ग्रीस कर्ज संकट का हमारे लिए सबक

भारी कर्ज संकट से गुजर रहा यूरोपीय देश ग्रीस को फिलहाल कुछ समय के लिए राहत मिल गई है लेकिन संकट अभी पूरी तरह से गया नहीं है। आखिर, क्या है ग्रीस कर्ज संकट और इसमें कैसे फंसा ग्रीस। साथ ही भारत पर इस संकट का संभावित असर क्या-क्या है और हमें-आपके लिए ग्रीस संकट क्या सबक दे रहा है....

लगातार बजट डेफिसिट से उपजा है ग्रीस का कर्ज संकट। बजट डेफिसिट यानी आमदनी आठन्नी, खर्चा रुपय्या। लगातार बजट डेफिसिट की वजह से 2009 के आखिर में ग्रीस में सॉवरेन डेट क्राइसिस पैदा हुआ। जनवरी 2010 में ग्रीस ने पहली बार स्वीकार किया कि उसका बजट डेफिसिट यूरोपीय यूनियन द्वारा तय अधिकतम सीमा का चार गुना हो गया। इस कारण ग्रीस में बॉन्ड-यील्ड स्प्रेड बढ़ने के अलावा क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप पर रिस्क इंश्योरेंस की लागत भी बढ़ गई। अप्रैल 2010 में रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ग्रीस बॉन्ड को डाउनग्रेड करके जंक स्टैटस कर दिया।

कई दौर की बातचीत और चर्चाओं के बाद मई 2010 में यूरोजोन के सदस्य देश और IMF यानी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ग्रीस को आर्थिक संकट से बाहर निकालने के लिए 110 अरब पौंड राहत पैकेज देने पर सहमत हुए। इसके बाद फरवरी 2012 में ग्रीस को दूसरा राहत पैकेज की मंजूरी दी गई। इस तरह से ग्रीस पर कुल 240 अरब पौंड का कर्ज हो गया।

ग्रीस सरकार के कर्ज संकट की मुख्य वजह:
-गैर-उत्पादक सेक्टरों में अधिक सरकारी खर्च
-2004-2009 के बीच भारी फिस्कल असंतुलन (खर्च के मुकाबले रेवेन्यू ग्रोथ काफी कम)
-सरकारी कर्ज का स्तर काफी अधिक होना
-स्टैटिस्टिकल मेथडोलॉजिकल मुद्दे (Statistical Methodological Issues)

> जनवरी 2015 में चुनाव के बाद एलेक्सिस सिप्रास की अगुआई में बनी सरकार ने कर्जदातओं से नए बेलआउट पैकेज में कर्ज में राहत की अपील की। जून, 2015 में सरकार ने बेलआउट पैकेज की शर्तों को लेकर जनमत संग्रह का एलान किया। 5 जुलाई 2015 को हुए जनमत संग्रह में जनता ने बेलआउट पैकेज की शर्तों को नकार दिया। इन शर्तों में पेंशन में कटौती,कर में बढ़ोतरी, सामाजिक खर्चों में कमी, आर्थिक सुधार करने समेत
कई कड़े प्रावधान थे।

> ग्रीस ने कर्जदाताओं से राहत पैकेज में छूट की उम्मीद से जून 2015 में तीन हफ्ते तक बैंक बंद कर दिया, नगदी की निकासी पर नियंत्रण लगा दिया, लेकिन कर्जदाताओं ने पेमेंट की शर्तों में किसी तरह की ढील देने से ग्रीस को इनकार कर दिया।

>बैंकिंग सिस्टम को बर्बाद होने से बचाने और ग्रीस को यूरोजोन से बाहर निकलने से रोकने के लिए  जिन वादों के आधार पर सिप्रास चुनाव जीतकर आए थे, उन्होंने बिल्कुल उसका उलटा किया। उन्होंने और अधिक कड़ी शर्तें, जिसमें पेंशन में कटौती, टैक्स में बढ़ोतरी और कुछ दूसरे आर्थिक सुधार शामिल थे, को मंजूर कर ली।  

> 19 अगस्त 2015 को यूरोजोन के वित्त मंत्री यूरोपियन सेंट्रल बैंक का कर्ज चुकाने और बैंकिंग सिस्टम को ढहने से बचाने के लिए ग्रीस को 86 अरब पौंड का  तीसरा बेलआउट पैकेज देने पर सहमत हुए।

> कर्जदाताओं के कठोर आर्थिक सुधार संबंधी शर्तों को स्वीकार करने के बाद ग्रीस के प्रधानमंत्री सिप्रास ने अपने पद से 20 अगस्त 2015 को इस्तीफा दे दिया।

>ग्रीस पर कर्ज संकट का आर्थिक असर: 

-ग्रीस का GDP 2008 के 345 अरब डॉलर के मुकाबले 2014 में कम होकर
286 अरब डॉलर पर पहुंचा (17 % की गिरावट)

-प्रति व्यक्ति GDP 2008 के 30,872 डॉलर से कम होकर 2014 में  26,015
डॉलर पर पहुंचा (15 % की गिरावट

-GDP में सरकारी कर्ज का हिस्सा 2008 के 105.4 % से बढ़कर 2014 में
177.3 % पहुंचना

-बेरोजगारी दर 2008 के 7.8%  के मुकाबले 2014 में 26.5% पर पहुंचना

> भारत पर ग्रीस संकट का असर: 
भारत का ग्रीस के साथ कारोबार में सीधे-सीधे कोई खास एक्सपोजर नहीं है, इसलिए भारत पर इसका कोई सीधा-सीधा असर नहीं पड़ेगा। लेकिन, चुंकि यूरोप 2014-15 में 129 अरब डॉलर कारोबार के साथ भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर रहा है, इसलिए यूरोजोन के किसी भी संकट का असर भारत के एक्सपोर्ट पर पड़ना लाजिमी है।

यूरोजोन में संकट का भारत पर असर:

-भारत से पूंजी का निकलना
-फाइनेंशियल मार्केट में उतार-चढ़ाव
-भारतीय रुपए में गिरावट

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