भारतीय रिज़र्व बैंक बैंकों में ग्राहकों की शिकायतों के प्रति रवैये की जांच करने के लिए बैंक शाखाओं की गुप्त जांच करेगा। वह इस बात की भी समीक्षा करेगा कि किस प्रकार बैंकों ने ग्राहक के अधिकारों के चार्टर को लागू किया है।
रिज़र्व बैंक ने ग्राहकों के अधिकारों संबंधी चार्टर पब्लिक डोमेन में लगाया था तथा बैंकों को सूचित किया कि वे उसे अपने बोर्ड का अनुमोदन प्राप्त करने के बाद अपनाएं और लागू करें। गवर्नर ने बैंकों को समझाया कि शिकायत निवारण तंत्र बैंकों के कारोबार परिचालनों का एक अंग हो। उन्होंने यह भी बताया कि शिकायतें विनियमन व पर्यवेक्षण प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण इनपुट भी होती हैं।
रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन ने बैंकों से आग्रह किया, “बैंकिंग सेवाओं तथा शिकायत निवारण व्यवस्था – शिकायत निवारण संबंधी बैंकों के आंतरिक तंत्र के साथ-साथ रिज़र्व बैंक की बैंकिंग लोकपाल योजना - तक ग्राहकों की पहुंच होनी चाहिए जिससे वे बैंकिंग प्रणाली से ‘वंचित’ न रह जाएं।” उन्होंने कहा कि वेबसाइटें, मोबाइल फोन, मिस्ड कॉल, भौतिक स्थल और संग्रह केंद्र शिकायत निवारण के लिए जरिया बन सकते हैं। उच्च स्तरीय ऑटोमेशन न केवल कभी भी कहीं भी शिकायत निवारण व्यवस्था तक ग्राहकों की पहुंच बनाने में मददगार होगा, बल्कि इससे शिकायत निवारण की लागत में कमी भी आ सकती है।
ग्राहक जागरूकता, ग्राहक संरक्षण तथा ग्राहक साक्षरता के महत्व को समझाते हुए गवर्नर ने बताया कि आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा आज भी बैंक में प्रवेश करने में सहजता महसूस नहीं कर रहा है। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों से ग्राहक शिकायतें अल्प मात्रा में प्राप्त हुई हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि जहां तक ग्राहक शिकायत निवारण प्रक्रिया का सवाल है उसका झुकाव शहरी इलाकों के प्रति अधिक है और नए आगंतुकों के बीच जागरूकता का अभाव है। उन्होंने बैंकों से आग्रह किया, “हमारे लिए आवश्यक है कि नए आगंतुक न केवल बैंकिंग सेवाओं के बारे में, बल्कि शिकायतों के बारे में भी पूछने में सहजता महसूस करें”।
बैंकों द्वारा तीसरी पार्टी के उत्पादों के दुर्विक्रय (मिससेलिंग) की शिकायतों के संदर्भ में बताते हुए गवर्नर ने कहा कि बैंकों द्वारा तीसरी पार्टी के उत्पादों की बिक्री के संबंध में रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए गुप्त मुआइने तथा कुछ शिक्षाविदों/उपभोक्ता कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन से यह पता चला है कि बैंकों ने ऐसे उत्पादों, खास तौर पर बीमा उत्पादों का दुर्विक्रय किया है। इस संबंध में समुचित उद्योग प्रथा तैयार करने की दृष्टि से इन निष्कर्षों को भारतीय बैंक संघ के साथ साझा किया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि रिज़र्व बैंक वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (एफएसडीसी) जैसे विभिन्न मंचों के माध्यम से कई विनियामकों के संयुक्त तत्वावधान में ग्राहक शिकायतों के निवारण के उपायों पर विचार कर रहा है। गवर्नर ने बताया कि जानकारी नहीं रखने वाला ग्राहक वैसे विकल्पों को चुन लेता है जो इष्टतम नहीं हों तथा उन्होंने यह भी कहा कि यदि बैंक अपने उत्पादों का दुर्विक्रय करना जारी रखें तो भारतीय रिज़र्व बैंक उनके विरुद्ध विनियामक कार्रवाई करने पर विचार कर सकता है।
