिखा।
  • एनबीएफसी क्षेत्र में दबाव और पूंजी बाजार से प्राप्त किए जाने वाले इक्विटी वित्त उपलब्धता में कमी के कारण वित्तीय प्रवाह संकुचित रहा।
  • 2018-19 के दौरान सार्वजनिक इक्विटी जारी करने के माध्यम से पूंजी निर्माण में 81 प्रतिशत की कमी आई।
  • एनबीएफसी के ऋण विकास दर में मार्च, 2018 के 30 प्रतिशत की तुलना में मार्च, 2019 में 9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।   
मूल्य और महंगाई दर
  • सीपीआईसी पर आधारित महंगाई दर में लगातार 5वें वर्ष गिरावट दर्ज की गई। पिछले 2 वर्षों से यह 4 प्रतिशत से कम रही है।
  • उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीआई) आधारित खाद्य मुद्रा स्फ्रीति में भी लगातार 5वें वर्ष गिरावट दर्ज की गई और ये पिछले 2वर्षों के दौरान 2 प्रतिशत से भी कम रही है।
  • सीपीआई-सी आधारित महंगाई दर (सीपीआई में खाद्यान्न और ईंधन छोड़कर) 2017-18 की तुलना में 2018-19 में हुई वृद्धि के बाद मार्च, 2019 से कम हो रही है।
  • 2018-19 के दौरान सीपीआई-सी आधारित महंगाई दर के मुख्य कारक हैं आवास, ईंधन व अन्य। मुख्य महंगाई दर के निर्धारण में सेवा क्षेत्र का महत्व बढ़ा है।
  • 2017-18 की तुलना में 2018-19 के दौरान सीपीआई ग्रामीण महंगाई दर में कमी आई है। हालांकि सीपीआई शहरी महंगाई दर में 2018-19 के दौरान थोड़ी वृद्धि दर्ज की गई है। 2018-19 के दौरान कई राज्यों में सीपीआई महंगाई दर में कमी आई है।        
सतत विकास और जलवायु परिवर्तन
  • भारत का एसडीजी सूचकांक अंक राज्यों के लिए 42 से 69 के बीच और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए 57 से 68 के बीच है।
  • राज्यों में 69 अंकों के साथ केरल और हिमाचल प्रदेश सबसे आगे है।
  • केन्द्रशासित प्रदेशों में चंडीगढ़ और पुद्दुचेरी क्रमशः 68 और 65 अंकों के साथ सबसे आगे हैं।
  • नामामि गंगे मिशन को एसडीजी-6 को हासिल करने के लिए नीतिगत प्राथमिकता के आधार पर लॉन्च किया गया था। इस कार्यक्रम के लिए 2015-20 की अवधि के लिए 20,000 करोड़ रुपये का बजटीय आवंटन किया गया था।
  • एसडीजी को हासिल करने के लिए संसाधन दक्षता पर राष्ट्रीय नीति का सुझाव दिया गया था।
  • 2019 में पूरे देश के लिए एमसीएपी कार्यक्रम लॉन्च किया गया। इसका उद्देश्य है 
  • वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और कम करना।
  • पूरे देश में वायु की गुणवत्ता के निगरानी नेटवर्क को मजबूत करना।
  • 2018 में कटोविस, पौलेंड में आयोजित सीओपी-24 की उपलब्धियां
  • विकसित और विकासशील देशों के लिए विभिन्न शुरुआती बिंदुओं (स्टार्टिंग पाइंट) की पहचान।
  • विकासशील देशों के प्रति रुख में लचीलापन।
  • समानता व साझा परन्तु पृथक जिम्मेदारी और कार्यक्षमता सहित सिद्धांतों पर विचार।
  • पेरिस समझौता जलवायु वित्त की भूमिका पर जोर देता है जिसके बिना प्रस्तावित एनडीसी का लाभ नहीं मिल सकता।
  • अंतर-राष्ट्रीय समुदाय ने अनुभव किया कि विकसित देश जलवायु वित्त प्रवाह के बारे में विभिन्न दावे कर रहे हैं। परन्तु वास्तविकता में वित्त प्रवाह इन दावों से काफी कम है।
  • भारत के एनडीसी को लागू करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों के वित्तीय सहायता के साथ घरेलू बजटीय सहायता की भी आवश्यकता हैं।    
विदेशी क्षेत्र
