स्थायी आय और करेंसी बाजारों के विकास के लिए RBI ने नए उपायों की घोषणा की

भारतीय रिज़र्व बैंक ने स्थायी आय और करेंसी बाजारों के विकास के लिए उपायों की घोषणा की
भारतीय रिज़र्व बैंक ने स्थायी आय और करेंसी बाजारों के विकास के लिए उपायों का पैकेज घोषित किया। इन उपायों का उद्देश्य बाजार का अधिक विकास करना, सहभागिता बढ़ाना, अधिक बाजार चलनिधि की सुविधा देना तथा संप्रेषण में सुधार करना है।
कॉर्पोरेट बाजार को विकसित करने के लिए खान समिति की अधिकांश सिफारिशों को स्वीकार करते हुए, यह निर्णय लिया गया है कि बैंकों द्वारा प्रदान किए जाने वाले आंशिक क्रेडिट संवर्धन (पीसीई) की समग्र सीमा में वृद्धि की जाए, दलालों को कॉर्पोरेट बॉन्ड रेपो की अनुमति दी जाए, इस मंच को कॉर्पोरेट बॉन्डों में रेपो के लिए प्राधिकृत किया जाए और बाजार व्यवस्था के माध्यम से बड़े उधारकर्ताओं के लिए क्रेडिट आपूर्ति को बढ़ावा दिया जाए। यह भी निर्णय लिया गया है कि उचित विधिक संशोधनों के लिए प्रयास किया जाए जिससे कि रिज़र्व बैंक चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत कॉर्पोरेट बॉन्डों को स्वीकार कर सके।
समुद्रपारीय रुपया बॉन्ड बाजार को अधिक बढ़ावा देने के लिए बैंकों को अपनी पुंजीगत अपेक्षाओं और इनफ्रास्ट्रक्चर तथा वहनीय आवास के वित्तपोषण के लिए रुपया बॉन्ड समुद्रापारीय (मसाला बॉन्ड) जारी करने की अनुमति दी जा रही है।
प्राथमिक व्यापारियों द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में बाजार निर्माण योजना को भी सरकार के साथ परामर्श कर तैयार किया गया है जिससे अर्ध-चलनिधिपरक प्रतिभूतियों की चलनिधि बढ़ाने में सहायता मिल सकती है। सरकारी प्रतिभूतियों में रेपो बाजार की अवधि और काउंटरपार्टी प्रतिबंधों में ढ़ील देने से बाजार चलनिधि में भी सहायता मिलेगी।
विदेशी संविभाग निवेशकों (एफपीआई) को एनडीएस-ओएम की सीधी पहुंच प्रदान की जाएगी जिससे कि ऋण प्रतिभूतियों में निवेश की प्रक्रिया को आसान बनाया जा सके। सेबी के साथ इस बात पर भी सहमति बनी है कि कॉर्पोरेट बॉन्डों में एफपीआई को सीधे व्यापार करने के लिए सुविधा प्रदान की जाए।
विदेशी मुद्रा बाजार विनियमों में मौलिक परिवर्तन के रूप में निवासियों के लिए ओपन पाजिशन बनाए रखने के लिए अधिक छूट का प्रस्ताव किया जा रहा है। ओटीसी और मुद्रा ट्रेडेड बाजारों में हेजिंग के लिए अनुमेय सीमाओं को भी युक्तिसंगत बनाया जा रहा है। यह भी प्रस्ताव किया गया है कि भारतीय कंपनियों द्वारा समुद्रपारीय बाजारों में पण्य-वस्तु मूल्य जोखिम के ढांचे की व्यापक समीक्षा की जाए।
उपर्युक्त उपायों में अटकलों, प्रतिस्पर्धा और नवोन्मेष के साथ जुड़े जोखिमों को कम करते हुए बाजारों के मापित और सु-संकेतित उदारीकरण की धारणा को रेखांकित किया गया है।
Source: rbi.org.in

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