साल 2016 एग्री कमोडिटीज मसलन, सोयाबीन, सरसों, कपास, जीरा, इलायची, हल्दी, ग्वारगम एवं ग्वारसीड, चीनी बगैरह के लिए मिला-जुला रहा।
इलायची, क्रूड पाम ऑयल और जीरा सबसे ज्यादा रिटर्न देने वाली कमोडिटीज में शामिल रहे जबकि हल्दी, सोयाबीन के साथ-साथ ग्वारगम और ग्वारसीड सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली कमोडिटीज रहे। पिछले साल तो खट्टे-मीठे अनुभव के साथ बीत गया, लेकिन एग्री कमोडिटी निवेशक का पूरा ध्यान अब इस बात पर होगा कि इस साल यानी 2017 में एग्री कमोडिटीज के फंडामेंटल सितारे क्या कहते हैं....
>सोयाबीन: अधिक उपलब्धता का अनुमान, जिससे कीमतों पर दबाव मुमकिन
-अनुकूल मौसम से इस सोयाबीन साल (अगस्त-जुलाई 2016-17) के दौरान देश में प्रति हेक्टेयर सोयाबीन का करीब दोगुना उत्पादन होने की संभावना है। पिछले सोयाबीन साल में सोयाबीन का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 626 किलोग्राम था जिसे इस सोयाबीन साल में बढ़कर 1,047 प्रति हेक्टेयर होने का अनुमान है।
-अगर अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे की बात करें, तो इस साल 338 मिलियन टन सोयाबीन का उत्पादन होने की संभावना है जबकि पिछले साल ये आंकड़ा 313 मिलियन टन था। यानी पिछले साल के मुकाबले इस साल सोयाबीन का उत्पादन 8 % अधिक रहने वाला है। इसके अलावा, सोयाबीन का सबसे अधिक उत्पादन करने वाले देशों अमेरिका, ब्राजील और चीन में भी सोयाबीन का उत्पादन इस साल बढ़ने का अनुमान है, इसलिए मांग और आपूर्ति के स्तर पर कोई खास दिक्कत आने की संभावना नहीं क बराबर है। सिर्फ अर्जेंटीना में उत्पादन कुछ कम हो सकता है।
-SOPA यानी सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक, 2017 की पहली छमाही में देश में 114 लाख टन से अधिक सोयाबीन रहने का अनुमान है। घरेलू सोयाबीन के रिकॉर्ड उपलब्धता के अलावा विदेशी सोयाबीन की मात्रा भी इस दौरान अच्छी-खासी रहने वाली है, जो कि सोयाबीन की कीमत पर दबाव बना सकती है। भारत सरकार के वाणिज्य विभाग की मानें, तो वित्त वर्ष 2016-17 में अप्रैल-सितंबर के दौरान 40,323 टन सोयाबीन का आयात हो चुका है जबकि इससे पहले के वित्त वर्ष की इसी अवधि में 20,557 टन सोयाबीन का आयात हुआ था। आयात मुख्य तौर पर इथियोपिया से ज्यादा हुआ है।
-विदेशी बाजारों में सोयाबीन की कीमत में तेजी का रुझान बना हुआ है। इसकी मुख्य वजह है चीन के अलावा सोयाबीन के दो प्रमुख उत्पादक देशों अर्जेंटीना और ब्राजील से काफी मात्रा में मांग आना। दक्षिण अफ्रीका में सोयाबीन की नई फसल (अप्रैल-मई) आने तक विदेशी बाजारों में इसकी कीमत में उतार-चढ़ाव जारी रहेगा। ला नीनी और खराब मौसम कभी भी फसल के लिए संकट साबित हो सकते हैं।
-घरेलू बाजार की बात करें, सोयाबीन का पर्याप्त स्टॉक है, लेकिन इसकी कीमत सोयामील के एक्सपोर्ट की मात्रा और क्रूड सोया ऑयल की आयात निर्भरता पर निर्भर करती है। आपको बता दें कि भारत क्रूड सोया ऑयल का सबसे बड़ाआयातक है।