  • डब्ल्यूटीओ के अनुसार विश्व व्यापार का विकास 2017 के 4.6 प्रतिशत की तुलना में 2018 में कम होकर 3 प्रतिशत रह गया है। कारण :
  • नई और बदला लेने की प्रवृत्ति से प्रेरित टैरिफ उपाय।
  • यूएस-चीन के बीच व्यापार तनाव में बढ़ोत्तरी।
  • कमजोर वैश्विक आर्थिक विकास।
  • वित्तीय बाजार में अनिश्चितता (डब्ल्यूटीओ)।
  • भारतीय मुद्रा के संदर्भ में रुपये के अवमूल्यन के कारण जहां 2018-19 के दौरान निर्यात में वृद्धि दर्ज की गई,वहीं आयात में कमी आई।
  • 2018-19 के अप्रैल-दिसंबर के दौरान कुल पूंजी प्रवाह मध्यम स्तर का रहा जबकि विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) के प्रवाह में तेजी रही। इसका कारण पोर्टफोलियो निवेश के अंतर्गत निकासी की उच्च मात्रा रही।
  • दिसंबर, 2018 तक भारत का विदेशी ऋण 521.1 बिलियन डॉलर था। यह मार्च, 2018 के स्तर से 1.6 प्रतिशत कम है।
  • विदेशी ऋण के संकेतक बताते हैं कि भारत का विदेशी ऋण दीर्घावधि का नहीं है।
  • कुल देयताएं और जीडीपी का अनुपात (ऋण और गैर-ऋण घटकों के समावेश के साथ)  2015 के 45 प्रतिशत से कम होकर 2018 में 38 प्रतिशत हो गया है।
  • विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की हिस्सेदारी बढ़ी है और कुल देयताओं में कुल पोर्टफोलियो निवेश में कमी आई है। यह दिखाता है कि चालू खाते के घाटे को धन उपलब्ध कराने के लिए अधिक स्थिर स्रोतों की ओर स्थानांतरण हुआ है।
2017-18 के दौरान भारतीय रुपये का मूल्य प्रति डॉलर 65-68 रुपये था। परन्तु अवमूल्यन के साथ भारतीय रुपये का मूल्य 2018-19 के दौरान प्रति डॉलर 70-74 रुपये हो गया।
  • आयात की क्रय क्षमता को दर्शाने वाले रूझानों में लगातार तीव्र बढ़ोतरी हो रही है। ऐसा शायद इसलिए संभव हुआ है क्योंकि कच्चे तेल की कीमतों में भारत के निर्यात की तुलना में अभी भी तेजी नही आई है।
  • 2018-19 में विनिमय दर में पिछले वर्ष की तुलना में ज्यादा उतार-चढ़ा रहा। ऐसा कच्चे तेल की कीमतों में हलचल की वजह से हुआ।
  • 2018-19 में भारत के निर्यात आयात बास्केट का स्वरूप
  • निर्यात (पुनर्निर्यात सहित): 23,07,663 करोड़ रुपये
  • आयातः 35,94,373 करोड़ रुपये
  • सबसे ज्यादा निर्यात वाली वस्तुओं में पेट्रोलियम उत्पाद, कीमती पत्थर, दवाएं के नुस्खे, स्वर्ण और अन्य कीमती धातु शामिल रहीं।
  • सबसे ज्यादा आयात वाली वस्तुओं में कच्चा तेल, मोती, कीमती पत्थर तथा सोना शामिल रहा।
  • भारत के मुख्य व्यापार साझेदारों में अमेरिका, चीन, हांगकांग, संयुक्त अरब अमीरात और सउदी अरब शामिल रहे।
  • भारत ने 2018-19 में विभिन्न देशों/देशों के समूह के साथ 28 द्विपक्षीय, बहु-पक्षीय समझौते किए।
  • इन देशों को कुल 121.7 अरब अमरीकी डॉलर मूल्य का निर्यात किया गया, जोकि भारत के कुल निर्यात का 36.9 प्रतिशत था।
  • इन देशों से कुल 266.9 अरब डॉलर मूल्य का आयात हुआ, जो भारत के कुल आयात का 52.0 प्रतिशत रहा।
कृषि और खाद्य प्रबंधन
  • देश के कृषि क्षेत्र में चक्रवार विकास होता है।
  • सकल मूल्य संवर्धन (जीवीए) 2014-15 में देश के कृषि क्षेत्र ने 0.2 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि से उबरकर 2016-17 में 6.3 प्रतिशत की विकास दर हासिल की, लेकिन 2018-19 में यह घटकर 2.9 प्रतिशत पर आ गई।
  • सकल पूंजी निर्माण (जीसीएफ) 2017-18 में कृषि क्षेत्र में सकल पूंजी निर्माण 15.2 प्रतिशत घटा। 2016-17में यह 15.6 प्रतिशत रहा था।
