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सरकारी प्रतिभूति (G-Sec) में निवेश FD के मुकाबले कितना फायदेमंद, रिटेल निवेशक कैसे करें निवेश
सरकारी प्रतिभूति में निवेश पर चर्चा करने से पहले इसके बारे में संक्षेप में थोड़ी जानकारी ले लेते हैं। मसलन, सरकारी प्रतिभूति क्या होते हैं, उनमें कौन कौन से प्रोडक्ट शामिल हैं, बगैरह। 

सरकारी प्रतिभूतियां (जी-सेक) सर्वोच्च प्रतिभूतियां हैं जो भारत सरकार की ओर से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा केंद्र/राज्य सरकार के बाजार उधार प्रोग्राम के एक भाग के रूप में नीलाम की जाती हैं। सरकारी प्रतिभूतियों की एक निश्चित या अस्थायी कूपन दर हो सकती है इन प्रतिभूतियों की गणना बैंकों द्वारा एसएलआर बनाए रखने के लिए की जाती है। जी-सेक केंद्र या राज्य सरकार द्वारा जारी किया जाने वाले व्यापारयोग्य लिखत ( Tradeable Bond)है। 

केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा जारी की गई सभी प्रतिभूतियां गिल्ट प्रतिभूति के रूप में मानी जाती हैं, इसलिए सरकारी प्रतिभूतियों के लिए एक अन्य नाम गिल्ट भी है। गिल्ट शब्द सरकार द्वारा जारी किए गए कागजात की श्रेष्ठ गुणवत्ता को दर्शाता है। इंग्लैंड के बैंक द्वारा  जारी किए गए कागजात गिल्ट के किनारों वाले थे। अतः शब्द गिल्ट्स की उत्पत्ति वहाँ से हुई। 

सरकारी प्रतिभूति केंद्र सरकार का सीधी अनुग्रह पत्र होती है और उन्हें सरकार का पूरा समर्थन प्राप्त होता है। इसे श्रेष्ठ ऋण (सॉवरेन डेब्ट) भी कहा जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक के माध्यम से केंद्र सरकार ब्याज की नियमित अदायगी और मूलधन का पुनर्भुगतान करने का भरोसा दिलाती है। एक बार जारी कर दिए जाने के बाद सेकंडरी मार्केट में (स्टॉक एक्सचेंज पर) इनकी खरीद-बिक्री होती है। सरकारी प्रतिभूतियों का अधिकतर लेन-देन इंटर-बैंक में थोक आधार पर होता है। बाजार के प्रमुख सहभागी हैं बैंक और वित्तीय संस्थान, म्युचुअल फंड, बीमा कंपनियां, प्राइमरी डीलर्स, भविष्य निधियां, ट्रंस्ट, एफआईआई,व्यक्ति (रिटेल निवेशक)। इनमें से अधिकांश सहभागी अपनी वैधानिक आवश्यकताओं के कारण सरकारी प्रतिभूतियों में सक्रियता से लेन-देन करते हैं। 

जनवरी 2003 में एनएसई के रिटेल डेब्ट मार्केट का आरंभ होने से पहले रिटेल निवेशकों द्वारा विनिमय के लिए सरकारी प्रतिभूतियां नहीं थीं।  


>सरकारी प्रतिभूति क्या है ? 
सरकारी प्रतिभूति एक व्यापारयोग्य लिखत (Tradeable Bond) है जो केद्र सरकार अथवा राज्य सरकारों द्वारा जारी किए जाते हैं ये सरकार का ऋण दायित्व (Debt Liabilities) दर्शाते हैं। ये प्रतिभूतियाँ अल्पावधि (सामान्यतः इन्हें खजाना बिल Treasury Bill कहा जाता है, जिनकी मूल परिपक्वता 1 वर्ष से कम होती है) अथवा दीर्धावधि (सामान्यतः इन्हें सरकारी बॉण्ड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ कहा जाता है, जिनकी मूल परिपक्वता एक वर्ष अथवा अधिक होती है) होती हैं भारत में केद्र सरकार, खजाना बिल तथा बॉण्ड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करती है जबकि राज्य सरकारें केवल बॉण्ड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करती हैं जिन्हें राज्य विकास ऋण (एसडीएल- State Development Loan ) कहा जाता है सरकारी प्रतिभूतियों में, व्यावहारिक रूप से, चूक का कोई जोखिम नहीं होता है, तथा इस प्रकार इन्हें जोखिम मुक्त अथवा श्रेष्ठ प्रतिभूतियाँ कहा जाता है।

