देश की आर्थिक विकास दर वित्त वर्ष 2016-17 में गिरकर तीन साल के निचले स्तर पर आ गई है। यही नहीं, वित्त वर्ष जनवरी-मार्च की जीडीपी ग्रोथ 6.1 प्रतिशत दर्ज की गई है। इससे दुनिया में सबसे तेज गति से विकास करने का जो हमें तमगा मिला हुआ था, वो भी हमने खो दिये हैं। इस मामले में चीन फिर से हमसे आगे निकल गया है। चीन ने समान तिमाही में 6.9 प्रतिशत की दर से विकास किया है।
इस साल मॉनसून भी बेहतर रहने का अनुमान है। इससे कृषि सेक्टर के साथ-साथ पूरी इकोनॉमी को ऑक्सीजन मिलने के आसार हैं। ऐसे में भारतीय कंपनियों और अर्थशास्त्रियों की नजरें रिजर्व बैंक की मौद्रिक पॉलिसी समिति की बैठक पर जा टिकी हैं। यह बैठक अगले हफ्ते की 6-7 तारीख को होने वाली है। कंपनियों और अर्थशास्त्रियों ने आरबीआई से ब्याज दर घटाने की मांग की है।
एसोचैम ने कहा है कि नौकरियों को बचाने, ग्रोथ को बढ़ाने और इंडस्ट्री पर से नोटबंदी के असर को कम से कम करने के लिए रिजर्व बैंक को प्रमुख नीतिगत दरों में कमी करनी चाहिए। आपको बता दें कि इससे पहले अप्रैल में हुई आरबीआई मौद्रिक पॉलिसी समिति की बैठक में रेपो रेट को तो 6.25 प्रतिशत पर स्थिर रखा गया था लेकिन रिवर्स रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत बढ़ोतरी करते हुए इसे 5.75 प्रतिशत से 6 प्रतिशत कर दिया गया था। वहीं दूसरी ओर, एमएसएफ और बैंक रेट में चौथाई परसेंट की कमी करते हुए इसे 6.75 प्रतिशत से 6.50 प्रतिशत कर दिया गया था।
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