  • कृषि में 2016-17 के दौरान  सार्वजनिक क्षेत्र का जीसीएफ जीवीए के प्रतिशत के रूप में 2.7 प्रतिशत बढ़ा। 2013-14 में यह 2.1 प्रतिशत के स्तर पर था। 
  • कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी 2005-06 के अवधि के 11.7 प्रतिशत की तुलना में 2015-16 में बढ़कर 13.9 प्रतिशत हो गई। छोटे और सीमांत किसानों में ऐसी महिलाओं की संख्या 28 प्रतिशत रही।
  • छोटे और सीमांत किसानों में भूमि स्वामित्व वाले परिचालन वाली खेती के मामलों में बदलाव देखा गया।
  • 89 प्रतिशत भू-जल का इस्तेमाल सिंचाई कार्य के लिए किया गया है। ऐसे में भूमि की उत्पादकता से अधिक ध्यान सिंचाई के लिए जल की उत्पादकता पर दिया जाना चाहिए।
  • उर्वरकों के प्रभाव का अनुमात लगातार घट रहा है। जीरो बजट सहित जैविक और प्राकृतिक खेती की तकनीक सिंचाई जल के तर्कसंगत इस्तेमाल और मिट्ठी की उर्वरता को बढ़ाने में मदद कर सकती है।
  • लघु और सीमांत किसानों के बीच संसाधनों के इस्तेमाल को अधिर न्याय संगत बनाने के लिए आईसीटी को लागू करना और कस्टम हायरिंग सेंटर के जरिए सक्षम प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल को बढ़ावा देना जरूरी।
  • कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों के समग्र और सतत विकास के लिए आजीविकाओं के संसाधनों का वैविधिकरण। इसके लिए नीतियों में इन बातों पर ध्यान देना होगाः-
  • दुनिया में दुध के सबसे बड़े उत्पादक देश भारत में डेयरी क्षेत्र को बढ़ावा।
  • पशु धन का विकास।
  • दुनिया में मछलियों के दूसरे बड़े उत्पादक देश भारत में मत्स्य पालन क्षेत्र को बढ़ावा देना।
उद्योगों और अवसंरचना
  • 2018-19 में आठ बुनियादी उद्योगों के कुल सूचकांक में 4.3 प्रतिशत की वृद्धि।
  • विश्व बैंक के कारोबारी सुगमता रिपोर्ट 2019 में भारत दुनिया के 190 देशों में 77वें स्थान पर पहुंचा। पहले की तुलना में 23 स्थान ऊपर उठा।
  • 2018-19 में देश में सड़क निर्माण कार्यों में 30 किलोमीटर प्रति दिन के हिसाब से तरीकी हुई। 2014-15 में सड़क निर्माण 12 किलोमीटर प्रति दिन था।
  • 2017-18 की तुलना में 2018-19 में रेल ढुलाई और यात्री वाहन क्षमता में क्रमशः 5.33  और 0.64 की वृद्धि हुई।
  • देश में 2018-19 के दौरान कुल टेलीफोन कनेक्शन 118.34 करोड़ पर पहुंच गया।
  • बिजली की स्थापित क्षमता 2019 में 3,56,100 मेगावाट रही, जबकि 2018 में यह 3,44,002 मेगावाट थी।
  • अवसंरचना कमियों को पूरा करने के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी जरूरी।
  • प्रधानमंत्री आवास योजना और सौभाग्य योजनाओं जैसे प्रमुख सरकारी कार्यक्रमों के माध्यम से टिकाऊ और लचीली अवसंरचनाओं को खास महत्व दिया गया।
अवसंरचना क्षेत्र से जुड़़े विवादों का नीयत समय पर निपटान करने के लिए संस्थागत प्रणाली की आवश्यकता।
सेवा क्षेत्र
  • सेवा क्षेत्र (निर्माण को छोड़कर) की भारत के जीवीए में 54.3 प्रतिशत की हिस्‍सेदारी है और इसने 2018-19 में जीवीए की वृद्धि में आधे से अधिक योगदान दिया है।
  • 2017-18 में आईटी-बीपीएम उद्योग 8.4 प्रतिशत बढ़कर 167 अरब अमरीकी डॉलर पर पहुंच गया और इसके 2018-19 में 181 अरब अमरीकी डॉलर पर पहुंचने का अनुमान है।
  • सेवा क्षेत्र की वृद्धि 2017-18 के 8.1 प्रतिशत से मामूली रूप से गिरकर 2018-19 में 7.5 प्रतिशत पर आ गई।