गवर्नर ने बैंकों और बैंकिंग लोकपालों से यह आग्रह किया कि संदेह के मामले में उन्हें अधिकार का संतुलन ग्राहकों के पक्ष में करना चाहिए। उन्होंने यह बताया कि न्यायालयों ने ऐसे मामलों का निर्णय ग्राहकों के पक्ष में सुनाया है जब विनियमन को लेकर कोई संदेह पैदा हो जाता हो।
एस.एस. मूंदड़ा, उप गवर्नर, रिज़र्व बैंक ने बैंक विनियमन के चार मूलभूत सिद्धांतों पर प्रकाश डाला, जो हैं विविधीकृत परिवेश तैयार करना, ग्राहकों को उपलब्ध विकल्पों में वृद्धि करना, वित्तीय समावेशन तथा ऐसी बैंकिंग जो नैतिक रूप से सही हो। रिज़र्व बैंक ने पिछले दो वर्षों में कई ग्राहक-केंद्रित विनियामकीय पहलें की हैं। अधिकारों के चार्टर की शुरुआत उनमें से एक है। उन्होंने बताया कि प्रौद्योगिकी के तेजी से हो रहे विकास के सहारे खाता संख्या सुवाह्यता (पोर्टबिलिटी) को मूर्त रूप देना संभव है। इससे बैंक ग्राहक सशक्त बन सकेगा कि अमुक बैंक की सेवाओं की गुणवत्ता से वह संतुष्ट नहीं है तो उस बैंक को छोड़ सकता/सकती है।
मूंदड़ा ने यह बताया कि रिज़र्व बैंक अपनी बैंकिंग लोकपाल योजना की समीक्षा कर रहा है ताकि उसके कवरेज क्षेत्र में विस्तार किया जा सके तथा ग्राहक शिकायत निवारण प्रक्रिया की दृष्टि से शहरी क्षेत्रों के प्रति उसकी प्रवणता को कम किया जा सके। उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय बैंक संघ कतिपय सामान्य बैंकिंग सेवाओं के संबंध में प्रयुक्त मानकीकृत फॉर्मों को शीघ्र ही परिचालित करेगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ग्राहक सेवा केवल वाणी तक नहीं, बल्कि दिल से हो तथा उन्होंने कहा, “ग्राहक सेवा बैंकों की कारोबारी आवश्यकता है और यह कोई सामाजिक सेवा नहीं।” उन्होंने बैंकरों को चेताया कि यदि वे ग्राहक सेवा को गंभीरता से नहीं लेंगे तो प्रतिस्पर्धा उसे सुनिश्चित कर देगी।
रिज़र्व बैंक ने ग्राहकों के अधिकारों संबंधी चार्टर पब्लिक डोमेन में लगाया था तथा बैंकों को सूचित किया कि वे उसे अपने बोर्ड का अनुमोदन प्राप्त करने के बाद अपनाएं और लागू करें। गवर्नर ने बैंकों को समझाया कि शिकायत निवारण तंत्र बैंकों के कारोबार परिचालनों का एक अंग हो। उन्होंने यह भी बताया कि शिकायतें विनियमन व पर्यवेक्षण प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण इनपुट भी होती हैं।
रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन ने बैंकों से आग्रह किया, “बैंकिंग सेवाओं तथा शिकायत निवारण व्यवस्था – शिकायत निवारण संबंधी बैंकों के आंतरिक तंत्र के साथ-साथ रिज़र्व बैंक की बैंकिंग लोकपाल योजना - तक ग्राहकों की पहुंच होनी चाहिए जिससे वे बैंकिंग प्रणाली से ‘वंचित’ न रह जाएं।” उन्होंने कहा कि वेबसाइटें, मोबाइल फोन, मिस्ड कॉल, भौतिक स्थल और संग्रह केंद्र शिकायत निवारण के लिए जरिया बन सकते हैं। उच्च स्तरीय ऑटोमेशन न केवल कभी भी कहीं भी शिकायत निवारण व्यवस्था तक ग्राहकों की पहुंच बनाने में मददगार होगा, बल्कि इससे शिकायत निवारण की लागत में कमी भी आ सकती है।
ग्राहक जागरूकता, ग्राहक संरक्षण तथा ग्राहक साक्षरता के महत्व को समझाते हुए गवर्नर ने बताया कि आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा आज भी बैंक में प्रवेश करने में सहजता महसूस नहीं कर रहा है। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों से ग्राहक शिकायतें अल्प मात्रा में प्राप्त हुई हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि जहां तक ग्राहक शिकायत निवारण प्रक्रिया का सवाल है उसका झुकाव शहरी इलाकों के प्रति अधिक है और नए आगंतुकों के बीच जागरूकता का अभाव है। उन्होंने बैंकों से आग्रह किया, “हमारे लिए आवश्यक है कि नए आगंतुक न केवल बैंकिंग सेवाओं के बारे में, बल्कि शिकायतों के बारे में भी पूछने में सहजता महसूस करें”।
