केन्द्रीय वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने प्रमुख अर्थशास्त्रियों के साथ अपनी पांचवीं बजट-पूर्व परामर्श बैठक की
वित्त मंत्री ने कहा, ‘वैश्विक स्तर पर आर्थिक सुस्ती के बावजूद भारत में विकास की गति आकर्षक है और यह पिछले तीन वर्षों के दौरान दुनिया की सर्वोत्तम विकास दरों में से एक रही है’
चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में दर्ज की गई विकास दर से पिछली कुछ तिमाहियों में नजर आ रही सुस्ती के अब समाप्त हो जाने की पुष्टि होती है : वित्त मंत्री
केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री श्री अरुण जेटली ने कहा कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक सुस्ती के बावजूद भारत में विकास की गति आकर्षक है और यह पिछले तीन वर्षों के दौरान दुनिया की सर्वोत्तम विकास दरों में से एक रही है। उन्होंने कहा कि भार वर्ष 2014-15 से लेकर वर्ष 2016-17 तक की अवधि के दौरान भारत की आर्थिक विकास दर औसतन 7.5 प्रतिशत रही है, जो इससे पिछले दो वर्षों में दर्ज की गई विकास दर की तुलना में काफी अधिक है। वित्त मंत्री श्री जेटली आज नई दिल्ली में प्रमुख अर्थशास्त्रियों के साथ अपनी पांचवीं बजट-पूर्व परामर्श बैठक में आरंभिक भाषण दे रहे थे। वित्त मंत्री श्री जेटली ने यह भी कहा कि चालू वित्त वर्ष 2017-18 की दूसरी तिमाही में दर्ज की गई विकास दर से पिछली कुछ तिमाहियों में नजर आ रही सुस्ती के अब समाप्त हो जाने की पुष्टि होती है। वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि हम राजकोषीय मजबूती के रोडमैप पर अमल कर रहे हैं, जिसके तहत जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के अनुपात के रूप में राजकोषीय घाटा वर्ष 2015-16 में 3.9 प्रतिशत एवं वर्ष 2016-17 में 3.5 प्रतिशत रहा, जबकि चालू वित्त वर्ष में इसके 3.2 प्रतिशत रहने की आशा है। वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि व्यय को तर्कसंगत बनाने, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजना (डीबीटी) एवं सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (पीएफएमएस) के जरिए सार्वजनिक व्यय में खामियों को दूर करने और राजस्व बढ़ाने के लिए अपनाए गए अभिनव प्रयासों से ही राजकोषीय घाटे के इन लक्ष्यों की प्राप्ति में हम समर्थ हो पाए हैं।उपर्युक्त बजट-पूर्व परामर्श बैठक में अनेक प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने भाग लिया, जिनमें नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार, नीति आयोग के सदस्य एवं प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के अध्यक्ष श्री बिबेक देबरॉय, वित्त सचिव डॉ. हसमुख अधिया, व्यय सचिव श्री ए.एन. झा, आर्थिक मामलों के सचिव श्री सुभाष चन्द्र गर्ग, मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. अरविंद सुब्रमण्यन और सीबीडीटी के अध्यक्ष श्री सुशील कुमार चन्द्र भी शामिल थे। इनके अलावा वित्त मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भी इस बैठक में भाग लिया।
उपर्युक्त बैठक में भाग लेने वाले अर्थशास्त्रियों एवं अन्य आर्थिक विशेषज्ञों की ओर से अनेक महत्वपूर्ण सुझाव प्राप्त हुए। इनमें से एक प्रमुख सुझाव यह था कि आगामी बजट में सरकार को राजकोषीय मजबूती के मार्ग पर चलना जारी रखना चाहिए और यदि राजकोषीय लक्ष्यों की प्राप्ति में किसी भी वजह से कोई कमी रह जाती है, तो उस बारे में स्पष्टीकरण दिया जा सकता है। इसी तरह एक सुझाव यह था कि अगले बजट में कर सुधारों के रोडमैप (खाका) की भी घोषणा की जानी चाहिए। इसी तरह एक अन्य सुझाव यह दिया गया कि वृहद आर्थिक स्थिरता से कोई भी समझौता किये बगैर बुनियादी ढांचागत क्षेत्र में निवेश के साथ-साथ छोटे एवं मझोले उद्यमों (एसएमई) एवं निर्माण क्षेत्रों के लिए और ज्यादा प्रोत्साहन दिये जाने चाहिए, ताकि वे आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद बन सकें। इसी तरह महंगाई दर को 4-6 प्रतिशत के दायरे में रखने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए किसानों को उनकी उपज के उचित मूल्य सुलभ कराने पर भी ध्यान केन्द्रित करने का सुझाव दिया गया।
एक अन्य सुझाव यह था कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के विनिवेश पर और अधिक जोर दिया जाना चाहिए, क्योंकि इससे राजकोषीय घाटे को पाटने और व्यय संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त राजस्व अर्जित करने में मदद मिलेगी। एक अन्य सुझाव यह दिया गया कि वृद्धावस्था पेंशन को मौजूदा 200 रुपये से बढ़ाकर 500 रुपये और विधवा पेंशन को मौजूदा 300 रुपये से बढ़ाकर न्यूनतम 500 रुपये कर दिया जाए।
इसी तरह एक अन्य सुझाव यह दिया गया कि समस्त रियायतों को समाप्त करते हुए कॉरपोरेट टैक्स की दर को घटाकर 20 प्रतिशत तक के स्तर पर ला दिया जाए, ताकि कॉरपोरेट जगत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाया जा सके। इसी तरह इक्विटी लाने एवं राजस्व बढ़ाने के लिए दीर्घावधि पूंजीगत लाभ पर टैक्स लगाने, न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) में कमी करने और दरों में सामंजस्य लाने सहित जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के लिए रोडमैप की घोषणा करने जैसे सुझाव भी दिए गए। इसी तरह एसएमई सहित श्रम बहुल उद्योगों और अनौपचारिक तथा असंगठित क्षेत्रों को प्रोत्साहन देने का भी सुझाव दिया गया। इसके अलावा कर प्रशासन को और ज्यादा करदाता अनुकूल बनाने का भी सुझाव दिया गया। एक अन्य सुझाव यह दिया गया कि फसल बीमा योजना पर नये सिरे से विचार किया जाए तथा इसे और ज्यादा प्रभावकारी बनाया जाए। इसके अलावा एक अन्य सुझाव यह था कि फसल बीमा योजना के तहत न केवल फसलों के खराब होने, बल्कि कीमतों के एकदम नीचे आ जाने की स्थिति को भी कवर किया जाए।
उपर्युक्त बैठक में पेंशन एवं बुनियादी ढांचागत क्षेत्र के वित्त पोषण के लिए दीर्घकालिक ‘न्यू इंडिया बांड’ जारी करने का भी सुझाव दिया गया। बैठक में यह भी सुझाव दिया गया कि रक्षा क्षेत्र में निजी एवं सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, क्योंकि इस दिशा में व्यापक संभावनाएं हैं। एक अन्य सुझाव यह दिया गया कि मनरेगा के तहत मिलने वाली मजदूरी में वृद्धि करके इसे न्यूनतम मजदूरी के बराबर अथवा यहां तक कि इसे बाजार दरों के अनुरूप कर दिया जाना चाहिए।
(Source: pib.nic.in)
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