अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव के समय टीपीपी ट्रेड डील से अमेरिका को बाहर निकालने का वादा किया था। ट्रंप अपने वादा पर खरे उतरे। ताजपोशी के महज एक हफ्ते के भीतर ही उन्होंने इस डील से अमेरिका को बाहर निकालने वाले कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। ट्रंप का मानना है कि यह करार अमेरिकी नौकरियों और विनिर्माण क्षेत्र के हितों के खिलाफ था।
> टीपीपी एग्रीमेंट की खास बातें:
टीपीपी यानी ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप एक व्यापारिक समझौता (ट्रेड डील) है। अमेरिका के अलावा प्रशांत महासागर के 11 तटीय देश -जापान (पहले ही इस समझौते को मंजूरी दे चुका है), मलेशिया, वियतनाम, सिंगापुर, ब्रुनेई, ऑस्ट्रेलिया, न्यू जीलैंड, कनाडा, मेक्सिको, चिली और पेरू इसके सदस्य देश हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में पिछले साल फरवरी में यह समझौता हुआ था। इन देशों की अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था का करीब 40% है। अमेरिका की अगुआई में अक्टूबर 2015 में इस पर सहमति बनी थी।
इस समझौते का प्रमुख लक्ष्य था यूरोपियन यूनियन की तरह ही एक 12 देशों वाला एकल बाजार यानी सिंगल मार्केट का निर्माण करना और निवेश बढ़ाना। साथ ही साथ सीमा शुल्कों में कटौती करना और ग्रोथ को बढ़ाने के लिए आपसी कारोबार को बढ़ावा देना भी इसका उद्देश्य था। इस पार्टनरशिप के देशों ने आर्थिक नीतियों और नियमनों के मामलों में भी रिश्ते में गरमाहट लाने की उम्मीद की थी।
ओबामा ने इस एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने और अमेरिकी प्रभाव बढ़ाने के इरादे से टीपीपी करार किया था। लेकिन, अमेरिकी विपक्ष दलों ने इस करार को बड़े व्यापारिक घरानों और दूसरे देशों के लिए फायदेमंद जबकि अमेरिकी नौकरियों और संप्रभूता के लिए खतरे के तौर पर प्रचारित कर इसका विरोध किया था। अपने चुनाव अभियान के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने इसे 'संभावित आपदा ' करार दिया था।
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