DHFL के FD ग्राहकों को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं

देश के सर्वोच्च न्यायालय से  कर्ज तले दबी और कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया का सामना कर रही नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉरपोरेशन (DHFL) में FD करने वालों को कोई राहत नहीं मिली है। अदालत ने एफडी ग्राहकों की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें मांग की गई थी कि FD ग्राहकों के पैसे मिलने तक DHFL को कर्ज देने से रोका जाए। 

आपको बता दूं कि 5 जनवरी 2020 को कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स (CoC) ने DHFL के गिरते लोन बुक देखते हुए उसे महीने में 500 करोड़ रुपए तक दोबारा लोन बांटने की योजना की मंजूरी दी थी। 

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका की सुनवाई में कहा कि डीएचएफएल का मामला एनसीएलटी में चल रहा है और 30.12.2019 को ली गई लेनदारों की समिति (CoC) के निर्णय में दखलअंदाजी करना सही नहीं है। हालांकि, पीठ ने ये भी कहा कि डीएचएफएल में एफडी करने वालों की चिंता उसे भी है। 

शीर्ष अदालत ने 23 जनवरी को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।

डीएचएफएल में करीब एक लाख एफडी ग्राहक का पैसा फंसा हुआ है। उसमें से ज्यादातर बुजुर्ग निवेशक हैं और कई गंभीर रूप से बीमार हैं जिन्हें पैसों की सख्त जरूरत है। 

जमा धारकों ने अदालत से मांग की थी कि डीएचएफएल को दोबारा लोन बांटने की अनुमति देने से पहले एफडी ग्राहकों के पैसे का भुगतान कर दिया जाए चाहे वो परिपक्व हुई हो या नहीं हुई है। 

->क्या है DHFL घोटाला:
-देश की चौथी सबसे बड़ी हाउसिंग फाइनेंसर 
कंपनी रही है DHFL यानी दीवान हाउसिंग 
फाइनेंस कंपनी
-कथित अनियमितताओं को लेकर प्रवर्तन निदेशालय
(ED) की जांच का सामना कर रही है कंपनी 
-कंपनी पर ग्लोबल टेररिस्ट दाऊद इब्राहिम के 
सहयोगी रहे इकबाल मिर्ची से लिंक होने का आरोप

-कंपनी पर फंड डायवर्जन के आरोप
-कंपनी के प्रवर्तकों पर मुखौटा कंपनियों में 
पैसे लगाने का आरोप 
-पैसों की तंगी के कारण DHFL ने 21 मई को 
पब्लिक डिपॉजिट लेना, मौजूदा डिपॉजिट का 
रिन्यूअल करना और प्रीमैच्योर विदड्रॉल 
बंद कर दिया

-कंपनी पर कुल ₹83,900 करोड़ 
की देनदारी है
-कुल ₹83,900 करोड़ की देनदारी में 
से  7% हिस्सा यानी करीब ₹6,000 करोड़  
पब्लिक डिपॉजिट का है, डिबेंचर होल्डर्स का शेयर
37% है और 31% हिस्सा बैंकों के टर्म लोन के तौर 
पर हैं
-कुल देनदारी में बैंकों का ₹38,000 करोड़ का 
एक्सपोजर है

-20 नवंबर को RBI ने कंपनी का कामकाज 
चलाने के लिए DHFL बोर्ड की शक्तियां 
अपने हाथों में लेकर अपना प्रशासक बैठाया 
-RBI द्वारा नियुक्त प्रशासक DHFL के 
लिए समाधान पेश करना है 
-कंपनी संचालन से जुड़ी चिंताओं और बॉन्ड की 
देनदारी चुकाने में चूक के चलते RBI को ऐसा 
करना पड़ा  
-माना जा रहा है कि जल्द ही DHFL को 
दिवालिया घोषित करने की भी प्रक्रिया शुरू 
होगी

-RBI की कार्रवाई के बाद DHFL किसी को भी
 पेमेंट नहीं कर पाएगी
-कहने का मतलब हुआ कि DHFL में जमा कराए गए 
लगभग ₹6,000 करोड़ की  FD की वापसी खतरे में
पड़ सकती है  
-DHFL में एक लाख जमाकर्ताओं का FD यानी 
फिक्स्ड डिपॉजिट अकाउंट होने का अनुमान 
-फिक्स्ड डिपॉजिट होल्डर्स में अधिकांश सेवानिवृत
लोग, जिन्होंने अपने जीवन की बड़ी बचत
DHFL में निवेश की हुई है 


