दुनिया ग्रीस कर्ज संकट और अमेरिका में फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर में संभावित बढ़ोतरी से उत्पन्न होने वाली स्थिति से निपटने की कोशिश ही कर रही है कि इसी बीच चीन ने अपनी करेंसी युनान का अवमूल्यन कर सुधार की रफ्तार पकड़ने के लिए बेचैन ग्लोबल इकोनॉमी के सामने नई मुसीबत खड़ी कर दी।
इन दिनों युआन फोकस में है। हाल ही में युआन के अवमूल्यन से दुनिया भर की इकोनॉमी कंपकंपी छूट गई। आखिर, क्या है पूरा मामला और ग्लोबल स्तर पर इससे डर क्यों पैदा हो गया है, भारत के लिए इसके क्या मायने हैं।
क्या है युआन:
हर देश की अलग-अलग करेंसी होती है जो अलग-अलग नामों से जानी जाती है। दुनिया की सबसे ताकतवर करेंसी है डॉलर जो कि अमेरिकी की प्रमुख करेंसी है। जापान की करेंसी है येन, ब्रिटेन की करेंसी है पौंड-स्टरलिंग, यूरो जोन की करेंसी है यूरो, भारत की करेंसी है रुपया, फ्रांस की करेंसी है फ्रैंक, उसी तरह से चीन की प्रमुख करेंसी है युआन।
अवमूल्यन या डीवैल्यूएशन का मतलब:
किसी भी करेंसी की कीमत या विनिमय दर दो तरीके से तय होती है। एक बाजार भाव से और दूसरा उस देश की सरकार या केंद्रीय बैंक द्वारा उसकी कीमत कम करके या बढ़ाकर। जब किसी देश की सरकार या उस देश का केंद्रीय बैंक दुनिया के प्रमुख करेंसी के मुकाबले अपनी करेंसी की कीमत जानबुझकर कम करते हैं तो वो अवमूल्यन कहलाता है। अपनी करेंसी का अवमूल्यन करने वाला चीन कोई पहला देश नहीं है। इससे पहले भी कई देश अपनी करेंसी का अवमूल्यन करते रहे हैं।
आमतौर पर कोई भी देश अपने एक्सपोर्ट को सस्ता बनाने के इरादे से अपनी करेंसी का अवमूल्यन करता है ताकि ग्लोबल मार्केट में उसके प्रतिद्धंद्वियों के मुकाबले उसका सामान सस्ता बिके और मांग अधिक रहे।
-चीन ने क्यों किया अवमूल्यन?
चीन ने लगातार दो दिन 11 (मंगलवार), 12 (बुधवार) अगस्त को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपनी करेंसी युआन का करीब 3.5% तक अवमूल्यन किया। 11 अगस्त को चीन के केंद्रीय बैंक 'पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना' ने अपनी राष्ट्रीय मुद्रा युआन का अवमूल्यन कर इसे डॉलर के मुकाबले लगभग तीन साल के सबसे निचले स्तर पर ला दिया है। बैंक ने एक डॉलर की कीमत 6.22298 युआन तय की जो इससे पहले 6.1162 युआन थी।
बैंक के मताबिक युआन के मूल्य में इस कमी का मकसद विनिमय दर को और अधिक 'बाज़ार के मुताबिक़' बनाना है। बता दें कि पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना एक आधिकारिक मिडप्वाइंट के जरिये इस दर को नियंत्रित करती है जिससे किसी भी निश्चित दिन में कारोबार दो प्रतिशत उठ या गिर सकता है।
क्या रही वजह:
-दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन के एक्सपोर्ट में जुलाई के दौरान 8.3 % की गिरावट आई।
-जानकारों के मुताबिक मुताबिक हाल के महीनों में डॉलर के मुकाबले युआन मजबूत हुआ है जिससे चीन का एक्सपोर्ट महंगा हो गया और चीन की इंडस्ट्री में लोगों की नौकरियां जाने का खतरा पैदा होने लगा।
अवमूल्यन का विरोध क्यों?