भारत सरकार बचत लिखत (बचत बॉण्ड, राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (एनएससी), इत्यादि) अथवा विशेष प्रतिभूतियाँ (तेल बॉण्ड,  भारतीय खाद्य निगम बॉण्ड, उर्वरक बॉण्ड, ऊर्जा बॉण्ड इत्यादि) भी जारी करती है ये पूर्णतया व्यापार योग्य नहीं होते हैं। अतः सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर-Statutory Liquidity Ration प्रतिभूतियों के लिए पात्र नहीं होते हैं

A)खजाना बिल (टी-बिल्स):
खजाना बिल अथवा टी बिल्स, जो मुद्रा बाजार लिखत हैं, भारत सरकार द्वारा जारी अल्पावधि ऋण लिखत हैं तथा वर्तमान में तीन प्रकार के यथा 91 दिवसीय, 182 दिवसीय और 364 दिवसीय रूप में जारी किए जाते हैं। खजाना बिल शून्य कूपन प्रतिभूतियाँ हैं और इन पर ब्याज का भुगतान नहीं किया जाता। वे बट्टे पर जारी किए जाते हैं और परिपक्वता पर इनका मोचन(Redemption) अंकित मूल्य पर किया जाता है। 

रिज़र्व बैंक खजाना बिल जारी करने के लिए प्रत्येक बुधवार को नीलामी करता है, जबकि खरीदे गए खजाना बिलों के लिए भुगतान आगामी शुक्रवार को किया जाता है। रिज़र्व बैंक द्वारा वित्तीय वर्ष के लिए खजाना बिल जारी करने का वार्षिक कैलेंडर पिछले वित्तीय वर्ष के मार्च के अंतिम सप्ताह में जारी किया जाता है भारतीय रिज़र्व बैंक खजाना बिल जारी करने का ब्योरा प्रत्येक सप्ताह में प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से करता है। 

B)दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियाँ:

दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियाँ दीर्धावधि प्रतिभूतियाँ (एक साल से अधिक की परिपक्वता अवधि वाली) होती हैं और उन पर स्थायी या अस्थायी कूपन (ब्याज दर) दिया जाता है जो एक निश्चित अवधि (सामान्यतया छमाही) पर अंकित मूल्य पर देय होता है। दिनांकित प्रतिभूतियों की अवधि 30 वर्ष तक हो सकती है। 

रिज़र्व बैंक का लोक ऋण कार्यालय सरकारी प्रतिभूतियों की रजिस्ट्री/निक्षेपागार का कार्य करता है तथा उन्हें जारी करने, ब्याज अदा करने तथा परिपक्वता मूलधन की चुकौती संबंधी कार्य करता है अधिकांश दिनांकित प्रतिभूतियाँ स्थायी कूपन प्रतिभूतियाँ हैं

प्रतीकात्मक दिनांकित नियत कूपन सरकारी प्रतिभूतियों की नाम पद्धति में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं 
- कूपन, जारीकर्ता का नाम, परिपक्वता और अंकित मूल्य उदाहरणार्थ : 7.49% जीएस 2017 का अर्थ होगा :-
कूपन 7.49% अंकित मूल्य पर भुगतान 
जारीकर्ता का नाम 
भारत सरकार जारी करने की तारीख 16 अप्रैल 2007 परिपक्वता 16 अप्रैल 2017 कूपन भुगतान की तारीख छमाही  (16 अक्तूबर और 16 अप्रैल) प्रत्येक वर्ष जारी/बिक्री की न्यूनतम राशि 10,000 रू.

यदि कूपन भुगतान की तारीख रविवार अथवा छुट्टी के दिन है, तो कूपन भुगतान अगले कार्य दिवस को किया जाता है तथापि, यदि परिपक्वता की तारीख रविवार अथवा छुट्टी के दिन होती है तो शोधन की आय का भुगतान पिछले कार्य दिवस को किया जाता है

