ना ही निवेश, ना ही मांग, इकोनॉमी में कैसे आएगी जान?

इकोनॉमी को लेकर सरकार की तरफ से कोई अच्छी तस्वीर उभर कर सामने नहीं आ रही है। सरकारी एडवांस अनुमान में बताया गया है कि वित्त वर्ष 2019-20 में जीडीपी में कुल निवेश की हिस्सेदारी अब तक के सबसे निचले स्तर पर रहने वाली है। इस अनुमान में यह भी कहा गया है कि घरेलू निवेश गतिविधियों की ग्रोथ 17 साल में सबसे कम रहने वाली है।

सरकार की ये रिपोर्ट उस वक्त आई है जब प्रधानमंत्री मोदी भारतीय उद्योगों से खर्च बढ़ाने की अपील कर रहे हैं। इस एडवांस अनुमान के  सामने आने के बाद अर्थशास्त्रियों का कहना है कि कुल घरेलू मांग से इकोनॉमी में सुधार के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं और निवेश गतिविधियों से इकोनॉमी में सुधार आने में कुछ लंबा वक्त लग सकता है। 

केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (CSO) इकोनॉमी के संबंध में एडवांस अनुमान संबंधी रिपोर्ट तैयार की है। उसने इस रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2019-20 में निवेश का संकेत देने वाले Gross fixed capital formation (GFCF) में एक प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया है जो कि 2018-19 की 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी से काफी कम है। साथ ही ये भी कहा गया है कि वित्त वर्ष 2019-20 की दूसरी छमाही में GFCF की ग्रोथ में 0.5 प्रतिशत की कमी आ सकती है। इससे पहले वित्त वर्ष 2002-03 में GFCF की ग्रोथ में 0.72 प्रतिशत की कमी आई थी। 

CSO के इस पूर्वानुमान के अनुसार कुल जीडीपी में निवेश का हिस्सा इस दौरान घटकर 28.1 प्रतिशत रहने वाला है। वित्त वर्ष 2002-03 में जीडीपी में निवेश का हिस्सा 28.3 प्रतिशत था। 

इस पूर्वानुमान के संबंध में जानकारों का कहना है कि निवेशकों में आत्मविश्वास गायब है और इंफ्रास्ट्रक्चर पर सरकारी खर्चों से ही इकोनॉमी में सुधार की उम्मीद की जा सकती है।  उनके अनुसार निवेशक जब निवेश करता है तो रिटर्न की उम्मीद करता है लेकिन मौजूदा माहौल में निवेशकों को अपने निवेश पर रिटर्न का भरोसा नहीं हो पा रहा है, जो कि गंभीर समस्या है। जानकारों के अनुसार साथ ही दिन ब दिन इकोनॉमी में मांग कम होती जा रही है, ऐसे में कोई भी अपने निवेश पर रिटर्न की उम्मीद नहीं कर सकता है। 
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CSO के पूर्वानुमान में ये भी कहा गया है कि वित्त वर्ष 2019-20 में  मांग का संकेत देने वाले सूचक Private final consumption expenditure (PFCE) की ग्रोथ घटकर 5.8 प्रतिशत रहने वाली है जो कि वित्त वर्ष 2018-19 में 8.1 प्रतिशत थी। जीडीपी में मांग की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से ज्यादा (57.4 प्रतिशत) रहती है। इस तरह मांग में कमी का सीधा मतलब हुआ कि देश में स्लोडाउन गहराती जा रही है। जानकारों का कहना है कि सिर्फ फेस्टिव मांग में बढ़ोतरी से कुल मांग की गणना करना बेईमानी है। 

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