आर्थिक वृद्धि में गिरावट के बीच देश के जाने माने अर्थशास्त्री नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पब्लिक फाइनेंस एण्ड पॉलिसी (एनआईपीएफ एण्ड पी) के प्रोफेसर एन.आर. भानुमूर्ति ने कहा है कि देश में इस समय नीतिगत ब्याज घटाने से ज्यादा जरूरत सरकार की ओर से आर्थिक गतिविधयों को तेज करने में सहायक राजकोषीय उपायों की है।
भानुमूर्ति ने कहा कि मौद्रिक उपायों से इस समय कोई बेहतर नतीजा हासिल होना मुश्किल लगता है।
उन्होंने भाषा से कहा, ‘‘ भारतीय अर्थव्यवस्था बचत केन्द्रित है जबकि ब्याज दरों में गिरावट का असर बचत पर पड़ सकता है। ब्याज दरें यदि कम होंगी तो उसका असर बचत पर दिखाई देगा। बचत कम होने का असर निवेश पर पड़ सकता है। रिजर्व बैंक इस साल अब तक प्रमुख ब्याज दर में 1.35 प्रतिशत तक कटौती कर चुका है लेकिन उसका निवेश पर अनुकूल असर दिखाई नहीं दिया।’’
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समित अपनी द्वैमासिक समीक्षा पांच दिसंबर को घोषित करने वाली है। बाजार को उम्मीद है कि केंद्रीय बैंक आर्थिक नरमी को देखते हुए अपना उदार मौद्रिक रुख जारी रखेगा। कुछ विश्लेषकों को लगता है कि आरबीआई नीति ब्याज दर में कुछ और कमी भी कर सकता है।
भानुमूर्ति ने कहा कि सरकार ने इस साल जुलाई के बाद से अर्थव्यवस्था में सुधार के लिये जो कदम उठाये हैं उनका असर तीसरी तिमाही से दिखेगा।
उल्लेखनीय है कि सरकार ने हाल में कंपनियों के लिये कंपनी कर की दर में करीब दस प्रतिशत की जबर्दस्त कटौती कर उसे 22 प्रतिशत कर दिया। विनिर्माण क्षेत्र में आने वाली कंपनियों के लिये कर की दर 15 प्रतिशत कर दी गई। इससे पहले कंपनियों को कुल मिलाकर 34 प्रतिशत की दर से कर देना होता था। बैंकों का पूंजी आधार मजबूत करने के लिये उन्हें नई पूंजी उपलब्ध कराई गई। रीयल एस्टेट क्षेत्र में अटकी पड़ी परियोजनाओं को चालू करने के लिये 25 हजार करोड़ रुपये का पैकेज दिया गया। खर्च बढ़ाने के लिये अनुपूरक अनुदान मांगें पेश की गईं और प्रणाली में तरलता बढ़ाने के लिये बैंकों से एनबीएफसी को कर्ज उपलब्धता बढ़ाने को कहा गया।
शुक्रवार को जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही जुलाई-सितंबर 2019 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर गिर कर 4.5 रह गई। पहली तिमाही में यह 5 प्रतिशत थी। पिछले वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में वृद्धि 7 प्रतिशत थी।
भानुमूर्ति ने कहा, ‘‘अर्थव्यवस्था में अब इससे ज्यादा गिरावट आने की आशंका नहीं लगती है। तीसरी तिमाही से अर्थव्यवस्था में सुधार दिखाई देने लगेगा। हालांकि, इस सुधार के बावजूद चालू वित्त वर्ष के दौरान वित्तीय घाटा बजट अनुमान से अधिक रहने का अनुमान है।’’ उन्होंने यह भी कहा कि चालू वित्त वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटा बढ़ना करीब करीब तय लगता है लेकिन सरकार दीर्घकालिक योजनाओं की प्रतिबद्धताओं को देखते हुए इसको खर्च में ज्यादा कटौती नहीं कर सकती है।
सरकार ने चालू वित्त वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.3 प्रतिशत रहने का बजट अनुमान लगाया है। इससे पिछले वर्ष यह 3.4 प्रतिशत रहा था।
(साभार-पीटीआई भाषा)
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