दुनिया भर में चीन के इस कदम का विरोध हो रहा है। चीन के इस कदम के बाद भारतीय करेंसी रुपया भी दो साल के निचले स्तर पर पहुंच गया।
उधर, अमरीका और दूसरे देशों की सरकारों को शिकायत रही है कि चीन सरकार युआन के मूल्य को जानबूझ कर कम रखती है ताकि उसे एक्सपोर्ट में फायदा हो, लेकिन इससे विदेशी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ता है। अमरीका समेत पश्चिम देशों की मांग रही है कि चीन युआन की विनिमय दर बाज़ार से तय होने दे।
भारत के लिए कमजोर युआन के मायने:
कमजोर युआन भारत के लिए कुछ फायदेमंद भी है और कुछ नुकसानदेह भी।
-युआन कमजोर होने से चीन से आने वाले इलेक्ट्रॉनिक सामान मसलन, मोबाइल, लैपटॉप इसके अलावा खिलौने भारत में और सस्ते हो जाएंगे। इलेक्ट्रॉनिक सामान पर ऑनलाइन डिस्काउंट और ज्यादा मिल सकता है।
-कमजोर युआन घरेलू मेटल, बैंकिंग, टायर, टेक्सटाइल, ऑटो सेक्टर पर निगेटिव असर डाल सकती है। चीन से सस्ता स्टील आने की वजह से घरेलू कंपनियों को तगड़ा झटका लग सकता है।
-बैंकों खासकर सरकारी बैंकों को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। स्टील और मेटल कंपनियों पर इन बैंकों का करीब 3 लाख करोड़ रुपए का कर्ज बकाया है। घरेलू और ग्लोबल मार्केट में मंदी की वजह से पहले से ही इन कंपनियों की हालत खराब है और अब अगर चीन से सस्ता प्रोडक्ट आने लगेगा और इनकी हालत और
पतली हो जाएगी, जो बैकों की बैलेंश सीट पर असर डालेगा।
-घरेलू टायर कंपनियों को भी कमजोर युआन भारी टक्कर देगी। अभी भी ही चीन की टायर कंपनियां भारतीय कंपनियों से 20-22% सस्ता प्रोडक्ट बेच रही हैं। वित्त वर्ष 2015 में चीन से ट्रक और रेडियल टायर्स (TBR) का इंपोर्ट करीब 60% बढ़ा।
-टेक्सटाइल सेक्टर में भारतीय कंपनियों को चीन की कंपनियां काफी टक्कर दे रही हैं। युआन के कमजोर होने से भारतीय कंपनियों के मार्जिन पर असर पड़ेगा। युआन कमजोर होने से भारत में चीन का सामान जहां सस्ता हो जाएगा, वहीं भारत से चीन का एक्सपोर्ट महंगा हो जाएगा।
- ग्लोबल मार्केट में भारत चीन के साथ हैंडीक्राफ्ट्स, लेदर आइटम, टेक्सटाइल के अलावा जेम्स और जूलरी में चीन के साथ कड़ी प्रतिस्पर्द्धा करता है लेकिन अब युआन कमजोर हो जाने से चीन का सामान ज्यादा सस्ता हो जाएगा। वैसे भी पिछले सात महीनों से बांग्ला देश जैसे देशों से कड़ी टक्कर की वजह से भारत की एक्सपोर्ट मांग में कमी देखी जा रही है।
-चीन से कच्चा माल मंगाने वाली कंपनियों मसलन, ऑटो मैन्युफैक्चर्रस, कंज्युमर ड्यूरेूबल्स कंपनियों को कमजोर युआन फायदा पहुंचाएगी।
-कमजोर युआन से चीन के रबर और स्टील के अलावा टाइल्स मैन्युफैक्चरिंग, पावर इक्विपमेंट कंपनियों को भी चीन से कड़ी टक्कर मिलने की संभावना है।
किन कंपनियों की बैलेंश सीट पर होगा ज्यादा असर:
सरकारी बैंक, मेटल कंपनियां, JK टायर्स, अपोलो टायर्स, सिएट (Ceat),MRF, BHEL, L&T, सीमेंस (Siemens), थर्मैक्स ( Thermax) बगैरह।
