ग्राहकों के साथ नाइंसाफी करते हैं भारतीय बैंक!

अगर आपने किसी बैंक से लोन लिया हो और साथ ही बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट्स में पैसा लगाते हों, तो एक बात जरूर गौर कीजिएगा। रिजर्व बैंक जब ब्याज दरों में बदलाव करता है तो बैंक उसका फायदा पहले खुद उठाते हैं और फिर ग्राहकों को देने की सोचते हैं।

मसलन, अभी रेपो रेट में कमी का दौर है। ऐसे में डिपॉजिट्स रेट तो तेजी से कम कर रहे हैं बैंक लेकिन लेंडिंग रेट्स में कमी करने में उतनी चुस्ती नहीं दिखा रहे हैं। मसलन, इस साल अब रिजर्व बैंक रेपो रेट में 0.75% की कटौती कर चुका है लेकिन भारतीय बैंकों ने लेंडिंग रेट्स में इसके आधे से भी कम 0.30% की ही कटौती की है।

इसके उलट जब रेपो रेट में बढ़ोतरी के समय लेंडिंग रेट्स बढ़ाने में जितनी चुस्ती-फुर्ती बैंक दिखाते हैं उतनी तेजी डिफॉजिट्स रेट बढ़ाने में नहीं दिखाते हैं।

ग्राहकों को ब्याज दरों में बदलाव का फायदा देने में सुस्ती पर केंद्र सरकार, खुद रिजर्व बैंक के अलावा इंडस्ट्री भी बैंक की गाहे-बगाहे खिंचाई करते हैं लेकिन अब इसको लेकर बैंक  अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के निशाने पर भी आ गए हैं।

IMF के एक ताजा अध्ययन में कहा गया है कि ब्याज दरों में बदलाव के मुद्दे पर भारतीय बैंकों का रवैया ग्राहकों के अनुकूल नहीं रहता। भारतीय बैंक कर्ज पर ब्याज दर बढ़ाने के मामले में तो तुरंत कदम उठाते हैं लेकिन जब जमा पर ब्याज दर बढ़ाने की बात आती है तो उनका रवैया काफी ढीला रहता है।

IMF के अनुसंधान पत्र में यह भी कहा गया है कि RBI द्वारा नीतिगत दरों में कटौती की घोषणा के बाद ब्याज दरों में बदलाव की रफ्तार धीमी रही है।

IMF का ये अध्ययन मार्च 2002 से लेकर अक्टूबर 2014 तक के मौद्रिक पॉलिसी ट्रांसमिशन पर आधारित है। यानी इस दौरान मौद्रिक पॉलिसी में बदलाव का कितना फायदा ग्राहकों को बैंको ने दिया, इस पर IMF ने रिपोर्ट तैयार की है।

हालांकि रिसर्च रिपोर्ट में कहा है कि 2010 में बेस रेट सिस्टम लागू किए जाने के बाद से मौद्रिक नीति बदलाव का ग्राहकों को देने में कुछ तेजी आई है। IMF की इकोनॉमिस्ट सोनाली दास ने ये रिपोर्ट तैयार की है।

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