अमेरिका की केंद्रीय बैंक Federal Reserve (फेड) ने हाल ही में अपनी प्रमुख नीतिगत दरों में 0.25 प्रतिशत अंक की कटौती करने की घोषणा की है।
इस कदम को अर्थव्यवस्था में आने वाली चुनौतियों और बदलते परिदृश्यों की प्रतिक्रिया माना जा रहा है।
1. फिर कटौती क्यों?
फेड ने इस कटौती का निर्णय उस आर्थिक कमजोरी के संकेतों के आधार पर लिया है, जहां रोजगार व विकास गति कमजोर पड़ रही है। उदाहरण के तौर पर, नीति समिति ने कहा है कि “रोजगार संबंधी जोखिम बढ़ गये हैं” व आर्थिक गतिविधियाँ अपेक्षित रफ्तार से नहीं चल रही हैं।
दूसरी ओर, मुद्रास्फीति (इन्फ्लेशन) अब भी पूरी तरह नियंत्रण में नहीं है और बैंके की 2 % लक्ष्य के ऊपर बनी हुई है।
इसलिए, फेड अब मुद्रास्फीति कम करने और रोजगार बढ़ाने — दोनों लक्ष्यों — के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास कर रहा है।
2. कटौती का प्रभाव क्या होगा?
दर घटने का मतलब है कि बैंकों के लिए पैसे उधार देना सस्ता होगा, जिससे उधारी बढ़ने, व्यापार विस्तार, उपभोक्ता खर्च एवं रोजगार सृजन के अवसर पैदा हो सकते हैं।
लेकिन दूसरी ओर, यदि यह दर कम करना बहुत जल्दी या बहुत अधिक किया जाए, तो मुद्रास्फीति फिर बढ़ सकती है या ऋण-बाजार में अस्थिरता आ सकती है। फेड ने इस बात की चेतावनी भी दी है कि आगे की कटौतियाँ “पूर्वनिर्धारित नहीं” हैं।
3. भारत व वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं पर असर
चूंकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था वैश्विक संकेत बनाती है, इस तरह की दर बदलाव का ग्लोबल असर होता है। भारत जैसे उभरते अर्थव्यवस्थाओं में:
डॉलर सस्ता हो सकता है, जिससे रुपये पर दबाव कम हो सकता है।
भारतीय निर्यात-उद्योग को प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिल सकती है।
लेकिन यदि अमेरिका में उधारी बढ़े और मुद्रास्फीति फिर बढ़े, तो वित्त-बाजार में उछाल-घटाव हो सकता है।
इसलिए, भारत के नीति निर्धारकों को भी अपने घरेलू मुद्रास्फीति और विकास आंकड़ों की ओर सतर्क रहना होगा।
4. आगे क्या सम्भावनाएँ हैं?
फेड ने संकेत दिया है कि इस वर्ष और दो और 0.25 % कटौतियाँ हो सकती हैं, लेकिन यह निश्चित नहीं है।
इसका मतलब है कि:
यदि रोजगार व वृद्धि में सुधार नहीं हुआ, तो दरें और घट सकती हैं।
लेकिन यदि मुद्रास्फीति फिर बढ़ती है या आर्थिक संकेत बेहतर होते हैं, तो कटौती ठहर सकती है या स्थिर हो सकती है।
5. निष्कर्ष
फेड की यह दर-कटौती इस बात का संकेत है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था अब मौक़े की कमी और कमजोर रोजगार-परिस्थिति जैसे जोखिमों को लेकर सतर्क स्थिति में है। लेकिन साथ ही, मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखने का लक्ष्य अब भी जारी है। इस संतुलन की रणनीति यह दिखाती है कि नीति निर्धारक अब ज्यादा राहत देने से पहले सोच-विचार कर रहे हैं।
वित्तीय बाजार, व्यापार एवं घरेलू अर्थव्यवस्थाएँ इस निर्णय को आर्थिक संकेतक के रूप में देखेंगी और अगले कदमों की प्रतीक्षा करेंगी। भारत सहित अन्य देशों को भी इस बदलाव के संभावित प्रभावों का आंकलन करते रहना चाहिए।
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