भारत सरकार द्वारा जारी सभी दिनांकित प्रतिभूतियों का ब्योरा भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट www.rbi.org.in पर उपलब्ध हैं। खजाना बिलों के समान ही, भारत सरकार और राज्य सरकारों, दोनों की दिनांकित प्रतिभूतियाँ रिज़र्व बैंक के माध्यम से नीलामी द्वारा जारी कि जाती हैं।  रिज़र्व बैंक नीलामी की धोषणा प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से एक सप्ताह पहले करता है।  सरकारी प्रतिभूति की नीलामी की धोषणा प्रमुख दैनिक समाचार पत्रों के माध्यम से विज्ञापनों द्वारा भी की जाती है इस प्रकार निवेशों  को ऐसी नीलामी के माध्यम से सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदने की योजना बनाने के लिए पर्याप्त समय दिया जाता है

> लिखत (Bond): 
(i) स्थायी दर बॉण्ड - इन बॉण्डों पर बाँण्ड की पूरी अवधि के लिए कूपन दर स्थायी होती है अधिकांश 
सरकारी बॉण्ड स्थायी दर बॉण्डों के रूप में जारी किए जाते हैं। उदाहरण - 8.24 प्रतिशत जीएस 2018 दस वर्ष के अवधि के लिए 22 अप्रैल 2008 को जारी किया गया  जिसकी परिपक्वता 22 अप्रैल 2018 को है इस प्रतिभूति पर कूपन प्रत्येक वर्ष छःमाही आधार पर 4.12 प्रतिशत की दर से अंकित मूल्य पर 22 अक्तूबर और 22 अप्रैल को अदा किया जाएगा।
(ii) अस्थायी दर बॉण्ड - अस्थायी दर बॉण्ड वे प्रतिभूतियाँ हैं जिनकी कूपन दर स्थायी नहीं होती है। इनका कूपन, आधार दर पर स्पैड जमा करके पहले से धोषित अंतरालों पर (छःमाह/एक वर्ष) दोबारा निर्धारित किया जाता है। अब तक भारत सरकार द्वारा जारी अधिकांश अस्थायी दर बॉण्डों के मामले में स्पैड नीलामी के दौरान निर्धारित किया जाता है जबकि आधार पर पिछले कूपन पुनःनिर्धारित करने की  तारीख के पिछले तीन 364 दिवसीय खजाना बिलों की नीलामी की निर्धारित दर की भारित औसत होगी। भारत में पहले अस्थायी दर बॉण्ड सितंबर 1995 में जारी किए गए थे।
उदाहरण : एक अस्थायी दर बॉण्ड 15 वर्ष की अवधि के लिए 2 जुलाई 2002 को जारी किया गया जो 2 जुलाई 2017 को परिपक्व होगा कूपन भुगतान के लिए बॉण्ड पर आधार दर 6.50 प्रतिशत निर्धारित की गयी जो पिछली छः नीलामियों  के दौरान 364 दिवसीय खजाना बिलों पर अंतर्निहित आय की भारित औसत दर थी बॉण्ड नीलामी में 34 आधार पाइंट (0.34%) का निर्दिष्ट अंतराल (चिन्हित दर से अधिक मूल्य) निर्धारित किया गया। अतः पहले छःमाह के लिए कूपन 6.84% पर निर्धारित किया गया
(iii) शून्य कूपन बॉण्ड - शून्य कूपन बॉण्ड वे कूपन बॉण्ड हैं जिन पर कोई कूपन भुगतान नहीं किया जाता है।
 खजाना बिलों के समान ये अंकित मूल्य पर बट्टे पर जारी किए जाते हैं। भारत सरकार ने ऐसी प्रतिभूतियाँ 90 
के दशक में जारी की थी उसके बाद शून्य कूपन बॉण्ड जारी नहीं किए गए
(iv) पूंजी सूचकांक बॉण्ड - ये बॉण्ड, जिनका मूल धन मुद्रास्फीति के स्वीकार्य सूचकांक से सहलग्न हैं, मुद्रास्फीति से धारक का बचाव करता हैं पूंजी सूचकांक बॉण्ड, जिसके मूलधन की प्रतिरक्षा मुद्रास्फीति 
से की गयी थी, दिसंबर 1997 में जारी किए गए थे ये बॉण्ड 2002 में परिपक्व हो गये थे सरकार मुद्रस्फीति 
सूचकांक बॉण्डों के निर्गम पर कार्य कर रही है जिनमें बॉण्डों पर कूपन और मूलधन, दोनों, मुद्रस्फीति 
सूचकांक (थोक मूल्य सूचकांक) से सहलग्न होंगे।