ऐसे में सवाल है कि क्या एफडी निवेशकों का पैसा वापस मिलेगा, क्योंकि 


>FD निवेशकों का पैसा क्या वापस मिलेगा?
-गैर बैंकिंग वित्तीय सेवा देने वाली DHFL 
पहली कंपनी है जो दिवालिया होने की तरफ 
बढ़ी है
-सबकी नजर इस बात पर कि  बड़ी संख्या में FD 
होल्डर्स वाली नॉन बैंकिंग फाइनेंस एंटिटी DHFL 
का डेट रिजॉल्यूशन IBC के तहत कैसे होता है
-IBC: The Insolvency and Bankruptcy 
Code (दिवाला और दिवालियापन संहिता)-यह देश का 
दिवालियापन कानून है जो दिवालिया और दिवालियापन के 
लिए एकल कानून बनाकर मौजूदा ढांचे को मजबूत करने 
का प्रयास करता है 

-DHFL का केस IBC के तहत नेशनल 
कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल के पास भेजा जाएगा
-DHFL के दिवालिया होने की कार्रवाई 
नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT)के 
आदेश पर शुरू हो जाएगी
-इंसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रोफेशन (IRP) 
को ट्रिब्यूनल नियुक्त करेगा

-IRP की नियुक्ति के बाद कमेटी 
ऑफ क्रेडिटर्स (CoC) बनेगी
-CoC में बैंक के एक्जिक्युटिव से
लेकर डिबेंचर होल्डर, ईसीबी
होल्डर भी शामिल हो सकते हैं
-CoC सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक 
कार्रवाई करती है
-CoC में कंपनी की संपत्तियों को चिन्हित कर
उनकी बिक्री से मिलने वाले फंड का आकलन
किया जाता है

-IBC की अब तक की प्रक्रिया के हिसाब 
से इस तरह की कंपनियों की संपत्ति बेचने के 
बाद मिली रकम से सबसे पहले सिक्योर क्रेडिटर
जैसे कर्ज देने वाले संस्थान, डिबेंचर धारक,
और कामकाजी लोन देने वाले को पैसा 
चुकाया जाता है
-फिक्स्ड डिपाजिट करने वाले निवेश वास्तव
 में अनसिक्योर्ड क्रेडिटर की कैटेगरी में आते हैं
-कहने का मतलब हुआ कि FD के रूप में 
निवेश करने वाले लोगों को तो सबसे 
बाद में पैसा मिलेगा

-रेजॉलुशन प्रोसेस पर नजर रखनेवाली 
कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स (CoC) के पास 
प्लान तैयार करने के लिए 180 दिन का समय 
होगा
-अगर CoC इस समयसीमा के भीतर 
कोई प्लान बनाने में नाकामयाब रहता है 
तो लेंडर्स को इसके लिए 20% की अतिरिक्त 
प्रविजनिंग करनी पड़ेगी
-अगर मामला 365 दिन तक भी नहीं निपटता है 
तो प्रविजनिंग का लेवल बढ़कर 35% तक पहुंच 
जाएगा


-NCLT में RBI की तरफ से एप्लिकेशन दिए 
जाने पर अंतरिम मोरेटोरियम भी लागू हो जाएगा 
जिससे डिपॉजिट होल्डर्स के पेमेंट तक पर रोक 
लग जाएगी
- डिपॉजिट होल्डर्स सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं, जहां से 
उन्हें कुछ राहत मिल सकती है
-DHFL के एफडी होल्डर्स कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स 
का हिस्सा बनने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पास 
आवेदन कर सकते हैं

-JP Infra केस की तरह ही DHFL मामले में 
भी डिपॉजिटर्स कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स (CoC)
का हिस्सा बनाए जाने की मांग कर सकते हैं
-JP Infra केस में सुप्रीम कोर्ट ने होमबायर्स 
को फाइनेंशियल क्रेडिटर्स के बराबर माना था


->भारत में मौजूद कुछ महत्वपूर्ण डेट इंस्ट्रूमेंट (कर्ज पर आधारित निवेश साधन या प्रोडक्ट):
-बांड   (Bonds)
-जमा  प्रमाणपत्र (Certificates Of Deposit) 
-वाणिज्यिक पत्र (Commercial Papers)
-डिबेंचर   (Debentures)
-एफडी    (FD-Fixed Deposit)
-जी-सेक (सरकारी प्रतिभूति) (Government Securities-सरकारी प्रतिभूतियां)

-राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (एनएससी) (National Savings Certificate-NSC)





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