-विमुद्रीकरण के बाद वर्ष 2017-18 में जीडीपी वृद्धि दर 6.75 प्रतिशत से लेकर 7.5 प्रतिशत तक रहने का अनुमान
-अचल संपत्ति की कीमतों में गिरावट के परिणामस्वरूप मध्यम वर्ग को किफायती मकान मिलेंगे
-पुनर्मुद्रीकरण से अप्रैल 2017 तक नकदी की किल्लत समाप्त हो जाएगी
सरकार का कहना है कि विमुद्रीकरण से जीडीपी वृद्धि दर पर पड़ रहा प्रतिकूल असर अस्थायी ही रहेगा। केन्द्रीय वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली द्वारा आज संसद में पेश किये गये आर्थिक सर्वेक्षण 2017 में कहा गया है कि मार्च 2017 के आखिर तक नकदी की आपूर्ति के सामान्य स्तर पर पहुंच जाने की संभावना है, जिसके बाद अर्थव्यवस्था में फिर से सामान्य स्थिति बहाल हो जाएगी। अत: वर्ष 2017-18 में जीडीपी वृद्धि दर 6.75 प्रतिशत से लेकर 7.5 प्रतिशत तक रहने का अनुमान है।
आर्थिक सर्वेक्षण में इस ओर ध्यान दिलाया गया है कि विमुद्रीकरण के अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक प्रतिकूल असर और लाभ दोनों ही होंगे, जिसका ब्यौरा संलग्न तालिका में दिया गया है। विमुद्रीकरण से पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों में नकद राशि की आपूर्ति में कमी और इसके फलस्वरूप जीडीपी वृद्धि में अस्थायी कमी शामिल है, जबकि इसके फायदों में डिजिटलीकरण में वृद्धि, अपेक्षाकृत ज्यादा कर अनुपालन और अचल संपत्ति की कीमतों में कमी शामिल हैं, जिससे आगे चलकर कर राजस्व के संग्रह और जीडीपी दर दोनों में ही वृद्धि होने की संभावना है।
विमुद्रीकरण से होने वाले फायदों के संदर्भ में शुरुआती साक्ष्य से यह पता चला है कि विमुद्रीकरण के बाद डिजिटलीकरण ने तेज रफ्तार पकड़ी है। जहां तक विमुद्रीकरण से पड़ने वाले प्रतिकूल असर का सवाल है, इस वजह से चलन में आई नकदी में तेज गिरावट देखने को मिली, हालांकि यह आमतौर पर लगाए गए अनुमान से बेहद कम रही। नवम्बर महीने में यह कमी 62 प्रतिशत रही, जबकि दिसंबर में सुधरकर 35 प्रतिशत के शिखर पर पहुंच गई। 8 नवम्बर के बाद के हफ्तों में लेन-देन के लिए ज्यादा मूल्य वाले पुराने नोटों का उपयोग जारी रहने से ही यह स्थिति देखने को मिली। इसके अलावा, पुनर्मुद्रीकरण से यह सुनिश्चित होगा कि नकदी की किल्लत अप्रैल 2017 तक समाप्त हो जाएगी। इस बीच, नकदी के संकट का काफी प्रतिकूल असर जीडीपी पर पड़ेगा, जिसके चलते 7 प्रतिशत की आधार रेखा के मुकाबले वर्ष 2016-17 में जीडीपी वृद्धि दर 0.25 प्रतिशत से लेकर 0.5 प्रतिशत तक घट जाएगी। दर्ज की गई जीडीपी अनौपचारिक क्षेत्र पर असर को रेखांकित करेगी, क्योंकि, उदाहरण के लिए, अनौपचारिक विनिर्माण द्वारा औपचारिक क्षेत्र के संकेतकों का उपयोग किये जाने का अनुमान है (औद्योगिक उत्पादन सूचकांक)। ये विरोधाभासी असर वर्ष के आखिर तक काफी कम हो जाएंगे, क्योंकि चलन में आने वाले नोटों की संख्या एक बार फिर अनुमानित मांग के अनुरूप हो जाएगी, जिससे विकास की रफ्तार भी वित्त वर्ष 2017-18 तक एक खास रुख को दर्शाने लगेगी।
आर्थिक सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि आठ प्रमुख शहरों में अचल संपत्ति की पहले से घट रही भारांक औसत कीमत 8 नवम्बर, 2016 को विमुद्रीकरण की घोषणा के बाद और ज्यादा घट गई। सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि अचल संपत्ति की कीमतों में समतुल्य कमी अपेक्षित है, क्योंकि इससे मध्यम वर्ग के लिए किफायती मकानों का मार्ग प्रशस्त होगा और देश भर में कामगारों की आवाजाही बढ़ेगी, जो फिलहाल बेहद ज्यादा एवं गैर किफायती किरायों के कारण प्रभावित हो रही है। आर्थिक सर्वेक्षण में अधिकतम दीर्घकालिक फायदे और
न्यूनतम अल्पकालिक प्रतिकूल असर को सुनिश्चित करने के लिए अनेक उपाय सुझाए गए हैं। इनमें से एक सुझाव यह है कि पुनर्मुद्रीकरण में तेजी लाई जाए और विशेष रूप से नकदी निकासी सीमा को जल्द खत्म करने के साथ-साथ नकदी को जमा राशि में मुक्त रूप से तब्दील करना भी सुनिश्चित किया जाए। इससे आर्थिक विकास में आई सुस्ती के साथ-साथ नकदी जमा करने की प्रवृत्ति भी कम होगी। एक अन्य सुझाव यह है कि डिजिटलीकरण को यह सुनिश्चित करते हुए निरंतर बढ़ावा दिया जाए कि यह बदलाव धीरे-धीरे एवं समावेशी
हो और नियंत्रणों के बजाय प्रोत्साहनों पर आधारित हो और इसके साथ ही नकदी बनाम डिजिटलीकरण के प्रतिकूल प्रभावों एवं फायदों में उपयुक्त संतुलन बैठाया जाए। इसके तहत दिया गया तीसरा सुझाव यह है कि विमुद्रीकरण का अनुसरण करते हुए भूमि एवं अचल संपत्ति को जीएसटी के दायरे में लाया जाए। इसके तहत चौथा सुझाव कर दरों और स्टाम्प ड्यूटी में कमी किये जाने के बारे में है। अंतिम सुझाव यह है कि एक बेहतर कर प्रणाली स्थापित की जाए, जो और ज्यादा संख्या में आय घोषणा को बढ़ावा दे और अति उत्साहित कर प्रशासन
से उत्पन्न भय को कम करे।
(Source: pib.nic.in)
(Source: pib.nic.in)
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