मौद्रिक पॉलिसी समिति की 5,6 अप्रैल की बैठक में रिजर्व बैंक ने 2017-18 के लिए, पहली छमाही में मुद्रास्फीति का औसत 4.5 प्रतिशत रहने और दूसरी छमाही में 5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है (चार्ट 1)। रिजर्व बैंक ने इसकी वजह बताई है कि आखिर क्यों महंगाई बढ़ सकती है...
- पहला जोखिम, जुलाई-अगस्त के आसपास अल-नीनो के आने की बढ़ती संभावना और खाद्य स्फीति पर इसके प्रभावों को देखते हुए, दक्षिण-पश्चिम मानसून के परिणामों से जुड़ी अनिश्चितताओं से उत्पन्न होता है। मुख्य मुद्रास्फीति पर पड़ने वाले दबाव का निवारण करने में अग्रसक्रिय आपूर्ति प्रबंध की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।
- प्रमुख जोखिम 7वें केंद्रीय वेतन आयोग द्वारा यथा अनुशंसित भत्तों के लागू किए जाने के प्रबंध करने से उत्पन्न हो सकता है। 7वें वेतन आयोग की अनुशंसा के अनुसार मकान किराया भत्ता (एचआरए) में वृद्धि होने पर, 12 से 18 महीनों की अवधि के दौरान बेसलाइन पथ (ट्रेजेक्टरी) के अनुमानत: 100-150 आधार अंक उठ सकता है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर इस प्रारंभिक सांख्यिकीय प्रभाव के बाद दूसरी श्रेणी के प्रभाव पड़ सकते हैं।
-जोखिम वृद्धि की एक अन्य संभावना वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के एकबारगी पड़ने वाले प्रभाव से उत्पन्न होती है। सामान्य सरकारी घाटा, जो अंतरराष्ट्रीय तुलना के अनुसार अधिक है, के कारण मुद्रास्फीति के पथ पर एक अन्य जोखिम उत्पन्न होता है, जिसकी स्थिति कृषि ऋण माफी से और खराब होने की संभावना है।
-हाल के वैश्विक घटनाक्रम से पुनर्मुद्रास्फीति का जोखिम बढ़ सकता है, जिसके कारण पण्यों के मूल्य और अधिक बढ़ सकते हैं। इसका असर घरेलू मुद्रास्फीति पर पड़ सकता है। इसके अलावा, भू-राजनैतिक जोखिमों के कारण वैश्विक वित्तीय बाजार की अनिश्चितता बढ़ सकती है, जिसके अनुगामी अन्य प्रभाव भी देखे जा सकते हैं। कमी होने की दृष्टि से, हाल के समय में तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों में कमी देखी गई है और पेट्रोलियम उत्पादों के घरेलू मूल्यों पर उनके प्रभाव को अंतरित करने से मुख्य मुद्रास्फीति पर दबाव और बढ़ सकता है।
-हालांकि, खाद्यान्न के रिकॉर्ड उत्पादन को देखते हुए, सरकारी खरीद में वृद्धि होने से बफर स्टॉक की पुन:स्थापना होगी, और यदि ऐसा सचमुच होता है तो खाद्य मूल्यों पर पड़ने वाला दबाव कम होगा।
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