(साभार-नवभारत टाइम्स- https://navbharattimes.indiatimes.com/business/personal-finance/savings-and-investments/must-bring-paper-shares-in-the-demat-form-till-december-5th-otherwise-/articleshow/64828315.cms )
पेपर शेयरों को 5 दिसंबर तक डीमैट फॉर्म में जरूर ले आएं, नहीं तो...
नवभारत टाइम्स
अगर आपके पास पेपर फॉर्म में शेयर्स हैं तो आपको उन्हें जल्द से जल्द डीमैट फॉर्मैट में लाना चाहिए। सेबी ने लिस्टिंग ऑब्लिगेशंस एंड डिस्क्लोजर रिक्वायरमेंट्स (LODR) रेगुलेशंस में संशोधन किया है। नए रूल के हिसाब से 5 दिसंबर के बाद शेयरों के ट्रांसफर रिक्वेस्ट पर विचार नहीं किया जाएगा अगर वे डीमैट फॉर्मैट में नहीं होंगे। नया रूल सिक्योरिटीज के ट्रांसमिशन या ट्रांसपोर्टेशन के मामलों में लागू नहीं होगा।
मुंबई से चल रहे स्टॉक एक्सचेंजों को ऑनलाइन हुए दो दशक से ज्यादा समय बीत चुका है लेकिन टोटल मार्केट कैपिटलाइजेशन का लगभग 2.3% हिस्सा अब भी फिजिकल स्टॉक फॉर्म में है। जो शेयर पेपर फॉर्म में हैं उनको दिसंबर तक डीमैट फॉर्मैट में लाना होगा अगर वे उन्हें बेचना या ट्रांसफर करना चाहते हैं।
IIFL के हेड ऑफ ब्रोकिंग अरिंदम चंदा ने कहा, 'पहले प्रमोटर्स को फिजिकल फॉर्म में शेयर बेचने या ट्रांसफर करने पर रोका गया था। अब नया रेगुलेशन दूसरे इनवेस्टर्स पर भी लागू हो गया है। इसका मतलब यह हुआ कि सभी लिस्टेड एंटिटीज के शेयरों में पेपर फॉर्मैट में ऑफ मार्केट ट्रेड पर पाबंदी लग जाएगी। उनका ट्रांसफर और ट्रांजैक्शन सिर्फ डीमैट फॉर्मैट में हो पाएगा।'
लॉन्ग टर्म रिटेल इनवेस्टर्स और कुछ इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स के पोर्टफोलियो का बड़ा हिस्सा अरसे से फिजिकल फॉर्मैट में है। हालांकि सात साल पहले सेबी ने समूची शेयरहोल्डिंग्स को डीमैट फॉर्मैट में लाने का नियम बनाया था। रिटेल इनवेस्टर्स के पास ~1.24 लाख करोड़ मूल्य के शेयर फिजिकल फॉर्म में हैं जबकि म्यूचुअल फंड्स के पास ~45,760 करोड़ मूल्य के शेयर पेपर फॉर्म में हैं।
मिसाल के लिए आईटीसी के एक लाख करोड़ रुपये मूल्य के 31% शेयर अब भी फिजिकल फॉर्म में हैं। इसी तरह रिलायंस इंडस्ट्रीज के ~9600 करोड़ मूल्य के शेयर अब तक डीमैट फॉर्मैट में नहीं लाए गए हैं। MRF, सन फार्मा, JSW एनर्जी और HUL में हरेक के लगभग ₹~7,000-8,000 करोड़ के शेयर पेपर फॉर्मैट में हैं।
इनमें से ज्यादातर शेयर कई दशक पहले, डिपॉजिटरी एक्ट पास होने से भी पहले खरीदे गए थे। इनवेस्टर्स ने उन्हें लॉन्ग टर्म नजरिए से खरीदा था इसलिए उन्हें उन शेयरों को पैसे खर्च करके डीमैट फॉर्मैट में लाने का कोई तुक नजर नहीं आया।
शेयर समाधान के को-फाउंडर विकास जैन ने कहा, 'संशोधन फर्जी ट्रांसफर की घटनाओं पर रोकथाम लगाने और ट्रांसपेरेंसी सुनिश्चित करने के मकसद से किया गया है। जिन इनवेस्टर्स के पास फिजिकल फॉर्म में शेयर होते हैं, उन्हें कई बार कंपनियों के बोनस या डिविडेंड के ऐलान का पता नहीं चल पाता है। यह सब शेयरहोल्डर्स का पता बदल जाने और उनकी तरफ से क्लेम नहीं किए जाने की वजह से होता है।'
2016 में टीसीएस, एप्टेक, ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज और एशियन पेंट्स सहित कई लिस्टेड कंपनियों ने शेयर ट्रांसफर एजेंट शेयरप्रो के खिलाफ इनवेस्टर्स के अनक्लेम्ड डिविडेंड और शेयर गलत तरीके से ट्रांसफर करने की शिकायत दर्ज कराई थी। जून 2011 में मार्केट रेगुलेटर ने लिस्टेड कंपनियों के प्रमोटर्स के लिए पूरी इक्विटी होल्डिंग सितंबर 2011 तक डीमैट फॉर्म में लाना जरूरी कर दिया था।
उस समय सेबी ने कहा था कि अगर प्रमोटर अपनी पूरी होल्डिंग को डीमैट फॉर्म में लाने में नाकामयाब रहते हैं तो उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी। NSDL और CDSL दो मेन डिपॉजिटरी हैं जो अपने रजिस्टर्ड डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट्स के जरिए इनवेस्टर्स की सिक्योरिटीज डीमैट फॉर्मैट में रखते हैं।
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