  • त्‍वरित गति से बढ़े उप-क्षेत्र : वित्‍तीय सेवाएं,  रियल एस्‍टेट और व्‍यावसायिक सेवाएं।
  • धीमी गति से बढ़ने वाले क्षेत्र : होटलपरिवहन, संचार और प्रसारण सेवाएं।
  • वर्ष 2017 में रोजगार में सेवाओं की हिस्‍सेदारी 34 प्रतिशत थी।
  • पर्यटन
  • वर्ष 2018-19 में 10.6 मिलियन विदेशी पर्यटक आएजबकि 2017-18 में इनकी संख्‍या 10.4 मिलियन थी।
  • पर्यटकों से विदेशी मुद्रा की आमदनी 2018-19 में 27.7 अरब अमरीकी डॉलर रही, जबकि 2017-18 में 28.7 अरब अमरीकी डॉलर थी।
सामाजिक बुनियादी ढांचा, रोजगार और मानव विकास
  • समग्र विकास के लिए सामाजिक बुनियादी ढांचे जैसे शिक्षा,  स्‍वास्‍थ्‍य, आवास और संपर्क स्‍थापित करने में सार्वजनिक निवेश महत्‍वपूर्ण है।
  • जीडीपी के प्रतिशत के रूप में निम्‍न पर सरकारी व्‍यय (केन्‍द्र+राज्‍य)
  • स्‍वास्‍थ्‍य : 201819 में 1.5 प्रतिशत वृद्धि की कईजो 2014-15 में 1.2 प्रतिशत थी।
  • शिक्षा : इस अवधि के दौरान 2.8 प्रतिशत से बढ़ाकर 3 प्रतिश किया गया।
  • शिक्षा के मात्रात्‍मक और गुणात्‍मक संकेतकों में पर्याप्‍त प्रगति आएगीजिसमें नाम लिखवाने के सकल अनुपात, लिंग समानता सूचकांक और प्राइमरी स्‍कूल के स्‍तर पर पढ़ाई के नतीजों में सुधार दिखाई दिया।
  • कौशल विकास को इस प्रकार प्रोत्‍साहन :
  • वित्‍तीयन साधन के रूप में कौशल प्रमाण पत्रों की शुरूआतताकि युवा किसी भी मान्‍यता प्राप्‍त प्रशिक्षण संस्‍थान से प्रशिक्षण प्राप्‍त कर सकें।
  • पीपीपी मोड में; पाठ्यक्रम विकासृ उपकरण के प्रावधान, प्रशिक्षुओं के प्रशिक्षण आदि के लिए प्रशिक्षण संस्‍थान स्‍थापित करने में उद्योग को शामिल करना।
  • रेलवे कर्मियों और अर्द्ध सैनिकों को कठिन स्‍थानों में प्रशिक्षण देने के लिए मनाया जा सकता है।
  • मांग-आपूर्ति अंतरालों के आकलन के लिए स्‍थानीय निकायों को शामिल करके प्रशिक्षकों का डेटाबेस बनाकर, ग्रामीण युवकों के कौशल की मैपिंग कुछ अन्‍य प्रस्‍तावित पहलें हैं।
  • ईपीएफ के अनुसार औपचारिक क्षेत्र में मार्च 2019 में रोजगार सृजन उच्‍च स्‍तर पर 8.15 लाख थाजबकि फरवरी 2018 में यह 4.87 लाख था।
  • प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के अंतर्गत 2014 से करीब 1,90,000 किलोमीटर ग्रामीण सड़कों का निर्माण किया गया।
  • प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के अंतर्गत करीब 1.54 करोड़ घरों का निर्माण कार्य पूरा किया गया, जबकि 31 मार्च, 2019 तक मूलभूत सुविधओं के साथ एक करोड़ पक्‍के मकान बनाने का लक्ष्‍य था।
  • स्‍वस्‍थ भारत के लिए राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मिशन और आयुष्‍मान भारत योजना के जरिए पहुंच योग्‍य, सस्‍ती और गुणवत्‍तापूर्ण स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं प्रदान की जा रही हैं।
  • देश भर में वैकल्पिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं, राष्‍ट्रीय आयुष मिशन की शुरूआत की गई, ताकि सस्‍ती और आयुष स्‍वास्‍थ्‍य सेवा के बराबर सेवा दी जा सके, ताकि इन सेवाओं की पहुंच में सुधार हो और सस्‍ती सेवाएं मिलें।
बजटीय आवंटन पर वास्‍तविक व्‍यय को बढ़ाकर और पिछले चार वर्ष में बजट आवंटन बढ़ाकर रोजगार सृजन योजना मनरेगा को प्राथमिकता दी गई।


(साभार: pib.nic.in)

(('बिना प्रोफेशनल ट्रेनिंग के शेयर बाजार जरूर जुआ है'


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