केन्द्र ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता में संशोधन में मकान खरीदारों के हितों की रक्षा को उचित महत्व दिया गया है।
केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को ही इस संहिता में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दी है जिसमें मुकदमा और अन्य न्यायिक प्रक्रिया सहित कार्पोरेट समाधान प्रक्रिया 330 दिन में पूरी करने और इसे समाधान योजना को सभी दावेदारों के लिये बाध्यकारी बनाने का प्रावधान है।
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति दिनेश महेश्वरी की पीठ को केन्द्र ने जेपी इंफ्राटेक लि. के खरीदारों के मामले की सुनवाई के दौरान यह जानकारी दी। सरकार ने कहा कि यह मामला इस समय राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण में लंबित हैं और इस पर 22 जुलाई को सुनवाई होगी।
पीठ ने इसके बाद इस मामले को एक अगस्त के लिये सूचीबद्ध कर दिया।
शीर्ष अदालत ने पिछले सप्ताह ही कहा था कि अगर मकान खरीदारों की समस्याओं का समाधान नहीं होता है तो वह जेपी इंफ्रा लि मामले में 21,000 से अधिक मकान खरीदारों के हितों की रक्षा के लिये संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रदत्त अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकती है।
केन्द्र ने न्यायालय से कहा कि वह मकान खरीदारों की समस्याओं के समाधान के प्रस्ताव पर काम कर रही है और शीर्ष अदालत के निर्देशों के अनुरूप यूनिटेक के मकान खरीदारों से संबंधित लंबित मामले में 23 जुलाई को इसे पेश करेगी।
मामले में घर खरीदारों की तरफ से पेश अधिवक्ता ने कहा था कि जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड को परिसमापन के लिये भेजा जा सकता है जिससे की उनके हितों को नुकसान पहुंचेगा।
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