हालांकि भारत सरकार ने चीन के सस्ते इंपोर्ट से निपटने के लिए चुनिंदा सामानों पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी है।
इन दिनों युआन फोकस में है। हाल ही में युआन के अवमूल्यन से दुनिया भर की इकोनॉमी कंपकंपी छूट गई। आखिर, क्या है पूरा मामला और ग्लोबल स्तर पर इससे डर क्यों पैदा हो गया है, भारत के लिए इसके क्या मायने हैं।
क्या है युआन:
हर देश की अलग-अलग करेंसी होती है जो अलग-अलग नामों से जानी जाती है। दुनिया की सबसे ताकतवर करेंसी है डॉलर जो कि अमेरिकी की प्रमुख करेंसी है। जापान की करेंसी है येन, ब्रिटेन की करेंसी है पौंड-स्टरलिंग, यूरो जोन की करेंसी है यूरो, भारत की करेंसी है रुपया, फ्रांस की करेंसी है फ्रैंक, उसी तरह से चीन की प्रमुख करेंसी है युआन।
अवमूल्यन या डीवैल्यूएशन का मतलब:
किसी भी करेंसी की कीमत या विनिमय दर दो तरीके से तय होती है। एक बाजार भाव से और दूसरा उस देश की सरकार या केंद्रीय बैंक द्वारा उसकी कीमत कम करके या बढ़ाकर। जब किसी देश की सरकार या उस देश का केंद्रीय बैंक दुनिया के प्रमुख करेंसी के मुकाबले अपनी करेंसी की कीमत जानबुझकर कम करते हैं तो वो अवमूल्यन कहलाता है। अपनी करेंसी का अवमूल्यन करने वाला चीन कोई पहला देश नहीं है। इससे पहले भी कई देश अपनी करेंसी का अवमूल्यन करते रहे हैं।
आमतौर पर कोई भी देश अपने एक्सपोर्ट को सस्ता बनाने के इरादे से अपनी करेंसी का अवमूल्यन करता है ताकि ग्लोबल मार्केट में उसके प्रतिद्धंद्वियों के मुकाबले उसका सामान सस्ता बिके और मांग अधिक रहे।
-चीन ने क्यों किया अवमूल्यन?
चीन ने लगातार दो दिन 11 (मंगलवार), 12 (बुधवार) अगस्त को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपनी करेंसी युआन का करीब 3.5% तक अवमूल्यन किया। 11 अगस्त को चीन के केंद्रीय बैंक 'पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना' ने अपनी राष्ट्रीय मुद्रा युआन का अवमूल्यन कर इसे डॉलर के मुकाबले लगभग तीन साल के सबसे निचले स्तर पर ला दिया है। बैंक ने एक डॉलर की कीमत 6.22298 युआन तय की जो इससे पहले 6.1162 युआन थी।
बैंक के मताबिक युआन के मूल्य में इस कमी का मकसद विनिमय दर को और अधिक 'बाज़ार के मुताबिक़' बनाना है। बता दें कि पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना एक आधिकारिक मिडप्वाइंट के जरिये इस दर को नियंत्रित करती है जिससे किसी भी निश्चित दिन में कारोबार दो प्रतिशत उठ या गिर सकता है।
क्या रही वजह:
-दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन के एक्सपोर्ट में जुलाई के दौरान 8.3 % की गिरावट आई।
-जानकारों के मुताबिक मुताबिक हाल के महीनों में डॉलर के मुकाबले युआन मजबूत हुआ है जिससे चीन का एक्सपोर्ट महंगा हो गया और चीन की इंडस्ट्री में लोगों की नौकरियां जाने का खतरा पैदा होने लगा।
अवमूल्यन का विरोध क्यों?