-एक बात और बता दूं कि चीन सोयाबीन का सबसे बड़ा आयातक है। कुल आयात का 60% चीन अकेले करता है। 2016-17 में चीन की तरफ से सोयाबीन की मांग पिछले साल के मुकाबले 3.3% या 2.8 मिलियन टन बढ़कर 86 मिलियन टन रहने का अनुमान है।
>सरसों:
-घरेलू स्तर पर बात करें तो सरसों उत्पादन करने वाले सभी राज्यों में बुआई का रकबा बढ़ा है। सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी 2014-15 के मुकाबले 2016-17 में 600 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाकर 3700 रुपए किए जाने से किसानों का रुझान इसकी तरफ बढ़ा है। सरसों की बुआई आखिरी चरण में है और अगले दो महीना इसके लिए काफी महत्वपूर्ण है। अगर इस दौरान मौसम अनुकूल रहा तो सरसों की बंपर पैदावार होगी। अगर ऐसा होता है तो सरसों की कीमत भी काबू में रहेगी।
-2016-17 में सरसों तेल का आयात कम रहने का अनुमान है। इसका मतलब हुआ कि घरेलू सरसों की मांग ज्यादा रहेगी। लेकिन, यह भी सरसों की कीमत को बढ़ाने में शायद ही मददगार साबित हो, क्योंकि भारतीय सरसों खली की निर्यात मांग सुस्त रहने वाली है। भारत में सरसों तेल का आयात तभी होता है जब वैश्विक बाजारों में इसकी कीमत कम हो, सरसों खली का निर्यात हो, इंपोर्ट ड्यूटी कम हो और भारी घरेलू मांग हो।
-2016-17 में भारत सिर्फ 4 लाख टन सरसों तेल का आयात कर सकता है जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 6.7 लाख टन था। यूएसडीए यानी यूनाइटेड स्टेट डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर के मुताबिक, भारत में इस साल 22 लाख टन सरसों का उत्पादन होगा जबकि खपत 25.4 लाख टन रहने की संभावना है। भारत मांग और आपूर्ति की इस कमी को कनाडा और यूरोपियन यूनियन से रेपसीड का आयात कर पूरा करता है लेकिन इस साल सरसों का अच्छा उत्पादन होने की वजह से आयात काफी कम रहने वाला है।
-सरसों की कीमत आने वाले दिनों में बहुत कुछ मौसम और सरसों खली की एक्सपोर्ट मांग पर निर्भर करती है।
>कॉटन:
-इस साल कॉटन का उत्पादन पिछले साल के जितना ही रहने वाला है। हालांकि, इस कॉटन सीजन में इसकी कीमत में कुछ तेजी देखी गई है। दरअसल, यह नोटबंदी की वजह से उपजे नकदी संकट का परिणाम है। इस कॉटन सीजन में बुआई के समय में कीमत में कमी के बावजूद 2014 और 2015 के कॉटन सीजन के मुकाबले कीमत अधिक रही है।
-कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) ने 2016-17 के कॉटन सीजन (अगस्त-जुलाई) में उत्पादन अनुमान पहले के अनुमान 339 लाख बेल्स (1 बेल= 170 किलोग्राम) से बढ़ाकर 346 लाख बेल्स कर दिया है। इसके अलावा 45 लाख बेल्स का स्टॉक अभी बचा हुआ है, जबकि 17 लाख बेल्स कॉटन का आयात होने की संभावना है। यानी 408 लाख बेल्स कॉटन की आपूर्ति भारतीय बाजार में इस कॉटन साल में होने की उम्मीद है. जो कि पिछले कॉटन साल के मुकाबले 4.4% यानी 19 लाख बेल्स कम है।
