सस्ता होता कच्चा तेल; फाइनेंशियल मार्केट का बिगाड़ेगा खेल !

कच्चा तेल $20/बैरल तक जाएगा: गोल्डमैन सैक्स 
वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के लगातार कम होते दाम भारत के लिए भले ही फायदेमंद हो, लेकिन फाइनेंशियल मार्केट के लिए कई मायनों में ये अच्छी खबर नहीं है। कच्चे तेल पर निर्भर रहने वाले देशों को इससे नुकसान पहुंचने के काफी आसार हैं।

पिछले साल अगस्त में करीब 115 डॉलर प्रति बैरल का कच्चा तेल इन दिनों 40 डॉलर प्रति बैरल के करीब है। ऊपर से कच्चे तल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक ने कम होते दाम के बावजूद तेल उत्पादन में कटौती करने से इनकार कर दिया है। यानी कच्चे तेल की कीमत में फिलहाल बढ़ोतरी की संभावना कम ही है।

फाइनेंशियल मार्केट पर कैसे डालेगा सस्ता कच्चा तेल असर: 
-भारतीय कंपनियां, जो कि कारोबार के लिए वैश्विक
बाजारों पर निर्भर हैं, उनकी बैलेंश सीट पर असर पड़ेगा
-कच्चे तेल पर निर्भर रहने वाले देशों के लिए अधिक कीमत
फाइनेंशियल मार्केट के लिए ऐतिहासिक दृष्टिकोण से फायदेमंद
रहा है, क्योंकि ये देश अतिरिक्त पैसे को फाइनेंशियल मार्केट
में लगाते हैं। लेकिन, जब तेल के दाम कम हो रहे हैं, तो ये देश
ग्लोबल मार्केट से पैसे निकाल रहे हैं। जेपी मॉर्गन की रिपोर्ट के
मुताबिक, बाजार से करीब 19 अरब डॉलर निकाले जा चुके हैं।
-कच्चे तेल पर निर्भर रहने वाले ज्यादातर देशों की इकोनॉमी
सरकारी मदद (highly subsidised) से चलती है। इन देशों में
लोगों की खुशहाली के लिए तेल से होने वाली आमदनी के जरिए
सोशल स्कीम्स चलाई जाती है।
-तेल के दाम में गिरावट से इस पर निर्भर इकोनॉमी के
फिस्कल डेफिसिट काफी बढ़ोतरी की खबर है, जो कि
चिंताजनक है।  मसलन, सऊदी अरब का फिस्कल डेफिसिट
21.60 % पहुंच गया है, जबकि लीबिया का सबसे अधिक
79.1%, वेनेज्वेला का  24.40%, इराक का 23.1% जबकि
अल्जीरिया का 13.90%।
-चुंकि तेल उत्पादक देशों की इकोनॉमी में कच्चे तेल का हिस्सा सबसे
अधिक होता है, इसलिए तेल की ऊंची कीमत उनके बजट को संतुलित
बनाए रखने और देश को चलाने के लिए जरूरी है।
-जेपी मॉर्गन के मुताबिक, सऊदी अरब को बजट संतुलित रखने और
देश का खर्च चलाने के लिए कच्चे तेल की कीमत $105 प्रति बैरल
रहना जरूरी है, जबकि वेनेज्वेला के लिए $117.50, नाइजीरिया के
लिए $112.70 और लीबिया के लिए $269 प्रति बैरल रहना चाहिए।
-तेल उत्पादक देशों के खराब होते हालत को देखते हुए जानकार
संभावना जता रहे हैं कि कहीं ये देश अपनी इकोनॉमी को बचाने के लिए
कहीं उत्पादन ना बढ़ा दें। अगर ऐसा होता है तो कच्चे तेल की कीमत में
और कमी आएगी।

तभी गोल्डमैन सैक्स ने कच्चे तेल की वैश्विक कीमत 20 डॉलर प्रति बैरल जाने की संभावना जताई है। कच्चे तेल के लिए सिर्फ उसका उत्पादन बढ़ना ही चिंता की बात नहीं है, बल्कि अमेरिका का केंद्रीय बैंक अगले हफ्ते ब्याज दर में बढ़ोतरी कर सकता है। इससे जहां डॉलर में मजबूती आएगी, वहीं कच्चे तेल में और गिरावट के आसार हैं। जाहिर है, जिसे तेल उत्पादक देश तो कतई नहीं चाहेंगे। कुल मिलाकर, कच्चे तेल का बुरा दिन, फाइनेंशियल मार्केट के लिए शायद ही अच्छा दिन साबित हो सके।

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