(v)मांग/विक्रय विकल्प वाले बाँण्ड - विकल्प की विशेषताओं वाले बॉण्ड भी जारी किये जा सकते हैं जहाँ जारीकर्ता के पास बाय बैक (मांग/विकल्प) का विकल्प होगा अथवा निवेशक के पास यह विकल्प होगा कि वह बॉण्ड की अवधि के दौरान जारीकर्ता को बॉण्ड बेच (विक्रय विकल्प) सकते हैं।  6.72% जीएस 2012, 18 जुलाई 2002 को जारी किए गए थे जिनकी परिपक्वता अवधि दस वर्ष की है  तथा परिपक्वता की तारीख 18 जुलाई 2012 है बॉण्ड पर विकल्प का प्रयोग उसके बाद आने वाली किसी कूपन तारीख को जारी करने की तारीख से 5 वर्ष की अवधि पूरा होने के बाद किया जा सकता है  सरकार को सममूल्य पर (अंकित मूल्य के बराबर) बॉण्ड बाय बैक (मांग/विकल्प) करने का अधिकार  है जब कि निवेशक को 18 जुलाई 2007 से आरंभ होने वाली किसी भी छमाही कूपन तारीखों में सममूल्य पर सरकार को बेचने का अधिकार होगा

(vi)विशेष प्रतिभूतियाँ - बाजार उधार के कार्यक्रम के अंतर्गत खजाना बिल और दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करने के साथ-साथ समय-समय पर तेल विपणन कंपनियों, उर्वरक कंपनियों, भारतीय खाद्य निगम इत्यादि को नकदी सब्सिडी के स्थान पर प्रतिपूर्ति के रूप में विशेष प्रतिभूतियाँ जारी करती हैं।  ये प्रतिभूतियाँ सामान्यतः लंबित अवधि की होती है जिन पर तुलनात्मक परिपक्वता की दिनांकित प्रतिभूतियों के आय पर लगभग 20-25 आधार पाइंट का स्प्रैड होता है तथापि ये प्रतिभूतियाँ एसएलआर प्रतिभूतियों के लिए पात्र नहीं होती हैं लेकिन बाजार रिपो लेन-देनों के लिए संपाश्दिवक के रूप में पात्र होती हैं हिताधिकारी तेल विपणन कंपनियाँ इन प्रतिभूतियों को  द्वितीय बाजार में बैंकों, बीमा कंपनियों/प्राथमिक व्यापारियों इत्यादि को नकदी जुटाने के लिए बेच सकती हैं

(vii) स्ट्रिप्स (प्रतिभूतियों के पंजीकृत ब्याज और मूलधन का पृथक कारोबार) जैसे नये स्वरूप के लिखत लागू करने के उपाय किये गए हैं स्ट्रिप्स वे लिखत हैं जिनमें स्थायी कूपन प्रतिभूति का प्रत्येक नकदी प्रवाह पृथक कारोबार योग्य शून्य कूपन बॉण्ड में परिवर्तित हो जाता है तथा उस पर कारोबार किया जाता है उदाहरणार्थ : जब 100 रू. के 8.24% जीएस 2018 को स्ट्रिप किया जाता है, तो कूपन (4.12 रू. प्रत्येक छमाही) स्ट्रिप का प्रत्येक नकदी प्रवाह कूपन स्ट्रिप बन जाता है तथा मूल भुगतान (परिपक्वता पर 100 रू.) मूल स्ट्रिप बन जाएगा द्वितीयक बाजार में इन नकदी प्रवाहों के संबंध में अलग प्रतिभूतियों के रूप में कारोबार होता है

(ग) राज्य विकास ऋण (एसडीएल-State Develoment Loan)  राज्य सरकारें भी बाजार से ऋण जुटाती हैं एसडीएल दिनांकित प्रतिभूतियाँ होती हैं जो केद्र सरकार द्वारा दिनांकित प्रतिभूतियों के लिए की जाने वाली नीलामियों के समान नीलामी के माध्यम से जारी की जाती हैं। ब्याज का भुगतान छमाही आधार पर किया जाता है तथा मूल का भुगतान परिपक्वता तारीख को होती है। केद्र सरकार द्वारा जारी दिनांकित प्रतिभूतियों के समान राज्य सरकारों द्वारा जारी एसडीएल सांविधिक चलनिधि अनुपात ( Statutory Liquidity Ratio) के लिए 
गिनी जाएंगी। ये बाजार रिपो के माध्यम से उधार के लिए संपाश्दिवक के रूप में तथा चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक से पात्र संस्थाओं द्वारा उधार लेने के लिए पात्र होंगी।

> सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश क्यों करना चाहिए:
 बैंक द्वारा अपनी दैनिक आवश्यकताओं से अधिक नकदी रखने से कोई खास फायदा नहीं होता है। ज्यादातर बैंक उन पैसों पर 3.5-4% सालाना ब्याज देते हैं। वहीं सोने में निवेश से बहुत सी समस्याएँ होती हैं जैसे उसकी शुद्धता, मूल्यांकन, सुरक्षित अभिरक्षा इत्यादि। सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के निम्नलिखित लाभ हैं :-
-निवेश करना और उसे बेचकर उससे बाहर निकलना आसान 
-उच्चतम सुरक्षा
-हर छह महीने में आय का नियमित स्रोत
-यदि रिडेम्पशन तक निवेशित रहा जाए तो परिपक्वता पर सुनिश्चित आय
-टैक्स डिडक्शन एट सोर्स (TDS) नहीं 
-आयकर कानून की धारा 80 एल के तहत आयकर लाभ 
-विनिमय के माध्यम से नकदीकरण यानी जब जरूरत 
हो बेचकर पैसे निकाल सकते हैं 
-कूपन (ब्याज) के रूप में प्रतिफल मिलने के साथ-साथ सरकारी प्रतिभूतियों में 
अधिकतम सुरक्षा मिलती है क्योंकि उनमें ब्याज के भुगतान 
और मूल की चुकौती की सॉवेरन की प्रतिबद्धता होती है
-उसे डीमैट के रूप में रखा जाता है, जिससे उसकी सुरक्षा के लिए चिंता की जरूरत नहीं होती 
-सरकारी प्रतिभूतियाँ 91 दिन से लेकर 30 वर्ष की लम्बी अवधि के लिए, जो भी बैंक की 
देयताओं के अनुरूप हों, उपलब्ध रहती हैं
-नकदी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए द्वितीयक बाजार में इन्हें आसानी से बेचा जा सकता है
-सरकारी प्रतिभूतियों का उपयोग रिपो बाजार से निधि उधार लेने के लिए संपाश्दिवक 
के रूप में प्रयोग में लाई जा सकती हैं
-सरकारी प्रतिभूतियों में ब्यापार के लिए समायोजन प्रणाली, जो सुपुर्दगी बनाम भुगतान
पर आधारित है, जो समायोजन की बहुत आसान, सुरक्षित और सक्षम प्रणाली है।
-सरकारी प्रतिभूति मूल्य तरल और सक्रिय द्वितीयक बाजार के कारण आसानी 
से उपलब्ध होते हैं तथा एक पारदर्शी प्रसारतंत्र है
-बैंकों के अतिरिक्त, बीमा कंपनियों और अन्य बड़े निवेशकों, छोटे निवेशकों 
जैसे सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, भविष्य निधि से भी निश्चित अनुपात में 
सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करने की उम्मीद की की जाती है


>सरकारी प्रतिभूतियों की दूसरे निवेश साधनों से अलग-अलग पैरामीटर पर तुलना:

     
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>सरकारी प्रतिभूतियों में रिटेल निवेशकों को निवेश करने की अनुमति क्यों दी गई:
-सरकार के लिए दीर्घकालीन पूंजी खड़ी करने का किफायती साधन
-रिटेल निवेशकों के लिए दीर्घकालीन निवेश के लिए प्रभावी और आसान साधन प्रदान करता है
-निवेशकों के विभिन्न वर्गों के लिए एक स्थिर डेट मार्केट विकसित करना 
-निवेश शैली और गहराई का व्यापक आधार तैयार करना
-प्राइमरी और सेकंडरी बाजार में प्रभावी मूल्य निर्धारण प्रणाली प्रदान करता है, जिससे
वर्तमान प्रणाली सुदृढ़ होती है 
-जोखिम का दिशांतरण
-निवेशकों के लिए मध्यस्थता की कम कीमत 