-अंतर्राष्ट्रीय स्तर की बात करें तो मौसम की स्थिति सुधरने से कॉटन का उत्पादन इस साल पिछले साल के मुकाबले 8% बढ़कर 22.7 लाख टन रहने का अनुमान है। हालांकि, कॉटन के वैश्विक रकबा में 4% की कमी आई है लेकिन प्रति हेक्टेयर अधिक उत्पादन होन का अनुमान है। इस साल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 775 किलोग्राम रहने की संभावना है जो कि 5 साल के औसत प्रति हेक्टेयर उत्पादन से ज्यादा है।
-इस दौरान कॉटन की वैश्विक खपत में मामूली बढ़ोतरी का अनुमान है। पिछले साल कॉटन की वैश्विक खपत 24.2 मिलियन टन थी जबकि इस साल इसे बढ़कर 24.4 मिलियन टन होने का अनुमान है।
-इसलिए, घरेलू बाजार में अगर कॉटन की नई फसल आती है तो इसकी कीमत में कमी आने के भरपूर आसार हैं।
-इसके अलावा, कॉटन के आयात की संभावना ज्यादा है जबकि निर्यात की कम, इससे कॉटन की कीमत पर दबाव पड़ सकता है।
>जीरा (Cumin):
-गुजरात और राजस्थान सबसे ज्यादा जीरा उत्पादन करने वाले राज्य हैं। कुल घरेलू जीरा उत्पादन का 80% उत्पादन इन्हीं दो राज्यों में होता है। इसलिए 2016-17 में जीरे का कितना उत्पादन होगा, यह बहुत कुछ इन दो राज्यों में जीरे का रकबा पर निर्भर करता है। कारोबारियों की मानें तो इस साल जीरे का उत्पादन पिछले साल जितना या उससे कुछ ही अधिक रह सकता है।
-जीरे की बुआई की प्रगति को देखते हुए आंकड़े बता रहे हैं कि गुजरात में पिछले साल के मुकाबले इस साल अब तक जीरे की बुआई पिछड़ी हुई है। 26 दिसंबर तक गुजरात के किसान 2,67,100 हेक्टेयर में जीरे की बुआई कर चुके थे जबकि 2015-16 की इसी अवधि के दौरान यह रकबा 2,68,300 हेक्टेयर था।
-डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर, को-ऑपरेशन और फार्मर वेल्फेयर (हॉर्टिकल्चर डिवीजन) की मानें तो, 2015-16 में देश में सबसे जीरे का अब तक का सबसे ज्यादा उत्पादन हुआ। बावजूद इसने करीब 25% का रिटर्न दिया। अच्छी क्वालिट होने की वजह से जीरे की घरेलू के साथ-साथ निर्यात मांग भी अच्छी रही। तीसरे पूर्व अनुमान के मुताबिक, इस साल 3.74 लाख टन जीरे का उत्पादन हो सकता है जो कि पिछले साल के मुकाबले 18 % अधिक है। हालांकि, उत्पादन और क्वालिटी बहुत कुछ मौसम पर निर्भर करता है।
-इस साल जीरे की निर्यात मांग में बढ़ोतरी का अनुमान है। इस साल अब तक निर्यात में इजाफा का ही रुझान है। दूसरी तरफ, दुनिया के दूसरे निर्यातक देश सीरिया, तुर्की और चीन में जीरे की उपलब्धता इस साल कम रहने वाली है। सीरिया में राजनीतिक कारणों से जीरे के उत्पादन पर असर पड़ सकता है। ऐसे में भारत के लिए अच्छा मौका है। भारत में जीरे की नई पैदावार फरवरी-मार्च तक आने लगेगी। वहीं सीरिया और तुर्की में जीरे की फसल अगस्त-सितंबर में आती है। यानी इस दौरान वैश्विक बाजारों में भारतीय जीरे के लिए अच्छा मौका रहेगा।
-आमतौर पर साल की पहली तिमाही में जीरे का बाजार ठंडा ही रहता है। दरअसल, बड़े-बड़े कारोबारी बंपर फसल की उम्मीद में खरीदारी करने से बचते हैं।
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