बैंकों द्वारा तीसरी पार्टी के उत्पादों के दुर्विक्रय (मिससेलिंग) की शिकायतों के संदर्भ में बताते हुए गवर्नर ने कहा कि बैंकों द्वारा तीसरी पार्टी के उत्पादों की बिक्री के संबंध में रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए गुप्त मुआइने तथा कुछ शिक्षाविदों/उपभोक्ता कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन से यह पता चला है कि बैंकों ने ऐसे उत्पादों, खास तौर पर बीमा उत्पादों का दुर्विक्रय किया है। इस संबंध में समुचित उद्योग प्रथा तैयार करने की दृष्टि से इन निष्कर्षों को भारतीय बैंक संघ के साथ साझा किया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि रिज़र्व बैंक वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (एफएसडीसी) जैसे विभिन्न मंचों के माध्यम से कई विनियामकों के संयुक्त तत्वावधान में ग्राहक शिकायतों के निवारण के उपायों पर विचार कर रहा है। गवर्नर ने बताया कि जानकारी नहीं रखने वाला ग्राहक वैसे विकल्पों को चुन लेता है जो इष्टतम नहीं हों तथा उन्होंने यह भी कहा कि यदि बैंक अपने उत्पादों का दुर्विक्रय करना जारी रखें तो भारतीय रिज़र्व बैंक उनके विरुद्ध विनियामक कार्रवाई करने पर विचार कर सकता है।
गवर्नर ने बैंकों और बैंकिंग लोकपालों से यह आग्रह किया कि संदेह के मामले में उन्हें अधिकार का संतुलन ग्राहकों के पक्ष में करना चाहिए। उन्होंने यह बताया कि न्यायालयों ने ऐसे मामलों का निर्णय ग्राहकों के पक्ष में सुनाया है जब विनियमन को लेकर कोई संदेह पैदा हो जाता हो।
एस.एस. मूंदड़ा, उप गवर्नर, रिज़र्व बैंक ने बैंक विनियमन के चार मूलभूत सिद्धांतों पर प्रकाश डाला, जो हैं विविधीकृत परिवेश तैयार करना, ग्राहकों को उपलब्ध विकल्पों में वृद्धि करना, वित्तीय समावेशन तथा ऐसी बैंकिंग जो नैतिक रूप से सही हो। रिज़र्व बैंक ने पिछले दो वर्षों में कई ग्राहक-केंद्रित विनियामकीय पहलें की हैं। अधिकारों के चार्टर की शुरुआत उनमें से एक है। उन्होंने बताया कि प्रौद्योगिकी के तेजी से हो रहे विकास के सहारे खाता संख्या सुवाह्यता (पोर्टबिलिटी) को मूर्त रूप देना संभव है। इससे बैंक ग्राहक सशक्त बन सकेगा कि अमुक बैंक की सेवाओं की गुणवत्ता से वह संतुष्ट नहीं है तो उस बैंक को छोड़ सकता/सकती है।
मूंदड़ा ने यह बताया कि रिज़र्व बैंक अपनी बैंकिंग लोकपाल योजना की समीक्षा कर रहा है ताकि उसके कवरेज क्षेत्र में विस्तार किया जा सके तथा ग्राहक शिकायत निवारण प्रक्रिया की दृष्टि से शहरी क्षेत्रों के प्रति उसकी प्रवणता को कम किया जा सके। उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय बैंक संघ कतिपय सामान्य बैंकिंग सेवाओं के संबंध में प्रयुक्त मानकीकृत फॉर्मों को शीघ्र ही परिचालित करेगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ग्राहक सेवा केवल वाणी तक नहीं, बल्कि दिल से हो तथा उन्होंने कहा, “ग्राहक सेवा बैंकों की कारोबारी आवश्यकता है और यह कोई सामाजिक सेवा नहीं।” उन्होंने बैंकरों को चेताया कि यदि वे ग्राहक सेवा को गंभीरता से नहीं लेंगे तो प्रतिस्पर्धा उसे सुनिश्चित कर देगी।
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