>रिटेल निवेशक सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश या उसकी खरीद-बिक्री कैसे करें: 
सरकारी प्रतिभूति क्या है, उसमें निवेश के नफा-नुकसान क्या हैं, इन सबके बारे में आपने जान लिया। तो अब सवाल उठता है कि रिटेल निवेशक सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश कैसे करें या उसकी खरीद-बिक्री कैसे करें। 
-अभी तक एक निवेशक अगर सरकारी प्रतिभूतियां खरीदना चाहता था तो
 उसके लिए सबसे आसान विकल्प गिल्ट फंड होते थे, लेकिन अब बीएसई और एनएसई 
पर भी सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद-बिक्री कर सकते हैं 
-गिल्ट फंड काफी उठापटक वाले होते हैं
-जी-सेक यानी सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के लिए प्राइमरी डीलर के यहां गिल्ट
एकाउंट खुलवाना होगा
-प्राइमरी डीलर वास्तव में भारतीय रिजर्व बैंक से मान्यता प्राप्त इंटरमीडियरी होते हैं जो आपके 
बदले सीधे-सीधे सरकारी प्रतिभूतियों का सौदा करते हैं
-प्रमुख प्राइमरी डीलरों में IDBI गिल्ट्स, ICICI Sec, PNB गिल्ट्स, SBI, 
सिटीबैंक एन.ए., स्टैंडर्ड चार्टर्ड, बैंक ऑफ बड़ौदा, केनरा बैंक, एचडीएफसी बैंक और
 एक्सिस बैंक शामिल हैं
-आम निवेशक चाहे तो जी-सेक में निवेश करने के लिए म्युचुअल फंडों को भी जरिया 
बना सकता है और इसके लिए गिल्ट एकाउंट खुलवाने की भी जरूरत नहीं होगी
-सरकारी प्रतिभूतियां इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म पर नीलामी के जरिए जारी की जाती हैं। 
-यह नीलामी या तो कीमत आधारित होती है या फिर यील्ड आधारित यानी निवेशक
 या तो कीमत की बोली लगाते हैं या फिर बांड के अनुमानित यील्ड की।
-खुदरा निवेशकों के लिए सरकारी प्रतिभूतियों (जीसेक)को खरीद
 पाना अब किसी शेयर में निवेश करने जैसा आसान हो गया है 
-नैशनल स्टॉक एक्सचेंज और बंबई स्टॉक एक्सचेंज ने सरकारी 
प्रतिभूतियों की ऑनलाइन खरीद सुविधा देने के लिए ई-जीसेक 
प्लेटफॉर्म शुरू किए हैं
-इसका फायदा लेने के लिए रिटेल निवेशकों को सेबी रजिस्टर्ड बीएसई और एनएसई के ब्रोकर्स
या सबब्रोकर्स के पास डीमैट खाता खुलवाना होगा, जिसके बाद शेयरों की ही तरह सरकारी 
प्रतिभूतियों की खरीद-बिक्री कर सकेंगे
-रिजर्व बैंक नीलामी के लिए रखी गई प्रतिभूतियों का पांच फीसदी हिस्सा गैर-प्रतिस्पर्धी
नीलामी के लिए आरक्षित रखता है
-छोटे निवेशकों को ये प्रतिभूतियां एक निर्धारित कीमत पर दी जाती हैं
- यहां तक कि महज 10 हजार रुपये जैसी राशि से भी एक सरकारी बॉन्ड 
खरीदा जा सकता है।
-नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) ने खुदरा निवेशकों के लिए सरकारी 
प्रतिभूतियों और ट्रेजरी बिलों की बोली आसान बनाने के लिए 'एनएसई गोबिड' 
मोबाइल ऐप शुरू किया है
-इस मोबाइल ऐप के जरिये निवेशक व्यस्तता के बीच भी प्रतिभूतियों के लिए बोली 
लगा सकता है और यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस और इंटरनेट बैंकिंग के जरिये अपने बैंक खाते 
से सीधे भुगतान कर सकते हैं
-एनएसई ऐप पर साइन अप करने के लिए निवेशक को अपना ब्रोकिंग और डिपॉजिटरी अकाउंट 
आपस में जोडऩा होगा 
-एनएसई का गोबिड प्लेटफॉर्म ऑर्डर संग्रह, भुगतान और रिफंड का काम संभालेगा, 
जिनके प्रबंधन के अभी ब्रोकरों की जरूरत होती है

('बिना प्रोफेशनल ट्रेनिंग के शेयर बाजार जरूर जुआ है'
बचत, निवेश संबंधी beyourmoneymanager के लेख


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Rajanish Kant शुक्रवार, 22 मार्च 2019