उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को माना कि सेबी की धारा 24ए के तहत अपराधों के शमन के लिए बाजार नियामक की सहमति अनिवार्य नहीं है, हालांकि विशेषज्ञ निकाय होने के नाते इसकी राय लेनी जरूरी है।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा कि हालांकि सेबी के पास विचाराधीन अपराधों की सुनवाई के बारे में वीटो करने का कोई अधिकार नहीं है, लेकिन यह एक नियामक और अभियोजन एजेंसी है और प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (सैट) और अदालतों को इसके विचार लेने चाहिए, क्योंकि यह एक विशेषज्ञ निकाय है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रतिभूति बाजार की स्थिरता और निवेशकों की सुरक्षा के हित में सेबी के विचार जानना जरूरी है।
पीठ ने कहा, ‘‘धारा 24ए, टी के तहत दंडनीय अपराधों के शमन के बारे में कोई भी निर्णय लेने से पहले अदालत को मार्गदर्शन के लिए सेबी के विचार लेने चाहिए।’’
पीठ ने आगे कहा कि विशेषज्ञ राय को खारिज करते हुए अपराध की गंभीरता या बाजारों पर प्रभाव पर अपना फैसला देते समय अदालत को सावधान रहना चाहिए।
(साभार- पीटीआई भाषा)
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