दिवाला और दिवालियापन के लिए व्यवस्था बनाने से फंसे हुए कर्जों की वसूली तथा समाधान हुआ
वर्ष 2018-19 की वार्षिक समीक्षा में कहा गया है कि पिछले वर्ष मौद्रिक नीति में संपूर्ण बदलाव देखने को मिला। मानक नीति दर पहली बार 50 आधार अंक (बीपीएस) बढ़ाई गई और बाद में अपेक्षाकृत कमजोर मुद्रास्फीति, मंदी तथा नरम अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक स्थितियों के कारण 75 बीपीएस घटा दी गई। लेकिन तरलता की स्थिति सितंबर, 2018 से कठिन बनी हुई है। केन्द्रीय वित्त और कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में 2018-19 की आर्थिक समीक्षा प्रस्तुत की।
बैंकिंग प्रणाली के कार्य प्रदर्शन में सुधार हुआ है, क्योंकि गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) अनुपात में कमी आई है और बैंक कर्ज में वृद्धि हुई है। लेकिन अर्थव्यवस्था के लिए वित्तीय प्रवाह बाधित रहा, क्योंकि पूंजी बाजार से उठाई गई इक्विटी वित्त राशि में कमी आई और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) पर दबाव बढ़ा। दिवाला और दिवालिएपन के लिए प्रणालीबद्ध तरीके से व्यवस्था बनाई जा रही है। इस व्यवस्था से बैंकों के फंसे हुए कर्ज की वसूली हुई है और व्यावसायिक संस्कृति में सुधार हुआ है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि 2018-19 के दौरान मौद्रिक वृद्धि दर दीर्घकालिक प्रवृति की ओर बढ़ी। पिछले वित्त वर्ष में प्रचलन में रही मुद्रा में 22.6 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। कुल आरबीआई ऋण में वृद्धि मुख्य रुप से वर्ष के दौरान मुक्त बाजार संचालनों के कारण हुई। बैंकिंग प्रणाली में जमा, मांग और समय दोनों में, वृद्धि हुई। इसके परिणाम स्वरूप 2018-19 में कुल जमा 9.6 प्रतिशत बढ़ा।
आर्थिक समीक्षा में तरलता के विषय में कहा गया है कि 2018-19 के अंतिम दो तिमाहियों तथा 2019-20 की पहली तिमाही में औसत तरलता की स्थिति घाटे में रही। तरलता की कठिनाई ब्याज दरों में भी दिखी। तरलता के मामले में तीन कारणों से स्थिति कठिन हुई। पहला, 2018-19 के अंतिम दो तिमाहियों में बैंक कर्ज वृद्धि में सुधार हुआ, लेकिन बैंक जमाओं में गति धीमी रही। प्रचलित मुद्रा के विकास में भी तेजी आई। महत्वपूर्ण बात यह है कि आरबीआई को विनिमय दर के उतार-चढ़ाव को थामने के लिए 32 बिलियन डॉलर से अधिक की विदेशी मुद्रा सुरक्षित धन से निकालनी पड़ी। आरबीआई ने विभिन्न साधनों के जरिए तरलता लाकर समस्या का समाधान निकाला। वर्ष के दौरान 10 वर्ष के सरकारी प्रतिभूति (जी-सेक) मानक उतार-चढ़ाव भरा रहा।
समीक्षा में कहा गया है कि 2018-19 में बैंकिंग क्षेत्र विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कार्य प्रदर्शन में सुधार हुआ। मार्च, 2018 और दिसंबर, 2018 के बीच अनुसूचित वाणिज्य बैंकों का सकल एनपीए अनुपात 11.5 प्रतिशत से घटकर 10.1 प्रतिशत हो गया। पिछले कुछ वर्षों में गैर खाद्य बैंक कर्ज (एनएफसी) के विकास की गति धीमी रही, लेकिन 2018-19 में इसमें सुधार आया। 2018-19 में बड़े उद्योगों तथा सेवा क्षेत्र को बैंकों द्वारा कर्ज देने से समग्र एनएफसी में विकास हुआ। लेकिन ऋण वृद्धि की गति पिछले कुछ महीनों में साधारण रही।
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को रेटिंग में कमी आने के कारण तथा आईएल और एफएस समूह के दोष के कारण कठिन समय का सामना करना पड़ा। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की गंभीर तरलता स्थिति को देखते हुए सरकार ने तेजी से कार्रवाई की और समस्या के समाधान के लिए तत्काल कदम उठाया। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को संसाधनों के प्रवाह की कमी से हाल की तिमाहियों में इस क्षेत्र की ऋण देने की क्षमता पर प्रभाव पड़ा है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि पिछले वर्ष की तुलना में 2018-19 के दौरान बांड (डेट) निर्गम के माध्यम से काफी संसाधन जुटाए गए। लेकिन सार्वजनिक निर्गम और राइट इश्यू के माध्यम से संसाधन जुटाने में कमी आई। 2018-19 के दौरान भारतीय कंपनियों ने पूंजी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए निजी प्लेसमेंट मार्ग को प्राथमिकता दी। सभी म्युचुअल फंडों के प्रबंध के अंतर्गत संचयी कुल संपत्ति 11.4 प्रतिशत बढ़कर 23,79,584 करोड़ रुपये हो गई। 2018-19 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा 5,499 करोड़ रुपये निकाले गए। वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान सामान्य बीमा कर्ताओं (भारत के अंदर) का सकल प्रत्यक्ष प्रीमियम 17.6 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर्ज करते हुए 1,50,660 करोड़ रुपये हो गया।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि दिवाला और दिवालिएपन की समस्या से निपटने के लिए प्रणालीबद्ध तरीके से व्यवस्था की जा रही है। इसके कारण फंसे हुए कर्जों की वसूली हुई है और कारोबारी संस्कृति में सुधार हुआ है। 31 मार्च, 2019 तक कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया के अंतर्गत 94 मामलों का समाधान हुआ। इसके परिणाम स्वरूप 1,73,359 करोड़ रुपये के दावों का निपटान किया गया। 28 फरवरी, 2019 तक आईबीसी प्रावधानों के अंतर्गत 2.84 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 6079 मामले स्वीकृति से पहले वापस ले लिए गए। आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार पहले के गैर-निष्पादक खातों से 50,000 करोड़ रुपये बैंकों को प्राप्त हुए। आरबीआई की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अतिरिक्त 50,000 करोड़ रुपये को गैर मानक से उन्नत बना करके मानक संपत्ति बनाया गया। यह सभी कदम आईबीसी प्रक्रिया में प्रवेश करने से पहले व्यापक ऋण व्यवस्था के लिए व्यवहार परिवर्तन दिखाते हैं।
(साभार: pib.nic.in)
(('बिना प्रोफेशनल ट्रेनिंग के शेयर बाजार जरूर जुआ है'
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