धारा 7 से रिजर्व बैंक को क्या खतरा है...

चिदंबरम ने रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा सात का उल्लेख करने पर सरकार की आलोचना की
पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा सात का उल्लेख किये जाने को लेकर केंद्र सरकार की बुधवार को आलोचना की। उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हताश है और अर्थव्यवस्था से संबंधित तथ्यों को छुपा रही है।

वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने कहा कि वह पहले की जिन सरकारों में शामिल रहे हैं उन सरकारों ने कभी भी रिजर्व बैंक कानून 1934 की धारा सात का इस्तेमाल नहीं किया।

रिजर्व बैंक की धारा सात के तहत केंद्र सरकार रिजर्व बैंक को सीधे वह आदेश दे सकती है जिसे वह सार्वजनिक हित में मानती है।

उन्होंने एक-के बाद-एक ट्वीट में कहा, ‘‘यदि जैसी खबरें हैं कि सरकार ने रिजर्व बैंक की धारा सात का इस्तेमाल किया है और रिजर्व बैंक को अप्रत्याशित निर्देश दिया है, मुझे डर है कि आज कहीं और बुरी खबरें सुनने को न मिल जाएं।’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘हमने 1991 या 1997 या 2008 या 2013 में धारा सात का इस्तेमाल नहीं किया। इसे अब अमल करने का क्या औचित्य है? इससे पता चलता है कि सरकार तथ्यों को छुपा रही है और हताशा में है।’’ 

उल्लेखनीय है कि सरकार ने रिजर्व बैंक के साथ कुछ मुद्दे पर असहमति को लेकर आज तक कभी भी इस्तेमाल नहीं किये गये अधिकार का जिक्र किया था। मामले से जुड़े सूत्रों के अनुसार, सरकार ने गवर्नर उर्जित पटेल को रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा सात के तहत निर्देश देने का उल्लेख किया।

सूत्रों ने बताया कि सरकार ने कम से कम तीन बार अलग-अलग मुद्दों पर धारा सात (1) का उल्लेख किया। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार ने इस विशेष धारा के तहत कोई कदम नहीं उठाया है।

रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा सात केंद्र सरकार को यह विशेषाधिकार प्रदान करती है कि वह केंद्रीय बैंक के असहमत होने की स्थिति में सार्वजनिक हित को देखते हुए गवर्नर को सीधे निर्देश दे सकती है।

सरकार बैंकों में त्वरित सुधारात्मक कदम (पीसीए) की रूपरेखा से लेकर नकदी प्रबंधन तक के मुद्दों पर रिजर्व बैंक से असहमत है।
(सौ. पीटीआई भाषा )
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