दुनिया भर में चीन के इस कदम का विरोध हो रहा है। चीन के इस कदम के बाद भारतीय करेंसी रुपया भी दो साल के निचले स्तर पर पहुंच गया।
उधर, अमरीका और दूसरे देशों की सरकारों को शिकायत रही है कि चीन सरकार युआन के मूल्य को जानबूझ कर कम रखती है ताकि उसे एक्सपोर्ट में फायदा हो, लेकिन इससे विदेशी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ता है। अमरीका समेत पश्चिम देशों की मांग रही है कि चीन युआन की विनिमय दर बाज़ार से तय होने दे।
भारत के लिए कमजोर युआन के मायने:
कमजोर युआन भारत के लिए कुछ फायदेमंद भी है और कुछ नुकसानदेह भी।
-युआन कमजोर होने से चीन से आने वाले इलेक्ट्रॉनिक सामान मसलन, मोबाइल, लैपटॉप इसके अलावा खिलौने भारत में और सस्ते हो जाएंगे। इलेक्ट्रॉनिक सामान पर ऑनलाइन डिस्काउंट और ज्यादा मिल सकता है।
-कमजोर युआन घरेलू मेटल, बैंकिंग, टायर, टेक्सटाइल, ऑटो सेक्टर पर निगेटिव असर डाल सकती है। चीन से सस्ता स्टील आने की वजह से घरेलू कंपनियों को तगड़ा झटका लग सकता है।
-बैंकों खासकर सरकारी बैंकों को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। स्टील और मेटल कंपनियों पर इन बैंकों का करीब 3 लाख करोड़ रुपए का कर्ज बकाया है। घरेलू और ग्लोबल मार्केट में मंदी की वजह से पहले से ही इन कंपनियों की हालत खराब है और अब अगर चीन से सस्ता प्रोडक्ट आने लगेगा और इनकी हालत और
पतली हो जाएगी, जो बैकों की बैलेंश सीट पर असर डालेगा।
-घरेलू टायर कंपनियों को भी कमजोर युआन भारी टक्कर देगी। अभी भी ही चीन की टायर कंपनियां भारतीय कंपनियों से 20-22% सस्ता प्रोडक्ट बेच रही हैं। वित्त वर्ष 2015 में चीन से ट्रक और रेडियल टायर्स (TBR) का इंपोर्ट करीब 60% बढ़ा।
-टेक्सटाइल सेक्टर में भारतीय कंपनियों को चीन की कंपनियां काफी टक्कर दे रही हैं। युआन के कमजोर होने से भारतीय कंपनियों के मार्जिन पर असर पड़ेगा। युआन कमजोर होने से भारत में चीन का सामान जहां सस्ता हो जाएगा, वहीं भारत से चीन का एक्सपोर्ट महंगा हो जाएगा।
- ग्लोबल मार्केट में भारत चीन के साथ हैंडीक्राफ्ट्स, लेदर आइटम, टेक्सटाइल के अलावा जेम्स और जूलरी में चीन के साथ कड़ी प्रतिस्पर्द्धा करता है लेकिन अब युआन कमजोर हो जाने से चीन का सामान ज्यादा सस्ता हो जाएगा। वैसे भी पिछले सात महीनों से बांग्ला देश जैसे देशों से कड़ी टक्कर की वजह से भारत की एक्सपोर्ट मांग में कमी देखी जा रही है।
-चीन से कच्चा माल मंगाने वाली कंपनियों मसलन, ऑटो मैन्युफैक्चर्रस, कंज्युमर ड्यूरेूबल्स कंपनियों को कमजोर युआन फायदा पहुंचाएगी।
-कमजोर युआन से चीन के रबर और स्टील के अलावा टाइल्स मैन्युफैक्चरिंग, पावर इक्विपमेंट कंपनियों को भी चीन से कड़ी टक्कर मिलने की संभावना है।
किन कंपनियों की बैलेंश सीट पर होगा ज्यादा असर:
सरकारी बैंक, मेटल कंपनियां, JK टायर्स, अपोलो टायर्स, सिएट (Ceat),MRF, BHEL, L&T, सीमेंस (Siemens), थर्मैक्स ( Thermax) बगैरह।
हालांकि भारत सरकार ने चीन के सस्ते इंपोर्ट से निपटने के लिए चुनिंदा सामानों पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी है।
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